‘भोरुकवा’ उगले अछि मैथिली-साहित्याकाशमे…
■ कविता : नमन धीरेन्द्रकेँ
के कहैछ चल गेलाह धीरेन्द्र ?
” हेङ्गरमे टाङ्गल कोट ” देखिते छी
” भोरुकवा” उगले अछि मैथिली-साहित्याकाशमे
तखन चल गेलाह कोना ?
देखि रहल छी
” कादो आ कोइला ” लगौनइए छथि ओ
” ठुमकि बहू कमला ” क गुञ्ज सुनाइते अछि
पर्वत-तराइ
उत्तर-दक्षिण मिथिलाक सन्धिबिन्दु छथिए ओ जखन
तऽ कोना कहब चल गेलाह ?
की धीरेन्द्र एक व्यक्ति छलाह ?
की ओ एकदेशीय छलाह ?
की भाषाकें देशकालक सीमामे बान्हल जा सकैछ ?
हुनक ” धिआ पुता “
अस्तित्ववोध कराइए रहल अछि
तऽ चल गेलाह कोना ओ ?
हँ
पञ्चभूत समा गेल अपन मूलश्रोतमे
से सत्ते ।
मुदा हुनक आत्मा
मैथिल आ मैथिलीक आत्मामे अछि
धीरेन्द्र तऽ छथिए
मैथिलक ” धी ” मे
मन बुद्धिमे
तएँ शास्वत संस्थाक प्रतिमूर्ति धीरेन्द्रकें
शत शत नमन
शत शत नमन ।
कवि : देवेन्द्र मिश्र
राजविराज ९, सप्तरी, नेपाल
( ९ जनवरी २००४ ईस्वी तदनुसार विक्रम सम्वत २०६० पूस २५ शुक्रदिन डाक्टर धीरेन्द्रक निधनक खबरि पूस २६ गतेक हेलो मिथिला कार्यक्रमसँ भेटलाक बाद कविद्वारा रचित आ प्रसारित )