नेपालक आधुनिक मैथिली कवितामे ‘भुवनेश्वर पाथेय’क नाम अग्रगण्य अछि। बिम्ब आ प्रतीकक उत्कृष्ट संयोजन एवं भाषाक सन्तुलित प्रयोगक कारणेँ हिनक कविता विशेष हृदयग्राही भेल करैत अछि। बिम्ब आ सङ्केतक माध्यमसँ नव-नव प्रयोग करैत रचनाकेँ यथार्थक धरातलपर उतारबाक अपन विशिष्ट शैलीक कारणेँ मैथिली साहित्यक आकाशमे पाथेयक काव्य वैशिष्ट्य फूट स्थान रखैत अछि।
पाथेयक मूल नाम भुवनेश्वर प्रसाद साह छनि। हिनक जन्म ई. सन् १९४५ मे जनकपुरधाममे भेल छलनि। ४६ वर्षक उमेरमे क्यान्सर रोगसँ हिनक देहान्त भऽ गेलनि। गद्य, पद्य दुनू माध्यमे लिखबाक सङहि मैथिलीक पत्रकारितासँ सेहो जुड़ल स्व. पाथेयक संभवतः मात्र दुटा कविता-कृति ‘पघलैत बरफ’ आ ‘चुल्ही’ प्रकाशित छनि। मैथिली आ नेपाली भाषामे हिनक अनेको पाण्डुलिपि प्रकाशनक बाट जोहि रहल छनि। स्व. पाथेय मैथिली साहित्यक विशिष्ट सेवाक लेल वि.सं. २०५२ सालक वैद्यनाथ-सियादेवी मैथिली पुरस्कारसँ मरणोपरान्त सम्मानित भेल छलाह।
हुनक जन्म-जयन्तीक अवसर पर फेसबुक पर धीरेन्द्र प्रेमर्षी श्रद्धान्जली अर्पित करैत लिखैत छथि, ‘हार्दिक श्रद्धा-सुमन।
कवि भुवनेश्वर पाथेय, अपन साहित्यिक पेनी छनाइत काल जिनकासँ बहुत रासे मार्गदर्शन भेटल करैत छल, आइ हुनक जन्म-जयन्ती।
सादर नमन मैथिली कविताक एक अलग मानदण्ड स्थापित कएनिहार स्व. पाथेयकेँ।’
प्रेमर्षी द्वारा पोस्ट कएल गेल पोस्टमे आओर बहुत मान्यजन सभ जेना जीवनाथ चौधरी, लक्ष्मण झा सागर, विश्वमणी दाहाल, मदन ठाकुर, प्रदिप कुमार मैनाली, विक्रम सिसिर, गिरिश चन्सद्र लाल, पुनम झा मैथिली, गायक विरेन्द्र झा, शैलेन्द्र मिश्र, चन्द्र किशोर, प्रमोद चौधरी, रोशन जनकपुरी, धर्मेन्द्र झा, असान्त शर्मा, रमेश राउत, शेष राज सिवाकोटी, खगेन्द्र गिरि कोपिला, आदि लोकनि पावन श्रद्धासुमन अर्पित कएने छथि।
ओहि सभमेसंँ साहित्यकार / लेखक डाक्टर भीमनाथ झा श्रद्धान्जली अर्पित करैत हुनका बारेमे मोन परैत कहैत छथि – ‘ओना भेट तँ पहिनहुँ छल, मुदा अन्तिम भेटक चित्र मनमे ओहिना टाङल अछि। ओ पूअर होमक गेटपर चाह पिबैत रहथि आ हम ओही बाटे जाइत रही। वैह देखलनि आ आगाँ बढ़ि बलजोरी बैसा लेलनि। कहलनि–जल्दिए डेरापर अबै छी अपन पोथीक संग। छपब लगिचा गेल अछि।
किन्तु, आह ! बाट तकिते रहि गेलियनि…’
राम नारायण देव लिखैत छथि, ‘स्व, भुवनेश्वरपाथेय जी के हार्दिक श्रद्धान्जली। हुनका सँ जनकपुरक साहित्य गाेष्ठीमे भेट हाेइत छल। ओ अप्पन एक गाेट कबिता संग्रह देने छलाह।’
श्री सारस्वत लिखैत छथि, ‘ई तऽ पाथेय जी छथि। भुवनेश्वर पाथेय। हिनकर हस्ताक्षरित पत्रिका हमरा लग अछि। “पावन पद हरि देशे” पोथीमे कतौ चरचो कयने छी से।
प्रेम विदेह कहैत छथि, ‘एक बेर मात्र हुनकासँ भेँट भेल छल कवि गोष्ठीमे–सार्वजनिक पुस्तकालय, जनकपुरधाममे।हुनक पत्रिका हमरोलग अछि–जनक। बहुत विनम्र स्वभावके छलाह। कविता-कथा गजब शैलीमे लिखैत छलाह।’
रोशन जनकपुरी कहैत छथि, ‘मैथिलीमे एकटा प्रयोगधर्मी कवि।
हार्दिक श्रद्धाञ्जलि।’
आइ ओ महान साहित्यकार ओ कवि भुवनेश्वर पाथेय जीक जन्म-जयन्तीक अवसर पर हुनका द्वारा लिखल दु-गोट कविता प्रस्तुत अछि। उक्त दु-गोट कविताक शव्द आ संरचना अपनेक मोनकेँ झंझ्कोड़ि देत।
पघलैत बरफ
ललका टिकुली खसि रहल रसे-रस
पश्चिम क्षितिजक बंसवाड़ी-झोँझमे।
दहेजक निकोटिन सौराठसँ
भखिअबैत अछि
सभकेओ कन्याकेँ जरैत देखैत अछि।
बड़ चिलहोरि आइ मड़राइत अछि
देह झाँपिकऽ राखू आब
नहि तँ लहू बाहर कऽ देत।
टेढ़़मेढ़ एकपेड़ियाक खोजमे
मोन उड़ै़त अछि कोलम्बसजकाँ
श्रमकेँ चुनबैत छी, खैनीजकाँ।
जातिक सङ्कुचित टाट जखन टूटत
एकटा नव सभ्यताक सूर्य–
व्योममे तखन हँसत, धरतीकेँ चूमत।
लिङ्ग, रङ्ग-भेदक विरङ्ग रूप
जखन खण्डित भऽ जाएत
तखन स्वतन्त्रताक शुभारम्भ होएत।
कर्मक कराहीमे–
जतेक छोलनी चलबैत छी
ओतेक आस्थाक रस भेटैत अछि।।
चुल्ही
चुल्ही जारनि नहि खायत
छाउर नहि बोकरत आइ
किएक तँ?
किछु एकचारी खाऽ लेलकै’
चारो छरेनाइ जरूरी छल
नहि तँ, एहि बेरक बरखा-बुन्नीमे
मेघ चारे दने सनिया जाइत
जे बाँकी छल बौआक फीसमे चलि गेलै’
हमरे जकाँ मुरख नहि रहौक, छौड़ा
घड़ेरी नहि बिकाउक घिसुआ जकाँ
ओइ सुरीबाकेँ देहपर बज्जर गिर जाउक
जे देत किछु आ छाप लगाओत…
गलि जाउक ओकर देह
तैं गामसँ पड़ाए पड़लै…
एखनो सालमे एक-दुटा पड़ाइते छै
पंजाबक कमोट बिदागरीमे नुकाऽ गेलै
सेहो भेलै जमायकेँ पुराने धोती
लाल-लाल, गोल-गोल छापल
लाठीक हुरसँ
आ छौड़ीकेँ भेंटलै फाटले नूआँ-फट्टा
की करिऔक?
एहिना चलत…?
डण्डी-तराजु छीट कपड़ा पर ससरि गेलै
आउ सुत रही आब
कऽ लिऽ आइ एकादशी
जाए नहिं पड़तै आब, काशी।।
लेख | संकलन स्रोत: मैथिली किताब, कक्षा ९, नेपाल। धीरेन्द्र प्रेमर्षीक फेसबुक पोस्ट। आ bidehamaithili.wordpress.com