झिझिया आइकाल्हि ध्वनि-प्रदूषणक प्रमुख संवाहकसन भऽ गेल अछि। संस्कृति जखन समाजसँ उठैत बजारक सामग्री बनि जाइत अछि तँ अतिरञ्जना ओकर स्वभाव भऽ जाइ छै।
अढ़ाइ दशक पहिनेक अवस्थामे जँ पहुँचल जाय तँ अपना समाजक मुख्यतया श्रमजीवी महिलासभ नवरात्राक समयमे झिझिया खेलाएल करैत छलथि। प्रकट रूपमे भगवतीक आराधना आ समाजकेँ नकारात्मक शक्तिसँ बचएबाक बात कहितो यथार्थमे ई मनोरञ्जन, आत्मसबलीकरण आ स्वातन्त्र्य-सन्धानक उपक्रम होइत छल।
मुदा जेँ कि बजारवाद सम्पूर्णप्रायः सार्थक संस्कृतिक कण्ठ मोकबामे सफल होइत आएल अछि तेँ अन्यान्ये बहुत रासे लोक-सांस्कृतिक सम्पदाजकाँ झिझियो फकसियारी काटि रहल छल। एहनमे जनकपुरधामक तत्कालीन युवासभ Sunil Kumar Mallick, Dr Abhas Labh, Ashok Dutta, रश्मि रानी आ Pravesh Mallick मिलि मिथि समूह नामक एक संस्थाक माध्यमेँ मिथिलाक निट्ठाह जमीनी लोकगीतसभक कैसेट निकाललनि— गीत घर-घरके।
अइमहक बहुतो गीत घर-घरके मात्र नइँ भऽ जन-जनके गीत बनि गेल। तइमे शीर्षपर छल झिझिया— तोहरे भरोसे बढ़म बाबा झिझिरी बनेलियै हौ। धीरेधीरे अइ गीतक लोकप्रियता एतेक बढ़ल जे नेपाल, भारतसहित अमेरिका, इङ्गलैण्ड, अष्ट्रेलिया, जर्मनी आदि विभिन्न देशक मञ्च तथा मनोरञ्जक क्रियाकलापमे प्रस्तुत होबऽ लागल। एक तरहेँ विश्वपटलपर ई मिथिलाक ‘कल्चरल एन्थम’क रूपमे स्थापित भऽ गेल।
झिझियाक पुनर्जागरणसँ एकर अन्तर्तत्त्व की-कते फौदाएल से नइँ जानि, मुदा झिझिया नाम बेस चर्चित भऽ गेल।
झिझियाक नामपर एकेटा गीतक अनेक मञ्चपर नृत्याभिनय, ग्रामीण महिलासभद्वारा सेहो अपन मौलिक सृजन-कौशलसँ कात भऽ ओही गीतमे डाँड़ लचकएबाक उपक्रम, गम्भीर कहावला सङ्गीतकर्मीसभद्वारा उएह शब्द आ राग-भासक अलग ट्रैक बना नव गीतक रेकर्डिङ आ बादमे तँ घनेरो गायक कहएनिहारसभद्वारा भूत-प्रेत, डाइन-जोगिनक प्रसङ्ग ठूसिठूसिकऽ कनफाडू बाजागाजाक प्रयोग करैत अनेको भद्दा गीत बनाएल गेल। इएहसभ झिझियाप्रति सम्भवतः आब गम्भीर लोकमे वितृष्णा आ अरूचि जनमा रहल छै।
झिझियासङ्गे जुड़ल डाइन-जोगिनक दुष्प्रभावसँ मुक्त होएबाक अनुष्ठानवला पद सेहो एकर गरिमाकेँ घटा रहल छै। संस्कृति कोनो चीजक सङ्केत करै छै, प्रत्यक्ष ‘एक्शन‘ अइमे प्रायः नइँ होइ छै। डाइन भेल तन्त्रमे उल्लिखित डाकिनी शब्दक अपभ्रंस। जोगिन भेल योगिनी अर्थात् योगमे निपुण। अइसँ ई देखल जाइ छै, जे समाजमे विभिन्न विद्या/माध्यमसँ प्राप्त शक्तिक दुरुपयोग कएनिहारक विरुद्ध सेहो झिझियाक माध्यमेँ बाजल वा क्रियाकलाप कएल जाइ छलै।
झिझियाक प्रसङ्गमे आएल डाइन समाजक खलपात्रक रूपमे देखल जाइत अछि, जकरा विरुद्ध लोक प्रत्यक्ष नइँ बाजि सकैत छल। तकरा लेल महिलासभ आपसमे सङ्गठित आ समूहबद्ध भऽ झिझिया खेलाइत ओहन नकारात्मक क्रियाकलाप कएनिहारकेँ चुनौती दैत छलथि। अइ दृष्टिएँ देखल जाए तँ पद-पावरके दुरुपयोग कऽ समाज-देशहितक विपरीत काज कएनिहारसभकेँ डाइन कहल गेलैए। समाजमे अखन जकरा डाइन कहल वा बूझल जाइ छै ।
….. कमजोर महिलाकेँ डाइनक रूपमे आरोपित कऽ ओकर धन, मन, जीवनसँ खेलवाड़ करबाक दुश्चक्र पछिला शताब्दीसभक सामन्ती व्यवस्थाद्वारा सम्पोषित परम्परा छी, से सहजे अनुमान लगाएल जा सकैए।
असलमे से तँ बाट भटकएबाक षड़यन्त्र छियै, असली ‘डाइन’ सत्ताक गलियारीमे दिनराति जादू-टोना करैत विभिन्न माध्यमेँ उजागर होइत रहल अछि।….. कमजोर महिलाकेँ डाइनक रूपमे आरोपित कऽ ओकर धन, मन, जीवनसँ खेलवाड़ करबाक दुश्चक्र पछिला शताब्दीसभक सामन्ती व्यवस्थाद्वारा सम्पोषित परम्परा छी से सहजे अनुमान लगाएल जा सकैए।
हमरा जनैत विद्या आ शक्तिक दुरुपयोग कएनिहार महिलाक विरूद्ध महिलेसभद्वारा डेग उठाओल जएबाक ई एकटा परिपाटी छलै।
प्रश्न ई अवश्य उठैत अछि जे जखन नकारात्मक शक्ति तँ नारीएटा किए, पुरुष किए नइँ? हमरा जनैत विद्या आ शक्तिक दुरुपयोग कएनिहार महिलाक विरूद्ध महिलेसभद्वारा डेग उठाओल जएबाक ई एकटा परिपाटी छलै।
हमरासभक समाजमे विभिन्न पावनि-तिहार, मनोरञ्जन, अवसर, उत्सव आदिकेँ देवता-पितरसँ जोड़ि देबाक परम्परा छै। झिझियोमे कालान्तरमे तेहने कथा आ प्रसङ्गसभ बेसी सतहमे आएल। अन्यथा झिझिया पितृसत्तात्मकता उत्कर्षमे रहल समाज आ समयमे महिलासभद्वारा अपन स्वतन्त्रता, सङ्गठन आ मनोरञ्जनक लेल निकालल गेल एकटा विलक्षण रस्ता छलै।
झिझियाक सृजनात्मक, हृदयग्राही एवं मनोरञ्जक पक्षसभकेँ सम्पोषित करैत एकर खेतमे जनमि आएल खढ़-पतारकेँ कमाकऽ फेकब सुधि समाजक दायित्व छियै। झिझिए उपटएबाक सोच राखब कोनो तरहेँ उचित नइँ मानल जा सकैए। बढ़म बाबा झिझिया खेलनिहारिक झिझरी, देह, जूड़ा आदिपर मात्र नइँ भऽ हमरासभक चिन्तन आ सृजनपर सेहो असवार होथि।