(राजनाथ मिश्र) संगी रहय मनोरंजन। टाइप सीखल करय। एक दिन हमरालोकनि दलान पर गलचद्दरिमे लागल रही तँ अपन ज्ञान बघारैत कहने रहय। एहन वाक्य बनो जाहि एक वाक्यमे रोमन अल्फाबेटक सभ छब्बीसो अक्षर अबै। हमरालोकनि माथापच्चीमे लागल रही। मुदा वाक्य अखन धरि नइँ बनल रहय। ओ किछु बेसिए उताहुल रहय।
किछुकालक उपरान्त ओ अपनइँ बाजि उठल रहय, “The quick brown fox jumps over the lazy dog.” —
एहि वाक्यमे विशेषता ई छलै जे एहिमे रोमन अल्फाबेटक सभ अक्षर व्यवहृत भेल छै। हमसभ उपकृत अनुभव कयने रही।
जीबू कक्का सभ किछु सुनैत रहथिन। मुदा तटस्थ रहथिन।
किछु कालक बाद ओ सहटि कऽ हमरा सभ लग अयलाह। ओ कागत जाहिपर मनोरंजन अंग्रेजीक वाक्य लिखने रहए, उठा लेलनि। पढ़लनि। फेर बजलाह “छै तँ सुन्दर मुदा एहिमे अंग्रेजी वर्णमालाक निरंतरता, जेना ए , बी, सी, डीक क्रम नइँ छै। आ इहो जे कोनो-कोनो अक्षर दोहराओल- तेहराओल सेहो गेल छै। जेना कि “ओ” क प्रयोग चारिबेर कएल गेल छै। हम एकटा छंद लिखै छी देखू।” एतबा कहि ओ बैसि लेखनी उठौलनि। आ लिखलनि
कःखगौघांचिच्छौझांञग्योऽटौठीडडंढणः।
तथोदधिन पफबार्भिर्मयोऽरिल्वाशिषां सहः ॥
हमरालोकनि तँ बस पाँति पढ़ी आ मुह बौने एक दोसराक दिस देखैत रही। बुझऽ मे बस एतबहि बुझलियै जे देवनागरी लिपि, जे संस्कृत भाषाक लिपि छै, तकर क वर्ग सँ लऽ श ष ह धरिक सभ अक्षर क्रममे सजल छै।निस्तब्धता पसरि गेल रहय। गोटय पाँच मिनट बीतल होयतैक आब चुप्पी असह्य लागि रहल छल। पूछि बैसलियनि “ई कविता छै?”
जीबू कक्का बतौने रहथिन। “हँ ई कविता छै । भोजराजक रचना छनि जे ओ सरस्वती कंठाभरणम काव्यमे लिखलनि अछि”।
“एकरा मैथिलीमे हमरा सभके बुझा दियऽ आग्रह कयने रहियनि”।
बतौलनि—“ई श्रीकृष्णक वन्दना छनि। हे पक्षीप्रेमी, निर्मल बुद्धि, पराक्रम हरण करबामे निपुण।
शत्रुक विनाश कयनिहारमे अग्रणी, निश्चल, निर्भय, समुद्रके भरनिहार के छथि? ओ मायाक राजा थिकाह, जे शत्रुक नाश करएवला वरदानक भण्डार थिकाह”
“कक्का एकटा विलक्षण आओर लीखि दियऽ ने”|
“बड़ बेस, दू टा लीखि दै छी। एकटामे मात्र दूगोट व्यंजनक प्रयोग भेल छै “भ”, “आ”, “र”क :-
भूरिभिर्भारिभिभीरैर्भूभारैरभिरेभिरे।
भेरीरेभिभीरभ्राभैरभीरुभिरिभैरिरभाः॥
आ फेर एकरअर्थ बतौलनि
भूरिभी: – कतेको; भारिभिः – भारी-भरकम; भीरै: — भय उत्पन्न कएनिहार; र्भूभारैः — पृथ्वी पर बोझ स्वरूप; रभिरेभिरे — बारंबार भय देखौनिहार; भेरीरेभिभिरः – भयानक नगारा जकाँ गरजि रहल छलै; ‘आ भ्राभैरः’ — मेघ जकाँ धूम्र वर्णक; भिरुभिरि– निडर हाथी जाकाँ; भैरिभाः – गुत्थम-गुत्थी मे संलग्न भऽ गेल अछि । अर्थात,अत्यन्त भारसँ लदल, भय उत्पन्न कएनिहार भयानक, पृथ्वी पर बोझ स्वरूप, भयानक नागराज जकाँ, गरजएवला मेघसनक धूम्रवर्णीय आ निडर हाथी, प्रतिद्वंद्वी हाथी संग भिड़गेलए।
आ दोसरमे मात्र एक व्यंजनक उपयोग भेल अछि :-
दाददो दुद्ददुद्दादी दादादो दूददीद दोः।
दुद्दादं दददेदुद्दे ददादददोऽददः ॥
दाददो: — दान देनिहार; दुद्ददुद्दादी — दुष्टलोककेँ दुःख देनिहार; दादादो — दाहक संताप देमऽवला; दूददीद दोः– दुराचारीलोकनिके नष्ट करएवला बाँहि जकाँ; दुद्दादं — दुष्ट राक्षस के कतरिकऽ राखि देमऽवला; द द दे दुद्दे — दुष्टक विरुद्ध शस्त्र उठौलनि।
अर्थात — दान देनिहार दुष्टलोक दाहक संताप देमऽ वला दुष्ट-दमन कएनिहारक बाँहिवला दानी ओ अदानी दुहूके दान देनिहार दुष्ट शत्रुक विरुद्ध शस्त्र उठौलनि।ई दुहू रचना सातम शताब्दिक माघव रचित शिशुपाल वधसँ छै। जीबू कक्काक लिखल ओ कागत हम आइ धरि सुरक्षित रखने छी
लेखक:
राजनाथ मिश्र