मोनक हमर शृङ्गार मैथिली
बाँकी जग-व्यवहार बुझू
अपन मैथिली माइक ममता
आनक बोल दुलार बुझू।।
आइ दिवस छै खास तहीसँ
मनक बात छी लिखि रहल
हम्मर जीवन दर्शन ओतबए
जे अछि आखरमध्य कहल
प्रेमर्षिक प्रेमहिसन अनमन
सहज सुभग मनुहार बुझू
चेतन खुरपेड़िया निजभाषा
अन्य ज्ञान विस्तार बुझू।।
माथ मैथिली महफिलकेर
तइपर झलकै से बिन्दी छै
एहने बिन्दीसभ माथ सटल-
इङ्लिस, नेपाली, हिन्दी छै
आओर बखानी महिमा की
सभटाकेँ अपरम्पार बुझू
घर-घरमे खुशहाली रहने
होइक खुशी संसार बुझू।।
ज्ञान, विवेक आ निर्भय मन
छै दैत जेना माइक आँचर
निजभाषाकेर आत्मशक्तिसँ
हरियर होइ जिनगीक चाँचर
सुरुजकेँ दीपक देखबैए से
पूजन नइ, व्यापार बुझू
सूखल धरती जे नम क’ दै
तकरहि प्रेमक सार बुझू।।
काव्यतिलक करबाक लेल
मन-सरायमे जे चन्दन अछि
तहीसँ माँ मैथिलीक वन्दन
आनहुकेर अभिनन्दन अछि
माइक दूधसङ्ग पील से वाणी
जे सिखलहुँ, उद्गार बुझू
इएह छै असली जीवन नैया
शेष प्रेम पतवार बुझू।।
धीरेन्द्र प्रेमर्षि [Dhirendra Premarshi], मैथिली कविता
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