भाषा, साहित्य आ आन्दोलनकेँ कमजोर करबाक लेल रचल गेल अंगिका – बज्जिका
मैथिली भाषा साहित्य एवं आन्दोलनकेँ कमजोर करबाक लेल रचल गेल अछि अंगिका - बज्जिकाबला षडयंत्र

आरम्भेसँ राष्ट्रवादक अन्हरमे मैथिली भाषाकेँ एकटा षडयन्त्रक कुटिल जालमे फँसा देल गेल।
ओइ षडयन्त्रमे मिथिलाक तत्कालीन शासक, बुद्धिजीवी ,आन्दोलनी, पंडितलोकनिसभ बहुत सुभितासँ फँसि गेलाह। ओइ चक्रब्यूहकेँ बहुत जबरदस्त तरिकासँ बुनल गेल। षडयन्त्र एतेक गहींर जे अपने लोक अपन मातृभाषाक विकासक विरोध करए लागल। ओइ षडयन्त्रकेँ हिन्दीवादी ध्वजावाहक सभ राष्ट्रीय आन्दोलनक नामपर हवा दैत गेल।
एखनो ओइ हिन्दीवादीक वंशजलोकनि तथाकथित अंगिका, बज्जिकाक विवाद ठाढ़ कएनहि छथि। ई कहबामे कोनो संकोच नइँ जे आइ अइ विवादकेँ बिहारक मगही आओर भोजपूरी क्षेत्रक नेता बहुत मेहींसँ हवा दऽ रहल छथि। हुनका अपना राज्यक भाषा-साहित्यसँ कोनो माने मतलब नइँ छनि, ने अपन मातृभाषा मगही-भोजपूरीसँ आ ने मैथिलीक विकाससँ। ओ लोकनि अलग ‘मिथिला राज्य’ बनबाक दावीक भयसँ आक्रान्त छथि।
जकर एखन कोनो संभावना नइँ अछि। मुदा हुनका सभकें ई भ्रम छनि जे मेथिली बाँचल रहत, तँ आइ ने काल्हि ई लोकनि मिथिला राज्य बनाइए लेत। आ मिथिला राज्य यदि बनैत अछि तँ, मगही-भोजपुरीक अस्तित्व डगमगाएत। कारण, अइ दूनू भाषाक तथाकथित अभियानीसबकेँ अपन भाषाक विकासक लेल ठोस कदम उठाइबे नइँ रहल अछि। तेँ, मिथिला राज्य फोबियासँ ग्रसित छथि ओ सभ।
जाहि दिन मिथिलाक आमलोक अपन अधोगतिक मुख्य कारण बुझि जाएत, ताहि दिन मिथिला राज्य बनि कऽ रहत। मुदा ताबे ओ लोकनि मैथिली भाषाक अस्तित्वकेँ नष्ट करबाक लेल मैथिलीकेँ खण्ड-खण्डमे बाँटि कऽ मैथिली भाषीसभकेँ घरमे, आपसेमे लड़ा रहल छनि। ककरो, तथाकथित भाषाक लेल खड़ा कएल जा रहल संस्थामे पदके नाम पर, तऽ ककरो पुरस्कारक नाम पर। मिथिलाक किछु लोक ओइ कुत्सित मानसिकताक बारेमे निकसँ जानि-बुझि रहल छथि, मुदा, तइयो ओ सब अपन पद आ पुरस्कारलोलुपताक कारण अपन मातृभाषाक विरूद्धमे बुनल गेल जालमे जकड़ा गेल छनि।
बिहारक कोनो भाषाकेँ उत्थान करब हुनका सभक ध्येय नइँ छनि। तकर प्रत्यक्ष प्रमाण हिन्दी ओ उर्दू अकादमीकेँ छोड़ि, सभ भाषायी अकादमी मरनासन्न अछि, समाप्त प्रायः अछि।
नब शिक्षा नीति-२०२० मे प्राथमिक वर्गक शिक्षाक माध्यम बनयबाक बात कहल गेल अछि। भारतक अनेक राज्य ओकरा लागू कऽ देलक, मुदा बिहारक सरकार लेखे धनिसन। मैथिली भाषी नेना सभक संग तऽ अन्याय भ रहल छै। मगही आओर बिहारक एकटा आर प्रमुख भाषा भोजपूरीक सेहो अइसँ बहुत क्षति भऽ रहल छै।
मैथिली भाषाकेँ समाप्त करबाक षडयन्त्र स्वतन्त्रताक पूर्वहिसँ भऽ रहल अछि। अपने लोकनिकेँ हम तीन टा षड्यन्त्रपूर्ण घटना दिश ध्यान दियाब चाहैत छी।
पहिल षड्यन्त्र, –
कांग्रेस पार्टी, वर्धा योजनाके तहत सातम कक्षा धरि जइ भारतीय भाषा लग लिपि ओ साहित्य छलैक, ओइ सभटा भारतीय भाषामे शिक्षा देबाक प्रस्ताव पास भेलैक। १७ मार्च १९३९ ई. मे कांग्रेस पार्टीक अधिवेशनमे सर्वसम्मतिसँ ई स्वीकृत भेल, जे सातम कक्षा धरि मैथिली भाषी बाल-विद्यार्थीसभक शिक्षाक माध्यम मैथिली हो। अइ सम्मेलनमे डा.राजेन्द्र प्रसाद स्वयं उपस्थित छलाह। मुदा, १९४० ई. मे अइ निर्णयकेँ उनटि देल गेल। से कोना उनटि देल गेल, तकर पता एखन धरि नइँ चलल। ओइ कमेटीक एकमात्र मैथिल सदस्य डा.अमरनाथ झा अइ निर्णयसँ असहमति व्यक्त केलनि। आइयो हुनक लिखित विरोधक नोट सीट ओइ रिपोर्टमे सुरक्षित अछि।
दोसर षड्यन्त्र, –
राष्ट्रीय आन्दोलनमे मैथिली भाषाक उपेक्षा आरम्भेसँ सोचल विचारल रणनीतिके तहत कएल जा रहल छल। १९१४ ई. मे भागलपुरमे चतुर्थ हिन्दी साहित्य सम्मेलन आयोजित कएल गेल। अइ सम्मेलनमे मिथिलाक किछु विद्वान, मिथिला क्षेत्रमे मैथिली माध्यमसँ शिक्षा देबाक आओर मैथिली भाषाकेँ भारतीय भाषा दर्जा देबाक माँग कएलनि। सम्मेलनमे एकर जबरदस्त विरोध भेल।
मिथिलाक हिन्दी प्रेमी विद्वानसभ मौन भ गेलाह, मुदा मिथिला वीरविहीन कहियो नइँ रहल। बानुछपरा (वेतिया)के पंडित त्रिलोचन झाक नेतृत्वमे अनेको विद्वान मैथिली विरोधक कारण सम्मेलनक बहिष्कार कएलनि। अइ सम्मेलनमे मैथिल विद्वान सभक अनुपस्थितिएमे ता जबरजस्ती ई प्रस्ताव पारित कएल गेल, जे समस्त बिहार प्रान्तक भाषा हिन्दी अछि। अतएव, बिहार प्रान्तक भाषा हिन्दी रहबाक चाही। मुदा मैथिली पत्र-पत्रिका खुलिकय एकर विरोध कएलक, मिथिलामिहिरक संपादक योगानन्द कुमर अपन संपादकीय लेखमे सम्मेलनक अइ निर्णयक घोर विरोध कएलनि।
तेसर षड्यंत्र, –
‘राहुल सांकृत्याययन’ नामक एकटा दृष्टिहीन विद्वान जे विदेश तऽ बड़ घुमल छलाह, मुदा, जिनका भारतक जमीनी भाषा आ खास कऽ मैथिली भाषाक आन्तरिक संरचना सम्बन्धि कोनो आधारभूत आ आवश्यक ज्ञान नइँ छलनि। बहुतो लोक हिनका महान विचारक, हिन्दीक महान साहित्यकार कहैत छथि, गुगलो पर इयहसब अतिशयोक्तिपूर्ण बात भेटैछ। मुदा, राहुल सांकृत्यायनक बारेमे खोज-बिन कएने निधीश गोयल हिनका फ्रायड आ मार्क्सक योगसँ जन्मल ‘हिंग्लिश संतान‘ तथा, घोर-कम्युनिस्टवादी कहैत छथि। ओ कम्युनिस्टवादी विचारधारा, जे जइ समाज-राज्य ओ देशमे पनपल, ओइ अधिकांश समाज-राज्य ओ देशक मौलिकता, सभ्यता ओ संस्कृतिक संरचना, समानता ओ सर्वहाराक नाम पर ध्वस्त कऽ देलक।
वएह कम्युनिस्ट विचारधाराबला सांकृत्यायन, आरम्भेसँ मैथिलीक विरोध करए लगलाह। १९३८ ई. मे रोसरा (दरभंगा जिला) मे आयोजित हिन्दी साहित्य सम्मेलनक अध्यक्षता करैत राहुल कहलनि जे-
‘मैथिलीक आन्दोलन हिन्दीक हेतु अत्यन्त घातक ओ दंडनीय अछि।’ – राहुल संकृत्यायन
मुदा, ओइ कुत्सित मैथिली भाषा-साहित्यक विरोधी विद्वान राहुल संकृत्यायनक विचार ओ प्रस्तावकेँ, दोसर अध्यक्ष कुमार गंगानन्द सिंह मैथिलीक पक्षमे तर्कपूर्ण उत्तरसँ चुप करा देलनि। ओइ घटनासँ तिलमिलाएल राहुल बहुत आहत भेलाह। राहुल संकृत्यायन नामक ओ व्यक्ति, मैथिली भाषा-साहित्यकेँ समाप्त करबाक संकल्प लेलनि, आ, वयह व्यक्तिगत क्षोभ आ घृणाक कारण मैथिली भाषाक आन्तरिक संरचनाकेँ खण्ड-खण्ड करबाक लेल षडयन्त्र स्वरूपेँ दू टा नव शब्द ‘अंगिका’ आ ‘बज्जिका’ गढ़लनि।
ओइसँ पहिने अइ दूनू शब्दक कोनो इतिहास-प्रमाण कतौ नइँ अछि। तहिएसँ ओइ दुनू नव शब्दकेँ हिन्दीक बोली कहबाक आरम्भ कएल गेल। जे भाषा उत्पत्तिक सैद्धान्तिक आ व्यवहारिक, दूनू दृष्टिसँ पूर्णत: अवैज्ञानिक अछि।
ओ ई बात बुझैत छलाह जे, एखन मिथिलाक आमलोकक जीवन आ चेतना सालानाक बाढ़ि, रौदी, गरीबी एवं अन्य विभिन्न कारणसँ शिथिल भऽ थलि गेल अछि। मुदा, किछु चेतनसशिल ओ दूरदर्शी मैथिली अभियानी एतय सभदिन रहलथि, जे मिथिलाक अपमान किन्नहु बर्दाश्त नइँ कएलथि, आगुओ नइँ करताह।
अत्याचारक विरोध अपना ढंगसँ करैत रहताह। मुदा, राहुल संकृत्यायन आमलोकक मैथिली भाषाकेँ खण्ड-खण्डमे तोड़बाक लेल योजनाबद्ध ढंगसँ काज करऽ लगलाह। व्यक्तिगत क्षोभ आ घृणाक कारण राहुल द्वारा रोपल गेल वएह बिषवृक्षकेँ अंगिका बज्जिकाक नाम पर हवा देल जा रहल अछि।
बिहार सरकारमे रहल किछु मिथिला मैथिली विरोधी नेतासब आ हिन्दी मिडियाबला सब यदा-कदा ओइ घृणाबला आंचकेँ लहका कऽ अपन व्यक्तिगत स्वार्थबला रोटी सेकैत रहैत अछि।
भाइ बहिन लोकनि, ई साकांक्ष रहबाक बेर अछि। अपना लोककेँ अपन इतिहाससबसँ बेर-बेर अवगत करएबाक बेर अछि। अपन व्यक्तिगत स्वार्थक लेल नइँ। किछु पुरस्कारप्रेमी गैंग सभ बोली विवादकेँ तुल देबय लगैत छथि। ओ ई नइँ बुझैत छथि जे अइसँ अपन मातृभूमि ओ मातृभाषाकेँ व्यापक क्षति होइत छै। अपन मातृभूमि, मातृभाषा, समृद्ध साहित्य, संस्कृति, सभ्यता पर जे षडयन्त्र भऽ रहल अछि, से फरीछसँ जनबाक-बुझबाक बेर अछि।
अइ तरहेँ, राहुल सांकृत्यायन १९३८ ई. मे आ कांग्रेस १९४० ई.सँ भाषाक वैश्विक वैज्ञानिक सिद्धान्त विपरीत मैथिली भाषाक आन्तरिक संरचनाकेँ नष्ट करबाक कुटिल षड्यन्त्रक आरम्भ कएने अछि।
भाषाक अन्तर्राष्ट्रीय सिद्धान्त ओ मान्यताक सम्बन्धमे नेपालक भाषाविद डा. सूर्य प्रसाद यादव कहैत छथि जे, –
“तथाकथित रूपेँ जेकरा दू टा भाषा कहल जाइछ, ओइ दूनूमे यदि साठि प्रतिशत (६०%) शब्दसब एवं बजबाक शैली मिलैत-जूलैत अछि-समानता अछि, तऽ ओकरा दूइटा भाषा कहब भाषाक वैश्विक सिद्धान्त विपरीत आ अनर्गल अछि। एहन अनर्गल काजसँ अहाँ किछु सोझ लोकसबकेँ मात्र अपन निजी स्वार्थमे प्रयोग कऽ सकै छी।”
मुदा, एहिठाम मात्र ६० प्रतिशतक कोन कथा, ९५ प्रतिशतसँ बेसी शब्दसब, वाक्य संरचना आ बजबाक-लिखबाक शैली प्रायः समान अछि। तँ, एहन अवस्थामे अंगिका-बज्जिका, मैथिलीए भेल।
अपन मातृभूमि मिथिला, मातृभाषा मैथिली, समृद्ध साहित्य, संस्कृति, सभ्यता आदिक रक्षाक लेल मिथिलाक प्रत्येक नागरिकक कर्तव्य अछि। तेँ, जे जतय छी, मैथिलीक पक्षमे काज करी। मातृभाषाक अधिकाधिक लिखित-मौखिक प्रयोग करी। ई मुहावरा दोहरेबाक आब कोनो खगता नइँ अछि, जे मैथिली मिथिलाक सभ जाति-समुदायक भाषा अछि।
एकर प्रमाणिक साक्ष्यसभ बौद्ध भिक्षुसभ द्वारा रचित ‘चर्याचर्यविनिश्चय’, ‘दोहाकोश’, ‘डाकार्णव’सँ लऽ कऽ कविशेखराचार्य ज्योतिरिश्वर, महाकवि विद्यापति, चन्दा झा, मनवोध होइत, सिम्रौनगढ़क मैथिली साहित्य, द्रोनराजवंशीय साहित्य, ओइनवार राजवंशीय साहित्य, मोरंग राजवंशीय साहित्य, सेन राजवंशीय साहित्य लगायत कर्नाटवंशी ओ काठमांडू नेपालमे मल्लकालमे मल्लराजवंशी नरपतिसभ – सिंहभूपति, भूपतीन्द्र, जगज्योर्तिमल्ल, जगतप्रकाशमल्ल प्रभृत्त शासक ओ साहित्यकारसभक कृतिसभमे व्याप्त अछि।
मैथिली मिथिलाक सभ जाति-समुदायक भाषा अछि। पेसागत रूपमे सेहो एखुनका समयमे बिहारक स्कूल कालेजमे चयनित कएल गेल शिक्षक-शिक्षिकाक सूची सभ पर्याप्त अछि। संघ लोक सेवा आयोग / बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा मैथिली विषय लऽ कऽ चयनित सिविल सेवकक सूची सेहो प्रत्यक्ष प्रमाण अछि।
आब ककरो आँखिमे कियो धूरा नइँ झोकि सकैत अछि। दूटा महत्वपूर्ण काज शेष अछि – पहिल, अछि मिथिला क्षेत्रक बाल-विद्यार्थीसभकेँ प्राथमिक शिक्षा मैथिली माध्यमसँ देल जाए, तेकर आधिकारिक व्यवस्था। आ, दोसर – मैथिलीकेँ बिहार राज्यक द्वितीय राज्य भाषा बनाओल जाए।
अइ लेल सभ मातृभाषा अनुरागी सभ मतभेद बिसरि कऽ सम्मलित प्रयास करी से अति आवश्यक अछि।
दिलीप कुमार झा, लेखक