सांस्कृतिक सम्पदासभक खानि भेल मिथिलामे अनेक पावनि-तिहारसभ मनुष्य तथा प्रकृति बीचमे सम्बन्ध–सेतु बनि जीवन्त अछि। अइ ठामक प्रायः आध्यात्मिक क्रियाकलापसभ शास्त्रसंगे जुटल रहितोमे लोकहितक सन्दर्भसब समय सापेक्ष ढङ्गसँ प्रासङ्गिक होइत ओ सभ हमरासभकेँ बाट देखा रहल अछि।
जितिया, छठि, चौरचन जेहन मिथिलामे बहुते नियम–निष्ठापूर्वक कठोर उपवास कए मनाओल जाएबला पावनिसभ परिवारक कल्याण, आरोग्य, सुख, समृद्धि, सन्तानक दीर्घायु जेहन मनोकामनासँ मनाएल जाइछ। मुदा ई सभ लोकसंग जुटि कए जे जेहन पक्षक संरक्षण तथा सम्मान कएने अछि, ओ समस्त समाज तथा लोकक कल्याणमे महत्त्वपूर्ण योगदान दैत आबि रहल मानल जा सकैछ।
एखुनका सन्दर्भ जितिया पावनिक चलि रहल अछि। लोककल्याणक यावत पक्षसभकेँ सांस्कृतिक आवरणमे सरंक्षण दैत आबि रहल मिथिला, समाजक हरेक जातिमे ई पावनि मनाओल जाइछ। अइ ठाम मिथिला कहलासँ प्राचीन मिथिलाक सीमा भितर परहिबला भू-भागकेँ बुझबाक आवश्यकता अछि। मिथिला कहला पर मात्र जनकपुरक लग क्षेत्रकेँ बुझबाक प्रकृति सेहो बुझाइछ । मुदा अइ ठाम बृहत् विष्णुपुराणमे मिथिला कहि वर्णन कएल गेल भू-क्षेत्रकेँ मिथिलाक रूपमे मानल गेल अछि। बृहत् विष्णुपुराणमे कहल गेल अछि —
कौशिकीन्तु समारभ्य गण्डकीमधिगम्यवै ।
योजनानि चतुर्विशंद् व्यायामः परिकीत्र्तितः ।। गंगाप्रवाहमारभ्य यावद्धैमवतंवनम् ।
विस्तारः षोडश प्रोक्तो देशस्य कुलनन्दन ।
मिथिलानाम नगरी तत्रास्ते लोक विश्रुता ।।
अइ आधार पर पूर्वमे कोसी, पश्चिममे गण्डक, उत्तरमे वन–पर्वत आ दक्षिणमे गङ्गाबीचक भू-भाग मिथिला अछि । ई जितिया पावनी उल्लेखित भू-भाग बीच मुख्य रूपेँ प्रचलित रहल अछि। नेपालक सन्दर्भमे नारायणी नदीसँ कोशी (साविक) नदी धरिक मैदानी भू-भाग अइ आधार पर प्राचीन मिथिला भितर पड़ैत अछि। अइ तरहेँ तराईक चितवनसँ पूर्व झापा धरिक जिला सभमे जितिया पावनि भव्य रूपेँ मनाओल जाइछ।
सांस्कृतिक रूपेँ बृहत् भू-भागमे अपने-अपने नाम आ प्रकारक जितिया पावनि मनाओल जाएत। तहुमे मिथिलाक मूलमे मैथिली भाषी क्षेत्रमे अइ पावनिक व्यापकता बेसी देखल जाइछ। अइ भू-भाग भितरमे थारू समुदायमे जितियाक उल्लास आ रौनक आओर बेसी देखल जाइछ। थारू लगायतक जनजातीय समुदायमे जितिया पावनि धार्मिक अनुष्ठान ओ सांस्कृतिक पर्वक रूपमे मात्रे सीमित नइँ रहि विशिष्ट उत्सवक रूपमे मनाओल जाइछ। अइमे पुजल जाएबला जिमूतवाहनकेँ लोकभाषाम जितमहान वा जितवाहन सेहो कहल जाइछ।
जीवितपुत्रिक लेल व्रत कालान्तरमे जितिया नामसँ प्रसिद्ध भेल अछि । चितवनमे थारू जातिमे मात्रे देखल जाएबला जितियाक प्रभाव तथा प्रचलन होइत भोजपुरी भाषी क्षेत्रमे जिउतिया नामसँ प्रचलित रहल भेटैछ । रौतहटसँ पूर्व झापा धरि प्रायः सबगोटेँ जितियाहे कहल करैछ ।
जितिया निष्ठापूर्वक मनाओल जाएबला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पावनि होइतहुंमे सम्बन्धित क्षेत्रक सबलोक नइँ मनाओल करैत। ई प्रायः सन्तानवती महिलासभ सन्तानक शुभ–मङ्गल – कामनाक साथ मनाओल करैत छनि। किछु वर्ष अगाड़ी घरि पुत्रक जीवन–रक्षा तथा मङ्गलक लेल मात्रहि कएल जाएबला ई पावनि आब सब सन्तानक लेल अर्थात् पुत्र–पुत्री दूनूक लेल माएसब मनाबऽ लागल छथि। अइसँ हमरासभक मन-मस्तिष्कमे रहल लैङ्गिक असमानताक गड्ढा सेहो सनै-सनै भराओल जा रहल देखल जाइछ से कहि सकै छी।
जितिया पावनि मनाओल जाएबला तरिका तथा अइमे उपयोग होबएबला सामग्रीसभकेँ सरासर देखला पर अइकेँ सभक पावनि कहला पर फरक नइँ पड़त। प्रायः हिन्दु धर्म मानहबला प्रत्येक जेहन पर्वमे स्वच्छता, पवित्रता, नियम–निष्ठा आदिमे बहुत विचार कएल जाइछ। मुदा जितिया पावनिमे श्रद्धा– निष्ठा– समर्पण यथेष्ट रहल होइतहुंमे ई पावनिकेँ सुरु करबासँ पहिने खाएल जाएबला खाद्यवस्तु सभक प्रकृति आओर पावनि–तिहारसँ सर्वथा फरक अछि ।
जाहि ठाम आओर उपवासजन्य पावनिमे व्रत राखबासँ किछु दिन पहिने धरि पवित्र – खाएल जाइछ, तथा पवित्र सँ रहब जेहन प्रक्रिया अपनाओल जाइछ, ओहि क्रममे जितियाक व्रत सुरु होएबासँ पहिने मांसाहार ग्रहन करबाक लेल पाबनैतिद्वारा अनिवार्य रूपमे माछ खाएल जाइछ। ओहो किछु वर्ष पहिने धरि समाजमे सबसँ अधम मानल जाएबला अनाज मडुआक साथमे । पारम्परिक रूपमे ई खाद्यबस्तुसभ अनावश्यक वा अपवित्र कहल जाइछ।
मुदा तइयो माछ आ मरूआ क प्रयोगकेँ जितिया पावनिक विधान अन्तर्गते अनिवार्य कएल गेल अछि। कतेक लोक तऽ माछ–मडुआ पावनि कहैत छै। लगभग दुई दिनक पूर्णतः निराहार, निर्जला व्रतक प्रारम्भे माछक झोरबला तरकारी आ मरूआक रोटी सँ कएल जाइछ। ई कथा जँ अन्यत्रक हिन्दु पण्डितसभ सुनथि तऽ हुनका सभक लेल ई आठम आश्चर्यक बात होबए सकैछ। मुदा, मिथिलामे जितिया पवनीक सुरुवात माछ ओ मडुआ खाइएकऽ कएल जाइछ। जितिया व्रत सुरु होएबासँ एकदिन पहिलुकाक दिनकेँ ‘माछ–मडुआ’ कहि सम्बोधन कएल जाइछ।
माछ–मडुआ वस्तुतः स्थानीय उत्पादनक प्रयोग तथा प्रवर्धनकेँ आगा बढ़एबामे तत्कालीन एकटा रणनीतिक उपक्रमक होबए सकैछ। मिथिलामे नदी ओ पोखरिसभक पर्याप्तताक कारण अइ ठाम माछक उत्पादन यथेष्ट मात्रामे होएत रहए।
तहिना, नदीसभ प्राय: अराजक रूपेँ बहलासँ प्रायः कृषियोग्य भूमि बालूसँ भरि जाए। एहन बलूवाह माटिमे मरूआ बाहेक आओर बाली प्रायः नइँ सुथरै रहए। सिँचाइ सुविधा नइँ भेल जमिनमे मरूआक उत्पादन किछु ने किछु भइए जाइछ। मिथिला क्षेत्रक प्रमुख उत्पादन मरूआ होइत छल। मुदा, उत्पादन बेसी होइतहुंमे मरूआ सम्मानजनक आहार नहिए बनि सकल छल।
प्रायः कमजोर आर्थिक हैसियत भेल लोकक भोजनक रूपमे एकरा लेल जाइत छल। एहन अवस्थामे जितिया जेहन महत्त्वपूर्ण पावनिसँ एकरा जोड़िदेबाक कारणेँ स्वयंकेँ सम्भ्रान्त मानहिबला लोकसभ समेत भगवान जिमुतवाहनहिक नाम पर सही मरूआक रोटी खाए लगलनि। ई भूमिअनुसारक उत्पादन एवं स्वास्थ्यक लेल समेत लाभदायक होएबाक कारणेँ मरूआक खेती निरन्तरता पओलक धारणा अइक पछाड़ी रहबाक होबए सकैछ।
स्वास्थ्यक दृष्टिएँ माछ ओ मरूआ लाभकारी खाद्यवस्तु भेल बात विभिन्न अनुसन्धानसभसँ प्रमाणित भेल बात हमसब पढै़त – सुनैत आबि रहल छी। जनस्वास्थ्यक क्षेत्रमे बेसी समयसँ कलम चलबैत आएल पत्रकार अतुल मिश्र कान्तिपुर दैनिकमे ‘कोदोले सार्छ बुढ्यौली’ शीर्षक अपन एकटा लेखमे एकरा भविष्यक ‘स्मार्टफुड’ कहैत प्रोटिन, भिटामिन, ऊर्जा एवं खनिजक प्रमुख स्रोतक रूपमे मरूआकेँ चित्रित कएने छथि। ओइ लेखमे ओ मरुआक अनगिनति फाइदासभक उल्लेख कएने छथि। जितियाक व्रत सुरु होएबासँ पहिने एकर प्रयोगक परिपाटीकेँ अइसँ प्राप्त होबएबला ऊर्जाकेँ जोड़िकऽ देखबाक आवश्यकता अछि। अर्थात् मरूआ जेहन पौष्टिकतासँ परिपूर्ण खाद्य सामग्रीक प्रयोगसँ कठिनत्तम उपवास सहजेँ पार लागि जाय। मुदा, विडम्बना ई छइ जे अचेल कतिपय व्यक्तिसभ एकरा मात्रे कर्मकाण्डीय रूपमे व्याख्या कऽ रहल छथि।
हुनकासभक तर्क रहै छनि– एतेक विशिष्ट पावनिमे माछ आ मडुआ जेहन अशुद्ध खाद्य सेहो कताै खाएल मिलै छै? अइ तरहेँ जितियाक मुख्य विशेषतासभकेँ एकरासँ अलग करबाक प्रयास सेहो कएल गेल अछि। मुदा एकर महिमाकेँ कोना देखल जाए, ई जे शाकाहारी लोकनि माछ नइँ खाइत छलाह मुदा अइ पाबनिक पूर्व संध्या पर मडुआ जरूर खाएल जाइत छल।
आइ-काल्हि जितिया महोत्सवक सन्दर्भमे किछु महिला सङ्गठन खाद्य महोत्सव वा जितिया मिलन समारोहक आयोजन करैत अछि, जखन कि बाकी सब किछु आधुनिक शैलीमे रखैत अछि, मुदा माछ आ कद्दूक रोटी अतिरिक्त आ विशेष वस्तुक रूपमे मेनूमे राखल जाइत अछि। अइ तरहेँ एहन प्रतीत होइत अछि जे मिथिला अपन सांस्कृतिक संविधानमे माटिक अनुकूल उत्पाद वा शरीरकेँ सामान्यतः आवश्यक पोषक तत्ववला खाद्य पदार्थक सेवनकेँ महत्व देबाक प्रथा सुनिश्चित कएलक अछि।
अइमे नारियर, खीरा, केरा आदि होइत अछि।अइ सामग्रीसँ भरल बाल्टीमे बाँसक पात, केराक पात, जिम्हारक पात, मानक पात आदि राखल जाइत अछि। ई अपन लगपासक वनस्पति धरोहरक समर्थनकेँ मजबूत कऽ रहल अछि। शास्त्रीय पक्ष अइ विषयमे बेसी नइँ कहैत अछि, मुदा ई कहल जा सकैत अछि जे एहन प्रक्रियाक निहितार्थ छै जे उत्पाद आ ओकर स्थान, क्षेत्र, पर्यावरणक साधनकेँ अलग-अलग स्थानपर उपयोग कऽ उचित सम्मान देल जाय।।
पबनैतिनसभ माछ– मडुआक दिन सामान्यतया तेल, खयर, घेराक पात फूल आदि चढेबाकसँ पहिने पोखरिमे स्नान करबाक परम्परा अछि। तहिना पाबनिक मुख्य दिन साँझमे कयल जायवला जीमूतवाहनक पूजा सेहो पोखरिमे कएल जाइत अछि।
जितियाक पूजामे आबएवला अइ विविध वनस्पति, जीव-जन्तु आ पोखरि आदिक सन्दर्भसँ ई स्पष्ट होइत अछि जे मिथिलावासी अपन पाबनि-तिहारक माध्यमसँ सदियसँ प्राकृतिक इकोसिस्टमके चलयमानमे बनेबामे योगदान दैत आबि रहल छथि।
जितिया पाबनिकेँ पुरुषप्रधान समाजमे सेहो लैंगिक समानताकेँ बढ़ावा देबाक एकटा अद्वितीय पक्षके रूपमे सेहो मानल जा सकैत अछि।
एकरा जितिया पाबनिसँ जुड़ल एकटा अद्वितीय सांस्कृतिक प्रक्रियाक रूपमे मानल जा सकैत अछि। पितृपक्षमे पितृकेँ मात्र श्रद्धा कएल जाएबला बात सर्वविदिते अछि । मुदा जितिया पावनिमे मातृ पक्षकेँ सेहो श्रद्धा–सम्मान करबाक परम्परा मिथिला बचाएक राखने अछि। माछ–मडुआक दिन जितियाके व्रत कएनिहारि महिलासभ अपन दिवङ्गत सासू तथा दिवङ्गत माए तथा अन्य पूज्य महिलासभप्रति श्रद्धास्वरूप ‘पितराइन’ खुबाएल जाइ अछि ।
अइ तरहेँ जितिया पावनि विशाल सन्देश दिए सकब समाजक सुक्ष्म पक्षसभकेँ मिहि ढंगसँ खोधैत मानवता, समानता, प्राकृतिक सन्तुलन जेहन पक्ष संरक्षण तथा प्रवर्धन करबाक परम्पराकेँ आधारभूमि दैत आएल अछि । (नेपालीसँ मैथिलीमे अनुवादित: कैलाश ठाकुर)
लेखक : धीरेन्द्र प्रेमर्षि