२८ साल बाद घरमे एकबाइग अएलाक बाद…
शुक्लाफाँटा नगरपालिका–७ ,कञ्चनपुर, सिमलफाँटक ६२ वर्षीय मानवहादुर धानुक जखन अटोसँ उतैर अपन घरक अङ्गनामे पहुँचलाह, तँ ओइ घरमे एक क्षणके लेल सबके चकबिदोर लाइग गेल। २८ वर्षसँ बेपत्ता धानुक फेर घर घुरत से ककरो विश्वास नइँ रहए ।
धानुककेँ अपन घरकेँ चिन्हैमे सेहो मुस्किल भ गेल छलै। कारण, जहियासँ ओ घर छोड़ने रहथिन, ओ बस्ती आब शुक्लाफाँटा राष्ट्रीय निकुञ्जक विस्तारित क्षेत्रमे आबि गेल छल आ ताहि कारण ओहि बस्तीकेँ आन ठाम स्थानान्तरण क देल गेल छलै। भारतके उत्तर प्रदेशके बनारसके बससँ महेन्द्रनगर पहुँचलाक बाद धानुक पहिने ओहि पुरान कपडा व्यापारी लग गेल, जँ ओहि व्यापारीके दोकान पहिने रहए। ओतैसँ पता चलल जे पहिने पिपलाडी गाविस–१के तारापुर बस्तीकेँ सिमलफाँटा क्षेत्रमे स्थानान्तरण क देल गेल छल।
तकर बाद धानुक महेन्द्रनगर बजारसँ झलारी बजार पहुँचल, जत हुनकर किछु पुरान चिन्हार लोकसँ भेट भेल। लोकसभ कहलक जे तारापुर बस्ती आब सिमलफाँटामे छै । चिन्हार लोके अटो चालकसँ धानुककेँ घरधरि पहुँचेबाक लेल कहलकै । अटो चालक हुनका सीधा घरपर पहुँचा देलक। ई घटना वितले शनिदिनके अछि।
बहुत सालके बाद धानुकके घर अएबाक कारण ६५ वर्षीय वृद्ध महिला छथि, जे भारतक बनारसमे रहैत छथि। ओ वृद्धा हुनकर धर्म माए छथि आ ओ अपन १३ वर्षीय नातिनिके सङ धानुककेँ ल क घर एलथि।
धानुक कहलैथ, “बेटा-बेटी छोटे रहैत हम घर छोड़ने रहियै, तँ हुनका चिन्हब असम्भव छलै। मुदा, हमर माए आ कनियाँ हमरा नइँ बिसरल छल। बहुते साल बाद घर पहुँचल छी, परिवारक सदस्यसभ खुशीके नोर बहाबए लागल। हम अपनो बहुते खुश छी जे फेर परिवारसँ भेट भेल।”
वि.सं. २०५३मे कमाए लेल धानुक भारतक राजस्थान जयपुर गेल छल । मुदा, ओत कमाइ बेसी नइँ रहए। दिन-राति मेहनत करबो करैत छल, मुदा जतेक कमैत छलै, सब खान-पिन आ कपड़ामे खर्च भ जाइत छल।
“हम कहियो एक ठाम,कहियो दोसर ठाम मजदूरी करैत रही। बसके भाराधरि नइँ रहैत छलै। घर घुरबाक इच्छा तँ बहुत रहैत छल, मुदा साधन नइँ रहए। एक समय एहन आएल जे अपन घरक ठेगान सेहो बिसरबाक स्थिति भ गेल छल,” धानुक अपन विगतकेँ याद करैत कहलथि।
जयपुरमे धानुकक एक व्यक्तिसँ गहिर मित्रता भ गेल। ओ मित्रक ससुराइर उत्तर प्रदेशक बनारसमे छल, जाहि कारण हुनका ओत आबै-जेबाक मौका भेटैत छल। एक दिन ओहि मित्र गम्भीर रूपेँ बीमार भ गेलाह, तँ धानुक अपन खुन द’ हुनकर प्राण बचौलैथ। तकर बाद ओहि मित्रके साउस धानुककेँ अपन धर्मपुत्र बना लेलथि।
ओ वृद्धाक कोनो बेटा नइँ छल, तँए ओ धानुककेँ अपन सङे राखए चाहैत छलीह। “ओ हमरा कहलनि “अहाँके जमीन दैत छी, मुदा हम स्वीकार नइँ कएलाैँ। किए तँ, हम निःशुल्क कोनो चीज़ लेब से ठीक नइँ मानै छी,” धानुक कहलैथ। मुदा, ओहि वृद्ध माएकेँ जिद्द छल जे धानुक अपन परिवारसँ भेट करैथ, तँए हुनका सङे धानुक फेर अपन घर एलाह।
धानुक आब भारत नइँ जेबाक निर्णय लेने छथि। धानुकक ३३ वर्षीय बेटा गणेशबहादुर कहलैथ, “बाबू बाल्यकालेमे छोइड़ क चलि गेल । आब फेरसँ हुनका देखलाैँ, परिवारमे उत्सव जकाँ माहौल अछि।”
बहुत सालक बाद घर अएलाह, तँ हुनका भेटबाक लेल रिश्तेदार आ पड़ोसी लोकसभ घर आबि रहल छथि। स्थानीय समाजसेवी भरतबहादुर विष्ट कहलैथ, “धर्म माएके योगदान प्रशंसनीय अछि। मानवहादुरक घर अएलासँ पूरा गाम खुशी छै।”
धानुकके परिवारमे आब कनिया, दूटा बेटा, एक बेटी, माए, भाइ आ भतीजा छथि।
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(राजेन्द्रप्रसाद पनेरु/रासस)