मिथिलाकेँ भूमि कृषि आ संस्कृतिके क्षेत्रमे अब्बल मानल गेल अछि। समतल उर्वर भूमि नदी आ जलाशयसँ परिपूर्ण सङ्गहि अनुकुल वातावरणके कारण बहुसंख्यक लोक कृषि व्यवसायसँ जुड़ल छथि। कृषि तथा पशुपालन अहि क्षेत्रके रोजगारी तथा जीविकापार्जनके मुख्य श्रोत रहल अछि। कृषिके संस्कृतिके सङ्ग अन्तर्सम्बन्ध स्थापित छै। खेतिहर किसान रोपनी डोभनी समाप्त क’ बालि पकवाक शुरुआत होइते मिथिलामे पावनि तिहार सेहो आरम्भ भ’ जाइत छै।
ऋतु अनुसारके व्यावहार आ संस्कारके कारण पावनि तिहार मनाओल जाइत अछि । प्राचिन मिथिला ज्ञान, गुण, कला, संस्कृति खेल तथा मनोरञ्जनके क्षेत्रमे तुलनात्मक रुपसँ अग्रणी मानल जाइत छल ।
हिन्दु विधि विधान अनुसार सूर्यपुत्र यमराज अपन बहिन यमुनाके सत्कार तथा पाँच दिनक आतिथ्यसँ ग्रहण करबाक कारण यमपञ्चक कहल गेल अछि । यमपञ्चक कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी शुरु भ’ कार्तिक शुक्लपक्ष द्वितीया अर्थात भातृद्वितीयाके सम्पन्न होइत छै। यमपञ्चकके तेसर दिन लक्ष्मीपूजा दीपावलीके उपरान्त चारिम दिन गोवर्धन पूजाके रूपमे मनाएल जाइत छै। जेकरा स्थानीय भाषामे लोक सुकराति सेहो कहै छै। अहि सुकरातिके दिन हुर्राहुरी उत्सव मनाओल जाइत छै ।
जेकरा स्थानीय बोलीमे ‘हुरियाहा’ सेहो कहल जाइत छै। गोर्वधन पूजाके दिन किसानसभ अपन अपन गाए-वस्तु तथा मालजालकेँ विशेष रूपसँ तैयार करैत अछि। पोछिपाछि क’ सिंघमे तेल आ सिन्दुरके ठोप लगाओल जाइत छै। तेकर उपरान्त उजरी आ कैली गाए तथा बरदक शरीरमे लाल हरियर रङ्ग छापि नयाँ नाथ गर्दामी जाहिमे कौड़ीमे गाथल संगहि छोटे छोट घण्टी बान्हल जाइत छै । भैसकेँ सेहो अहि तरहसँ श्रृंगार कएल जाइत छै।
कृषि तथा पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्थाके आधार स्तम्भ होइत छै । प्राय: सब गाममे किछु चरन क्षेत्र आ परती परात छोड़ल गेल रहै छै। जाहिमे माल मवेशी चरै सङ्गहि घास-पात सेहो भेटैत रहै। एहने परतीके घेरवेट क’ हुर्राहुरीके आयोजन कएल जाइत छै । हुर्राहुरीके अवसरमे ग्रामीणसबके मनोरंजनके वास्ते कुश्ती खेलके आयोजन होइत छै जाहिमे अपन गामक पहलमान आ किछु बाहरोके नामी पहलमान बजाओल जाइत छै ।
विजेता पहलमानसबकेँ स्थानीय मूहँपुरुष आ अगुवा लोकक हाथे स्वागत आ पुरस्कार प्रदान कएल जाइत छै। अहि दिनके मेलाके सेहो आयोजन रहै छै जाहिमे महिला आ बाल बेदरासबहक बढ़ि चढ़िक’ सहभागिता रहैत अछि मुदा महिला आ धी-बेटीसबकेँ कुश्तीमे भाग लेनाइ तथा देखनाइमे प्रतिबन्ध रहैत छै ।
हुर्राहुरीके कार्यक्रमके लेल गामक डोम समुदायसँ सुगरके बच्चा किनि एकटा मजबूत आ नमगरसन लाठीमे सुगरक बच्चाकेँ बान्हल जाए छै। ओहि सङ्गे डाभी खडके बोझ सेहो लटकायल जाइत छै जाहिसँ मालजालकेँ रगड़’ आ घसीट’ मे आसान होइ । दोसर दिस खूब ढोल नगाड़ा बजाएल जाए छै जेकर नादसँ गाए भैसकेँ उत्तेजित आ आक्रमक बनि अपन सिंघसँ प्रहार करै छै।
बहुतो मालजाल सुगरक बच्चाके किकिएनाइ सुनि डेराएक’ भागियो जाए छै। किछु लोक अपन गाए-महिसकेँ बच्चा सेहो हुरी लग लाबै छै जे बच्चा देखि मवेशी अधिक आक्रमक होइ ।
अहि तरहे निरन्तर प्रहार आ आक्रमणसँ सुगर मारल जाए छै। जाहि किसानके गाए भैंसद्वारा हुरी मरै छै ओ किसानके सम्मानित करैत उपहार प्रदान कएल जाए छै। डोमकेँ बजाक’ मरल हुर्राके कान काटि ओ सुगरक बच्चा घुरा देबाक प्रचलन छै। काटल कान किसान अपन गोहालीघरक कोनो कोनमे गाड़ैत अछि । कहल जाए छै जे ओहि गोहाली माल मवेशीके रोग ब्याधि जेना खोरेतसन रोग तथा हाक डाकसँ रक्षा करैत छै।
हुर्रा हुरी कोना आ कहिया शुरु भेलै तेकर स्पष्ट लेखाजोखा नहि भेटतै अछि मुदा कहल जाए छै ईस्लामीकरणके व्यापक अत्याचारके कारण पशुपालक तथा किसानसब अपन माल- मवेशीके शुरक्षाके दृष्टिकोणसँ हुर्रा हुरीके चलन भेलै । सुगर छुआएल माल- मवेशीके मान्साहारके लेल नापाक मानल जाइत छै तथा अनावश्यक हलालसँ गौवंश बचि जाइत छलै ।
भारतीय उपमहाद्वीप अपन ज्ञान कौशल तथा वैभवताके कारण प्रसिद्ध छलै दक्षिण एशिया हिन्दु तथा बौद्ध साम्राज्यके अर्न्तगत हिन्दु, बौध, जैन तथा सिख धर्मालम्बीसबके बीचमे धार्मिक, सांस्कृतिक आओर सामाजिक ताना-बाना खूब मजबूत छलै। दक्षिण एशियामे ईस्लामके प्रवेश ई ७५२ मे तुर्क आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिमद्वारा सिंधके प्रख्यात हिन्दु राजा दाहिरके परास्त कएलाके बाद भेलै । मुहम्मद गौरी जे कट्टर सुन्नी मुसलमान छलै। ई.१२०६ मे दिल्ली आक्रमणके पश्चात अहि उपमहाद्वीपमे विधिवत रुपमे ईस्लामी शाषन व्यवस्था स्थापित भेलै ।
जाहिमे गुलाम वंश, खिलजी, तुगलक, सैयद, लोधी तथा मुगल वंश द्वारा कठोर ईस्लामी राज चलेलकै । धर्मान्ध मुगल बादशाह औरंगजेब शरिया कानून लागू करैक’ साथ जजिया कर सेहो थोपने रहे। तुगलक सुल्तान गाजी मलिक (ग्यासुद्दीन तुगलक) ई. १३२४ मे बंगाल लूटबाके क्रममे सिम्रोनगढ़पर आक्रमण क’ मिथिलाके गौरवमय स्वर्णिम इतिहासकेँ क्षत-विक्षत कएने रहै।
ईस्लामी शाषक आ आक्रमणकारीके कारण अहि उपमहाद्वीपमे धन-जनके व्यापक क्षति भेलै । लगभग हजार वर्षक इस्लामी शाषणमे युद्धस्तरमे धर्मान्तरण, मठ-मन्दिरमे तोड़फोड़, संस्कृति आऔर पूजा पद्धतिपर प्रहार भेलै ।
गैर-इस्लामी लोकसबके कठोर यातना, अंगभंग, जीवित अग्निदाह, सामूहिक मृत्युदण्ड देल जाइत छलै मिथिलापर सेहो एकर व्यापक प्रभाव पड़लै। विशेष क’ महिला तथा गोधनपर धार्मिक कट्टरवाद शाषण व्यवस्थाके मूल तन्त्र छलै । अत्याचारीसबकेँ शाषण व्यवस्थामे प्रश्रय भेटैत रहलै । ओही अत्याचारीसबसँ अपन गौधनकेँ संरक्षण सुरक्षाक लेल कृषक तथा पशुपालक हुर्रा-हुर्रीके प्रचलन भेलै जे आइधरि अनवरत रुपसँ चलि रहल छै । जाहिमे समाजक सब समुदायक महत्वपूर्ण सहभागिता रहै छै। सत्य कहि तँ हुर्रा-हुर्री अहि भूगोलके मौलिक लोकपर्व बनि गेल छै।
लेखक : कर्ण संजय
विराटनगर, मोरङ्ग
( कर्ण संजय विराटनगरक मैथिली साहित्यिक गतिविधिक सुपरिचित नाम रहल अछि। संजयद्वारा लिखित ‘नव घर उठए, पुरान घर खसए’ मैथिली गीति एलवम चर्चित रहल अछि। संजयक गीत-कवितामे समाज-देशक यथार्ताक जनप्रेमी शैलीमे चित्रण कएल रहैत अछि। पेशासँ व्यवसायी रहितो मैथिलीप्रति करूणा भरल कलम निरन्तर सशक्त रूपेण चलबैत आबि रहल छथि।)
चित्र : हरेराम यादव
लहान, सिरहा
( चित्रकार यादव ललित कला क्याम्पस (TU) सँ मास्टर इन फाइन आर्टस शिक्षा हासिल कएने छथि। राष्ट्रीय ललितकला पुरस्कार २०७८ आ ललितकला विशेष पुरस्कार २०७६ सँ सम्मानित भेल छथि तँ SAARC द्वारा भेल चित्रकला प्रतियोगितामे ‘Best On the Theme’ टाइटलसँ पुरस्कृत। मिथिला चित्रकला क्षेत्रमे प्रतिनिधि युवा चित्रकारक रूपमे स्थापित रहल छथि।)