जितिया व्रत कथा : गरुड़ आ जितमहान
एक बेर नेमिषारण्य निवासी ऋषि लोकनि सूतजीसँ पुछलनि– हे सूतजी ! कहू जे भविष्यमे लोकक बच्चा कोना बेसी दिन जीवित रहत ।
सुतजी बजलाह– जखन द्वापरयुग समाप्त भ’ रहल छल आ कलियुगक प्रारंभ भ’ रहल छल तखन कतेको शोक संतप्त महिला आपसमे परामर्श करए लगलीह। अइ कालमे माय जीबैत बेटा मरत ? जखन आपसमे किछु निर्णय नइँ क सकलीह त’ गौतमजी लग पूछय लेल गेलीह ।
जखन ओ हुनका लग पहुँचलीह तखन गौतम जी आनंदक संग बैसल छलाह । सामने जा कऽ माथ झुका कऽ प्रणाम केलनि । तकर बाद स्त्रीगण सभ पुछलखिन– हे प्रभु ! कलियुगमे लोकक पुत्र कोना जीवित रहत ? जँ अइ लेल कोनो व्रत वा तपस्या अछि तँ अवश्य बताउ । अइ तरहेँ हुनका सभक बात सुनलाक बाद गौतमजी बजलाह – हम अहाँ सबसँ वएह कहब जे हम पहिनेसँ सुनि रखने छी ।
गौतमजी बजलाह– जखन महाभारत युद्ध समाप्त भेल आ द्रोणक पुत्र अश्वत्थामाद्वारा अपन सबटा पुत्र मारल देखि पांडव बहुत दुखी भ’ गेलाह । तखन पुत्रक शोकसँ विचलित भ’ द्रौपदी अपन सखी सभक संग श्रेष्ठ ब्राह्मण धौम्य लग गेलीह । आ धौम्यकेँ कहलखिन– हे विप्रेन्द्र ! कोन उपाय कएला पर बच्चा सब दीर्घायु भ’ सकैय ?
जिमूतवाहनके कथा
धौम्य कहलखिन – सत्ययुगमे जीमूतवाहन नामक राजा छलाह, जे सत्य बजैत छलाह, सत्यक अनुसरण करैत छलाह आ समतापूर्ण व्यक्ति छलाह । एकबेर पत्नीक संग सासुर गेलाह आ ओतहि रहय लगलाह । एक दिन आधा रातिमे बेटाक अवस्थासँ विचलित एकटा महिला कानय लगलीह ।
ओ कानिक’ कहैत छलीह– हाय, हमर बेटा हमरा सोझाँ मरि जाएत । एकटा बूढ़ माएक कानब सुनि राजा जिमुतवाहनकेँ बड दया आएल ।
ओ तुरन्त ओहि महिला लग जा कए पुछलनि–
अहाँक बेटा कोना अहाँक सोझाँ मरि जाएत ?
बुढि़या बजलीह– गरुड़ सब दिन आबि गामक छौड़ा सबकें खा जाइत अछि ।
अइ पर जिमूतवाहन राजा कहलनि–
माँ ! आब अहाँ नइँ कानु । खुशी–खुशी बैसू । हम अहाँक बच्चाकें बचाबयके कोशिश करै छी ।
ई कहि राजा ओहि स्थान पर चलि गेलाह जतय गरुड़ सब दिन आबि मांस खाइत छलाह । वएह समय गरुड़ सेहो हुनका पर आक्रमण कए मांस खाय लगलाह । अत्यंत शक्तिशाली गरुड़ जखन राजाक बामा अंग खा लेलक तऽ राजा तुरन्त अपन दहिना अंग घुमा कऽ गरुड़क सोझाँ राखि देलक । ई देखि गरुड़जी बजलाह
– अहाँ देवता छी ? आकि अहाँ के छी ? अहाँ मनुक्ख नइँ बुझाइत छी ।
-ठीक छै, अहाँ अपन जन्म आ कुलक नाम बताउ ।
पीड़ासँ विचलित राजा बजलाह– यौ चिड़ै–चुनमुनीक राजा ! एहन प्रश्न पूछब बेकार अछि, अहाँ अपन इच्छानुसार हमर मांस खा सकैत छी ।
ई सुनि गरुड़ रुकि गेलाह आ बहुत सम्मानक संग राजाक जन्म आ वंशक विषयमे पूछय लगलाह ।
राजा कहलखिन– हमर पिताक नाम शालिवाहन आ माँक नाम शैव्य । हमर जन्म सूर्यवंशमे भेल अछि आ हमर नाम जीमूतवाहन अछि ।
राजाक दया देखि गरुड़ बजलाह– हे सहासी पुरुष ! अहाँक मनमे जे इच्छा अछि उ माँगू ।
राजा कहलखिन– हे चिड़ै–चुनमुनीक राजा ! जँ अहाँ हमरा वरदान दऽ रहल छी तँ हमरा ई वरदान दिअ जे एखन धरि जे जीव–जन्तु अहाँ खयलहुँ से सभ जीवित भऽ जाय । आबसँ एतय बच्चा नइँ खाउ आ किछु उपाय करू जाहिसँ एतय जन्म लेनिहार बच्चा बहुत दिन धरि जीबैत रहथि ।
धौम्य कहलनि जे, चिड़ै–चुनमुनीक राजा गरुड़ वरदान देलाक बाद स्वयं अमृत लेल नागालोक चलि गेलाह । ओतयसँ अमृत आनि ओहि मृत लोकक हड्डी पर बरसा देलनि । अइतरहेँ ओ सभ लोक जिनका गरुड़ पहिने खा गेल छलाह, ओ सभ जीवित भ’ गेलाह । राजाक बलिदान आ गरुड़क कृपाक कारणेँ ओतय लोकक बहुत रास दुख चलि गेल । ओहि समयमे राजाक सौन्दर्य दूगुना भ’ गेल छलनि।
राजाक दयालु स्वभाव देखि गरुड़ फेर बजलाह–
हम दुनियाँक कल्याण लेल एकटा आओर वरदान देब । आइ अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि अछि । आइ स्वयं अहाँ अपन प्राण अइ ठामक लोककें दान क’ देलहुं अछि । हे बेटा ! आबसँ ई दिन जे महिला जीवनपुत्रिका आ कुशके आकार बनाक’ अहाँकें पूजा करतीह, हुनकर सौभाग्य दिन प्रतिदिन बढ़ैत रहत आ हुनकर वंश सेहो बढ़ैत रहत । जीमूतवाहन के एहन वरदान देला के बाद गरुड़ वैकुण्ठ धाम चलि गेलाह । राजा सेहो अपन पत्नीक संग अपन नगर घुरि गेलाह ।
धौम्य द्रौपदीसँ कहैत छथि–
हे देवी ! हम अहाँकें बहुत दुर्लभ व्रतके बारेमें कहने छी । अइ व्रतकें पालन करलासँ बच्चाके दीर्घायु भ’ जाइत छैक । हे देवी ! अगर अहाँ सब सेहो अइ व्रतके पालन करब आ उपरोक्त तरीकास देवी दुर्गाकें पूजा करब त’ अहाँकें वांछित परिणाम भेटत । मुनिराज धौम्यक बात सुनि द्रौपदीके हृदयमें एक तरहके जिज्ञासा उठल आ ओ पूर्वासिनी स्त्रीगणकें बजाक’ हुनका सबके संग ई महान व्रत केलनि ।
गौतम बजलाह–
अइ व्रत आ एकर प्रभावक बात एकटा चील्ह सुनि लेलक आ अपन सखी सियारिनकेँ कहलक। एकर बाद पीपर गाछक डारि पर बसिक’ चील्ह आ ओही गाछक एकटा खोँतामे बसिक’ सियारिन सेहो अइ व्रतकें केलनि । फेर वएह चिल्ही अइ कथाकें कोनो बढियाँ ब्राह्मणसँ सुनि आएल आ अपन सखी सियारिनकें सुनौलनि । सियारिन आधा कथा सुननैए छलीह की हुनका भूख लागि गेलनि आ ठीक ओही क्षण ओ मृत शरीरसँ भरल श्मशानमे पहुँचि गेलीह । सियारिन भरि पेट भोजन कएलक मुदा चिल्ही बिना कुछो पेने–पिने भोर धरि रहि गेल । चिल्ही भोरमे गायक दूध पीलिह ।
अइ तरहेँ चिल्ही नवमीके पारण कएलक । किछु दिनक बाद दुनू गोटेक मृत्यु भ’ गेलनि आ अयोध्याक कोनो एकटा धनीक व्यापारीक घरमे जन्म लेलनि । संयोगवश दुनूक जन्म एकहि घरमे भेल छलनि । सियारिन सभसँ पैघ आ चील्ह सभसँ छोट भेल । दुनू गोटे कुशल गुणसँ भरल छलीह । अही लेल जेठकी लड़कीक विवाह काशीराज आ छोटकीक विवाह हुनक मंत्रीसँ विधिवत रुपे भेलनि । पूर्व जन्मक कारण राजाक पत्नी जतेक बच्चाक जन्म देलकनि सब मरैत चलि गेल ।
मुदा मंत्रीक पत्नी पूर्व जन्मक फलसँ आठ गोट बच्चाक जन्म देलकनि आ सब जीवित रहल । अपन बहिनक बेटा सभकेँ जीवित देखि राजपत्नी अपन घरवलासँ कहलखिन जे जँ अहाँ हमरा जीवित देखय चाहैत छी तँ अइ मंत्रीयोक बेटाकें ओही ठाम पठा दियौक जतय हमर बेटा सभ चलि गेल अछि, अर्थात् मारि दियौक । ई सुनि राजा ओहि मंत्रीक पुत्र सभक हत्याक लेल कतेको प्रयास केलनि, मुदा मंत्रीक पत्नी जीवित पुत्रिकाक पुण्यसँ बचा लइ छलीह ।
अन्तमे ओ मंत्रीक पत्नी लग आबि पुछलीह– बहिन ! अहाँ कोन एहन पुण्य कएने छी जे बेर–बेर मारल गेलाक बादो अहाँक बेटा सभ नइँ मरैत अछि । अइ पर मंत्रीक पत्नी बजलीह– पूर्व जन्ममे हम चील्ह छलहुँ आ अहाँ सियारिन । हम आ अहाँ मिलिकय जीवित–पुत्रिका व्रत कएने रही ।
अहाँ व्रतके नियमकें ठीकस पालन नइ केलहुँ आ हम केलहुँ । अइ दोषक कारणेँ हे बहिन ! अहाँक बेटा सभ नइँ जीबैत अछि आ हमर बेटा सभ जीबैत अछि । हे रानी ! एखनहु जँ अहाँ ओहि जीवित–पुत्रिका व्रत सही सही करब त अहुँ चिरञ्जीवी बच्चाक जन्म द सकैत छी ।
हम अहाँकेँ साँच्चे कहि रहल छी । रानी सेहो हुनकर कथनके अनुसार उपवास केलनि । तखन हुनक कतेको पुत्र जन्म लेलन्हि आ राजा बनलाह ।
सूतजी कहैत छथि– हम अहाँ सबकें अइ दिव्य व्रतक बारेमें बतेलहुँ । जँ अहाँ सब चिरञ्जीवी सन्तान जन्माबए चाहैत छी त विधिपूर्वक ई व्रत करु ।
जीवित पुत्रिका–व्रत कथा
हिन्दी अनुवाद : पं. श्री रामतेज पाण्डेय
मैथिली अनुवाद : नारायण मधुशाला