Poem

जनक कार्कीक 5 टा प्रेम कविता मैथिलीमे

कविता : स्पर्श

चलैत काल जखन
पएरसँ धुलकेँ
स्पर्श करैत छी अहाँ

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तकराबाद
धुल, धुल नइँ रहैत अछि
विभूति भ’ जाइत अछि।

२.
अहाँ हमरा अनचोक्केमे मोन पारि
मुस्किआएब
आगू पाछू आँखि घुमाक’ देखब
कियो निहारैए कि सोचि
सतर्क रहब

प्रिये हम दूरेसँ
नइँ छुबिक’ कएल स्पर्श छी।

३.
दिनक निनक बीच दुपहरमे
बन्न झालक दोगसँ प्रवेश कएल सूर्यक किरण
बन्न आँखिक बीच भागमे स्पर्श कक’ हमरा जगेलाबाद
हमर झलफलाइत आँखि अहाँकेँ मोन पाड़ैत अछि।

४.

अहाँक स्पर्श
अन्हार गुफामे
भगजोगनीक प्रवेश अछि ।

५.

अहाँक स्पर्शक कल्पनासँ
– अधरमे भुचाल अबैत अछि
– आँखिमे लोडसेडिङ्ग बढ़ैत अछि
– गालमे गुलमोहर फुलाइत अछि।

६.

किछु स्पर्श आगिएजकाँ होइ छै
दूरसँ नरम बुझाइत अछि
लग्ग सटिते झरका दैत अछि !

७.
अनुमतिसँ तन मात्र स्पर्श कएल जा सकैत अछि
विना अनुमतिसँ ककरो आत्माकेँ स्पर्श कएल जा सकैत अछि।

गुलाब : जनक कार्की

माफी चाहब प्रिये !
सुन्दर गुलाब तोड़िक’
अहाँकेँ समर्पण कर’ नइँ चाहैत छी

बरु हम अहाँकेँ बागमे
लक’ जाए चाहैत छी
ओत’ एकाग्र भ’ निहारब सओ गुलाबसभकेँ
आखिर सबकिछु तँ सजीवतेमे नीक लगैत अछि

अपन विचारसँ
बहुत कालधरि झगड़लाबाद
निष्कर्षमे पहुँचलौँ जेँ
फूलसभ अहाँके हाथमे नइँ बागमे शोभैत अछि

अहाँ सेहो तँ
हमर मोनक बागके गुलाब छी
अहाँकेँ हम तोड़ि
अपन नजरिमे
अपनाकेँ कोना देखि सकैत छी?

■ अहाँसँ प्रेम नइँ करबाक नफा: जनक कार्की

अहाँसँ प्रेम नइँ करबाक
हमरा हजार किलोग्राम नफा अछि

अहाँकेँ प्रेम नइँ कएलासँ –
स्टोरेज फुल भेल मस्तिष्क फर्म्याट होएत
चानमे अहाँकेँ देखैत छी
फूलमे अहाँ गमकैत छी
कह’ वला सम्पूर्ण भ्रमसँ मुक्त होएब
मूहदुशी एकटा सङ्गी गुमाओत
सभसङ्ग होइतो अहाँ सङ्ग मात्र हुअवला बानि छुटत
अहाँक यादक ह्याङओभरमे रहलापर
अनचोक्के असगर मुस्किएनाइ आदति छुटत
पागलजकाँ स्वयंसँ संवाद नइँ कर’ पड़त
कत’ हराएल छी ? जकाँ प्रश्नसभ नइँ सुन’ पड़त

अहाँकेँ बिसरलासँ
हजारो लिटर नफा अछि

अयना आ हमर यारी लगभग टुटत
आइरन, ककही, तेल, जेल, ट्रेन्डिङ्ग कपड़ा-लत्ता
ओतेक काज नइँ लागत
पर-पावनि, उत्सव मोन रखबाक झन्झट छुटत

अहाँसँ प्रेम नइँ करबाक
हजारो मिटर लमगर नफा अछि

मोबाइलक ब्याट्री लेबल घटबाक झौल खतम
राति-रातिभरि अनलाइन किए ? जकाँ प्रश्नक स्पष्टीकरण देब’ नइँ पड़त
मनेबाक लेल जिलेबीजकाँ बात नइँ घुरब’ पड़त
सतब’ लेल नवनव रणनीतिक बेगरता नइँ पड़त
दमसेबाक लेल राजेश हमालक हे~~~~ वला संवाद कम बाज’ पड़त

अहाँसँ प्रेम-सम्बन्धमे नइ रहलापर लाखो नफा तँ अछि
घटा मुदा एकटा अछि-
अहाँ बिना हमर अस्तित्व नइँ बाँचत।

■ प्रेमान्दोलन: जनक कार्की

अहाँ छोड़ि गेलाबाद
हमर दिमागके चौकमे
स्मृतिक जुलुस
नाराबाजी क’ रहल अछि

पत्थर प्रहार क’ रहल अछि
कोमल हियाकेँ चोट करि

निषेधाज्ञा तोड़िक’
गिदी भितर मार मारक’ चला रहल अछि
ग्लानीक धरगर कुड़हरि

अश्रुग्यासक उलटी
अनवरत क’ रहल अछि – नयन ई
विपक्षक यादमे

रातिसङ्ग निनक झड़प
स्वादसङ्ग जीहकेँ लाठीचार्ज
अनसनमे अछि- आराम
आन्दोलित अछि
अस्तव्यस्त अछि दिनरैन।

अपन
शंकाक नाराकेँ
असम्झदारीक मुद्दाकेँ
अविश्वासक पत्रकेँ
जराब’ चाहैत छी टायर बारिक’।

प्रेमाक्षर माफिनामा अहाँकेँ अर्पण करैत छी।

■ अनामिका : जनक कार्की

कोना सम्बोधन करू हम?
अहाँ अपरिभाषित छी
शब्दसभक अर्थसँ बहुत दूर
अनमोल रत्नसँ बेसी बहुमूल्य
अहाँक वर्णन करब
हमर असफल प्रयास मात्र हएत।

अहाँकेँ मोन पारैत काल
हम ओ निस्वार्थ बहैत पानिक मूलकेँ मोन पारैत छी
जेँ अरबो पियाससभ नि:शुल्क मेटाबैत अछि
सूर्यक किरणसभकेँ मोन पारैत छी
जेँ कठुआएल अङ्गसभकेँ
निरन्तर नरम प्रवाह करैत अछि
पवनक झोंकासभकेँ मोन पारैत छी
जेँ अनवरत निस्प्राणसभमे प्राण भरैत अछि ।

अहाँकेँ मोन पारैत काल
हम स्पर्शहिन स्पर्शसभकेँ मोन पारैत रहैत छी
जेना एक झलक कल्पना
हृदयके केबाड़ी खटखटाबैत अछि
तखन हमर बन्द ठोरसभ
खुलि जाइत अछि।

जेना अहाँक काल्पनिक श्रव्यदृश्य मानसपटलमे नाचि रहल समय
हमर पिपनीसभ झपक’ लेल बिसैर जाइत अछि

अहाँसङ्ग गप्प-सरक्का कएलापर
पाँखि लागैत अछि
घाइल चाँखिसभकेँ

हृदयक स्पन्दन मधुर रिदम बजबैत अछि
उछलि अछलि हिलोर मचबैत अछि
रक्तनलीमे रक्तक नर्तकीसभ

कारी अन्हार अदृश्य रातिसभमे
अहाँ भगजोगनि जकाँ चमकैत अबैत छी
प्रज्वलित करैत छी
हमर गुफामे बास बसल इच्छासभकेँ

हम अहाँकेँ अमूर्तमे भेटैत छी
फूलमे नइँ सुगन्धमे
चन्द्रमामे नइँ शीतलतामे
आकाशमे नइँ अनन्ततामे
रङ्गमे नइँ बेरङ्गमे

हम अहाँकेँ बिछोड़महक मिलनमे भेटब
जेना कि सूर्य आ चन्द्रमा
अन्हार आ प्रकाश
मृत्यु आ जीवन

तइँ अनामिका
अहाँ अपरिचित छी
मुदा हमरा लेल सदति परिचित रहब
रहस्यभितरक ब्रह्माण्ड रहब
हमर सोलमेट
आत्मासँ आलिङ्गनमे भरब
आत्मासँ चुम्बन करब
आत्मासँ हाथमे हाथ धरब
मुदा एकरा परदामे कहियो
प्रदर्शित हुअ नइँ देब
किएक तँ परदाक जीवन निश्चित होइत अछि
आत्मा अविनाशी होइत अछि
नइँ जनमैत अछि आ नइँ मरैत अछि ।

अइ ! अनामिका
अहाँ आ हमर
आत्मासँ आत्माकेँ जोड़’ लेल
एकटा औँठी चिन्ह लक’ जाओ
जकरा अहाँ अनामिका आङुरमे लगाएब
सुनने छी जेँ
अनामिका आङुरके नसक तार
हियाधरि जोड़ल रहैत अछि ।

 जनक कार्की, रचनाकार (नेपाली भाषी)

जनक कार्की [Janak Karki] नेपाली भाषाक चर्चित युवा कवि तथा कथाकार छथि। जनक कार्कीके जन्म नेपालक पाल्पा जिल्लामे भेल अछि। आवाजक दुनियाँमे रेडियो मुक्तिनाथ एफ एम होइत, कालिका एफएमसँ अपन कला यात्रा सुरु कएने छथि।  सङ्गहि ओ साहित्यिक पत्रकारिता क्षेत्रमे संलग्न छथि। हुनक कथा ‘बाह्रखरी उत्कृष्ट कथा २०७९’ मे चयन भेल छल तँ लुम्बिनी विश्वविद्यालयद्वारा आयोजन कएल कथा प्रतियोगितामामे हुनकर कथा ‘उत्कृष्ट कथा’क पुरस्कार प्राप्त कएने छल। हुनक कविता संयुक्त कवितासङ्ग्रह ‘अनुहारको भीड’मे समेत सङ्ग्रहित अछि।

■ नेपालीसँ मैथिलीमे अनुवादित, अनुवादक : विद्यानन्द बेदर्दी

बेदर्दी आइ लभ मिथिला डॅटकम सम्पादक छथि। साहित्य आ सङ्गीत क्षेत्रक सक्रिय युवा लेखकक रूपमे प्रतिनिधित्व क’ रहल छथि।

विद्यानन्द बेदर्दी

Vidyanand Bedardi (Saptari, Rajbiraj) is Founder member of I Love Mithila Media & Music Maithili App, Secretary of MILAF Nepal. Beside it, He is Lyricist, Poet, Anchor & Cultural Activist & awarded by Bisitha Abhiyanta Samman 2017, Maithili Sewi Samman 2022 & National Inclusive Music Award 2023. Email : [email protected]

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