साहित्य अकादेमी युवा पुरस्कारसँ पुरस्कृत दीप नारायणक पाँचटा गजल प्रस्तुत अछि…
मैथिली गजल क्रम संख्या एक
की-की नञि हमरा करेलक ई जिनगी
अँगुरी पर सदिखन नचेलक ई जिनगी
भूखसँ, पियाससँ कखनो कोनो बातसँ
बेर-बेर हमरा कनेलक ई जिनगी
नीक ले’, बेजाय ले’, कनी-मनी पाइ ले’
अपनोकेँ दुश्मन बनेलक ई जिनगी
सर कुटुमैतीसँ, अपन अपनैतीसँ
की-की नै उलहन सुनेलक ई जिनगी
नीक आ बेजाय केलहुँ, सभक ले’ केलहुँ
एकसरे किएक कनेलक ई जिनगी
की कहू अपन हृदय केर व्यथा हम
अपनहि घरसँ भगेलक ई जिनगी
पढ़ि नै पेलौं दीपक जिनगीक किताब
कोन भाखा हमरा पढ़ेलक ई जिनगी
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मैथिली गजल क्रम संख्या दूइ
सत्य कही त’ अहूँक मुदा जवाब नै अछि
जे बात पहिले छल अहाँमे, आब नै अछि
फाटल-चीटल दूगो पन्ना अछि, से पढ़ै छी
जिनगी अहाँ जकाँ सुन्दर किताब नै अछि
ई जिनगी जीवि लेब से आसान गप नञि
देखू, बिन काँटक कतहु गुलाब नै अछि
हमर गलती गनि-गनि टाल लगेलहुँ
हमर प्रेमक मुदा कोनो हिसाब नै अछि
दोस्त-दुश्मन, दियाद, सर-कुटुम्ब, समाज
सत्य बयान दिऔ दीपक, खराब नै अछि
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मैथिली गजल क्रम संख्या तीन
देखियौनि राति-राति भरि बौआइत अछि
बतहा चान हमारे जकाँ बुझाइत अछि
हृदयक सिलेट पर लिखबासँ पहिने
कनेक सोचियौ कहियो नै मेटाइत अछि
भैयारी, इहो एकटा पैघ बुझौअलि छैक
ओ अपन नञि जे अपन बुझाइत अछि
खुशी द’ क’ ओ हमरा हँसए नै देलक
खाली एतबेटा बात नञि घोंटाइत अछि
एहि रिश्ता-नातासँ मन भरि गेल ‘दीपक’
नञि जानि तइयो किएक कनाइत अछि
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मैथिली गजल क्रम संख्या चारि
जीबते जिनगी मरिक’ जिबैत छी
अहीँक यादिमे कुहरिक’ जिबैत छी
आउ अहाँ बिनु सुन्न अछि जिनगी
बीतल बात बिसरिक’ जिबैत छी
विष मिझराएल अछि बसातमे
तेँ हम आब सम्हरिक’ जिबैत छी
अपन की, आन की, कलियुग अछि
मोनकेँ मसोड़िक’ जिबैत छी
ओ त’ कए दिन कहलक मरि जो
यौ, हमहीं उपकरिक’ जिबैत छी
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मैथिली गजल क्रम संख्या पाँच
लाख मुद्दइ हो भाइ केखनो कसाइ नै होइत अछि
किनको भाइ कहलासँ कियो भाइ नै होइत अछि
अहाँ पाइसँ सदिखन जोखैत रहैत छी सम्बन्धकेँ
पाइ बहुत किछु अछि सभ किछु पाइ नै होइत अछि
हम साँच कहैत छी तेँ लगैत अछि मेरचाइ जकाँ
भाइ, कयल हमरासँ फुसिक बड़ाइ नै होइत अछि
पछतावा अछि कोन जे नोरसँ तकरा धोइत रहैत छी
यौ प्रेम ओतय नञि जतय लड़ाइ नै होइत अछि
मुस्कियाक’ एहि जीवनकेँ सदिखन लैत रही आनन्द
कोन बाटमे एक बेर चढ़ाइ नै होइत अछि