डा. कैलाश कुमार मिश्र
AI अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस केर सब टूल अन्ततः मशीन छै, मनुक्ख नहि जकरासँ एक निश्चित सीमामे मनुक्ख जकां काज लेबाक़ प्रयत्नमे विश्व केर वैज्ञानिक लागल छथि। ई की काज करैत छै अहिसँ अधिक जरूरी जानब ई छै जे ई कोना काज करैत छै। ई प्रोग्रामिंग केर निर्जीव यन्त्र छै जे अपना मिथिला केर बारिक जकां छै, जकर काज भण्डार घरमे उपलब्ध खाद्य पदार्थकेँ जे लोक सब भोज केर पांतिमे बैसल छथि भोजन करबा हेतु तिनकामे सामग्री केर उपलब्धता आ भोजन कएनिहार केर आवश्यकता अनुसार सन्तुलित समय, आ अनुपातमे परोसि देनाई। मतलब ई भेल जे AI केर व्यवहारमे आनय चहैत छी तऽ अपन भाषा (आनो भाषामे) अपन संस्कृति, परम्परा, साहित्य, ज्ञान, विज्ञान आदिक ज्ञान केर प्रचुर आ प्रमाणिक सामग्री डिजिटल फर्मेटमे अनलाइन उपलब्ध कराउ। ई काज के करत ?
ई काज सामूहिक उद्यम सऽ सम्भव अछि। सामूहिक योगदान केर अर्थ भेल सरकार, जे संस्था सब मिथिला आ मैथिली लेल मिथिला केर माटि अथवा प्रवास केर दुनियामे संलग्न छथि से, यूनिवर्सिटी केर अनेक संकाय आ विभाग केर शिक्षक, शोधकर्मी, मैथिल करपोरेट, ऐतिहासिक आ सांस्कृतिक संगठन, विद्वान आ कला संग्रहकर्ता, कलाकार आदि। एकरा हेतु आवश्यक छै जे किछु लोकक एक एहन समूह सेहो जे सामग्री केर प्रमाणिकता, भाषा सम्बन्धि शुद्धता आदिक निर्धारण करथि, जाहि सऽ डिजिटल स्पेसमे गलत सामग्री केर एंट्री नहि हो। अन्यथा कंप्यूटर केर GIGO सिद्धांत “Garbage in Garbage Out” बला बात भ सकैत अछि।
फेर अपन दृष्टान्त मिथिला केर भोज आ बारिक पर अबैत छी। AI बारिक अछि। अपना ओतय केर सर्वमान्य सिद्धान्त ई रहल अछि जे घरबैया भोजसँ पहिने बारिक सभकेँ बजबैत छथि। अपन योजना आ कतेक लोककेँ भोजन करएताह, तकर योजना बनैत छैक। भोजक मेनू तैयार होईत छै। ओहि के अनुसारे सब समान केर व्यवस्था कएल जाईत छै। तकर बादो जखन भोजन तैयार भऽ जाइतत छै, तऽ भण्डार घर केर चाभी बारिककेँ सुपुर्द कऽ देल जाइत छै। आब बारिक वस्तु केर उपलब्धता आ भोजन कएनिहार केर संख्याकेँ देखैत भोज्य पदार्थ केर वितरण करैत छथि। एकरा एना देखू, अहाँ चूरा दहीके भोज कऽ रहल छी, आ कियोक भोज केर पाँतिमे बैसल महानुभाव बारिकसँ रसमलाई केर मांग करथि तऽ बारिक कतऽ सऽ देत !!! इएह स्थिति मैथिली भाषामे कोनो विषय पर AI सँ प्रश्न करब भेल। भेल की नहि ? मरुआ रोटीके ढेर सऽ मालभोग चाउर केर भात कोना परसि देताह बारिक !?
अगर अहाँ AI सऽ शेक्सपियर, न्यूटन अथवा अन्य लोकक जानकारी हेतु जिज्ञासा करबै त ओकर प्रमाणिकता निन्यानबे प्रतिशत धरि सही भऽ सकैत अछि, कारण अंग्रेजीमे अथवा अन्य यूरोपियन भाषामे प्रमाणिक तथ्य सब डिजिटल साइबर स्पेस पर प्रचुर मात्रामे उपलब्ध छै। मैथिलीक बाते छोड़ू हिन्दी, आ तमाम भारतीय भाषाकेँ मिला कऽ सेहाे डिजिटल साइबर स्पेसमे उपलब्ध सामग्री केर अनुपात एखन धरि पाँच प्रतिशतसँ आगा नहि बढ़ल अछि। ई यथार्थकेँ स्वीकार करैत यदि एहि दिशामे सामूहिक प्रयास करी त एक दू सालमे मैथिली भाषामे मिथिला आ मैथिलीसँ सम्बन्धित जानकारी AI केर माध्यमसँ उपलब्ध भऽ सकैत अछि। ताबेत अहिना आनन्द मंगल करैत रही।