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नोरक संगे हमर मनोरथ बहि गेलै
भावक एकटा भीत छल से ढहि गेलै
हम तोहर के तों हम्मर के बाज कने
मोनक एकटा मीत छल से कहि गेलै
आन की बूझत पीड़ा कते मारुख छै
गत्र-गत्र जे चोट गँहिरगर गहि गेलै
पाँति कएटा लिखि ओकरे लेल राखल
के सूनत से लीखल अहिना रहि गेलै
एमकी जतन करै छी हृदय अजबारब
कतेक बरख सँ अजबारल जे नहि गेलै
– गजलकार: मनीष
मनीष जीक पूर्ण नाम मनीष झा अछि। झा कविता, गीत आ गजल तिनु क्षेत्रमे धरगर कलम चलाबैत आबि रहल छथि। साहित्य-सङ्गीत लेखनमे रूचि रखितो सिनेमाक पर्दामे अपनाकेँ उतारबाक लेल संघर्षरत छथि।
बहरे-मीरमे कहल गेल सुन्दर गजल