Opinion

‘तहिया’केँ तहिया क’ राखल श्री रामावतार बाबू – डा. भीमनाथ झा

संस्मरण* हमरा ‘मित्रवर-मित्रवर कहै छथि, से के छला ओ ? अहाँ चिन्है छियनि ? कविता-तविता बनबै छथि से बेस, मुदा हम हुनक मित्र कहिया भेलियनि ?

संयोग एकरे कहै छै। ई संयोग ककरो सौभाग्य भ जाइ छै। ताहूसँ आगाँ जाक ताहिमे किछुकेँ तँ गौरव बढ़ा दै छै। ओकरा भारी बना दै छै। श्री रामावतार बाबूक सहपाठी होएबाक जहियासँ हम अनुभव कर लगलाैँ अछि, तहियासँ अपन ओजन बढ़ि गेल सन बुझना जाइछ। मुदा, हम बुझै छी, अपनेकेँ सहजेँ ई बात बुझबामे नइँ आएल होएत। “जहियासँ” माने की ? जहियासँ सहपाठी छियनि तहिए सँ ने! तखन “जहियासँ हम अनुभव कर लगलाैँ” की भेलै ? मुदा, असल बात सैह भेलै। सहपाठी छलियनि 1958-60 सत्रमे, तकर अनुभव कर लगलाैँ ओकर पचास-पचपन वर्षक बादसँ ।

घटना एना छै। 1958 मे गामक हाइ स्कूलसँ मैट्रिक सेकेंड डिवीजनसँ पास कएलाैँ। पितृहीन रही। तेहन क्यो मार्गदर्शक नइँ। रिजल्ट भेना किछुए दिन भेल छलै कि ककरौड़क पीसा ऐला। बुझलनि तँ खुशी भेलनि। कहलनि– काल्हि चलू, आर. के.कालेजमे नाम लिखा दै छी। कहलियनि– एखन तँ नम्बरो-तम्बरो नइँ ऐलैए। स्कूलसँ एस.एल.सी.सेहो नइँ लेलाैँ अछि। पाइयो-कौड़ी हाथपर नइँ अछि। आगाँ की करबाक अछि, सेहो नइँ बुझै छियै। तखन कोना चलू ? कहलनि–आगाँ पढ़ब, से तँ निश्चय अछि। कहलियनि– सेहो निश्चय नइँ अछि जे नइँ पढ़ब, पढ़ब तँ कोना पढ़ब ? ताहिपर कहलनि– पढ़ू तँ अबस्से। अइ बयसमे कोन नोकरी हैत ? नाम लिखैबाक चिन्ता नइँ करू। प्रिंसिपल हमर अपेक्षित छथि। तत्काल एको पाइ ने लागत। कोनो कागज-पत्रक काज नइँ। बादमे सभटा जमा क देबै। पीसा एक हिसाबे बलजोरी हमरा मधुबनी ल गेला।

प्रिंसिपल साहेब (प्रो.अरुण कुमार दत्त)क आवासपर जा, हुनकासँ गप क, हमरासँ ओतहि एक दरखास्त लिखा, ताहीपर ऑडर करबा लेलनि। पीसा कॉलेज ल जाक, बिना एको पाइ देने, आइ.ए.मे हमर नाम लिखा देलनि। हमर रौल नम्बर पाँच भेल । माने, चारि गोटे हमर पीसोसँ तेज निकलला। फार्मपर ऐच्छिक विषय लिख पड़ै छलै। हमरा तकर ज्ञान नइँ। पीसो अङरेजी पढ़ल नइँ। एकटा परिचित प्रोफेसरकेँ पुछलथिन। ओ हमरासँ मैट्रिकक विषय पुछलनि, रिजल्ट पुछलनि। पीसा कहलथिन जे सोझ विषय कहियनु। ओ कहलथिन– तखन सिभिक्स, साइकोलोजी, मैथिली राखि लेथु। हम भरि देलियै। सिभिक्स आ मैथिली तँ मैट्रिकमे पढ़ल छलाैँ, साइकोलॉजी की भेलै, से नइँ बुझलियै। बादमे जाक बुझलियै जे सिभिक्स साइकोलॉजी मैथिलीकेँ ताइ दिन कहल जाइ चूड़ा दही चीनी तथा सिभिक्स लौजिक मैथिलीकेँ पान बीड़ी सिगरेट। माने ई दुनू ग्रुप सभसँ सोझ, माने विद्यार्थी भुसकौल।

कॉलेजमे विद्यार्थीक संख्या बुझबैक ? ओहि बैचमे एक वर्गमे, फस्ट इयर आर्ट्स टामे दू हजार छात्र, तहिना सेकेंड इयरमे तथा ताही अनुपातमे डिगरीक दूनू वर्षमे। भोर छौ बजेसँ साँझ छौ बजे धरि लगातार क्लास चलैत। मुख्य सभ विषयमे तीन-तीन सेक्शन। संस्कृत छोड़िकआर्ट्सक सभ विषयमे दू सेक्शन तँ अबस्से। सौँसे कॉलेज गनगनाइत।
हमर रौल नम्बर जेँ कि 5 छल, तेँ सभ विषयमे ‘ए सेक्सन भेटल। हम तेजगर तँ रही नइँ, सहमिलुओ नइँ रही, दब्बू रही, चुपचाप जाइ-आबी। तेँ मित्रमंडली कोनो छल नइँ। अपनो सेक्शनक छात्र सभसँ घनिष्ठता नइँ। ओइ समयमे एनुअल इग्जामिनेशनक रिजल्ट पटनाक हिन्दी-अङरेजीक दैनिक पत्र सभमे प्रकाशित होइ– सभ पास विद्यार्थीक नामसँ।
(हमरासँ एक वर्ष पूर्वक बैच, माने 1957 धरि मैट्रिकोक रिजल्ट अखबारमे नामेसँ अबैक, 1958 सँ रॉल नम्बर छप लगलै। मुदा, इंटरमे नाम छपब जारिए रहलै।)

फस्ट डिवीजनरक नाम योग्यताक्रमसँ बिहार युनिवर्सिटीक सब कॉलेज मिलाक समेकित रूपमे एके ठाम छपै।

मन्त्रेश्वर झा (सी.एम.कॉलेज)क नाम फस्ट डिवीजनरक लिस्टमे सभसँ ऊपर रहनि। (ज्ञातव्य जे तहिया बिहारमे दुइएटा युनिवर्सिटी रहै, पटना युनिवर्सिटी आ बिहार युनिवर्सिटी।) सेकेण्ड आ थर्ड डिवीजनसँ पास विद्यार्थीक नामावली ‘कॉलेज वाइज छपै। अपन नाम आर.के.कॉलेजक सेकेंड डिवीजनक लिस्टमे भेटि गेल तँ ताहीसँ हम सन्तुष्ट भ गेलाैँ। तकर बाद फस्ट डिवीजनक समेकित लिस्ट देख लगलाैँ, जाहिमे आर.के.कॉलेजसँ छौ कि सात गोटे मात्र अभरला। दू हजार छात्रमे एतबे फस्ट डिवीजन। ताहिमे जे नाम मन पड़ैत अछि से ई– रामावतार यादव, बालेश्वर ठाकुर, मार्कण्डेय झा, महेन्द्र नारायण कर्ण…आ दू-तीन गोटे रहथि आरो। ओहि साल अठारह प्रतिशत रिजल्ट भेल रहै। कहक काज नइँ जे आर.के.कॉलेजक दू हजार छात्रमे फस्ट डिविजनर सभ वास्तवमे केहन मेधावी रहल हेता!

तकर बाद दीर्घ अन्तराल। ओहि बीच रामावतारजी अपन दिशा निश्चित कयलनि, प्रतिभाशाली रहबे करथि, अवसरो भेटैत गेलनि, देश-विदेशमे पढ़लनि-पढ़ौलनि, भाषाविज्ञानमे विशेषज्ञता प्राप्त कयलनि, शोध-अनुसन्धानमे अन्तर्राष्ट्रीय नाम भेलनि, एक-पर-एक उत्कृष्ट ग्रन्थ आ शोधप्रबन्धक लेखन-प्रकाशन कयलनि, अनेको महत्त्वपूर्ण विलुप्त पाण्डुलिपिकेँ ताकि सम्पादित क सोझाँ अनलनि। फलत: समस्त प्रबुद्ध मैथिल समाजक बीच ई चुनल शीर्षस्थ विद्वन्मणिमालाक एक दाना मानल जाय लगला। मुदा, गौरवक कारण एतबे टाक हेतु नइँ, अपितु एहिसँ बेसी, कहू बीस एहि लक छनि जे हिनक अधिकसँ अधिक काज मैथिली भाषासँ सम्बद्ध छनि, मैथिली साहित्यपर छनि, मिथिलाक हेतु छनि; अङरेजियोमे छनि तँ तकर विषय मैथिलीए छलै आ मैथिलीयोमे तँ छनिहेँ। सभ जनै छी जे सम्प्रति ई शीर्ष श्रेणीक भाषावैज्ञानिक छथि,जे मिथिला-मैथिलीक खुट्टाकेँ विश्वभाषाक अध्ययन-संसारमे मजगूतीसँ गाड़ने छथि।

दोसर दिस एक हम छी जे जतबो पढ़लाैँ से पढ़ पड़ल तेँ, जतबे जे लिखलाैँ से लिख पड़ल तेँ। मुदा, सौभाग्यसँ रहलाैँ जेँ कि अक्षर-संसारमे, तेँ घर-बाहरक गतिविधि, चालचूल, चहल-पहल, खासक मैथिली सम्बन्धी तँ कानमे पड़िते आबि रहल अछि। ताही सिलसिलामे रामावतार यादवक प्रशस्ति सुनब स्वाभाविके छल, एम्हरो आ जनकपुर यात्रामे सेहो। मुदा ई वैह छला आर.के.कॉलेजवला, तहि दिस ध्यान नइँ गेल छल। ‘मिथिला मिहिरमे रही, तहिएक बात छल जे एक बेर मार्कण्डेयजी (सहरसा कॉलेजक प्रोफेसर आ हमर बैचक एक फस्टडिविजनर) गप्पक क्रममे हिनक आ महेन्द्र नारायण कर्ण (जे तहिया ‘अनुग्रह नारायण सिंनहा सामाजिक अध्ययन संस्थान’क डाइरेक्टर छला)क चर्चा कयलनि आ कहलनि जे चलू कर्णजीसँ भेट करबै छी।

तखन जा क निश्चय भेल जे विख्यात रामावतारजी तँ हमर क्लासमेटेवला छला। तकर बादसँ जाहि कोनो सभामे ई रहथि आ हमरा बजबाक अवसर भेटय तँ सम्बोधनमे ‘मित्रवर कहि हिनको नाम लेब लगलियनि। मुदा हिनक विद्वत्ता आ प्रसिद्धिक धाह तेहन सहजोर रहनि जे लग जाक कहियो गप करबाक वा परिचय देबाक साधंस नइँ होइ छल। एकाध बेर ‘मित्रवर सुनि ई अनठा देने होइथ से सम्भव छल, मुदा अकच्छ भ गेल हेता तँ एक दिन ई आर.के.कालेजक मित्र (संयोगसँ हमरो मित्र) डॉ.देवेन्द्र झाकेँ पुछलथिन जे

क्यो भीमनाथ झा हमरा ‘मित्रवर-मित्रवर कहै छथि, से के छला ओ ? अहाँ चिन्है छियनि ? कविता-तविता बनबै छथि से बेस, मुदा हम हुनक मित्र कहिया भेलियनि ? ओम्हर, देवेन्द्र बाबू तँ अपनहिँ गप्प-सम्राट, से तेना क हमरा द कहने हेथिन जे हिनको भेल हेतनि जे ईहो क्यो अछि ! रामावतारो बाबू हुनक चकमामे आबि गेला ।

तकर बाद दुनू गोटे पहुँचल रही महेन्द्र मलंगिया समारोहमे दिल्ली, जे 8-9 दिसम्बर 2018 ई.केँ भेल रहै। ओहिमे पहिने रामावतारे बाबू टोकलनि बहुत स्नेहसँ। तेहन आत्मीय रूपमे गप कैलनि जे हम तँ पानि-पानि भ गेलौँ। खूब फैलसँ हमर नाम लिखि, अपन हस्ताक्षर क अपन पोथी ‘मैथिली आलेख संचयन देलनि। कालेज- जीवनक संस्मरण, अपन अध्ययन आ कार्यक विषयमे तथा नाना प्रकारक आनो स्नेहसिक्त गप सुनबैत रहला।

तकर बादसँ तँ काठमांडू आ जनकपुरोसँ फोनपर कुशल-समाचार रहरहाँ लैत रहै छथि तथा मिथिला-मैथिलीक घर-बाहरक गप कहैत रहै छथि आ हम तृप्त होइत रहै छी। कहबाक मन होइए जे कही, “सिखैत रहै छी”, मुदा अपनाकेँ रोकि लै छी एहि कारणे जे हुनक गूढ़ भाषाविज्ञानक विषयकेँ बुझबो लेल ज्ञानक जे स्तर चाही, से हमरा कत ? ‘मैथिली आलेख संचयनक दोसर खण्ड अनुप्रास प्रकाशन मधुबनीसँ 2022 मे ऐलनि। प्रकाशक श्री दीप नारायण विद्यार्थीजीकेँ खासक हमरा पहुँचा देब लेल कहलथिन।

जून 2023 मे श्रीमती विभा झाक एक वृहत् समारोहमे भाग लेब जनकपुर गेलौँ। ईहो काठमांडूसँ खासक ओही लेल आएल छला। दू दिन धरि लगभग संगहि रहलौँ। एकसरे आएल छला, तेँ परिवारसँ भेट नइँ करा सकला। तकर अपसोच व्यक्त कयलनि। अपन सम्पादित बहुत विशिष्ट, बहुमूल्य ग्रन्थ “ A Facsimile Edition of a Maithil Play : Bhupatindramalla’s Parasuramopakhyana–natak”क शाही संस्करण हमरा सनेसमे देलनि– से की लिखिक देलनि से बुझबै ? –
With warmest personal regards to Prof. Bhimnath Jha
Ramawatar Yadav.
Janakpur, Nepal
June 12, 2023.

जखन कखनो हिनक मैथिलीक अनुसन्धानपरक लेख तथा उक्त पोथी पढ़ै छी तँ दू प्रकारक भावना मनमे एक्के बेर उठैए–
रामावतार जीक नाम तँ शारदावतारजी हएब उचित छलनि आ हमर नाम अबुद्धिक भीमाकार पहाड़जी !
एही दुनू ध्रुवक बीच मैथिली खिलखिलाइत रहथु।

[साभार: डा. भीमनाथ झा, फेसबुक वालसँ ]
*भाषाशैली सम्पादित ।

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