
पहिल कविता: हम छी ओ किसान
हम छीयै लाल नेपालके
नेपाल हमर निशान यौ
मेहनतिसँ सोना उपजाबी
हम छी ओ किसान यौ
कर्म हमर धर्म अछि भैया
अन्न हमर पूजै जग यौ
सहयोगी नियत रखै छी
जोस भरल रगरग यौ
भादो मास रहै हरियरी
अगहन पाकै धान यौ
शीरपर बान्ही पगरी
हाथमे हँसुवा धरगर
पसिना चुबै गरगर
तइँयो दी मुस्कान यौ
भारी दूटा धानक बोझा
लचकै बहिगां कान्ह यौ
छमछम क’ मूख पान खा
गोरीया बोझा धरै खरिहान यौ
अनुपम प्रकृतिके सौन्दर्यसँ
सजल देशक साज यौ
तइँमे अछि सुगन्ध पसारने
मिथिलासनके राज यौ
बुद्ध जन्मस्थान लुम्बिनी
जनकपुर विदेह यौ
छी धरतीक बेटी जानकी
परसी ज्ञान, सिनेह यौ
धरा करब अन्नसँ सिञ्चित
लगाएब माटिएसँ हम प्रीत
रखब अपन माटिक हम मान
माटि लेल निछावर मोर प्राण
हर फारसँ हम तँ परती तोड़ब
धरतीपुत्र छी ने धरती छोड़ब
चलाएब हम तँ सगर जहान
जय किसान, जय जय किसान !
दोसर कविता ” नारीके आब स्वरूप बदलक चाही
नारीके आब सम्हलक चाही
अपन स्वरूप बदलक चाही
मौसम छलै बरसात ओ
धूप आब उगलक चाही
पहिने छलै ओ शांत सरोबर
उग्रकोशी बनि बहक चाही
पहिने छलै फूल कमलके
काँट कटार आब बनक चाही
गाछ लतामके छलै ओ पहिने
सिसो सखुवा आब बनक चाही
नारीके आबो सम्हलक चाही
अपन स्वरूप बदलक चाही
गावीस माटि छलै ओ पहिने
रेत बनि मुठ्ठीसँ निकलक चाही
सामने आबै जे राक्षस बनिके
काली बनिके संहार करक चाही
नारीके आब सम्हलक चाही
अपन स्वरूप बदलक चाही ।
कविता नं. ३ “हमरा गौरव छै”
तेसर कविता “हमरा गौरव छै”
हम मैथिल मिथिलाके बेटी
मैथिली हमर माए छी
अंग अंगमे सिंचित केने
हम हूनके संसकार छी !
पति परायन ,गुरू के सेवा
सौस ससूर माए बाप सन
सदिखन सहेजके रखने हम हूनके संस्कार छी ।
मधूर बचन , सतकार अतिथि
मैथिलके व्यबहार छी
सुसंस्कारी उच्च संस्कृति
सब मैथिलके पहचान छी।
सीथमे सीन्दूर नयनमे काजर
विन्दी हूनकर सिंगार छी
अंग अंगमे संचित कैने
हम हूनके संसकार छी !!!
कवियत्री
विमला देव ,राजविराज
*आइ लभ मिथिला, प्रत्येक रचनाकारकेँ स्वागत करैत अछि। जाहिमे विमला देव जी अपन स्वाद सुगन्धमे किछु रचना प्रस्तुत कएने छथि।आश अछि जे अपनेसब पसन करब। विशेष जानकारीक लेल , डिस्कलेमर ,नियम आ शर्त, कपीराइट पेज पढू : DISCLAIMER , TERMS AND CONDITIONS