सन्दर्भ– ईद–उल–आझा (बकर ईद) पर्व २०८०
‘सब दिन बिना भाग लगेने सब कियो घरमे प्रवेश करैत छल। आइ किए तीन भाग लगेलौँ ?’ दश वर्षिय इब्राहिम पितासँ प्रश्न कएलक ।
सामूहिक विशेष प्रार्थना ‘नमाज’ पढ़िकऽ घुरलाबाद पिता एकटा खसी आ एकटा भेड़ाक बलि देलनि आ मासुके तीन भागमे काटलनि । चारूदिस लोक नवका नवका कपड़ा पहिरकऽ रमैत छल। धनिक-मनिक लोकक चेहरा त हरियर नजरि आबिये रहल छल। भोजन करैवला गरीब-मजदूरधरिक लोकक चेहरामे मुस्की त उबडुब करैत छल। सबहक घरमे खसी, बकरी, बोकरा, पाड़ा, भैँसि, भेड़ा, ऊँटके बलि देल गेल छल। अपन इष्ट-मित्रकेँ घर बजाकऽ मासुक व्यंजन खुआ शुभकामनाक आदान –प्रदान भऽ रहल छल। ओइ समयमे एना लगैत छल जेना मुस्लिम बस्तीसँ दु:ख नंक लकऽ भागि गेल हो।
“बेटा, ई एक भाग गरीबके लेल , एक भाग पाहुनके लेल आ एक भाग अपन परिवारके लेल। “ पिताक उत्तरसँ संतुष्ट नइ भऽ इब्राहिम फेर प्रश्न कएलाह – “बकरी सेहो अपने, भेड़ा सेहो अपने त दोसरकेँ किएक देबै ?”
‘मेलमिलाप, एकता आ सहकार्यक वातावरण निर्माण करऽ लेल बाँटिकऽ खाए पड़ैत अछि। एनामे आपसी सद्भाव, सहिष्णुता आ मेलमिलाप अभिवृद्धि होइ छै। ई अपनासबहक मौलिक संस्कृति आ परम्परा छियै ।’ पिताक ई गहिरगर बात नइ बुझि इब्राहिम टुकटुक तकैत रहल।
आ कि तखने निमन्त्रण पुरबाक लेल आएल हरिप्रसाद जोड़लनि, ‘जातीय, धार्मिक आ सांस्कृतिक विविधता बीचके अपनासबहक ई एकता राष्ट्रियता आ राष्ट्रिय एकताक भावना प्रगाढ़ बनबै छै। सबकेँ इद मुबारक !!!’
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कथाकार : नन्दलाल आचार्य
जहडा–लालसिसुवा, बेलका नगरपालिका, उदयपुर ( हाल : श्री जनता मा.वि. गोलबजार – ४ सिरहा )१२ म अन्तर्रााष्ट्रय मैथिली सम्मेलन मुम्बईद्वारा २०७२ सालमे ’मिथिलारत्न’ विभूषणद्वारा विभूषित सगरमाथा साहित्य परिषद्, नेपालक केन्द्रिय सचिव मातृभाषा नेपाली रहितो मैथिली साहित्य-सृजनमे निरन्तर शक्रिय कलमकर्मीक रूपमे परिचित छथि।