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अमात जातिके इतिहास – History of Amaat Caste

अमात [English: Amaat] समाजकेँ बेसी पढ़ल-लिखल लोक जे अमात जातिके इतिहास पर शोधक रहल छथि. हुनकर अनुसार अमात शब्द अमात्यके अपभ्रंश अछि। अइ तथ्यकेँ नकारल सेहो नइँ जा सकै छै। योग्य भेला पर कोनो जातके व्यक्ति अमात्य बनि सकैत छलै । मुदा, देखल जाए त बुझाएत कि किछ अवसरकेँ जँ छोड़ि देल जाए तँ , अमात्य पदके लेल सामान्यतः ब्राह्मण आऔर क्षत्रियेटाकेँ प्राथमिकता देल जाइत रहए।

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अतः कालान्तरमे ई एक जाति/वर्गके रूपमे विकसित भेल। जिनकर सदस्य सामान्यतः अपने वर्गमे मात्रे वैवाहिक सम्बंध स्थापित करैत छल। अइ जातिके थरमे राय, अमात,अमात्य ,राउत,मण्डल,विश्वास लिखाएल जाइत अछि।

चाणक्य आओर हुनकाद्वारा उद्घृत चिन्तकसभ अमात्योसभके लेल अनेक गुण उल्लेख कएने छै । मुदा सब कोइ अभिजात्य गुणकेँ आवश्यक बताैलनि। जेना जिनकर पिता, दादा, वा बाबा अमात्य रहल होइ। ई संदेहास्पद छै जे प्रथम दुइ वर्णसभके बाहेक कोनो अन्य वर्णमे अभिजात्यके योग्यता मिल सकैत रहै।

अमात जातिके इतिहास मेगास्थनीजके अनुसार निम्न वर्णसभके लेल उच्च पदसभ पर पहुँचनेके रस्ता बन्द छलै। ओ कहलथिन, जे न्यायपालिका आओर कार्यपालिका पर एक पेशावर वर्गके लोग मात्रे नियुक्त कएल जाइत रहए। कात्यायण जोर दैत छथि, जे अमात्यकेँ ब्राह्मण जातके हेबाके चाही ।

अमात्यकेँ अर्थ मन्त्री होइत छै, जे मंत्रिणसँ बनल छै । मंत्रिणके अर्थ मंत्र-तंत्रसँ युक्त होइत छै, जकर अर्थ ब्राह्मणे भेल।

अमात जातिके इतिहास
img: King’s Collage London

“अमात्र” के अपभ्रंश : अमात जातिके इतिहास

अमातके “अमात्र” क अपभ्रंश सेहो कहल जा सकैत छै। अमात जातिके इतिहास मुंडकोपनिषदके अनुसार अमात्र ध्यानके चारिम अवस्था अछि, जकरा समाधी सेहो कहल जाइ छै। सीधा शब्दोमे कही त निर्गुण या अद्वैत ईश्वरकेँ पूजैबला “अमात्र ब्राह्मण” कहाबै छै।

  • ‘बिहार आऔर उड़ीसा रिसर्च सोसायटी’ के दिससँ सन् 1919 मे छपल जर्नलमे अमातकेँ राजाक शुद्ध पुरोहित बताएल अछि, जे अइ धारणाकेँ आोर सेहो सिद्ध करै छै। अइसँ पहिने 1909 मे जातिके सम्बंधमे लिखल अपन पुस्तकमे एडगर थर्सटन आओर के. रंगचारी लिखने छथि, जे अमानत(अमात) उच्च ब्राह्मणसभके सेहो छुबल नइँ खाइत रहए।
  • आगु लिखने छै, अमात शैव सम्प्रदायके होइ छै आओर जाहि मन्दिरमे जंगम ब्राह्मण(जंगम शैव संप्रदायसँ सम्बन्ध छै आओर उच्चतम कोटीके ब्राह्मण छै) शिव लिंगके पुजारीक हिसाबे राखल गेल छल, ओइ मन्दिरमे अमातकेँ भैरवके पुजारी नियुक्त कएल गेल छै ।

प्रख्यात इतिहासकार के पी जायसवालके अनुसार 12हम् शताब्दीके दिसन अर्थनीति आओर दण्डनीतिके परम्परा रसे-रसे क्षीण आओर धर्म शास्त्रके वर्चस्व भ गेलै आओर समाज पाखण्डके नियन्त्रित भ गेल छल। अतः बहुमतसँ अलग भेलाक कारणेँ अमात्रकेँ अमत(असम्मति) कहल जाए लागल हेतै, जे पाछु अमात भ गेल हेतै। एकर इहाे सेहो अर्थ निकालल जा सकै छै जे अमातसभ स्वंयम् केँ ब्राह्मणीय व्यवस्थासँ अलग करि लेलक वा अगल करबा देल गेल हेतै ।

एहनो अनुमान लगाएल जा सकै छै जे अमात कहियो ब्रह्माणिय व्यवस्थाके अंगे नइँ रहल होइ, किएक त उड़ीसा के अमात अपनाकेँ आदिवासी कहै छै। मुदा ई अन्य राज्यमे नइँ कहैत अछि।

बिना जनऊ के ब्राह्मण कोना ? अमात जातिके इतिहास

शंकराचार्य जनेऊ नइँ पहिरैत रहैए । निर्गुण ईश्व के उपासक छलाह । अतः ई कहब जे जनऊधारीएटा ब्राह्मण भ सकैत छै,से बिल्कुल गलत छै। जनऊके प्रमाणिकता पर इतिहासकारसभकेँ संदेह छै। हर्मण ओल्डनके अनुसार जनऊके अस्तित्वकेँ धर्मशास्त्रमे मध्यकाल दिसन घुसाएल गेल छै। एकर सम्बंधमे ओ शतपथ ब्राह्मणमे उल्लेख कएने छै। हुनकर अनुसार जइ वाक्यमे जनऊके उल्लेख छै, ओइके शैली ओइँके पहले आओर बादबला वाक्यके लिखबाक शैलीसँ बिल्कुल अलग छै।

राजकाज आओर पौरोहित्यसँ जुड़ल “सरनेम”

  • राउत शब्द राजपुत्रसँ बनल छै। रावत शब्द सेहो राजपुत्रसँ बनल छै। अइ दुनू टाइटलके प्रयोग ब्राह्मण आओर राजपूत उत्तर, मध्य आओर पश्चिम भारतमे करते छै। मिथिला के जँ बात करि तँ विद्यापतिक रचनासभमे राउतके चर्चा छै। राउतक पद्वि सूरवीर योद्धासभकेँ देल जाइ छल।
  • मिथिलाक पञ्जीमें “कर्ण कायस्थ” के द्वारा राउत टाइटलके प्रयोग देखाएल छै। मुदा एखनके समयके बात करि तँ अमातकेँ छोड़ि बिहारमे हमरा दोसर जातिक कोनो व्यक्ति नइँ मिलल जे राउत टाइटल लगबै अछि। अइके बाहेक उड़ीसाके अमात देहुरी, नायक जेहन टाइटलके सेहो प्रयोग करते छै जे कि राज-काजसँ जुड़ल छै।

एच. एच रिजलीके पुस्तकमे अमात जाति

साल 1891 मे प्रकाशित पुस्तक दि ट्राइब्स एंड कास्ट ऑफ बंगाल मे रिजली लिखने छथि, अमातसभके उपयोग घरेलू नौकरके हिसाबसँ होइत छै। एकरे कारण कुछ लोग अमातकेँ ब्राह्मण कहल जेबाक विरोध करै छथि। मुदा एहन सोचैसँ पहिने ओइ पुस्तकके प्रस्तावना पढ़बाक चाही जाहीमे ओ साफ-साफ लिखने छथि, कि बेसि काम आओर समयके अभावके कारण किछ जातिय ब्यौरामे त्रुटि भऽ सकैत छै। ब्राह्मण आओर भूमिहारसभके उपयोग सेहो घरेलू नौकरके लेल होइत रहै छल, एकर मतलब ई तँ नइँ की ओ ब्राह्मण या भूमिहार नइँ छथि।

अमात जाति आरक्षित छै, अतः ब्राह्मण नइँ ?

एहन सोचब पूर्णतः गलत छै। ब्राह्मणसबके कतेको सम्प्रदाय ओबीसी लिस्टमे छै। उत्तरप्रदेशके नौटियाल ब्राह्मणकेँ तँ अनुसूचित जनजातिके लिस्टमे धऽ देने छै। आब तँ आरक्षणके परिधिमे सब जाति छै।

क्षत्रियके पेशा: अमात जातिके इतिहास

अमात, अमानत, अमौत, अमातिया आओर अमायत सब एके जाति छियै। जगह आओर भाषाके प्रभावक कारण एकर उच्चारण किछ अलग-अलग भऽ रहल छै। क्षत्रियके पेशासँ जुड़ल भेलाक कारणसँ अमातिया समुदाय स्वंयम्केँ राजपूतके एक शाखा बताबै छथि। अमौत स्वंयम्केँ खंडायत सेहो कहै छै। अमौत(अ+मौत) अर्थात जिनकर मृत्यु नइ होइ। अपन बहादुरीके कारण हिनका युद्धमे हरेनाइ बहुत मुश्किल रहल हेत, अतः अइ लोकसभकेँ अमौत कहल जाइत हेबाक चाही।

भऽ सकै छै कि किछ लोक अमातकेँ अमात्य/अमात्र के अपभ्रंश मानैसँ अस्वीकार करैए। ओहन लोकके लेल एगो तेसर मार्ग छै, जे कि हुनकासभकेँ मानै परत। अमातकेँ अ आओर मात(अ+मात) के मेलसँ बनल छै, जकर अर्थ भेल जिनका मात नइँ देल जा सकैए, अर्थात क्षत्रिय।

निष्कर्ष : अमात जाति का इतिहास

जँ अमात, अमात्यके अपभ्रंश छै तँ ओ ब्राह्मण वा क्षत्रिय भेल। अमात्रके अपभ्रंश छै तखन उच्च कोटिके ब्राह्मण भेल।अइ दुनू थ्योरीके गलत भेलापर तेसर सम्भावना छै , अमातकेँ क्षत्रिये प्रमाणित करै छै। मुदा कतेको किताबसभमे अमातकेँ पुरोहित बताएल गेल छै, जकर कारणेँ ब्राह्मण हेबाक तथ्य बेसी सत्य बुझाइ छै।

प्रमाण आओर उदाहरणकेँ देखैत ई कहल जा सकै छै कि अमात मूलतः ब्राह्मण छै, राज-काजसँ जुड़ल रहैए, आओर भूतकालमे श्रेष्ठ लड़ाकू रहैए। ब्राह्मणके जिकर लड़ाकू कौमके बात भूमिहार अपने कहै छै, वास्तवमे ओइ कौमसँ सम्बंध अमातसभके छै।
नोट:- सन 1920 मे अमातसभके जनसंख्या(बिहार+उड़ीसा) मिलाक 65 हजारके करीब छल। हाल नेपालमे २०६८ अनुसार ३,८५० अछि।

लेखक – कुमार शशी

न्युज डेस्क

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