प्रस्तुत अछि पाँचटा गजल…
पहिल गजल
ताधरि जीयब से आशा अछि
जा जीहमे माइक भाषा अछि
पीबाक मरम की जानए ओ
जकरा ने प्रेम-पिपासा अछि
खेत बेचि कुसियारक मीता
लोढ़ैत खूब बतासा अछि
माइयोक लगाक’ दाओ कोना
बेटासभ भाँजैत पासा अछि
बन्हकी छै जीहे, तेँ हिचुकैत
आङनकेर बारहमासा अछि
साँस कि सुगन्ध छै जिनगी
ई नम्र हमर जिज्ञासा अछि
अन्तिम घड़ीओमे जिह्वापर
बस मैथिलीक अभिलाषा अछि
View also :- सङ्गीतक अङ्गनामे उद्यमान चान रूपेशक प्रवेश
दोसर गजल
सिहकैत कनकन्नीमे सीटर छी, जर्सी छी
मखा-मखा प्रेम करी, मोनक प्रेमर्षि छी
चानक धियानमे धरती नहि छूटए, तेँ
डिहबारक भगता हम दूरक ने दर्शी छी
थाहैत आ समधानैत काँटोपर जे बढ़ैछ
फाटल बेमाएवला चरणक स्पर्शी छी
हम्मर वैदेहीक कुचर्च कएनिहार लेल,
अँखिफोड़बा टकुआ छी, जिहघिच्चा सड़सी छी
गन्ध जँ लगैए तँ मूनि लिअ नाक अहाँ
तिरहितिया खेतक हम गोबर छी, कर्सी छी,
जिनगीक कखहरबामे साँसक जे मात्रा अछि
दहिना दिर्घी नहि, बामाक हर्षि छी
View also :- एकटा विनु बियाहल बापक कथा
तेसर गजल
जोरजुलुमसँ जे ने झुकए से भाले लगए पिअरगर यौ
इन्द्रधनुषी एहि दुनियामे लाले लगए पिअरगर यौ
ठोरे जँ सीयल रहतै तँ गुदुर–बुदुर की हेतै कपार!
एहन मुर्दा शान्तिसँ तँ बबाले लगए पिअरगर यौ
कुच्ची–कलमक रूप सुरेबगर रहलै, रहतै सबदिनमा
जखन अन्हरिया पसरल होइक, मशाले लगए पिअरगर यौ
खालि शब्दक जाल बुनल नहि चाही आब जवाब कोनो
नगर–डगरमे गुञ्जैत सबल सबाले लगए पिअरगर यौ
जुड़शीतलकेर भोरहरियामे धह–धह जरए कपार जखन
जलथपकी नहि, तखन जाँघपर ताले लगए पिअरगर यौ
माथा बन्हबैत कफन, उड़ाबए लाल गुलाल अकाशे जँ
हमरा तँ ओहि समय–सुन्दरीक गाले लगए पिअरगर यौ
साल–सालपर अबैत रहैए, सगरो दुनिया नवका साल
नवयुगक मुहथरि खोलैत नव साले लगए पिअरगर यौ ।
View also :- इतिहासमे नाम केकर लिखाबै छै ?
चारिम गजल
राजनीति खुब मस्त भेल छै
सोनित सभसँ सस्त भेल छै
जन-जनके जी-जान उड़ाबऽ
सेना-पुलिसक गश्त भेल छै
सरकारी बिक्खक खेतीसँ—
लहालोट गिरहस्थ भेल छै
के अछि मुनने मुस्कीक मोन्हि
सभटा आइ खुलस्त भेल छै
कहियाधरि होइ मलहम-पट्टी
हिम्मति सबहक पस्त भेल छै
कोन विजयलए खेल ई खुनियाँ
जइमे सभक सिकस्त भेल छै
ढाही लैत अछि सँढ़हा-पाड़ा
लेरू-बच्छा त्रस्त भेल छै
कुर्सीक मजगूतीलए लाशक
सगरो बन्दोबस्त भेल छै
उगैत भोरकेँ अनदेखल कऽ
झुट्ठे लोक तटस्थ भेल छै
View also :- Maithili books pdf free download
पाँचम गजल
घसाइत आ खिआइत चोख फार भेल छी
गला-गला गात गजलकार भेल छी
शब्दकेर महफामे भावक वर-कनियाँ लऽ
सदिखन हम दुलकैत कहार भेल छी
धधराक धाह मारऽ पोखरि खुनाएल अछि
स्वयं भलहि प्यासल महाड़ भेल छी
हमरे फुनगी लटकल धानक जयगान-
मुदा, हमधरि तिरस्कृत पुआर भेल छी
भावक व्यापार मीत पुछू ने भेटल की
मलहम दऽ दर्दक अमार भेल छी
दुखियाक गीत जेँ गबैत अछि गजल हमर
लतखुर्दनि होइत तेँ पथार भेल छी
रूप-रङ्ग हम्मर आकार किए निरखै छी?
निज आखरमे हम तँ साकार भेल छी
अबियौ सहभोज करी बन्हन सभ तोड़िकऽ
प्रेमक हम परसल सचार भेल छी
© रचनाकार
धीरेन्द्र प्रेमर्षि,
साहित्यकार