भूमिका
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गोनू झा : व्यक्ति ओ विस्तार
लेखक: विभूति आनन्द
|| गोनूक पंजी प्रसंग… ||
गोनू झा प्रसंग विमर्श करैत ई स्पष्ट भेल जे हुनका मादे मात्र एक पंक्तिक चर्चा पंजीमे आयल अछि। आ वएह आधार बनल जे हुनक उतेढ़ तकबाक सिलसिला चलि पड़ल। एतबय नहि, ओही ठाम सँ ईहो बोध भेल गेल जे ओ महामहोपाध्याय नहि, महोधूर्तराज गोनू झा रहथि। ई सेहो उभरि क’ आयल जे हुनक पूर्वजलोकनि वर्तमानक पंचकोसीमे छिड़िआयल छथि, आ लिखित कम, मौखिक अधिक, हुनका सभ कें एहि लेल गौरवबोध छनि।
मुदा ई पंजी-प्रबंध की थिक, एकर निर्माण, औचित्य आदि पर लगभग पाँच दशक पूर्व वैदेही समिति, दरभंगा द्वारा आयोजित श्यामनन्दन सहाय व्याख्यान मालामे पंडित बलदेव मिश्र ज्योतिषाचार्य, जे स्वयं श्रोत्रिय कुलसँ अबैत रहथि, मुदा आजुक सहरसा जिलाक वनगाँव मे बसि गेलाह, उक्त प्रबंधपर अपन स्पष्ट टिप्पणी करैत लिखैत छथि जे पञ्जी व्यवस्थाक यदि उत्तम रूपें विचार कएल जाय तँ एहि सँ लाभ देशकें कम परन्तु हानि बहुत बेसी भ’ गेलैक।
लाभ ई भेलैक जे किछु लोक ब्राह्मण बनल रहलाह। सदाचारक रक्षा कयलनि तथा अपन संबंधमे अयनिहार लोकहुँ कें सदाचारी बनाओल। एतेक समय सँ आयल किछु लोकक इतिहास / रेकर्ड सुरक्षित रखलनि। किछु लोकक गुणगान, हुनक कीर्तिक मर्यादाक प्रशंसा कयलनि। देशक राज्याश्रय रहलैक इत्यादि। बेजाय ई भेलैक जे लोकमे तादृश गुण नहियों रहला पर ओ अपनाकें परमादरणीय बुझैत रहलाह। स्वयं अपना कें गुणधान करबाक चेष्टो करब त्यागि देलनि। देशक बहुजन अनादृत अपमानित भ’ क’ रहलाह।
ज्योतिषी जी आगू लिखैत छथि जे लेखकक अनुमान एतेक दूर धरि छनि जे राजा हरिसिंहदेवहुक जे दु:खान्त अन्त भेलनि, तकरो मुख्य कारण ई पंजी-प्रथे भेल होयतनि। एहि प्रथा सँ किछु लोकक तँ आदर भेलैक किंतु जनसाधारण नीचा क’ देल गेल। फलतः राजा हरिसिंह देव अप्रिय लोक भ’ गेलाह, जकर कुफल ई भेलनि जे हुनका संगहि कर्णाट कुलक राज्यक तथा सम्पत्तिक नाश भ’ गेलैक।
तहिना महामहोपाध्यायक उपाधि प्रसंग सेहो हुनक भाव अछि जे ओ पदवी राज्याश्रित लोक कें नहि देल जाइत छल। ई उपाधि वस्तुतः, जेना लेखकक अनुमान छनि जे मिथिलाहिक विद्वन्मंडल एहि उपाधिक वितरण करैत छलाह। तथा एहि उपाधि-प्रदानक प्रारंभ गंगेश उपाध्यायहिक समय सँ संभव भेल अछि।
मुदा एहि आधार पर तँ विद्यापति महामहोपाध्याय नहि भेलाह। कारण ओ सेहो राजाश्रित छलाह। किंतु एहि प्रसंग अनेक प्रमाण भेटैत अछि जे ओ महामहोपाध्याय रहथि। तत्काल उदाहरण रूप मे आचार्य रमानाथ झा द्वारा संपादित विद्यापतिकृत ‘पुरुष परीक्षा’ यथेष्ठ लगैछ। अस्तु।
तखन हमर मोन मे एकगोट प्रश्न उठैत अछि जे जखन विद्वान गोनू झा गंगेश उपाध्यायक समय मे रहथि, आ किंवदंती पुरुष सेहो बनि गेल रहथि, पंजी लेखक लोकनि हुनका कोन कारणें धूर्त्त शब्द सँ अविहित कयलनि ! जखन कि हुनक पंडित होयबाक प्रमाण सेहो भेटैत अछि !
सर्वाधिक दुखद पक्ष ई अछि जे ज्योतिषाचार्य बलदेव मिश्र सेहो गोनू झा प्रसंग एको आखर लिखब आवश्यक नहि बुझलनि। तें हमर विमर्श कहैत अछि जे एखन धरि अन्हार पक्ष पर सँ पूर्णत: पर्दा नहि उठि सकल अछि। ओना ‘मिथिलार गोपाल भाँड़ गोनू झा’ नामक पुस्तक मे बंगाली अन्वेषक द्वय लिखैत छथि जे गोनू झा महामहोपाध्याय रहथि, आ जकर ओ समयक उल्लेख करैत छथि 1326 ई.।
संदर्भगत एक विमर्श ई अछि जे ज्योतिषी जी अपन उक्त आलेख मे एक व्यक्तिक उल्लेख करैत छथि जे विद्वान तँ छलाहे, मुदा अंग सँ एकाक्ष छलाह। नाम रहनि रघुनाथ। ओहो हरिसिंहदेवक काल मे भेल रहथि।
एही सँ साम्यता रखैत एक प्रमुख व्यक्तिक नाम अछि, रघुदेव। ओ राज्यादेश पर पंजीक लेखन अथवा तथ्य संग्रहणक कार्य कयलनि। तें एहि नामक (लगभग) साम्यक ओझरौट सोझरयने किछु आर नव तथ्य, विमर्श कें आमंत्रित क’ सकैछ !
अस्तु, हमर सोचब ई जे गोनू झा जाहि कालखंडमे भेल रहथि, ओ संस्कृत भाषा आ तत्कालीन रूढ़ सोच-परिधि सँ आबद्ध छल। बहुत बेसी नवता कें आनब तखन संभव नहि छलै। मुदा ओही रूढ़ता मध्य गोनू झाक निज चरित्रक निर्माण होइत अछि। ओ परम्परित सोच सँ फराक नब चेतना सँ युक्त, जतबा जड़ता कें उकन्नन क’ सकैत छलाह, कयलनि। आ सेहो अपन चरित्रगत ओ व्यवहारगत गतिविधि सभ द्वारा…
मानी तँ मिथिलाक ओ ‘रेनाशाँ’क काल छल। बनल लीख सँ गाड़ी हटि न’ब लीख बनब’ लागल छल। गोनू झा जकर आरम्भ रहथि। जेना दबल स्वरक विरुद्ध हुनका नव हूँकार कहि सकैत छी।
आ तें संभव थिक ओ देखैत-देखैत अपन जीवन कालहि मे खिस्सा भ’ गेल होथि। आ जेनाकि मान्यता रहलैक अछि, ककरो अपन जीवन कालहि मे एहि तरहें खिस्सा बनि जायब, विरल होइत छै। गोनू तें विरल व्यक्तित्व रहथि। एखनहुँ ताहि मे क्षरण नहि भेलैक अछि…
|| गोनूक गाम-प्रसंग… ||
प्रोफेसर सह अन्वेषक रामदेव झा सहित अधिकांश जनमानस गोनू झाक गाम भरौड़ा सएह मानैत छथि, आ जे एखन सरकारी अभिलेख मे भरवाड़ा नामे चर्चित अछि। रामदेव झा अपन पुस्तक मे बिना कोनो मीन-मेषक लिखैत छथि जे प्रसिद्ध अछि जे गोनू झा भरौड़ा गामक निवासी छलाह। एहि गामकें भरबाड़ा सेहो कहल जाइछ जे दरभंगा जिला मे दरभंगा सँ पश्चिम सिंहबाड़ा प्रखंडक निकट अछि। ग्रामवासीकें एहि बातक गौरव-बोध होइत छनि जे गोनू झा हुनकहि गामक वासी छलाह…
नव अन्वेषण पंडित भवनाथ झा मैसेज करैत छथि जे गोनू झाक पिता वंशधर, सोन करियाम नामक गाम मे रहैत रहथिन। आ जे अमरावती नदीक समीपमे छल। तें आन गामक बात इतिहास नहि थीक। सरिसब आ गंगौली गामक बीच अमरावती नदी 1875 ई. धरि बहैत रहल अछि। रेल बनबाक क्रममे धारा टूटि गेलै। मुदा ओकर छाड़नि एखनहुँ शेष अछि।
संतोष तिरहुतिया, जे प्रायः गौर, नेपाल सँ छथि, हुनकर सूचना अछि जे सिमरौनगढ़ आ रौतहटक क्षेत्रमे गोनू झा कें ‘गोनू ओझा’ कहल जाइत छनि। आ ओ लोककथनक अनुसार ‘कर्महिया’ गामक रहथि आ जे बकैया नदी मे बहि गेल अछि। सम्बन्धित गाम सिमरौनगढ़क निकट अछि। दोसर बात जे एखन अठारह टा पुरातात्विक डीहक पता लागल अछि, जतय बहुत व्यापक रूप सँ इनार, मन्दिर, घर इत्यादिक भग्नावशेष भेटलैक अछि, मुदा उत्खनन एखन पूर्ण नहि भेल अछि। स्थानीय दनुवार आ थारू जातिक लोक सभक कथनानुसार ई गाम सभ ब्राह्मण सभक छलनि। आ जे सभ अगिलग्गीक उपरांत दक्षिण दिस चल जाइत गेलथिन। एहि ठाम अगिलग्गीक मतलब तुगलगक लोकनिक आक्रमण सेहो भ’ सकै अछि…
एहि सभ अभिमतक प्रसंग हमर तर्क कहैत अछि जे जँ गोनू झाक गामक संदर्भ मे ई सभ दृष्टिकोण सही अछि तँ निस्संदेह कहल जा सकैत अछि जे अपन मिथिलामे अदौकालसँ पलायनक समस्या रहल अछि। आजुक संदर्भ मे सेहो ताहि स्थिति कें अकानल जा सकैत अछि। आन गाम, आन शहर अथवा आन राज्य तथा देशमे जायब, आ अंततः ओतुक्के भ’ क’ रहि जायब, उक्त सभटा दृष्टिकोणकें सही सिद्ध करैत अछि।
|| गोनू झाक अनेक प्रसंग… ||
एना रहरहाँ पढ़ल/ सुनल गेल अछि जे विद्वन्मंडल द्वारा बीच-बीच मे एहन-एहन वक्तव्य लिखित/ मौखिक रूप मे देल जाइत रहल अछि, जाहि सँ शोध/ विमर्शक क्रममे आर जे किछु हुनका सभक मन:तुष्टि होनि, धरि आगू भविष्य मे शोध कयनिहार कें दिग्भ्रमित करय मे बेस सहायक होइत छनि। आ जे अंततः निष्कर्ष कें अनिर्णीत क’ दैत रहल अछि…
एहिना कहियो कोनो विद्वान एक टा तुक्का छोड़लनि जे गोनू झा एक नहि, अनेक रहथि। ई क्रमपात अव्याहत रूप मे एखनो चिंतन मे अछि, हुकल नहि अछि। अपितु समाज मे सोशल मीडियाक वर्चस्व भ’ गेने धुआँइत आगि मे घीक काज करैत रहैत अछि…
जेंकि हम गोनू झा केंद्रित विमर्श सभमे लागल रहलहुँ, किछु नवीन विद्वान सभक सोशल मीडियापर आयल मंतव्य सभ कें राखब आवश्यक बुझैत छी। आ जकर कारण सेहो अछि। आ कारण ई जे आइ शोधक क्रममे आधार ग्रंथक अपेक्षा ‘गुगल’क महत्व काफी बढ़ि चुकल अछि।
नव अन्वेषी भवनाथ झा लिखैत छथि जे हमरा बुझाइत अछि, गोनू झा जे एक व्यक्तिक नाम छल, जे बाद मे ओहन प्रत्युत्पन्नमति बला लोकक लेल एकटा उपाधि बनि गे। जेना एक गोट धूर्तराज आर भेटैत छथि– ‘भाना झा’। हुनक सेहो इतिहास अछि।
एहि प्रसंग ओ आर जनतब दैत छथि, जेना भिन्न-भिन्न मूल मे खञ्ज गोनू, पांजिक गोनू, वैदिक गोनू, ज्योतिषी गोनू सेहो भेटैत छथि। ‘खञ्ज गोनू’ एक अद्भुत विशेषण अछि जत’ शारीरिक अक्षमताक सेहो उल्लेख अछि।
एकटा चर्चित मानवशास्त्री छथि कैलाश कुमार मिश्र। ओ लिखैत छथि जे एखन धरि जे काज भेल अछि, ताहि सँ ई स्पष्ट पता लगैत अछि जे गोनू झा एक टा नहि अनेक व्यक्तिक संचय छथि। बदलैत समयक संग बातक, रसक, हास्यक विस्तार होइत गेलै। कमोवेश इएह स्थिति डाक, घाघ आदिक सेहो छनि। किछु लोक बलपूर्वक उतेढ़, पंजी प्रबंधक माध्यमे तकैत रहैत छथि। टेक्स्ट एनालिसिस, आ आन विधिक कोनो प्रयोग करब क्यो सोचियो नहि रहल छथि …
अंग्रेजीक प्राध्यापक आ कौलिक संस्कृत-ज्ञाता ईशनाथ झा स्पष्टत: लिखैत भेटैत छथि जे गोनू झा काल्पनिक चरित्र थिकाह, ‘शरलक होम्स’ जकाँ। ‘आर्थर कानन डायल’ एतय एक नहि अनेक होइत गेलाह आ खिस्सा बढ़ैत गेल। आर. के. नारायणक मालगुडी, जे. के. रॉलिंगक मैजिक स्कूल आदि-आदि एही गोनू झाक परिकल्पनाक प्रतिफल थिक…
एही क्रम मे संस्कृत मे साहित्यक विद्वान उदय नाथ झा ‘अशोक’ हमर एहि गोनू-विमर्श मे अबैत किछु अलग तरहक गप-सप करैत छथि। ओ लिखैत छथि जे गोनू झाक खिस्सा, जीवनी वा गाम सभक जन्म भेल अछि 1900 ईस्वीक बाद. एहि सँ पूर्व कतहु किछु नहि भेटैछ, ताकल जाय। आ जे किछु पहिलुक भेटैत अछि, से मात्र पञ्जी प्रबन्ध थिक।
पंजी कें अप्रामाणिक नहि मानल जा सकैछ। ओइनिवार शासनक समय मे ओ सोनकरियाम (सोनाकरिया ? बंगाल, वा करियाम? मिथिला, ओना तीन टा आरो मिलैत-जुलैत गाम अछि) गाम सँ आबि करमहा नामक गाममे बसल रहथि, तें पंजी मे लिखल अछि ‘सोनकरियाम करमहा सँ। ओना किछु बात पंजी सँ भिन्नो सिद्ध अछि। मुदा तैयो पंजी-प्रबन्ध एकटा प्रामाणिक दस्तावेज थिक।
हमरा लोकनि जे-जेहन निष्कर्ष सभ निकाली, मुदा किछु-ने-किछु प्रमाण संग गोनू झाक नाम मे ‘झा’ सेहो 1900 ई. सँ लागल। एहि सँ पूर्व कतहु नहि भेटैत अछि। हुनका समय मे ‘झा’ छलैको नहि। ओना ई ठीक अछि जे ‘ओझा’ आकि ‘झा’, ‘उपाध्याय’क अपभ्रंश थिक, मुदा थिक तँ बादक। हुनक गाम भरौड़ा रहनि वा गजरथपुर, तकरो प्रमाण सहित उल्लेख करब आवश्यक।
मुदा तें गोनू प्रसंग, आ से गोनूये प्रसंग किएक, अनेक महापुरुष प्रसंग एहि तरहक विमर्श चलैत रहल अछि जे एकटा कल्पित ‘नाम’ टा होइत छल, आ जकर उपयोग अनेक लोकनि करथि।
एत’ विस्तारमे नहि जाय विद्यापति प्रसंग सेहो उल्लेख कर’ चाहब जे गोनू झा प्रसंग जे भ्रांत धारणा सभ पसरल अछि, विद्यापति सेहो एहि सँ मुक्त नहि छथि।
ओना बेरोजगारी अवस्था मे जखन हम आ ज्योत्स्ना लोकगीत सभहक संग्रह कर’ लेल आगू बढ़ल रही तँ अनेक एहन गीत सभ भेटैत गेल, जाहि मे भिन्न-भिन्न गीतक भनितामे ‘भनहि विद्यापति’ आखर भेटय। एकबेर अग्रज गिरीश सँ जिज्ञासा कयलियनि। ओ कहलनि जे तहिया प्रायः ई भ्रांत धारणा बनल रहल हैतै जे ‘भनहि विद्यापति’ उल्लेख करब, तखनहि गीतक पूर्णता मानल जयतै।
मुदा आइ सोचैत छी तँ अलग अर्थ निकलैत अछि। से ई जे तत्कालीन समाज कें विद्यापति एहि रूपें मोहित कएने रहथि जे मैथिली गीत विद्यापतिमय भ’ गेल रहय।
मुदा इ-पत्रिका ‘विदेह’ अपन तर्क युक्त प्रमाण सँ एकटा फराके स्थापना दैत अछि, जकर अनुसारें ज्योतिरीश्वर पूर्व आ ज्योतिरीश्वर पश्चात विद्यापति दू टा आ दू जातिक भेल छथि। एहिना तँ वाचस्पति मिश्रक मादे सेहो कहल जाइत रहल अछि जे वृद्ध वाचस्पतिक उपरान्त जे वाचस्पति भेलाह, से एक नहि, अनेक रहथि…
तें एही सभ तरहक विसंगति पर चिंतन करैत अपन पोथी ‘गोनू झा : व्यक्ति ओ विस्तार’क आरंभे एत’ सँ कएल अछि, जे–
गोनू झा।
मुदा प्रश्न उठल जे आखिर गोनूये झा किएक ? ओ तँ कोनो नेता-राजनेता नहि रहथि ! ने गाम-समाजक श्रीमंते वर्ग मे आबथि ! हुनकर साहित्यकार होयबाक सेहो तेहन सूत्र नहि भेटैत अछि। रहल सेहो होथि। नहि साहित्यकार, तँ विद्वान तँ छलाहे।
मुदा एहि मे दू मत नहि जे ओहि व्यक्तित्व मे किछु तँ एहन छलनि जे हुनका मादे, हुनक व्यक्तित्वक प्रसंग मे बुझबाक, गुणबाक आ निष्कर्ष बाहर करबाक लेल विगत लगभग चारि दशक सँ गुन-धुन करैत रहल छी। एतय स्मरणीय जे 1985 मे हमर एक गोट पोथी आयल छल– ‘एकटा छला गोनू झा’।
किंतु हुनका प्रसंग कोन ठाम सँ, कोन तरह सँ, आ कोन शैली मे विमर्श, अर्थात गप-सप आरंभ करी। हमरा ‘रिसर्च मेथोलॉडालाजी’क ज्ञान नहि अछि। दोसर, ई जे हमरा कहियो परम्परित बाट पर आँखि मूनि चलब नहि रुचल। आ तेँ मूल मे इएह कारण रहल जे एखन धरि ई मन-मंथन, स्वरूप मे नहि आबि पौलक।
फेर, सहसा सोच मे आयल जे हम मैथिल अपन-अपन अहं सँ विवश छी। तें आइ धरि अपन नायकक सम्मान देब नहि जानि सकलहुँ। एहि संदर्भित स्मरणीय जे बांग्ला/ बंगालमे आइयो रवींद्र नाथ ठाकुर प्रासंगिक छथि। ओ सभ अपना मे अलग सँ ‘रवीन्द्र संगीत’ विकसित क’ लेलनि। मुदा हुनके काव्य-गुरु कवि विद्यापतिकें हमरालोकनि ओ सम्मान देबयमे एखनो मोटामोटी गोसाउनिक गीत सुन’-सुनब’ धरि सीमित रखने असीमित ढंग सँ निभेर छी। विद्यापति एहि सँ फराक सेहो बहुत किछु छथि, ताहि दिस सँ निरपेक्ष रहलहुँ। ओना आब किछु उदार चेता युवा-मन एहि दिस अग्रसर भ’ रहल छथि, भेल छथि…
फेर तँ एहि तरहें सोचैत तय करय मे विलंब नहि भेल। अर्थात जखनहि निन्न खुजय, तखनहि भोर ! किएक नहि अपन एहि फूसिक अहं कें गोनू झायेक विमर्श द्वारा चूर्ण कएल जाय !…
… आ से गोनू झाक नाम दिमाग मे अबिते ठोर बिहुँसि उठल !
|| गोनूक परिधि प्रसंग… ||
गोनू एखनहुँ धरि बान्हल-छेकल जाइत छथि– जाति-पाति, कुल-गोत्र आ मूलक बन्हन सँ। पंजी प्रबंध मे ई-ई सभ लिखल गेल अछि, विमर्शक सएह एखनो मूल बिंदु अपन बुत्ता संग विद्यमान अछि।
मुदा सहरजमीनक सत्य ई अछि जे बदलल समय मे आइ पंजी प्रथा किछु सीमित जातिक अतिरिक्त, प्रायः मृयमान भ’ चुकल अछि। एहि सत्य कें एहू तरहें कहल जा सकैत अछि जे आजुक व्यस्त जीवनक दौड़-बरहा मे ई विषय, अथवा परंपरा सभ तरहें प्रयोजनहीन भ’ चुकल अछि।
एतबे नहि आब तकर निरर्थकताक मुखर विरोध सेहो शुरू होब’ लागल अछि। हाले मे प्राचीन भारतीय इतिहास विषयक विद्वान विद्यावारिधि अयोध्या नाथ झा फेसबुकपर लिखैत, प्रश्न करैत भेटैत छथि जे ओहन पंजीक की प्रासंगिकता ? समय बदलल, सोच बदलि गेल। झरकल मुँह आब झँपने सुन्दर। तहिना, वर्तमान मे जे तथाकथित वैवाहिक मर्यादा तोड़लनि अछि, हुनका कोन पंजी मे उद्धृत कएल जयतनि, अथवा करबनि ? आदि आदि…
प्रसंगवश उल्लेख करी जे कहियो एकर औचित्य कें जीवन्त रखबाक लेल अनेक क्षेत्र/ स्थान मे वैवाहिक ‘सभा’ सभ लगैत छल। आ जत’ विवाह स्थिर भेलापर पंजिकार द्वारा ‘सिद्धांत’ लिखबाओल जाइत छल। मुदा आइ कुल्लम जेना मृत भ’ चुकल अछि। (स्मरणीय जे श्रोत्रिय वर्ग मे सिद्धान्त पढ़ल जयबाक परम्परा रहल अछि।)
अस्तु, एतय ध्यान देबाक थिक जे पंजी-पंजिकार प्रकरण सभदिने मूलतः ब्राह्मण (श्रोत्रिय ओ गैर श्रोत्रिय ब्राह्मण) धरि सीमित रहल अछि, छलो। ओना तँ जेना इतिहास कहैत अछि, आरंभ एकर संकुचित नहि छल। खैर, धीरे-धीरे ई प्रथा सभ अपन-अपन इज्जति-भरमा बचयबा मे टा आब अपस्यांत अछि। बलदेव मिश्र ज्योतिषाचार्यक अनुसार एही कारण सँ राजा हरिसिंहदेवक मृत्यु सेहो भेलनि।
एहने सन धारणा आनो लोकक रहल छनि। जेना मैथिलीक एक कथाकार सह समीक्षक छथि अशोक, जे जन्मना श्रोत्रिय छथि। हुनक एकटा चर्चित कथा छनि– ‘हरिसिंहदेवी’। असल मे ओ कथा कम, पंजी व्यवस्था द्वारा जे समाज मे जातीय-उपजातीय विषमता पसारल गेल छल, ताहिपर कड़गर प्रहार सह चिन्तन बेसी अछि। कथा मे उद्धरण एहि तरह सँ अछि– ‘रमानाथ कें सोचैत-सोचैत हरिसिंहदेव मोन पड़ैत छथिन। पंजी बना क’ जे ब्राह्मण कें छोट-पैघ मे बाँटि देलनि। कियो दोसरा सँ अपना कें किएक दबल रहब पसिन्न करत ? जेना ब्राह्मण आ कायस्थक पाँजि बनल, तहिना क्षत्रियक सेहो बनल। परंतु क्षत्रिय सभ हरिसिंहदेवक पंजी प्रबंध कें लागू नहि केलनि। किएक तँ अधिक लोककें तँ छोटे बनौने छलाह। लोक छोट बनब किएक स्वीकार करितय ? एही हलचल मे जखन मुहम्मद तुगलकक सेना मिथिला पर फेर आक्रमण केलक, क्षत्रिय लोकनि महाराज हरिसिंहदेवक कोनो सहायता नहि केलनि। ब्राह्मणो मे जे सभ जमींदार छलाह हुनका छोटे बनौने छलथिन। श्रोत्रिय लोकनि होमक श्रुब सँ कतेक सहायता करितथिन। कुलीन कायस्थ लोकनि कलमक नोक सँ लड़ाइ कोना लड़ितथि। फल भेल जे हरिसिंहदेव महाराज कें अपन राजधानी छोड़ि क’ जंगल-पहाड़ मे शरण लिअ पड़लनि। नेपाल पड़़ाय पड़लनि। जाहि महाराज हरिसिंहदेव कें पाँजि चलौलाक कारणें शत्रु सँ हारि क’ जंगल-पहाड़ बौआय पड़लनि, हुनकर पाँजिक पोटरी कें हम सभ कतेक दिन धरि पीठ पर उघने फिरब ?’…
तथापि हमर किछु चिंतक एखनहुँ खुट्टा कें ओही ठाम गाड़ने, धयने, अपना कें अपन बुद्धिक संग दाउन करय मे हुकि नहि रहल छथि। हमरा लोकनि वैश्विक भ’ चुकल छी, ताहि सत्य कें जेना स्वीकारबा लेल तैयार नहि छथि। सत्य ईहो अछि जे एहि प्रथाकें तोड़हुमे बेसी वएह वर्ग अग्रिम पंक्ति मे रहल छथि। तखन एहि तरहक द्वैधक की औचित्य अछि।
एहि विषम सोच-परिधि मे तथापि ई किंचित प्रयास रहल अछि जे अकसक मे जीबैत गोनू झाकें मुक्त करबाक चेष्टा हो। गोनू झा मात्र दरभंगा-मधुबनीक नहि रहथि। गोनू झाक खिस्साकें उर्दू कैनिहार सदरे आलम गौहर फेसबुक द्वारा सूचित करैत छथि जे किछु अंतर क’ क’ गोनू झाक खिस्सा महाराष्ट्र मे सेहो प्रचलित अछि। उदाहरणमे महींस आ कम्मलवला खिस्साक उदाहरण देलनि।
एतबय नहि, हमर सभहक पीढ़ीक एखनो लगभग सभ गाम मे गोनू नामधारी भेटैत छथि। तें एकर अर्थ ई किन्नहुँ नहि जे गोनू एक नहि, अनेक भेलाह। हमर मानब अछि जे ई ‘गोनू’ नाम दुलारक नाम होइत छल। जेना किछु नामक उल्लेख करैत छी जे गोनू नामे जानल-मानल जाइत छथि– गणनाथ, गणपति, गणेश आदि। अर्थात गोनू झा मूल नाम नहि थिक। तें हरिब्रह्म आ हरिकेशक अनुज गोनू हैब संभव नहि लगैत अछि। पुस्तकमे ताहू पर विमर्श भेल अछि।
अभिप्राय ई जे गोनू झा कें परिधि विस्तारक संग सोचल-जानल जाय। जेना कि पहिनहुँ चर्च कएने छलहुँ जे हमर एक फेसबुक मित्र छथि संतोष तिरहुतिया। ओ सूचित करैत छथि जे सिमरौनगढ़ कहियो जे कर्णाटवंशीय शासन काल मे राजधानी भेल करैत छल, आइ एकटा गाउँपालिका क्षेत्र रूपमे सीमित अछि। ओ ईहो कहैत छथि जे गोनू ओझाक खिस्सा हमरा एम्हर खूबे प्रसिद्ध अछि। खास क’ गोनू ओझा आ हुनक घरवालीक बीचक नोक-झोंक वला खिस्सा। कारण ओ हमरे इलाकाक रहथि। सिमरौनगढ़ सँ चारि किलोमीटर पश्चिम कर्महिया डीह एखनो तकर गवाही दैत अछि…
भागलपुर-देवघरक बीचमे एकटा स्टेशन अछि गोनू धाम। पूर्व मे ओ हॉल्ट छल। ओहि ठाम गोनूक समाधि छनि। एहि समाधिक लेखा किनको लग नहि छनि जे ई कहियाक अछि। ग्रामीणकें एतबे बूझल छनि जे गोनू झा एतहि मुइल रहथि। आ जकर खिस्सा सेहो प्रसिद्ध छै। ई खिस्सा पुस्तकक ‘विस्तार’ खंड मे संकलित कएल गेल अछि। एहि संदर्भ मे ‘प्रभात खबर’क पत्रकार कुमार राहुल, मित्र रतन ठाकुर ओ केश्कर ठाकुर संयुक्त रूप सँ सूचित कयलनि जे आब तँ ओत’ कनिक हटि क’ गोनू धाम मंदिर सेहो बनि गेल अछि। आ एहि तरहें ओ स्थल आजुक समयमे प्रखर धार्मिक ओ सांस्कृतिक गतिविधिक केंद्र रूपमे चर्चित अछि। ओ यादव लोकनिक सघन बस्ती छल। अछियो प्रायः…
तहिना एकगोट फेसबुक मित्र छथि बैकुण्ठ झा, आ जे लेखक सेहो छथि। गाम छनि सनहपुर। सनहपुर आ भड़ौरा गाम एकबद्धू अछि, आ जे वर्तमान मे सीतामढ़ी-दरभंगा जिलाक सीमान पर अवस्थित अछि। जिज्ञासा कयला पर ओ आह्लादित होइत एकटा तथ्य दिस इंगित कयलनि, जे अपन नेनपने सँ सुनैत आबि रहल छथि। हुनकहि शब्दावली मे–
‘गोनू झाक गाम भड़ौरा, हमर गामक दक्षिणी सीमान अछि। कमला नदी पहिने हमरे गाम सनहपुर होइत बहैत रहय। अखनहु ओहि धारक रेख स्पष्ट देखा दैत छै।
हमर गामक चारि-पाँच किलोमीटर उत्तर गंगेश्वर स्थान छै, जतय मंदिरक पश्चिम मे धारक ई रेख उत्तर सँ अबैत देखाइ दैत छै। गंगेश्वर स्थानक दक्षिण होइत पुनः उत्तराभिमुख भ’ हमरा गामक पश्चिम सँ होइत सिंहबाड़ प्रखंड- कार्यालयक पश्चिम सँ दक्षिण होइत पूब दिस ई धार जाइत देखल जा सकैत छै।
तहिना हमरा गाममे धारक एकटा मोनि एखन धरि छै, जाहि मे बीस-पचीस साल पहिने धरि वर्ष पर्यन्त पानि उपलब्ध रहैक।
तहिना हमर गाममे राम-जानकीक मंदिर छै, जकर पछिला साल जीर्णोद्धार भेलैक अछि। धारक ई रेख मंदिरक पुबारि कात आ उपरोक्त मोइन, मंदिर सँ पचीस – तीस मीटर दक्षिण मे छै। एखन धारक ओ रेख गामक पश्चिम भेलै, मुदा मानल जाइ छै जे सनहपुर गाम पहिने कमला नदीक पश्चिमी तटपर अवस्थित रहल होएत. अर्थात् धारक पूब…’
लोकगाथागीत दुलरा दयालमे सेहो कमला आ भड़ौराक प्रसंग आयल अछि। मणिपद्मक उपन्यास दुलरा दयाल मे सेहो एकर चर्चा अछि। दयाल सिंह, उर्फ दुलरा दयाल सेहो भड़ौरा गामक रहथि। अस्तु।
कमलाक धारक पथ-परिवर्तनक प्राकृतिक कारण जे रहल होइक मुदा एक गोट कारण गोनू झा सँ संबंधित होएबाक किम्वदन्ती अछि। अर्थात कमला आ गोनू सँ संबंधी खिस्सा, जे ओ कोन तरहें बलि प्रदान प्रसंग ल’ क’ हुनका छकौने रहथि। से ई एखनो मानल जाइत अछि, जे उपरोक्त घटना एही ठामक कमलाक संग घटित भेल छलनि। पंचानन मिश्र अपन पुस्तक लोक-विमर्श मे लिखैत छथि जे सिंहवाड़ गामक ‘ठकनिया टोल’ सेहो गोनू झाक चातुर्य सँ सम्बद्ध बताओल जाइछ। तहिना मध्यकालीन मिथिलाक इतिहासमे ‘गोनू झाक परगना’ काफी ख्यात छल…
हमर तात्पर्य जे गोनू झा कें एकटा खास परिधिमे गोड़ि राख’सँ नीक, जरूरी अछि, हुनक व्याप्ति पर विमर्श हो। ओ तँ बहुत पूर्वहि, अपन जीवनकालहि मे एहि जाति-पाँजि सँ ऊपर उठि आमलोकक प्रतीक भ’ गेल रहथि।
एत’ प्रसंगवश एक अवांतर सन उक्तिक उल्लेख करैक लोभ संवरण नहि क’ पबैत छी। मिथिला मे एकटा लोकोक्ति छै जे जाति आ पानि सदा नीचे मुहें जाइत छै ! अस्तु…
एहि तरहें एहि खण्ड-प्रसंगक हमर निष्कर्ष यैह होइत अछि जे गोनू झा जेंकि अपन चरित्र ल’ क’ जीविते काल मे एतेक अधिक चर्चित भ’ गेल रहथि, जँ ताहि बिंदु पर आर गंभीरतापूर्वक अन्वेषण कैल जाय तँ उपरोक्त प्रसंग सभहक अतिरिक्त आर अनेक प्रसंग सभ समक्ष आबि सकैत अछि, आ जे गोनू झाक सर्वव्यापक रूप कें आर अधिक दीप्तिमान क’ सकत…
|| गोनूक काल प्रसंग… ||
हमर मानब रहल अछि जे शास्त्रे सभ किछु नहि होइत छै। अभिप्राय ई जे जत’ सँ आकि जखन-जखन शास्त्र हिलैत अथवा चुकैत सन लगैत छै, ओत’-ओत’ लोकआस्था, लोकविश्वास आ लोककथन स्थिति कें स्पष्ट कर’ लेल आगू अबैत रहैत छै। एहि सँ पूर्व हम ‘सीता’ नामक पोथीक भूमिका मे हुनका ‘देवी’ नहि, ‘मानुषी’ रूप मे देखबाक क्रममे एहि तरहक उपक्रम क’ चुकल छी। आ जे सराहल सेहो गेल, तथा अपनो हार्दिक संतुष्टि भेल…
आइ गोनू झा प्रसंग विमर्श करैक क्रम मे पुनः ओही, अथवा ओही तरहक स्थिति मे अपना कें पौलहुँ अछि।
प्रश्न एत’ ई आयल जे गोनू झा आ हुनक समय की अछि ? एहिपर बहुत तरहें मत-मान्यता सँ सोझा-सोझी होब’ पड़ल। ओना एहि सभ पर प्रस्तुत पोथी मे विमर्श क’ चुकल छी। तथापि भूमिकाक रूप मे एहि ‘विमर्शक बाटपर…’मे अलग सँ थोड़े-बहुत गप-सप करबाक प्रयास कएल अछि।
अपन चिंतनकें कनी आर फड़िच्छ करैक लेल विषयांतर होएब जरूरी लगैछ। आइ मनुष्यक दिनचर्या मे सोशल मीडिया कें आबि गेने बहुत अधिक हानि, तँ लाभ सेहो कम नहि भेलैक अछि। कारण जे जाहि-जाहि तथ्यक लेल विद्वत्जनकें बड़- बड़ तरद्दुत कर’ पड़ैत रहैत छलनि, आ तें किंचित अपन अतार्किकता-हठधर्मिताक प्रयोग करैत किछुसँ किछु स्व-उपस्थापन द’ देल करथि, आ जे बाद मे जाय सएह विमर्शक कारण बनि जाय। मुदा आइ जँ वैह विमर्श सोशल मीडियापर आबि गेल, ओकर प्रशंसाक संग विवाद सेहो आरंभ होब’ लगैत अछि। फल होइत अछि जे एही ब्याजें किछु विशिष्ट जनतब सेहो प्राप्त होब’ लगैछ। गोनू झा प्रसंग गप करी तँ हमरा सन सुच्चा सर्जनात्मक लेखन कएनिहारकें एहि माध्यमसँ बेस उत्साहित करय वला जनतब सभ प्राप्त भेल/ होइत रहल अछि।
एखन धरिक विमर्शक क्रम मे गोनू झा बहुत दुर्बल, अथवा एना कही जे जेना अछोप जन रहल छथि। तत्सम्बन्धी काज कयनिहार मनीषी लोकनि हिनका हीने क’ क’ बतकुट्टी करैत रहलाह। गाम-समाजक ठहरल पानि मे हिलकोर उठौनिहार गोनू झा सन प्रगतिशील चरित्रक एहि सँ पैघ दोसर दण्ड आर की भ’ सकैत छलनि, आ जे आइ धरि गोनू झा धूर्तताक पर्याय भेल यत्र-तत्र अगंभीर भेटैत रहैत छथि।
तथापि गोनू झा मृत नहि भेलाह। पंडित-जन हुनका जहिना अगंभीर बुझैत रहल, आम-जन तहिना कंठहार बनओने एक पीढ़ी सँ दोसर पीढ़ी धरि बेस सहज रूपें अग्रसारित करैत रहल। ओ कर्णाटक काल होअय, अथवा ओइनवारक, आकि वर्तमानक काल, गोनू झा अनवरत जीवंत रहलाह। ओना तँ कर्णाटकालीन साक्ष्य भेटितहि अछि, ओइनवार काल मे सेहो निष्कंटक नहि लगैत छथि। क्यो-क्यो हिनका देवसिंहक समयक मानैत छथि, तँ किंचित शिवसिंहकालक मानैत चट पलटि सेहो जाइत छथि। मुदा आइ गोनू झा एहि सभ त्वंचाहंच सँ अलग अपन चरित कथा सभहक बलें, आ ताहि मे आयल समाज- चिंतनक बलें, समय-काल, तर्क-अतर्क सँ ऊपर देश-परदेशक अनेक-अनेक भाषाक माध्यमे जीवंत रहि रहल छथि…
से गोनू झाक खिस्सा सभकें पढ़ैत मुदा एहन सन बोध भेल अछि जे ओ मात्र हास्यरसावतारे टा नहि, शीर्ष समाज-चेता महापुरुष सेहो रहथि। हँसी-ठठ्ठा तरहक गप-सप करितहुँ ओ तत्कालीन समाजक कुरीति, कुप्रथा तथा अंधविश्वास सभ पर सहजें स्पर्श क’ दैत रहल छथि।
हमर समाजक दुर्भाग्य जे एखनि धरि हुनका एहि तरहें नहि देखि सकलहुँ। पूर्व मे ग्रामीण रंगमंच सभ पर नाटक नहि जमि पबैत छलै, तँ बीच-बीचमे गोनू झाक खिस्सा प्रहसनक रूप मे अभिनीत होइत छल। आ ताही बलें अंततः नाटक जमियो जाइत छलै। तहिना धिया-पुता जें राति मे प्रसन्नचित सूति रहय, दादी-नानी गोनूक खिस्साक उपयोग कएल करथि। तँ दोसर दिस एक एहनो समय देखल अछि जखन ‘गोनू झाक चटनी’ सनक फूहड़ आ सतही प्रकाशन बसस्टैंड, व रेलवे स्टेशनक आगू फुटपाथपर बिकाइत देखल अछि। एतबय नहि, गोनू झा ट्रेन-बसक अंदर सेहो फिल्मी गीत, ओ अकबर-बीरबल विनोद, तिलस्मी कहानी, कोका पंडितक सचित्र पुस्तक आदिक संगे चलंत विक्रेता सभक गफ्फा मे फँसल घुमैत सेहो बिक्री होइत अभरल छथि। तखन, ओहि ठाम पञ्जी गौण रहैत छल। बजारक लघु रूप ओतय उल्लास गबैत छल। खैर।
आब मूल बिंदु पर। इतिहासकार सभ, जेना कि परमेश्वर झा, राधाकृष्ण चौधरी, उपेंद्र ठाकुर, रामप्रकाश शर्मा आदिक मान्यतानुसार मिथिलामे कर्णाट वंशक अवसान 1324 ई.क लगभग भेल, आ ओइनवार वंशक उदय 1353-54 मे होइत अछि। अर्थात ई जे 1324सँ लगाति 1353-54 ई. धरि इतिहास मौन अछि। एक तरहें एकरा ‘संक्रमण काल’ मानि लेल गेल अछि…
ओहि ओइनवार वंशक प्रसंग एक ठाम परमेश्वर झा ‘मिथिला तत्व विमर्श’ मे लिखैत छथि जे महाराज भव सिंह बहुत वृद्ध भ’ छत्तीस वर्ष राज्य भोगलाक बाद वाग्मती नदीक तट मे शिवालयक आगू शरीर त्याग कयलनि। हुनका संगहि-संग महाराज देव सिंहक माय आ कुमर हर सिंहक माय, दूनू स्त्री सती भेलीह। ओही आसन्न समय मे धूर्त गोनू झा रहथि।
ताही समयमे अनेक पोखरि सभ खुनयबाक चर्चा अछि। ईहो जे महाराज देव सिंहक जेठ पुत्र शिवसिंह जखन पंद्रह वर्षक भेलाह, ताही खन सँ राज्य-कार्यक बहुत भार अपना हाथमे लेलनि। विद्यापति ओही समय मे छलाह, आ शिव सिंह पंद्रह वर्ष पैघ छलाह। वएह दुनू मिलि राजकाज देखथि।
एहि पोथीमे अनेक अनेक स्थलपर पोखरि खुनाओल जयबाक उल्लेख सेहो अछि। आ ईहो उल्लेख अछि जे शिव सिंह अपन समय मे बहुतो धर्मग्रंथक संकलन करबौलनि। ओ अपनहुँ जलाशयोत्सर्ग पद्धतिक निर्माण कयलनि।
स्मरणीय जे सैकड़ाधिक वर्ष बीति गेलाक बाद सेहो मिथिलामे एखनो अनेक पोखरि अस्तित्वमे अछि आ जे विभिन्न नामे जानल जाइत अछि। जेना– दिग्घी, रजोखरि, घोड़दौड़, महादेइ, दैता, दुहबी-सुहबी, आदि। उक्तमे सँ ‘दिग्घी’ आ ‘घोड़दौड़’ एखनो भरौड़ामे विद्यमान अछि।
एतय एक गोट लोकोक्ति स्मरणीय अछि–
‘पोखरि रजोखरि, आर सब पोखरा ।
राजा सिबय सिंह, आर सभ छोकरा।।’
एत’ पोखरि खुनायब, लोकोक्ति मे तत्संबंधी उल्लेख होयब, स्वयं शिव सिंह द्वारा जलाशयोत्सर्ग पद्धति लिखब, तथा तहिना अनेक उल्लखित पोखरि मे सँ दूटा पोखरि भड़ौरामे एखनो अक्षुण्ण हैब, फेर एहि सभक तारतम्य मिलबैत गोनू, विद्यापति आ शिवसिंह, तीनू गोटेक समकाल होयब अनुमानक परिधिमे सहजें अँटैत लगैत अछि।
दैता पोखरिक चर्चा स्वतंत्र पत्रकार पुष्यमित्रक रपट शैलीमे लिखल गेल हिंदी उपन्यास ‘सुन्नरि नैका’मे सेहो आयल अछि– पुरना पूर्णिमा जिलामे अनेक एहन कुंड अछि, जकरा बारे मे आइयो कहल जाइत अछि जे एकरा सभ कें राक्षस सभ अपन दाँत सँ कोड़ने अछि। आम जनता तें एकरा दैता पोखरि कहैत अछि…
रामदेव झा अपन एक आलेख मे सेहो गोनू झा प्रसंग विमर्श करैत लिखैत, मुदा ताहि प्रसंग पर बहुत अधिक टिकैत नहि छथि, लिखैत छथि जे ‘बहुत गोटा हिनका(गोनू झाकें) शिव सिंहक समकालीन मानैत छथि…’ मुदा के ‘बहुत गोटा’, तकर उल्लेख नहि अछि। भविष्य मे संभावित भ’ सकैत अछि। ओना एक ठाम संस्कृत मर्मज्ञ मुनीश्वर झा प्रकारांतर सँ उक्त संभावना पर अपन सहमति दैत देखल जाइत छथि।
साहित्यकार-सह-प्राचीन भारतीय इतिहासविद उषाकिरण खान सेहो अपन चित्रकथा संग्रहक पुस्तक ‘ऐसे थे गोनू झा’ मे लिखैत छथि जे गोनू झा आ विद्यापति एकहि समयक रहथि।
जे-से, गोनू झा एहि सभ सँ बहुत ऊपरक व्यक्तित्व भ’ चुकल छथि, जिनका आब सीमावद्ध, आकि जातिवद्ध क’ क’ देखब कोनो महत्व नहि रखैत अछि। आइ पोखरि सभक अतिक्रमण भ’ रहल अछि, मानवता बहुत पाछूक सोच भेल जा रहल अछि।
अंत मे अपन एक कविताक खंड–
ठोरपर सभक
नचैत रहै छल जनश्रुति–
राता-राती खूनि देने रहै दैत्य, तें
दैतापोखरि नामे जगजियार रहै परगन्ना
एकरे माटि सँ ऊँच भेल जग्गह
कहबैत छलै ‘दैताडीह’
आब ने डीह बचलै,
ने मोहार आ ने पानि
कतय चुभकत गऽ चिड़ै
गाय-गोरू कतय हएत अछों
कोन घाट सँ भरल जायत अछिंजल
कहियो एकरे भीड़पर
दूर देसक बटोही सभ
करैत छल रात्रि-विश्राम
बरु कतहु सँ निकलै एकपेरिया
पहुँचैत छल मुदा भीड़-महारे पर
बेपारक ठाहर छल पोखरि
बेगरता जोगर बासन
जुमि जाइक कछेर मे
सुनने हएब अहूँ सभ अपन काँच उमेरमे
भानस-भात होइ, गीतनाद होइ
पोखरिक पानिमे नाच करै चनरमा
भोर होइत-होइत सभटा बासन पानिमे
पछाति नहुएँ-नहुएँ
कलुषित होअ लगलै मोन
बरतन-बासन लदने जाइत गेल बेपारी
घोंकचैत गेल घाट
कहने रहथि बाबा,
पोखरिक मोन टुटि गेलै तहिये सँ
ऊर्ध्व साँस लैत- छोड़ैत
दैतापोखरि काहि कटैत आइ
माछ-मखानक नामपर
मछुआ समितिक बंदोबस्ती सँ
घायल भेल रजोखरि
उराहीक सम्मानपर भऽ रहल अछि कचरम-कूट
थौआ भऽ रहल अछि एकर इतिहास
राजा शिवसिंह धऽ लेलनि अछि दोग
एकटा फकड़ा बलें जीबि रहल छथि जेना-तेना–
पोखरि रजोखरि, आर सभ पोखरा
राजा शिवयसिंह, आर सभ छोकरा
दैतापोखरिक दैत्य वएह रहथि की ?
बाबा मुहें सुनल
गरीब-मजूरक हाथे खुनल
हजारक हजार पोखरिपर
नहि जानि के मारि गेल दैताक मोहर
मजूरकेँ दैत्य कहयबला समाजकेँ
भोगबाके रहै इएह दिन
नादिमे ठाढ़ भऽ पुजैए दिनमान
कतहु साबुत नहि अछि पोखरि
मोनो कहाँ ककरो साबुत अछि आइ !
|| निष्कर्षत: गोनू झा… ||
जीवनक विभिन्न पक्षकें अपना ढंग सँ देखब, आ जाहि मे अधिक आरोपित कोनो प्रतिक्रिया नहि हो, गोनू झाक स्व परिचय छलनि। तें हुनक बुद्धिमत्ता बेछप आ एकल अछि।
गोनू झा स्वयंमे एकगोट उदाहरण रहथि। हुनका पढ़ैत, आ विमर्श करैत, तें अंततः चकित होइत रहलहुँ जे ओ बुद्धि आ हास्यक एक विशिष्ट सांस्कृतिक आ क्षेत्रीय संदर्भ संयोगने कोन रूपें जीवनक एते रास स्वाद जीबैत रहलाह ! आ सएह सभ सोचैत, अन्ततः अपन निष्कर्ष पर अबितो अपूर्णे बोध करैत रहलहुँ….
धरि हुनक जीवनचर्या मे, अर्थात् हुनक चरित-कथा कें गुणैत एक बेस गौर करय वला विरल पक्ष देखबा मे आयल जे क्षणो मात्रक लेल हुनक आँखि मे नोर वा दैनन्दिन जीवन मे तनाव सन किछु नहि अभरल ! एहन लोक प्रायः तें मृत्युक बादो मृत्युकें धारणा टा बुझैत जीबैत रहि जाइत अछि– सैकड़ो, हजारो वर्ष धरि…
अन्त मे मुदा एक मनोरथ जे एखन अँकुरित भ’ रहल अछि, आ जे कहियो कोनो आनक प्रसंगमे लिखने छलहुँ, एतय तकर पुन: उल्लेख करब आवश्यक बूझि पड़ैत अछि। ओ ई जे, जेना कथा-शिल्पी प्रेमचंदक गाम ‘लमही’क परिसर कें, सत्ता संग मिलि ओतहुक समाज प्रेमचंदमय क’ देने छथि, आ से हुनक समस्त कालजयी पात्र सभकें मूर्ति रूपमे चौक-चौबटियापर ठाढ़ क’ क’। आ जाहि कारणें आइ ओ भूमि एकटा तीर्थक रूप ल’ लेलक अछि, की गोनू झाक गाम ‘भरौड़ा’ कें तदनुरूप, अथवा ताहि सँ आर उत्कृष्ट क’ क’ अपन सांस्कृतिक परिचिति कें सम्मानित नहि कएल जा सकैत अछि।
हम तँ सपनाइत रहैत छी जे गाममे प्रवेश करितहि हमरालोकनिकें गोनू झाक सवाक् मूर्तिक दर्शन होइतय। आ हुनका देखैत कखनहुँ बिहुँसैत, तँ कखनहुँ गंभीर होइत, अपन मैथिल मानसपर गौरव बोध क’ पबितहुँ !…
आ से सपना देख’मे की लगैत छै ! सपना तँ देखले जयबाक चाही। जीवन्त मानस सपना देखब कखनहुँ नहि छोड़ैत अछि…