प्रस्तुत पाँचटा मैथिली गजल
बिसरिकऽ अहाँके हम जियब कोना ?
हदसँ बेसी हियाक दर्द सहब कोना ?
अश्रुधारके पेआला हाथ थमा तँ देलहुँ,
ई बता दिए बालम की पियब कोना ?
चाहै छी हम अपना जानोसँ बढिकऽ,
तस्वीरसँ अहाँके हम कहब कोना ?
भागमे लिखल अहाँ तँ नहि छी मुदा,
अहाँ बिनु ई जीवन काटब कोना ?
जीवनमे अहाँ तँ हमरा नहि देखलहुँ,
आब एक लास छी हम,सजब कोना ?
New post : मैथिली साहित्यकारलोकनिके किए अछि कलमके नोक भोँथियाएल ? (नागरिकता विधेयक)
दाेसर मैथिली गजल
भक्तिभाव दरसाएब कते ?
स्नेह-सुधा बरिसाएब कते ?
भटकि रहल छी भूखल जगमे
भूखले भजन सुनाएब कते ?
झाँपि रहल छी हँसीक दुखके,
फाटल हृदय ई देखाएब कते ?
सोझ रस्ता मानवताके अछि,
मानवके ओझराएब कते ?
बहुत जतनसँ झपलहुँ जकरा,
हुनकर पाप गनाएब कते ?
देशकालके देखिकऽ बूझियौ
देशक मान बढाएब कते ?
View: मैथिली लेखन शैली
तेसर मैथिली गजल
कवि, कवितामय भेल चतुर्दिक
कविताक लागल सेल चतुर्दिक
सबके कहबी श्रेष्ठ रचै छथि,
करियौ हुनकर मेल चतुर्दिक
जीवन-मरण, पतन-उत्थानक
धरती बनि गेल खेल चतुर्दिक
आम ओ खासमे वर्गीकृत छै ,
नियम, नीतिके रेल चतुर्दिक
आउ अहूँ रससिक्त होउ एहिसँ
कवि लगबै छथि तेल चतुर्दिक
‘करुणा’ ककर-ककर मोन रखबै?
सब बुझथि बकलेल चतुर्दिक
चारिम मैथिली गजल
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मन्दिर बनतै मस्जिद बनतै, बनतै गिरजा गुरूद्वारा
कहिया बनत अपन सोचहक घूमि रहल छह बंजारा
मिथिलामे मैथिलक हालत बदसँ बदतर देखि रहल,
कामकाज ने, रोजी-रोटी भूखले मरबाक छै चारा
दिल्ली, बंबई, चेन्नई, पूना छोट-पैघ सब शहरमे जा
कमा रहल अछि टक्का बहाकऽ खून-पसीना बेचारा
एक ने रहबाक श्राप कतेक होइछ करूण ई हम देखलहुँ,
अपनेमे छै मार-काट सबतरि बहैत शोणितक धारा
‘करूणा’ कहैत रहल सबदिनसँ सोच बदलिकऽ आगू जा,
पाछू-पाछू नेता सबके डोलि रहल सबटा मतिमारा
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पाँचम मैथिली गजल
वेद छोड़ि वेदना जँ पढितहुँ
जीवनके कल्पना जँ पढितहुँ
आइ ने दुर्दिनके दिन रहितै,
मानव मन वंदना जँ पढितहुँ
दुख-दारिद्रय,विषमता चहुँदिस
मोन किएक अनमना जँ पढिहुँ
भाव नहि भेटैछ अर्थभावके
भाव प्रवण भावना जँ पढितहुँ
राजनीतिमे पिसा रहल अछि
जनताके यंत्रणा जँ पढितहुँ
सरकारी बैठक बकवासी
नेताके कुमंत्रणा जँ पढितहुँ
विस्थापित जे मातृभूमिसँ
ओकर मनभावना जँ पढितहुँ
संकटग्रस्त जखन छै वसुधा,
संकटके सामना जँ पढितहुँ
राजा-रंक,धनी-निर्धन सब
भागक बिडंबना जँ पढितहुँ
क्षणभंगुर जीवन छै सचमुच,
जीवनके सांत्वना जँ पढितहुँ,
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