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रोमिशा – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (9)
‘स्त्री सभ बड्ड भोगि चुकल- पुरुषक कामुकता आ क्रूरता, प्रेमक छलावामे, आब बस ओ सीखि रहल अछि।अपना लेल स्वप्न देखब।’…
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अभिलाषा – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (8)
आइसँ किछु बर्ष पूर्व मैथिली कथाक आकाशमे ललकी किरणिया जे ‘पह’ फाड़ि इजोत पसारने छल, ओ इजोत आब बेस भकरार…
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निवेदिता झा – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (7)
” ओ जलखैसँ भोजन तुषारिसँ मधुश्रावणीमे अथवा बालपनसँ पैघ धरि अहांक सांस्कृतिक समृद्धि मे लागल रहत अहां भने जतेक डंका…
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मुन्नी कामत – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (6)
जाहे कियो मानय अथवा नइँ, मिथिलाक आधासँ बेसी लोक प्रवासमे बसैत अछि आ अइ प्रवासी मैथिल लोकनिकेँ अपन माटिक सुवास…
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नेहा झा मणि – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (5)
‘बाबा ई नइँ कहैत रहथिन ”जे जतबे टा चद्दरि ततबे पसारी पैर, ओ कहैत छलाह, पसारू पैर जतेक पसारब फाटय…
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दीपिका झा – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (4)
आइ नवदुर्गा: प्रकीर्तिता: के चारिम कड़ीमे हम जाहि स्त्री शक्तिक चर्चा क रहल छी, हुनक चर्चा मिथिलासँ मायानगरी मुंबई धरि…
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सुधा ठाकुर – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (3)
प्रकृतिक दिससँ स्त्रीकेँ एकटा अनमोल उपहार भेटल अछि – शिशुक जन्म आ ओकर पालन-पोषण करबाकक क्षमता। ई क्षमता आ सामर्थ्य…
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संस्कृति मिश्र – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (2)
जइ व्यक्तिकेँ शब्दक सामर्थ्य भेटि जाइत छै, ओकर शक्ति बढ़ि जाइत छै। आ ओ अपन चौबगलीक संकटग्रस्त परिदृश्य पर मौन…
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दीपिका चन्द्रा – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (1)
आइ-काल्हि शक्तिक विभिन्न स्वरूपक साधनाक दिन अछि। मान्यता अछि, जे नवरात्रिक नौ दिन धरि शक्तिक कठिन साधनासँ प्रसन्न भ’ क’…
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