Poem

चन्द्रशेखर लाल शेखरक पाँचटा मैथिली कविता (भाग २)

१. खाली झोरी

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हर द्वार नेने खाली झोरी हम टहल लगेलौँ संसारक
जा तेहन दर्द ने ओझरेलौँ अन्दाज रहल ने ओइ पारक

किछु वयस गेल चट्टा-पट्टा किछु पोथी-पतड़ा घाँकनमे
किछु शॉटन गेल, खाँटन गेल किछु गेल खिया सम्मोहनमे
हम तेहन नाह ने भसिएलौं अन्दाज रहल ने पतवारक
हर द्वार नेने खाली झोरी हम टहल लगेलौँ संसारक

किछु वयस गेल मड़वा-कोहवर किछु कामसूत्रके मञ्चनमे
किछु नेती गेल, बदनेती गेल गेल जाल-पोलक संरक्षणमे
हम जानिफकार तेहन भेलौँ अन्दाज रहल ने बगवारक
हर द्वार नेने खाली झोरी हम टहल लगेलौँ संसारक

किछु वयस गेल गर्जन-तर्जन किछु मोछक शान बघारनमे
ऐ धरती स्वर्ग उतारक लेल निज अहङ्कार परचारनमे
हम तेहन दोग ने सन्हिएलौं अन्दाज रहल ने अन्हारक
हर द्वार नेने खाली झोरी हम टहल लगेलौँ संसारक

किछु वयस गेल मोनक भरछन अनमोल बेथाक रेखाङ्कनमे
किछु राति गेल मदिरा सेवन शीलपट्ट भागके कोसनमे
हम नकली पौरूष अगरेलौँ अन्दाज रहल ने घटवारक
हर द्वार नेने खाली झोरी हम टहल लगेलौँ संसारक

आबि जाएत बुढ़ारी अनचोक्के परतीत भेल ने दरपनमे
भेल बाध्य एहन जीवन जीयब आब ज्ञात भेल अन्तिम क्षणमे
गेल जन्म अकारथ-अनबूझल परवाह भेल ने उद्धारक
हर द्वार नेने खाली झोरी हम टहल लगेलौँ संसारक

२०५०/०७/०९

२. सियावर रामचन्द्रकी जय

संसद सड़क भरू चालबाज
स्कूल-कालेज भरू गालबाज ।
मन्दिर-मस्जिद भरू ढालबाज
शासनक आसन रे नेहालबाज ।

ने लाज भरू ने केकरो भय
सियावर रामचन्द्रकी जय ।।

गेल खञ्ज-खोहरसँ भरि बथान
भेल जङ्गल-झाड़ी सब फड़ान ।
ने बाँचल परती ने श्मशान
ने रोजी रोटीक ककरो ठेकान ।

नित कोष भरू अहिना निर्भय
सियावर रामचन्द्रकी जय ।।

ने काजक वेद ने स्मृति-पुराण
ने अध्ययन-मनन ने आब इमान ।
बस काजक अछि टी. भी.क ढकान
आ फिल्म-रथीक गरिमा बखान ।

नित भजू गोविन्दा, रेखा, सञ्जय
सियावर रामचन्द्रकी जय ।।

ने मातु-पिता ने पितरक सुमार
ने पैघक आदर ने छोटक विचार ।
ने पगड़ीक गरिमा ने कुटुमक सम्हार
ने डाँट-डपट सब झाँपन उघार ।

ने ग्लानि भरू ने मरणक संशय
सियावर रामचन्द्रकी जय ।।

भेल अनुशासन जा चित्त खेत
तहिना संस्कृति भेल जबह रेत ।
खाली बाकस जिन्न-परेत
दैत होहकारी स्वर समवेत ।

ने भरू कचोट ककरो विस्मय
सियावर रामचन्द्रकी जय ।।

भने राइस घेलक सबटा घराह
जमि गेल भने सबटा हराह ।
अगुआएल भने सबटा लन्ठाह
निकती घेने सबटा घताह ।

सतकर्म भरू ने पापक भय
सियावर रामचन्द्रकी जय ।।

भने चाउरो आब सलाइ बिकाइत
दैवी प्रकोप रहि-रहि बिसाइत ।
औरदा अद्वैत कठियारी धुआँइत
कुरूक्षेत्र लोक ठकरैत कुसाइत ।

दैत बाङ चलू अहिना कुसमय
सियावर रामचन्द्रकी जय ।।

हर दिवस भरू मङनी-चङनी
हर रात्रि भरू रङ्ग-रेलीमे ।
तलमलाइत रहओ ई देश अपन
नित भट्ठीक कैद हवेलीमे ।

ने हौंड़ भरू ने ककरो कय
सियावर रामचन्द्रकी जय ।।

२०४६/०२/१०

३. दूर आब ने गाम रे

दर्द बड़ पहाड़ भेल
बेभरम बजार भेल ।
गाम-घर उघार भेल
जी रहल लाचार भेल ।

की हेतै ग सुनासुना
अभोगके तुना तुना ।
कचोटे बड़ कुठाम रे
दूर आब ने गाम रे ।।

जाने कोन मन्त्र जे
सोइरिए जड़ान भेल ।
स्वप्नक अम्बारपर
चोलाक निर्माण भेल ।
रस, कश, परागक
अनुपम अनुपान भेल ।
विचर’ लेल हिमखण्डक
मनहर ठेकान भेल ।

की हेतै जना-जना
बातके बना-बना ।
काम आब तमाम रे
दूर आब ने गाम रे ।।

जाने कोन स्वाद जे
काँढ़ महि देलक ।
एहन पोख्त, नींवके
सौ लाख चहकेलक ।
मचान, मञ्च, वाटपर
निर्वसन बनेलक ।
कचकूह भम्होर फेर
जग कुहराम मचेलक ।

की हेतै देखा-सुना
कुण्डली गुणा-गुणा ।
पड़ावे बड़ कुठाम रे
दूर आब ने गाम रे ।।

सोनसनक काया
पुरलक ने सङ्ग ।
आङन-घरक हुलकी
बनेलक मतङ्ग ।
भाँति-भाँतिक स्वादन
चढ़ेलक उटङ्ग ।
लोक-लाजक सीमा
बनेलक अपङ्ग ।

की हेतै लड़ा-चड़ा
टाङ्गके अड़ा-अड़ा ।
जग भेलौँ बदनाम रे
दूर आब ने गाम रे ।।

गमकैत ने बेली आब
ने बगिया-पलास ।
मोहैत ने मोन आब
स्वप्निल मधुमास ।
आब सुरैत ने अनुपम
रिझबैत परिहास ।
ठेहुन ने टेकबैत
अनुपम तराश ।

की हेतै अड़ल-अड़ल
बिछाओनपर पड़ल-पड़ल ।
निन्न बलौ हराम रे
दूर आब ने गाम रे ।।

विश्वासो बड़ अमरूख
लौल बड़ फँसेलक ।
बे-वजहके झौलमे
फाँडो बड़ कसेलक ।
काल्पनिक उड़ानक नित
तृष्णा चुभकेलक ।
जाने कोन जन्मक
ओइल सब सघेलक ।

आब की जीवन जियब
बलौ की मादक पियब ।
भेल विधाता बाम रे
दूर आब ने गाम रे ।।

हारल पर हरि नामक
आब एकेटा आश ।
डूबल जाइत जहाजक
आब कोन विश्वास ।
निरसि देलक काया
ताकितो अनायास ।
डेब लेलक जग दोसर
कमसीन ओहास ।

मोन छल से भेल ने
सोह-मोह गेल ने ।
थाकलौँ सङ्ग्राम रे
दूर आब ने गाम रे ।।

४. संसार

सोझमतिया लोकक ने जीवक जोगार
देखलौं यौ भगवन ई अहुँक संसार

दिन-राति सतवादी रहि गेल डेराइत
मुलकैन हरिश्चन्द्र एस्वनो पेराइत
निसाफक नित खोजी पल-पल स्वियाइत
सिसोहैत मन्सूबा बिहरैत लेराइत

पग-पगपर पाबैत उनटे फटकार
देखलौँ यौ भगवन ई अहुँक संसार

नीक केनिहारसब, बिलमे नुकाएल
अनर्थ केनहारसब, सबतरि अगुआएल
आगम गमनाहरसब, लाजे कठुआएल
रङ्ग फेरनाहरसब, प्रवचन पताएल

त्यागी-तपस्वीसब डरे पछुआर
देखलौँ यौ भगवन ई अहुँक संसार

नकली मुखौटा लागल हलाल
धर्म-दर्शन-वादक उधसैत नित खाल
ठठरीपर झूठक केने कमाल
छोडैत गुलछर्रा ने कनिको मलाल

असत्तके नींवपर बगिया गुलजार
देखलौं यौ भगवन ई अहुँक संसार

सबटा उकपाती भाँजैत किरपान
लाठीके बलसँ नित खोजैत निदान
त्रासक अथाह दाह लपटेने फान
जहरक जग घूऔं गरसने जहान

बेथाक अथाह बेग नोरक टघार
देखलोँ यौ भगवन ई अहुँक संसार

हरिवंशक पोथीक सत जेना समाप्त
ने वरही के सुड़रत लोहछाबैत काप
ने अनरथके परसैत लागैत पश्चाताप
विज्ञानक सचेत नैनक आब अनसर्धे नाप

आर्यघाटक डर ने ककरो सवार
देखलौँ यौ भगवन ई अहुँक संसार
२०४६/०३/०८

५. अजगुत बेथा

कस-कस करिते रहि गेल जोर
बिदकैत रहि गेल ओहिना ठोर ।
उठिते रहल पलक हिलकोर
भासिते गेलौँ नगरक सोर ।

अजगुत बेथा महा-नादान
बड़ दुःख देलक हे भगवान ।।

जरल जौरके ऐंठन ठाम
सेहो मचेने नित कुहराम ।
गगन-घरा रमकैत बेलगाम
बलौँ ढाही लैत कुठाम ।

नित ओझराबैत कड़गर फान
बड़ दुःख देलक हे भगवान ।।

मरल ने नैनक एखनो पाइन
झकमक सबटा घोर उबाइन ।
नित होड़िआबैत कचोट तिताइन
बेर-कुबेर करैत बेपाइन ।

अमरूख शान भाँजैत किरपान
बड़ दुःख देलक हे भगवान ।।

एको मनोरथ जग ने पूर
शीशमहल सपनाके चूर ।
सुनगैत रहल अतृप्तिक कूड़
बदरङ्ग ओढ़नी ब-दस्तुर ।

कुचरैत आशा बे-सुरतान
बड़ दुःख देलक हे भगवान ।।

थाहैत अथाह, भेलौँ बदरङ्ग
पोर-पोर ससरैत गेल जङ्ग ।
सब गलियारी नापैत तङ्ग
तैयो भेल ने मोहक भङ्ग ।

कचकूह लौल छितरि असमान
बड़ दुःख देलक हे भगवान ।।

जौं-जौँ पसरैत गेल अन्हार
तहिना होइते गेलौँ उघार ।
मोड़-मोड़पर होइत उनार
पजिअबिते गेलौँ विश्वास भोगार ।

अजगुत नेने जगत पहिचान
बड़ दुःख देलक हे भगवान ।।

© लेखक : चन्द्रशेखर लाल ‘शेखर’

■ जन्मतिथि : वि. सं. १९९०, माघ
■ शिक्षा : हिन्दू युनिभर्सिटीसँ मैट्रिक
■ कविता-कृति :
● हम नेपाली हम नेपाल
● गिरिजाबाबू जय नेपाल
● शूलीपर सन्त
● मंगलध्वनी
● सबटा दाग देखार
■ गीत-कृति : ‘उठ मङ्गला जोर कर’ आ ‘खाली झोरी..’ ( सङ्गीत : धीरेन्द्र प्रेमर्षि )

‘सबटा दागर देखार’ पर ‘मुख्य आकर्षण’ विचार :-

एहि सङ्कलनक सभ कविता कविक जीवनक भोघल यतार्थ अछि। अपन जीवनमे ओ जाहि परिस्थितिसभसँ साक्षात्कार कएलनि अछि, ओहि समस्त यतार्थक अनभूति कवितासभक पाँती-पाँतीमे उपस्थिति अछि। समस्त स्थिति हुनक हृदयपर आघात कएलकनि आ ओही अनुभूतिसँ अन्तर्भावनाक स्वर प्रस्फुटित भेल अछि। – रमानन्द रेणु

पथार लागल गमैआ पुर्खाक सिरजल शब्दसभ। ‘शेखर’ जीक कविता कम शब्दमे बहुत किछु कहैत अछि। मैथिली साहित्यक भण्डारकेँ हुनक लेखनी निरन्तर किछु ने किछु अवदान कऽ समृद्ध करैत रहत तकर आशा करैत छी। – रामभरोष कापड़ि ‘भ्रमर’

मैथिलीक सामाकालीन कविताकेँ देखैत आदरणीय कवि ‘शेखर’क कविता हमरा ने उत्कृष्ट लगैत अछि, ने निकृष्ट लगैत अछि छि आ ने साधारण बुझाइत अछि। मुदा प्रत्येक कवितामे कतहुँ ने कतहुँ एकटा एहन कोनो तत्व रहैत छैक जे अनचोक्कहिँ मोनकेँ छू लैत अछि आ सौँसा शरीरमे एकटा झनझन्नक दौड़ा दैत छैक। – धीरेन्द्र प्रेमर्षि

नारायण मधुशाला

तेज नारायण यादव, सिरहा । न्यूज रिपोर्ट । ilovemithila.com । । कवि। गीतकार

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