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हरि मोहन झाक कथा: पाँच पत्र

हरि मोहन झाक कथा: पाँच पत्र

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(1) दडि़भंगा

प्रियतमे
अहाँक लिखल चारि पाँती चारि सएबेर पढ़लहुँ तथापि तृप्ति नहि भेल । आचार्यक परीक्षा समीप अछि किन्तु ग्रन्थमें कनेको चित्त नहि लगैत अछि । सदिखन अहीँक मोहिनी मूर्ति आँखिमे नचैत रहैत अछि । राधा रानी मन होइत अछि जे अहाँक ग्राम वृन्दावन बनि जाइत, जाहिमे केवल अहाँ आ हम राधा–कृष्ण जकाँ अनन्त काल धरि विहार करैत रहितहुँ ।

परन्तु हमरा ओ अहाँक बीचमे भारी भदबा छथि– अहाँक बाप–पित्ती, जे दू मासक बाद फगुआ मे हमरा आबक हेतु लिखैत छथि । साठि वर्षक बूढ़कें की बूझि पड़तनि जे साठि दिनक विरह केहन होइत छैक !

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प्राणेश्वरी, अहाँ एक बात करु माघी अमावस्यामे सूर्यग्रहण लगैत छैक । ताहिमे अपना माइक संग सिमरियाघाट आउ । हम ओहिठाम पहुँचि अहाँके जोहि लेब । हँ एकटा गुप्त बात लिखैत छी जखन स्त्रीगण ग्रहण–स्नान कर’ चलि जएतीह तखन अहाँ कोनो लाथ क’ क’ बासा पर रहि जाएब । हमर एकटा संगी फोटो खिच’ जनैत अछि । तकरासँ अहाँक फोटो खिचबाएब देखब ई बात केओ बूझए नहि । नहि तँ अहाँक बाप–पित्ती जेहन छथि से जानले अछि ।

हृदयेश्वरी हम अहाँक फरमाइशी वस्तु (चन्द्रहार) कीनिक’ रखने छी । सिमरियामे भेट भेलापर चूपचाप द’ देब । मुदा केओ जानए नहि, हमरा बापके पता लगतनि तँ खर्चा बन्द क’ देताह । हँ एहि पत्रक जबाब फिरती डाकसँ देब । तें लिफाफक भीतर लिफाफ पठा रहल छी । पत्रोत्तर पठएबामे एको दिनक विलम्ब नहि करब । हमरा एक–एक क्षण पहाड़ सन बीति रहल अछि । अहाँक प्रतीक्षामे आतुर …

पुनश्च : चिट्ठी दोसराके छोड़क हेतु नहि देबैक । अपने हाथसँ लगाएब रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्समे खसा देबैक ।

(2) हथुआ संस्कृत विद्यालय

प्रिय,
बहुत दिनपर अहाँक पत्र पाबि आनन्द भेल । अहाँ लिखैत छी जे ननकिरबी आब तुसारी पूजत, से हम एकटा अठहत्थी नूआ शीघ्र पठा देबैक । बंगट आब स्कूल जाइत अछि कि नहि ? बदमाशी तँ नहि करैत अछि ? अहाँ लिखैत छी जे छोटकी बच्ची के दाँत उठि रहल छैक, से ओकर दबाइ वैद्यजीसँ मङबा क’ द’ देबैक । अहूँकें एहि बेर गाम पर बहुत दुर्बल देखलहुँ जीरकादि पाक बनाक’ सेवन करू । जड़कालामे देह नहि जुटत तँ दिन–दिन हस्त भेल जाएब । ओहि ठाम दूध उठौना करू । कम सँ कम पाओ भरि पिउल करब ।

हम किछु दिनक हेतु अहाँकें एहिठाम मङा लितहुँ । परन्तु एहि ठाम डेराक बड्ड असौकर्य । दोसर जे विद्यालयसँ कुल मिला साठि टका मात्र भेटैत अछि । ताहिमे एहि ठाम पाँच गोटाक निर्वाह हएब कठिन । तेसर ई जे फेर बूढ़ी लगके रहतनि ! इएह सभ विचारिक’ रहि जाइत छी । नहि तँ अहाँक एत’ रहने हमरो नीक होइत । दूनु साँझ समय पर सिद्ध भोजन भेटैत बंगटोकें पढ़बाक सुभीता होइतैक । छोटकी कनकिरबीसँ मन सेहो बहटैत । परन्तु कएल की जाए ! बड़की ननकिरबी किछु आओर छेटगर भ’ जाए तँ ओकरा बूढ़ीक परिचर्यामे राखि किछु दिनक हेतु अहाँ एत’ आबि सकैत छी । परन्तु एखन तँ घर छोड़ब अहाँक हेतु सम्भव नहि । हम फगुआक छुट्टीमे गाम अएबाक यत्न करब । यदि नहि आबि सकब तँ मनीआर्डर द्वारा रुपैया पठा देब ।
अहींक कृष्ण

पुनश्च : चिट्ठी दोसराकें छोड़क हेतु नहि देबैक अपने हाथसँ लगाएब । रतिगरे आँचरमे नुकौने जाएब आओर जखन केओ नहि रहैक तँ लेटरबक्स मे खसा देबैक ।

(3) हथुआ संस्कृत विद्यालय

शुभाशीर्वाद
अहाँक चिट्ठी पाबि हम अथाह चिन्तामे पडि़ गेलहुँ । एहि बेर धान नहि भेल तखन साल भरि कोना चलत । माएक श्राद्धमे पाँच सए कर्ज भेल तकर सूदि दिन–दिन बढ़ले जा रहल अछि । दू मासमे बंगटक इमतिहान हएतनि । करीब पचासो टका फीस लगतनि । जँ कदाचित पास क’ गेलाह तँ पुस्तकोमें पचास टका लागिए जएतनि । हम ताही चिन्तामे पड़ल छी । एहि ठाम एक मासक अगाउ दरमाहा ल’ लेने छियैक । तथापि उपरसँ नब्बे टका हथपैंच भ’ गेल अछि । एहना हालतिमे हम ६२ टका मालगुजारी हेतु कहाँसँ पठाउ ? जँ भ’ सकए तँ तमाकू बेचि क’ पछिला बकाया अदाय क’ देबैक । भोलबा जे खेत बटाइ कएने अछि, ताहिमे एहि बेर केहन रब्बी छैक ? कोठीमे एको मासक योगर चाउर नहि अछि । ताहिपर लिखैत छी जे ननकिरबी सासुरसँ दू मासक खातिर आब’ चाहैत अछि । ई जानि हम किंकर्तव्यविमूढ़ भ’ गेल छी । ओ चिल्हकाउर अछि । दूटा नेना छैक । सभकें डेबब अहाँक बुते पार लागत ? आब छोटकी बच्ची सेहो १० वर्षक भेल । तकर कन्यादानक चिन्ता अछि । भरि–भरि राति इएह सभ सोचैत रहैत छी, परन्तु अपन साध्ये की ? देखा चाही भगवान कोन तरहें पार लगबै छथि !
शुभाभिलाषी
अहाँक देवकृष्ण

पुनश्च : जारनि निंघटि गेल अछि तँ उतरबरिया हत्ताक सीसो पंगबा लेब । हम किछु दिनक हेतु गाम अबितहुँ किन्तु जखन महिसिए बिसुकि गेल अछि तखन आबि क’ की करब ?

(4) हथुआ संस्कृत विद्यालय

आशीर्वाद
हम दू माससँ बड्ड जोर दुखित छलहुँ तें चिट्ठी नहि द’ सकलहुँ । अहाँ लिखैत छी जे बंगट बहुकें ल’ क’ कलकत्ता गेलाह । से आइ काल्हिक बेटा–पुतहु जेहन नालायक होइत छैक से तँ जानले अछि । हम हुनका खातिर की–की नहि कएल ! कोन तरहें बी.ए. पास करौलियनि से हमहीं जनैत छी । तकर आब प्रतिफल द’ रहल छथि । हम तँ ओही दिन हुनक आस छोड़ल, जहिया ओ हमरा जिबिते मोछ छँटाब’ लगलाह । सासुक कहबमे पडि़ गोरलग्गीक रुपैया हमरालोकनिकेँ देखहु नहि देलनि । जँ जनितहुँ जे कनियाँ अबितहि एना करतीह तँ हम कथमपि दक्षिणभर विवाह नहि करबितियनि । १५०० गनाक’ हम पाप कएल, तकर फल भोगि रहल छी । ओहिमेसँ आब पन्द्रहोटा कैंचा नहि रहल ।

तथापि बेटा बूझैत छथि जे बाबूजी तमघैल गाड़नहि छथि । ओ आब किछुटा नहि देताह आर ने पुतहु अहाँक कहलमे रहतीह । हुनका उचित छलनि जे अहाँक संग रहि भानस–भात करितथि, सेवा–शुश्रुषा करितथि । परञ्च ओ अहाँक इच्छाक विरुद्ध बंगटक संग लागलि कलकत्ता गेलीह ।

ओहि ठाम बंगटकें १५० मे अपने खर्च चलब मोश्किल छनि कनियाँकें कहाँसँ खुऔथिन । जे हमरालोकनि ३० वर्षमे नहि कएल से ई लोकनि द्विरागमनसँ ३ मासक भीतर क’ देखौलनि । अस्तु । की करब ? एखन गदह–पचीसी छनि । जखन लोक होएताह तखन अपने सभटा सुझतनि । भगवान सुमति देथुन । विशेष की लिखू ? कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ।

देवकृष्ण
पुनश्च : जँ खर्चक तकलीफ हो तँ छओ कट्ठा डीह जे अहाँक नामपर अछि से भरना ध’क’ काज चलाएब । अहाँक हार जे बन्धक पड़ल अछि से जहिया भगवानक कृपा होएतनि तहिया छुटबे करत !

(5) काशीतः

स्वस्ति श्री बंगटबाबू के हमर शुभाशिषः सन्तु ।
अत्र कुशलं तत्रास्तु । आगाँ सुरति जे एहि जाड़मे हमर दम्मा पुनः उखरि गेल अछि । राति–राति भरि बैसिक’ उकासी करैत रहैत छी । आब काशी–विश्वनाथ कहिया उठबैत छथि से नहि जानि । संग्रहणी सेहो नहि छूटैत अछि । आब हमरालोकनिक दबाइए की ? औषधं जाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरिः एहिठाम सत्यदेव हमर बड्ड सेवा करैत छथि । अहाँक माएकें बातरस धएने छनि से जानिक’ दुःख भेल परन्तु आब उपाये की ? वृद्धावस्थाक कष्ट तँ भोगनहि कुशल ! बूढ़ीकें चलि–फीरि होइत छनि कि नहि ? हम आबिक’ देखितियनि, परञ्च अएबा जएबामे तीस चालीस टका खर्च भ’ जाएत दोसर जे आब हमरो यात्रामे परम क्लेश होइत अछि ।

अहाँ लिखैत छी जे ओहो काशीवास कर’ चाहैत छथि । परन्तु एहि ठाम बूढ़ीके बड्ड तकलीफ होएतनि । अपन परिचर्या करबा योग्य त छथिए नहि, हमर सेवा की करतीह ? दोसर जे जखन अहाँ लोकनिसन सुयोग्य बेटा–पुतहु छथिन तखन घर छोडि़ एत’ की कर’ औतीह ? मन चंगा तँ कठौती मे गंगा ! ओहि ठाम पोता–पोतीके देखैत रहैत छथि । पौत्रसभके देखबाक हेतु हमरो मन लागल रहैत अछि । परञ्च साध्य की ? उपनयन धरि जीबैत रहब तँ आबिक’ आशीर्वाद देबनि । अहाँक पठाओल ३० टका पहुँचल एहिसँ च्यवनप्राश कीनिक’ खा–रहल छी । भगवान अहाँकें निकें राखथु । चि. पुतहु के हमर शुभाशीर्वाद कहि देबनि । ओ गृहलक्ष्मी थिकी । अहाँक माए जे हुनकासँ झगड़ा करैत छथिन से परम अनर्गल करैत छथि । परन्तु अहाँकें तँ बूढ़ीक स्वभाव जानले अछि । ओ भरिजन्म हमरा दुखे दैत रहलीह । अस्तु कुमाता जायेत क्वचिदपि कुपुत्रो न भवति, एहि उक्ति के अहाँ चरितार्थ करब ।
इति देवकृष्णस्य

पुनश्च : यदि कोनो दिन बूढ़ी के किछु भ’ जाइन तँ अहाँलोकनिक बदौलति सद् गति होएबे करतनि जाहि दिन ई सौभाग्य होइन ताहि दिन एक काठी हमरो दिससँ ध’ देबनि ।

नारायण मधुशाला

तेज नारायण यादव, सिरहा । न्यूज रिपोर्ट । ilovemithila.com । । कवि। गीतकार

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