Download B.A 2nd Year Maithili Books
Bachelor of Arts in Maithili Study Materials.
की अहाँ मैथिलीमे बी.ए. कऽ रहल छी आ दोसर वर्षक अध्ययनक लेल निर्धारित पोथी तकैत छी? खैर, अहां भाग्यशाली छी! हम सभ आवश्यक मैथिली साहित्यक सूची तैयार कएने छी जकर अहाँकेँ अपन शैक्षणिक यात्राक लेल आवश्यकता होएत। ई पोथी मैथिली उपन्यास, कविता, आ साहित्यिक कृति पर आधारित अछि जे पाठ्यक्रमक एकटा महत्वपूर्ण अंग अछि। आउ देखैत छी जे पठन सूचीमे की छै?
मैथिली काव्य 423, त्रिभुवन विश्वविद्यालय
Maithili 423 Tribhuvan University
Unit-1
मैथिली कविता संग्रह
(१) सरहपाद : चर्चा गीत
(२) विद्यापति, पद संख्या : १,३,५,६,११,१७,२१
(३) उमापति: पाषाण हृदया, र्धानक विशेष
(४) वंशमणि झा : अपूर्व नाच
(५) जगज्जयोतिर्मल्ल : गणेशक नचारी, सूर्यक नचारी
(६) जगत प्रकाश मल्ल : बसन्त
(७) गोविन्द दास : नवधा, कुसुम वन्दना
(८) मनवोध: शिशु
(९) चन्दा झा : तीन गाही मुक्तक पांच गाही धरि
(१०) सीताराम भा: परिचय पूँज
(११) बदरीनाथ झा : संध्या वर्णन
(१२) काशीकान्त मिश्र मधुप : छूतहर
(१३) सुरेन्द्र झा सुमन : साओन भादव
(१४) वैद्यनाथ मिश्र यात्री : फेकनी
(१५) यदुवंश लाल चन्द : नेपालक एक झाँकी
(१६) पं. सुरेश झा : उन्नत मिथिला
(१७) मथुरा नन्द चौधरी माथुर : बारीक लत्ती
(१८) पं. श्री कृष्ण मिश्र : जनकपुर धामक महिमा
(१९) राज कलम चौधरी : महावन
(२०) सुन्दर झा शास्त्री : प्रभात गीत (२१) डा. धीरेन्द्र : गुरु द्रोणक प्रति
(२२) राजेन्द्र प्रसाद विमल : कहिया धरि
1. मैथिली कविता संग्रह [रामभरोष कापडि भ्रमर, धीरेन्द्र प्रेमर्षि]
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Unit-II
काल्हि आ आई (कविता संग्रह)
डा. धीरेन्द्र : काल्हि आ आई, ९, १०, १६, ३०, ४४, ५४
महाकाव्य
त्रिपुण्ड (पहिल, द सर्ग)
2. त्रिपुण्ड [Tripunda] by Dr. Dhirendra / डा. धीरेन्द्र
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मिथिला भाषा रामायण (अयोध्या काण्ड)
मिथिला महाकाव्य (पहिल, दू अध्याय)
खण्डकाव्य
व्यथा (पहिल, द सर्ग)
3. व्यथा [ ब्याथा ] रामनाथ झा
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एकलव्य, खण्डकाव्य
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मैथिली गद्य 424, त्रिभुवन विश्वविद्यालय
Maithili 424 Tribhuvan University
Unit-1
मैथिली कथा संग्रह सँ
(१) सामाक पौती – गोविन्द झा
(२) झगडा – मनमोहन भा
(३) ओवर लोड – ललित
(४) हिचुकैत बहत सेती – डा. धीरेन्द्र
(५) साँझक गाछ -राजकमल चौधरी
(६) एकटा धधकैत भविष्य – डा. राजेन्द्र प्रसाद विमल
(७) तोरा संग जयबै रे कुजबा – राम भरोस कापडि भ्रमर
(८) शेष विकल्प – रेवती रमण लाल
(९) दीयरि – राम नारायण सुधाकर
(१०) अंकुर – भुवनेश्वर पाथेय
(११) गोनु झा के बिलाइ – डा. गंगा प्रसाद अकेला
(१२) मेल मिलाप – डा. गंगा प्रसाद अकेला
(१३) लिखलाहा – डा. गंगा प्रसाद अकेला
(१४) पूर्व जन्मके फल – डा. गंगा प्रसाद अकेला
(१५) कथा – राम भद्र
(१६) अगराही – रेवती रमण लाल
(१७) आक्रोश – उपाध्याय भूषण
(१८) मधुरमनि – कांचीनाथ झा किरण
(१९) विहांडि – कुमार गंगानन्द सिंह
(२०) चोट – राजेन्द्र किशोर
Unit-2
निबन्ध (संकलन सँ)
(१) समीक्षावृति – प्रो. रमानाथ भा (२) साहित्य ककरा कही – डा. सुभद्र झा (३) सभ्यता ओ संस्कृति – दामोदर भा
(४) मिथिलाक सांस्कृति परम्परा-डा. अमरेश पाठक
(५) सीता नवमी – प्रा. भोला झा
(६) मैथिली पत्रकारिता – प्रा. प्रफुल्ल कुमार सिंह मौन
(७) मैथिली कथामे गद्यक विकास – मोहन भारद्वाज
(८) मैथिली ओ नेपालक भाषा साहित्य – संस्कृत पारस्परिक प्रभाव- डा. जयकान्त मिश्र
(९) मैथिली शिक्षणक भविष्य खोज पड़त -राम भरोस कापडि भ्रमर
(१०) समकालीन उपन्यासमे लोक तत्व-अरुण कुमार कर्ण
(११) साहित्यक मर्यादा – पुलकित लाल दास मधुर
(१२) राजनीति आ समाजनीति – भोला लाल दास
(१३) भारतीय दर्शन महत्व – प्रो. हरिमोहन भा
(१४) कविवर चन्दा झा – जयदेव मिश्र
(१५) पीयर आंकुर – मणि पद्यम
(११) गोनु झा के बिलाइ :
गोनू झाक बुद्धिमत्ताक लोहा सभ कियो मानैत छल । अपन बुद्धिमत्तेक बल पर ओ मिथिलाक राजदरवार मे आदर पबैत छलाह । एक बेर मिथिला नरेशक मोन मे एकटा विचार आयल । ओ अपन सभ दरबारी के बजौलनि आ एक-एकटा विलाड़ि सभ कें दैत आदेश देलैन जे एहि बिलाड़ि के तीन महीन धरि पालू-पोषू आ तत्पश्चात् जकर बिलाड़ि अधिक बलिष्ठ रहत, हुनका इनाम भेटत । नरेशक आदेश रहनि । सभ कियो आदेश मानबाक लेल विवश छलाह । सभ अपन-अपन बिलाड़ि लेलनि आ ओकर खूब पालन करय लगलाह जे कदाचित हमरे इनाम भेटि जायत ।
गोनू सेहो बिलाड़िक संग घर पहुँचलाह । ओहो ओकर सेवा-सुश्रुषा मे लागि गेलाह । घर मे महीस जे दूध दैन से बिलाड़िक भोजन मे चलि जाइक । दू-चारि दिन तँ ठीक लगलनि, परन्तु बाद मे गोनू कें ई बात ठीक नहि लगलनि जे महीस पोसी हम आ दूध पीबय ई बिलाड़ि । ओ एहि युक्ति मे लागि गेलाह जे कोन तरहें दूध बांचि जाय आ इनामो भेटि जाय । अंतत: हुनका एकटा उपाय सुझलनि ।
अगिला दिन भोरे ओ महीस दुहलाह । दूध औंटबेलाह । गरम-गरम दूधक लोहिया ओ आंगन मे रखलाह आ तत्पश्चात् बिलाड़ि के बड़ प्रेम सँ चुचकारलाह । बिलाड़ि दूध देखैत देरी लगीच पहुँचल । गोनू बिलाड़ कें गरदनि सँ पकड़लाह आ गरम दूध मे ओकर मूड़ी डुबा देलनि । बिलाड़ि छटपटायल आ पुन: देह झाड़ि ओतय सँ भागल । आब बिलाड़ि दूध कें देखैत देरी भागि जाय । गोनू निश्चिंत भेलाह आ शान सँ दूध-दही अपने खाय लगलाह । धीरे-धीरे तीन महीनाक अवधि समाप्त भऽ गेल । ओ दिन आबि गेल जहिया मिथिला नरेश बिलाड़िक प्रतिपालनक लेल इनाम बँटताह । सभ कियो अपन-अपन बिलाड़िक संग उपस्थित भेलाह । गोनू सेहो अपन सामान्य बिलाड़ि कें लऽ दर्बार मे हाजिर भेलाह ।
सभक बिलाड़ि एक सँ एक बलिष्ठ रहैक । मिथिला नरेशक लेल निर्णय करब कठिन रहैन । परन्तु गोनूक बिलाड़ि सभ सँ कमजोर रहनि । नरेश गोनू सँ एकर कारण पुछलाह । गोनू बजलाह – महाराज! हमर बिलाड़ि तऽ दूध पीबिते नहि अछि तखन हम की करी? बिलाड़ि दूध नहि पीबैत अछि, एहि गप्प पर सहसा केकरो विश्वास नहि भेलैक । तथापि प्रमाणक लेल एकटा बर्तन मे दूध मँगाओल गेल । दूध के देखितहि गोनूक बिलाड़ि ओतय सँ भागय लागल । सौंसे राज-दरबार देखलक जे गोनूक कहब ठीक छनि । अंतत: मिथिला नरेश बजलाह – बिनु दूध पीने गोनूक बिलाड़ि ठीक छनि तें इनाम गोनू कें भेटबाक चाही । संपूर्ण राजदरबार अचंभित रहि गेल नरेशक निर्णय सँ ।