प्रणाम,
हमर नाम मोनिका मोट्टिन अछि आ हम जर्मनीक हाइडलबेर्ग विश्वविद्यालयमे अध्येता ओ अनुसन्धानकर्ता छी। पछिला तीन सालसँ हम जनकपुरधाम आ आसपासक किछु गामसभमे –
“Heritage as placemaking: the politics of solidarity and erasure in South Asia”
नामक परियोजना अन्तर्गत शोध-अनुसन्धान क रहल छी। ‘रिक्सबैंकेन जुबिलियम्स फोन्ड’ द्वारा प्रायोजित अइ परियोजना द्वारा हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय (जर्मनी), सामाजिक विज्ञान बाहा (नेपाल), दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय (भारत) आ एसओएएस (यूके) क अनुसन्धानकर्ताषभकेँ एक साथ लाओल गेल अछि, भारत ओ नेपालक सभ्यता-सांस्कृतिक धरोहर ओ विरासत सभक अध्ययन-अनुसन्धान करबाक लेल। ऐक्यबद्धता आ एकजुटताक कारण, वा एकर अभावमे कोना विभिन्न सभ्यतासभक सांस्कृतिक संरचना आ धरोहरसभक संरक्षण वा पतन होइछ, से अध्ययन ओ अनुसन्धान करब अइ परियोजनाक मुख्य लक्ष्य रहल अछि।
हम एकटा सामाजिक मानवशास्त्री छी। हम नृवंशविज्ञानक आधार पर खोज-अनुसन्धान करैत छी, एकर अर्थ ई भेल जे, हम कोनो स्थान पर सकभरि बेसी समय धरि सहभागी भ’ स्थानीय समुदायसभक दृष्टिकोणसँ ओहिठामक सांस्कृतिक धरोहरसभकेँ बुझबाक लेल अवलोकन-अनुभव करैत रहैत छी। किए की, समुदाय विविधतापूर्ण अछि, तेँ धरोहरसभक प्रति अलग-अलग समझ सेहो अछि।
मुख्यतः हमर शोध-अनुसन्धान प्रदर्शन पर केन्द्रित अछि। जनकपुरमे, सांस्कृतिक धरोहरसभ धर्म सँ बहुत घनिष्ठ रूपेँ जुटल अछि आ अइ कारणसँ हम तीन टा मुख्य आख्यानकेँ अनुसरण कएने छी : सीता-राम, देवीदुर्गा आ अन्य देवी-देवता, लोकदेवतासभकेँ। ई बुझबाक लेल जे ‘संस्कार’ कोना स्थान, पावनि-तिहार, शोभायात्रा, प्रदर्शन, प्रस्तुतिसभ सँ जुटल अछि आ कोना समयक अन्तराल संगहि परिवर्तन होइत आबि रहल अछि। कोन पावनि-तिहार, महोत्सव ओ प्रदर्शन-प्रस्तुतिसब समयक अन्तरालमे बेसी लोकप्रिय भ’ रहल अछि आ कोन बिसराओल जा रहल अछि।
उदाहरणक लेल, जेना कि हम ‘जानकी मन्दिर’ आ शहरक अन्य प्रमुख स्थान पर केन्द्रित ‘विवाहपन्चमी उत्सव’ देखलौं अछि। जखन कि, ई महोत्सव साल दर साल पैघ भ’ रहल अछि। अखन धरि हम मात्र एकटा मण्डलीकेँ जानकी मन्दिरक आगा ‘रामलीला’क प्रस्तुति दैत देखलौं अछि। मुदा, साक्षात्कारसँ जे बात सामने आएल ओ ई जे, पहिने ‘विवाहपन्चमी’ अलग तरहेँ मनाओल जाइत छल आ सार्वजनिक स्थान पर ‘रामलीला’ आ ‘नाच’, दुनूक मन्चन करएबला कलाकारसभक ‘बहुत रास मण्डली’ होइत छल।
तहिना, पछिला तीन सालमे दशमी पावनि ओ महोत्सवक अवसरमे विभिन्न प्रकारक ‘झिझिया-नृत्य’क प्रस्तुति भरमार रूपेँ वृद्धि भेल देखलौं। ‘दुर्गास्थान’क आगा प्रस्तुत कएल गेल ‘झिझिया’ आ कोनो प्रतियोगिता वा मन्च पर प्रस्तुतिक दौरान कएल गेल ‘झिझिया’मे अन्तर बुझबाक प्रयास कएलौं अछि। एकर संगहि, हम पावनि-तिहार ओ महोत्सवक आयोजन करैबला समूहसभकेँ साक्षात्कार लेबए के प्रयास कएलौं, जेना कि ‘युवाक्लब’क पदाधिकारी ओ सदस्यसभ आ ‘मेलासमिति’क सदस्यसभ।
स्थानीय युवाक्लव आ एकर हरेक कार्यकर्तासब विशेष धन्यवादक पात्र छथि, जे ई आयोजनसभ हजारो स्वयंसेवक सभक श्रमदान आ सहयोगसँ पावनि-तिहारक महोत्सवसब आयोजन होइत छै आ चलै छै। ओ सब उत्सव आ प्रस्तुतिक लेल उचित जगहके आवश्यक व्यवस्था करैत छथि, जाहिसँ ई ‘सांस्कृतिक-धरोहर’सभक संरक्षण होइछ आ जीवित ओ कायम रहैछ। अइठाम, बहुत रास प्रश्न उठैछ, जे कोन सांस्कृतिक धरोहरकेँ संरक्षण कएल जाए, आ कोनकेँ नइँ ? किनकर सांस्कृतिक-धरोहर छनौट कएल गेल, आ किनका लग एकर निर्णय करबाक अधिकार अछि जे कोन स्वरूपक सांस्कृतिक धरोहरकेँ भविष्यक लेल संरक्षण कएल जाए ? आ केकरा ई निर्णय करबाक अधिकार छै जे, कोन स्वरूपकेँ भविष्यक लेल संरक्षण क आगा लाओल जाएत ? विशेष रूपेँ, अइ सभक बारेमे अपनेसब हमर पुस्तकमे पढ़ि सकब, जे अइ अनुसन्धान काज पुरा भेलाक पश्चात प्रकाशित होएत।
‘सड़क नाटक’ पर हम अपन पीएचडी शुरू कएलाक बाद सँ, सांगोपांग बीस सालसँ हम नेपालमे शोध-अनुसन्धान करैत आबि रहल छी। हमर किछु लेख आ एकटा ‘नृवंशविज्ञान’क पुस्तक प्रकाशित अछि,
जकर शीर्षक अछि: “Rehearsing for Life: theatre for social change in Nepal“ (Cambridge University Press 2018).
हम नेपाली बहुत नीक बजैत छी आ मैथिली सीखब शुरू क देने छी, मुदा अखन धरि नेपालीमे प्रश्न पूछबाक अभ्यासक कारण हमरा लेल ई सहज भ’ जाइछ,
आ फेर रिकर्ड कक साक्षात्कारक प्रतिलिपि आ अनुवाद करा लैत छी। हम नेपाली आ मैथिली सेहो पढ़ि सकैत छी, लिखल मैथिली हमरा लेल बाजल मैथिलीसँ बेसी सहज अछि, ताहि लेल हम प्रयास क रहल छी जे बेसी सँ बेसी पूर्व सोधपत्र आ दस्तावेजसब पढ़ी आ मैथिल संस्कृति विशेषज्ञसभसँ सीखी, यद्यपि हमर पद्धति अलग अछि।
अइ अनुसन्धान आ हम जे पोथी लिखि रहल छी, ताहि लेल हम ‘लोक-कलाकार’ आ ‘झिझिया खेलनिहारि’ महिलासभक दृष्टिकोण ओ जीवन्त अनुभवसभकेँ सोझा लाबि रहल छी। हम ‘अल्हा-रुदल’ आ आन नाचसभकेँ सेहो रिकर्डिंग करैत आबि रहल छी नीक जकाँ बुझबाक लेल, यद्यपि हम एकर भाषाई या पाठ्य विश्लेषण नइँ कएलौं अछि, किए की ई हमर कौशल ओ पद्धतिक बाहरक बात अछि।
‘हाइडेलबर्ग विश्वविद्यालय’ द्वारा संचालित अइ ‘रिकर्डिंग’क मुख्य उद्देश्य (यदि मण्डलीक अनुमति छै त) ई छै जे, ई डिजिटल रूपमे रेकर्डिंग ओ संरक्षित कएल गेल ‘ऐतिहासिक दस्तावेज-अभिलेख’ सभक लेल सब जगह निःशुल्क उपलब्ध हो। हमरा लेल एकटा मुख्य दिक्कत ई भेल अछि जे प्रस्तुति सभक पहिलेबला रिकर्डिंगक नइँ अछि। दुर्भाग्यवश, पैघ ओ वरिष्ठ लोक-कलाकारसब मात्रे याद साझा करैत छथि, कारण हुनकोसभ लग हुनकाद्वारा प्रस्तुत कएल गेल ‘नाच’ ओ ‘कार्यक्रम’सभक फोटो सेहो नइँ छनि।
जेना कि हम जनैत छी जे, शोधकर्ता लोकनि ‘झिझिया’ आ अन्य ‘लोकनाटक’क अध्ययन आ रिकर्डिंग कएलनि, मुदा प्रस्तुतिसभमे कोन तरहक परिवर्तन आएल अछि से बुझबाक लेल कोनो रेकर्डिंग धरि नइँ पहुँच सकलौं। कारण, या त हुनकासभक निजी संग्रहमे संग्रहित अछि वा उपलब्ध नहि अछि। जेना, नेपाल एकेडमीसँ पुरान रिकर्डिंगसब देखएबाक लेल आग्रह कएलियैक, मुदा ओ सब कहलाह जे हुनका सब लग कोनो रिकर्डिंग नइँ छनि।
कखनो काल यूट्यूब पर रिकर्डिंग उपलब्ध देखल जाइछ, मुदा ओ सुरक्षित जगह नइँ अछि वा रिकर्डिंग लेल नइँ जा सकैछ, या त टेक्नोलोजी बदलि सकैछ। आगामी पीढ़ीसभक लेल ‘ऐतिहासिक दस्तावेज-अभिलेख’सब बहुत महत्वपूर्ण अछि। हमरा आशा अछि, जे ई रिकर्डिंगसब ‘हाइडलबेर्ग विश्वविद्यालय’क अभिलेखालयमे संग्रहित रहत, जेकरा भावी-पीढ़ीसब अइ प्रस्तुतिसबकेँ देख सकैत छथि। तहिना, हमर लेखसब ‘खुला-पुस्तक’ रूपमे प्रकाशित होएत, अर्थात, पीडीएफ (pdf) रूपमे दुनियामे कतौसँ अहाँ निःशुल्क डाउनलोड क सकै छी।
कोनो आन मजदूर जकाँ हमरा सेहो अपन काजक लेल विश्वविद्यालयसँ मात्र दरमाहा भेटैत अछि। अइ रिकर्डिंगसभ सँ आ प्रकाशनसभसँ हम कोनो तरहक फायदा नइँ ल रहल छी। यद्यपि, अखन धरि हमरा अपन शोध-अनुसन्धानबला काज बहुत नीक लागि रहल अछि। जनकपुर हमरा लेल एकटा आओर घर भ’ गेल अछि, आ तेँ हम ओहि कलाकार, कार्यकर्ता आ मित्र लोकनिसभक बहुत आभारी छी जे, हमरा हरेक समयमे सहयोग कएलनि आ अखनो करैत आबि रहल छथि।
आशा अछि, हमर शोध-अनुसन्धानबला काज आ योगदान मिथिलाक संस्कृति ओ धरोहरसभकेँ आओर समृद्ध होएबामे सहयोग करत, तथा पुरा दुनियाँ भरिमे जानल जाएत।
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[ Ethnography – ‘नृवंशविज्ञान’क अर्थ होइछ, – कोनो विशेष समुदाय वा समाज–राज्यमे, एक साल वा एक सालसँ बेसी समय धरि स्वयंकेँ शामिल क ओहि ठामक आचार, विचार, व्यवहार, खान-पिन, रहन-सहन, भेष-भूषा, भाषा, साहित्य, संस्कृति, सभ्यता, परम्परासभकेँ लगसँ देखनाइ-अनुभव कएनाइ। ई एक तरहक गुणात्मक अनुसन्धान होइछ, जेकर लिखित रिपोर्ट नृवंशविज्ञानी अपनेसँ तैयार करैत छथि। ]