‘जोगिरा’ बिनु होलीक कल्पनो नै कएल जा सकैत छै
“पहिने फागु अबिते ढोलक, डफरा आ जोगिराके आवाजसँ गाम गूंजैत छलै मुदा अखन, हमरासभके समूहक कतेको लोक मइर गेल, जे बँचल छी से वृद्ध भ गेलाैँ, मुदा जोगिरा गेबाक रस एखनाे अछि। हँ, सङ देबएबलाकियो छै?”

“कौन तालपर ढोलक बाजे कौन ताल मृदङ्ग ?
कौन तालपर गोरिया नाँचे कौन तालपर हम ?
जोगीरा सर र र !!!”
बसंत ऋतुके आगमनसँ ल क श्रीपञ्चमीसँ फागु पूर्णिमाधैरक मिथिलाके गाम, टोल आ घर-आंगनमे गेबाक परम्परा छलै मुदा, अखन जोगिरा गाबै लेल लोक नइँ भेटैत अछि, जाहि कारणसँ जोगिरा गेबाक परम्परा लुप्त होबए लागल अछि। मिथिलाक लोकसभ होलीमे जोगिरा गाबैत छल, जाहिमे प्रेम, माधुर्य आ ऊर्जा समाहित रहैत छल। संस्कृतिविद् किशोरी साह कहलनि, “होली आ संगीत दुनू गहींर सम्बन्ध राखैत अछि। संगीत, जोगिरा बिनु होलीक कल्पनो नइँ कएल जा सकैत अछि। होली एहन पावनि छियै, जे मनसँ कुण्ठा आ कटुता दूर करैत अछि।”

मिथिला नगरपालिकाक २ नम्बर वाड निवासी ७० वर्षीय रामखेलावन महतो कहलनि, “पहिने श्रीपञ्चमीसँ फागु पूर्णिमाधरि गाम-गाम घुइम जोगिरा गेबाक परम्परा छल, मुदा अखन नइँ तँ बूढ़सभ बँचल छै आ नइँ युवासभ इ गीत गाबए चाहैत छथि। ढोल-मृदंग सेहो ओतबे बजैत अछि, जतेक पहिने बाजय छल।”
क्षीरेश्वरनाथ नगरपालिकाक ५ नम्बर वाड निवासी ७५ वर्षीय रामभरोसी यादव कहलनि, “पहिने फागु अबिते ढोलक, डफरा आ जोगिराके आवाजसँ गाम गूंजैत छलै मुदा अखन, हमरासभके समूहक कतेको लोक मइर गेल, जे बँचल छी से वृद्ध भ गेलाैँ, मुदा जोगिरा गेबाक रस एखनाे अछि। हँ, सङ देबएबला कियो छै?”
हरिहरपुर निवासी ६५ वर्षीय रामदुलार महतो अपन शैलीमे जोगिरा सुनौलैन—
किनक हाथ कनक पिचकारी,
किनक हाथ अबीर झोरी ?
रामजी हाथमे कनक पिचकारी,
सिया जीके हाथ अबीर झोरी
‘!! जोगिरा..सररर..!!’
एहन पौराणिक गाथासँ भरल भक्ति, प्रेम आ व्यंग्ययुक्त जोगिरा मैथिली भाषामे गेबाक परम्परा छल, मुदा एखन ओहो लोप भ रहल अछि। जोगिरा फागु गीतके एहन शैली छी, जे नवयौवन मिथिलानीसभकेँ लजाबैत छल आ सामाजिक सीमासभकेँ तोइड़ नाँच करबाक लेल प्रोत्साहित करैत छलै मुदा जोगिरा हराएलाक सङ होलीक सौंदर्य सेहो कम भ गेल।
नेपाल पत्रकार महासंघक केन्द्रीय सदस्य राजेश कर्ण कहलनि, “होली मिथिला संस्कृतिक धरोहर छी। इ पावनि सामाजिक छुआछूत, जात-पात आ धर्म-मतभेद दूर करबाक सन्देश दैत छै, मुदा जोगिराक स्थान एखन डिजे लेने अछि, जे मैथिली मौलिकताकेँ समाप्त क रहल अछि।”
मिथिलाक परम्परासँ जुड़ल होली गीत श्रीपञ्चमीसँ प्रारम्भ होइत अछि आ मिथिला माध्यमिकी परिक्रमे समाप्त भेलाक सातम् दिन महोत्तरी जिलाक कञ्चनवनमे परिक्रमे यात्रीसभ एक-दोसरकेँ रंग-गुलाल खेलेबाक सङे होली उत्सव प्रारम्भ करैत छथि।
पौराणिक कथा अनुसार, सत्ययुगमे अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु अपन पुत्र प्रह्लादकेँ विष्णुभक्ति छोड़बाक लेल बाध्य करैत छल, मुदा प्रह्लाद भगवानसँ अटूट श्रद्धा राखैत छल। ओहि कारणे हिरण्यकश्यपु अपन बहिन होलिकाकेँ आदेश देलक जे ओ प्रह्लादकेँ आइगमे जरा दियै, मुदा होलिक स्वयं जइर गेल आ प्रह्लाद सुरक्षित रहल। ओहि घटनाकेँ स्मरण करैत होलिक दहनके परम्परा चलल अछि, जे फागुन शुक्ल पूर्णिमाक राति होइत अछि, आ दोसर दिन रंगक पावनि मनाइत अछि।
जनकपुरधाम-१२ निवासी सतीश लाल कर्ण कहलनि, “पहिने होली गीतमे प्रेम, उमंग, उन्मुक्तता, धार्मिकता आ परम्पराक गहींर अर्थ रहैत छल, मुदा एखन उच्छृंखल गीतसभ बाजय लागल अछि। ओहि कारणे माधुर्य आ सौहार्द्र भरल होली गीत विरल भ गेल अछि।”
पहिने जोगिराक आवाजसँ गाम-गाम रौनक बनल रहैत छल। नोताबाजी, मजाक आ प्रेमसँ भरल संवादसभ फागुकेँ मनोरंजक बनवैत छल। मुदा एखन जोगिरा गायब भ रहल छै आ ओकर स्थान आधुनिक, बेसुर संगीत लेने अछि, जाहिमे मिथिला संस्कृति आ फागुक वास्तविक रस समाप्त भ रहल अछि।
क्षीरेश्वरनाथ-७ हरिहरपुर निवासी रामलाल महतो कहलनि, “होलीक पौराणिकता आब हराबैत जा रहल छै। एखर मूल कारण छियै जे समाजमे बढ़ल झगड़ा-झंझट, राग-द्वेष आ कटुता। लोकसभ आब होली गीत गेबासँ परहेज करैत छथि। होलीक तात्त्विक पक्ष, दर्शन आ मौलिकतापर गम्भीरतासँ धियान नइँ देल जाइत छै, जकर कारण एखनक होलीमे संकीर्णता आबि गेल अछि।”
पहिने गामक बुजुर्गसभ राति पड़लाक बाद गामक चौपालमे जमे भ झाइल, मृदंग, ढोल, डफरा आ दुमकी ल समूहमे बैसिक’ होली गीत आ जोगिरा गाबैत छलै, मुदा सखुवा बजारक ७० वर्षीय सत्यनारायण सिंह कहलनि, “ओ समय आब हराइत जा रहल अछि।” अधिकांश युवक रोजगारीक खोजमे खाड़ी देश गेल छथि, जाहिसँ होली गीत हराबैत जा रहल अछि। धनुषाधाम नगरपालिकाक पर्वता निवासी अमरलाल कर्ण कहलनि, “एखनक होली प्रेम आ सद्भावक पावनि नइँ रहि गेल, बल्कि वैमनस्यता आ कटुता बढ़ि गेल अछि। भांगक स्थानपर दारू आइब गेल, प्रेम आ सद्भावक स्थानपर राग-द्वेष देखाए रहल अछि। अइ लेल होलीक पौराणिकता आ माधुर्य हराबैत जा रहल अछि।”
धार्मिक आ सांस्कृतिक दृष्टिकोणसँ होली अत्यन्त महत्वपूर्ण पावनि छी, जे सब जाति-समुदायक लोकसभकेँ जोड़ैत अछि। पहिनेक होली गीतसभ धार्मिक आ सद्भावक सन्देश दैत छल, मुदा एखन उच्छृंखल गीतसभ बाजैत अछि। सखुवा बजारक रामकृपाल जयसवाल कहलनि, “एखनक होली गीतसभमे अश्लील शब्द बढ़ि गेल अछि, जे पारम्परिक माधुर्यकेँ समाप्त क रहल छै।”
मिथिलाक शहरी क्षेत्रसँ बेसी ग्रामीण क्षेत्रमे होली गीत गेबाक परम्परा अछि। ग्रामीण क्षेत्रक होली गीतमे माइटक सुगंध, मौलिकता आ संस्कृति झल्कैत छल, जकर संरक्षण आवश्यक अछि। वरिष्ठ संस्कृतिविद् आ पत्रकार रामभरोस कापड़ी कहलनि, “पौराणिक होली गीतमे प्रेमालाप, राम-सीता, शिव-पार्वतीक कथा रहैत छल मुदा, आब पश्चिमी सभ्यता आ उच्छृंखलता एहन गीतसभपर हावी भ गेल अछि, जकरा कारणेँ होली गीतक आकर्षण समाप्त भ रहल अछि।”
गाम-घरमे आब पारम्परिक होली गीतक स्थान भोजपुरी आ आधुनिक गीतसभ लेने अछि। बसन्त ऋतुक आगमनसँ होली पावनि बसंतोत्सवक रूपमे मनाएल जाइत अछि, मुदा जोगिरा लोप भ रहल अछि। साहित्यकार आ संस्कृतिविद् डा. राजेन्द्र बिमल कहलनि, “होली एहन होबाक चाही, जइमे महिला आ पुरुषसभ निडर भ भाग ल सकैथ। मिथिलावासीसभ जकाँ आदर्श होली होबाक चाही, जाहिमे प्रेम आ सद्भाव रहए।”
मिथिला-मधेश क्षेत्रमे होली गीत आ जोगिराक संरक्षणक लेल जनकपुरधाम स्थित मिथिला नाट्य कला परिषद् (मिनाप) पछिला किछु सालसँ गाम-गामसँ लोकसभकेँ बजा क जोगिरा प्रतियोगिता आयोजित करैत अछि। अइ प्रयाससँ जोगिराक परम्पराकेँ पुनर्जीवित करबाक कोशिश कएल जा रहल अछि।
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अजय कुमार साह/रासस