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अप्पन गीत गबै छी, तेँ निज भास चाही : धीरेन्द्र प्रेमर्षि

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— गजल

जीबऽ लेल अपनहि सीनामे श्वास चाही
अप्पन गीत गबै छी, तेँ निज भास चाही

शब्दक उन्नत बीजकेँ जनमऽ पलऽ बढ़ऽ
साजक धरती ‘सङ्गीत’ क आकाश चाही

रक्तक सङ्ग बहि लयकारी मन बिहुँसाबए
तामझाम नइ, तै लेल सुरक मिठास चाही

ई अनुष्ठान थिक ‘योग’ भाव ओ कला दुनुक
से फलीभूत हो, तेहन स्वर-विन्यास चाही

अलर-बलर आ फूसि-फटक्का भेल बहुत
सुच्चा-शाश्वत बनए तेहन इतिहास चाही

मैथिलीक लेल झलकी नूआ, गहना की !
माए छी, एकरा अन्तर्मनक उजास चाही

जयतसँ लऽकऽ लोचन आ कि माङनिधरि
जोतलनि, उपजौलनि से उर्वर चास चाही

झाड़ बनल झङ्खार तेँ एकरा कमबऽ लेल
थोड़ेक जूति आ मेहनति बहुते रास चाही

औ ‘सुनील’ ! किछु निस्सन डेगेँ आओर चली
शब्द-सुरहिसन ‘प्रेमर्षि’ क सङ्ग खास चाही

● गजलकार : धीरेन्द्र प्रेमर्षि

( आइ २१ जुन २०२३, विश्व सङ्गीत दिवस आ विश्व योग दिवसक हार्दिक शुभकामना सहित प्रकाशित )

धीरेन्द्र प्रेमर्षि

धीरेन्द्र प्रेमर्षि (English: Dhirendra Premarshi) मैथिलीक बहुआमिक प्रतिभा भेल व्यक्तित्व। लेखक, गीतकार, गायक , रेडियो कर्मी हेलाै मिथिलाक संचालक। संगीत तथा नाट्य प्रज्ञा प्रतिष्ठान नेपालक प्राज्ञ ।

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