‘मैथिल विश्व-दृष्टिमे इरोटिका वा कामुकता मुख्यधारामे अछि की सबवर्ज़न (सबवर्जन माने स्थापित मुल्य, सत्ता आ शक्तिके खिलाफ) के रुपमे ?’
हमर जे अपन शोधक अनुभव अछि ताहि आधार पर कहि सकैत छी जे, अगर मुख्यधाराक अर्थ लोक अथवा जन समुदाय अछि तऽ कामुकता मुख्यधाराक चीज़ थिक आ ई मिथिलामे भारतक बहुत आन ठामक परम्परा जकाँ अदौं सँ विद्यमान रहल अछि, मान्य रहल अछि। खासकऽ विवाहक समय आ ओकर बादक विध-व्यवहारमे गीत आ आन माध्यमसँ कामुकताक प्रदर्शन होइत अछि, तकर जतेक वर्णन करी, से थोड़। शायद विध-व्यवहारक माध्यमसँ वर आ कनियाँकेँ कामक प्रति परिपक्व आ एक दोसरक समीप लएबाक ई उत्तम प्रक्रिया छैक।
उदाहरणक लेल, लाबा छीटऽ काल लाबा जे छैक ओकरा अगर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करब तऽ कनियाँ अथवा वरक मनमे उठैत रङ्ग-विरङ्गक प्रेम, अभिसार केर तरङ्ग छैक। काम इच्छाक भावक प्रतीक छैक। ऊपरसँ गीतक शब्द जाहिमे महिला सब वर आ कनियाँक झिझक वरक माता आ कनियाँक पिता; वरक दाई आ कनियाक पितामह, वरक मामी आ कनियाँक माम आदि सम्बन्धसँ सङ्ग जोड़ि ओकरा आरो रमनगर आ दुनू लेल ‘इजी गोइनिंग’ अथवा सहज बना दैत छैक।
एक उदाहरण देखू:
बाबू लाबा छिडियाउ धिया बीछि-बीछि खाउ,
वरक बाबी कनियाक बाबा सङ्गे सुताउ।।
बाबू लाबा छिडियाउ धिया बीछि-बीछि खाउ,
वरक माय कनियाक बाबू सङ्गे सुताउ।।
बाबू लाबा छिडियाउ धिया बीछि-बीछि खाउ,
वरक बहिनी कनियाँक भैया सङ्गे सुताउ।।
दुनू घर गुजर चलाउ ……..
बाबू लाबा छिडियाउ धिया बीछि-बीछि खाउ।।
ओना तऽ ऊपर वर्णित गीत सहज लगैत छैक। मुदा अपन गायकी आ लोकक समर्पण, विधक उद्देश्य आ लाबा छिडियाएब केर क्रिया आ लड़की सब द्वारे ओकरा लेल छीना-झपटी सब नव वर आ कनियाँकेँ अभिसार हेतु सहज कऽ दैत छैक। धखेनाइक बात समाप्त भऽ जाइत छैक। अहि पूरा गीतमे वरक दाई, माय, आ बहिन सब आ कनियाँक पितामह, पिता, आ भाइ सब पात्र भऽ जाइत छैक जकरा बीच परिहासक सम्बन्ध उचित आ समाज सम्मत मानल जाइत छैक।
अहिना एक विध पटिया समेटब आ ओछएबाक होइत छैक। अहू विधक उद्देश्य वर आ कनियाँक अभिसार आ रति-रभस लेल तैयार करब, सम्बन्धकेँ प्रगाढ आ सहज करब थिक। एक छोट सन गीत देखब तऽ एकरो अर्थ बुझबामे कोनो भाङ्गठ नहि हएत। गीत देखू:
सब रङ्ग पटिया समटू सोहबे,
दुलहासँ ओछबाउ हे।।
पटिया ओछएबामे कसमस करताह,
मारब चाट घुमाय हे।।
टेढ़-तूढ जुनि पटिया ओछाएब,
रूसि रहती सुकुमारि हे।।
हँसी-ख़ुशी पटिया ओछाएब
हँसती सिया सुकुमारि हे ..।।
कतेक आनन्द, उल्लास, रङ्ग आ वैविध्यसँ भरल ई छोट सनक गीत छैक! नाम लेल पटिया छैक मुदा छैक बहुरङ्गी। सखी सब गीतक मादे कनियाँकेँ केलि-कीड़ा केर ‘प्रैक्टिकल’ ज्ञान देबाक यत्न कऽ रहलि छथि। वरकेँ कोना ‘सोसिअलाइज’ करी से युक्ति बता रहलि छथिन। पटिया ओछाएबाक हेतु वरकेँ कहथिन से बता रहल छथिन। अगर त्रुटि होइत छनि तऽ प्रेमक चाट मारबा लेल उकसबैत छथिन। प्रेमक चाट दुनूमे साम्पिय स्थापित करबामे सहायक हेतनि तखन ने बात आगा बढ़तनि ? रुसब-बौंसबक कलाक ज्ञान दऽ रहल छथिन, हँसब-बाजबक गुण बता रहल छथिन। सबसँ पैघ बात ई जे कोनो बात छुपल नहि, चोराएल नहि। सब स्त्रिगन – दाई, माय, पितियाइन, भौजी, जेठ बहिन सबहक समक्ष आ सबहक अनुमतिसँ। एक बात इहो, सब सखी सब ओहि पर पिहकारी मारैत प्रहसनकेँ आरो अनुरञ्जक बनबैत रहैत छथि। एकर स्पष्टीकरण निम्लिखित गीतमे अछि:
सबरङ्ग पटिया समटू हे सोहबे,
दुलहा देता ओछाय।।
टेढ़-टूढ जँ पटिया ओछओताह,
रुसि रहब सुकुमारि हे।।
हे कसर मसरने पटिया ओछओताह,
मारबनि चाट घुमाए हे।।
हँसी-खुशीसँ पटिया ओछओताह,
तखन हंसथि सुकूमारि हे।।
आब गीतक एक-एक शब्दकेँ देखब तऽ लागत जे समाज कतेक उदार भावसँ ‘इरोटिकाक’ स्वीकृति दऽ रहल अछि। लेकिन एहि ‘इरोटिका’मे यौनाचार अथवा यौन विकृतिक सम्वाद अथवा प्रतीक नहि छैक। मर्यादित ‘इरोटिका’ जकरा लोकक भाषामे हँसब-ठेठायेब सेहो कहि सकैत छी। एहेन ‘इरोटिका’ जे श्रृङ्गार, शब्द व्यञ्जना, भाव, विध-व्यवहार, आ संस्कारसँ सुसज्जित अछि। जकरा मर्यादित स्वरुपमे समाज मान्यता प्रदान करैत छैक।
मिथिलामे विवाहक सङ्ग एक क्रिया जोगक होइत छैक। जोगकेँ ‘प्यूरिस्ट’सब योग कहि सकैत छथि। दुनूक अर्थ एक भेल – जुड़ब अथवा जोड़ब। वरकेँ कनियाँसँ आ कनियाँ परिवारक वरक परिवारसँ। लेकिन मुख्य रूपसँ वर-कनियाँक जुडब – मानशिक, शारीरिक आ सामाजिक स्तरकेँ सङ्ग-सङ्ग मनोवैज्ञानिक स्तर पर सेहो महत्त्व रखैत छैक। जोगमे वर आ कनियाँकेँ गीतसँ विध-व्यवहारसँ आ तान्त्रिक क्रियासँ सेहो जोड़बाक परम्परा रहल छैक। तान्त्रिक क्रियामे परिहास आ गीतक चासनी लागल रहैत छैक। नैना जोगिनके विधमे मानल जाइत छैक जे बंगाल, अथवा हिमालय अथवा कामख्यासँ एक हाँकल योगिन/जोगिनी अबैत छैक। गीतमे कखनो काल गीतगाइन सब अपना आपकेँ तिरहुतक एक नम्बरक फेरल जोगिन प्रमाणित करैत छथि। जोगक एक उद्देश्य वरक ध्यान अपन माय-बहिनसँ अधिक कनियाँ दिस आकर्षित करब सेहो छैक। जोगमे गीत गएबाक शैली पूरा तन्त्रमय भऽ जाइत छैक। कखनो काल कऽ धर्ती, आकास, समुद्र, पहाड़ सब चीज़केँ बान्हब आ अधिन करबाक चर्च होइत छैक। जोग द्वारे असम्भव काजकेँ सम्भव करबाक बात होएत छैक। निम्नलिखित जोग गीत देखू:
माइ हे सात बहिन हम जोगिन, नैनहु थिकी जेठ बहिन।।
माइ हे तिनकहुँ सँ जोग सिखल, तिन भुवन जोग हाँकल।।
माइ हे समुद्रहुँ बान्ह बन्हाओल, तेँ हम जोगिन कहाओल,
माइ हे तरहथ दही जनमयलहूँ, तेँ हम जोगिन कहाओल।।
माइ हे सुखाएल गाछ पन्हगेलहुँ, तेँ हम जोगिन कहाओल।।
माइ हे बांझिक कोखि पलटएलहूँ, तेँ हम जोगिन कहाओल।।
माइ हे भनहि विद्यापति गाओल, जोगिनिक अन्त न पाओल ….।।
एहि जोग गीतमे जोगिन अपन कला अथवा तन्त्रक ज्ञानक महिमा मण्डित कऽ रहल छैक। एकरा जखन स्त्रीगण सब गबैत छथि तऽ लागत जे अथर्ववेदक मन्त्रक कल्लोल भऽ रहल अछि। तन्त्रसँ केहनो असम्भव काज भऽ सकैत अछि; धर्ती, आकास आ पातालकेँ हाँकल जा सकैत अछि, समुद्रकेँ बान्हि सकैत छी, तरहत्थी पर दही जमा सकैत छी, सुखाएल ठुठ गाछमे प्राण आनि ओकरा हरियर कचोर कऽ सकैत छी, केहनो बाँझिनक कोखिमे सन्तान डालि सकैत छी। आ ई सब कऽ सकैत छी ताहिसँ हमर सभक नाम जोगिन अछि। विद्यापति कहैत छथि, ‘एहि जोगिन सभक अन्त कियोक नहि पाबि सकैत अछि!’
आई काल्हि लड़की सब रैम्प पर उतरैत छथि, बिलाइक चालि चलैत छथि अर्थात ‘कैट वाकिङ्ग’ करैत छथि। लटका-मटका झारैत छथि। शरीर आ वस्त्रक कामोत्तेजक सौन्दर्यसँ दर्शककेँ अपना दिस आकर्षित करैत छथि। करक चाही। एहिमे कोनो हर्ज नहि। ठीके तऽ कहल जाइत छैक, ‘सोच बदलबाक जरुरत छैक, वस्त्र नहि।’ जोग गीतमे एहने भाव बल्कि अहूसँ रमनगर, आ कामोत्तेजक भाव नव व्याहित कनियाँ द्वारा प्रदर्शित होइत छैक। स्त्रीगण सब गीत गबैत छथि कनिया कमर मटकबैत, नव वस्त्रसँ झाँपल अपन देहक उभारकेँ देखबैत, आभुषणसँ पैरके छम-छम करैत, चूड़ी आ कंगनाकेँ खनखन करैत चलैत छथि। नख-शिख सिंगारसँ एहि तरहेँ पाहूनकेँ अपना दिस मोहित करैत रहैत छथि। पाहूनक ध्यान कनियाँ छोड़ि ककरो लग नहि जाइन ताहि हेतु कनियाँक माय, पितियाइन तान्त्रिक क्रिया कऽ देने छथिन। पाहूनकेँ नोन पढ़ि खुआ देल गेल छनि, हुनकर पागक ताग निकालि ओकरा तान्त्रिक क्रिया द्वारा खन्तीक तऽरमे गारि देल गेल छनि। आब ओ आपादमस्तक कनियाँक अधिन छथि। कनि एक एहेन जोग गीत जे एहि तरहक बात कहैत अछि, केँ देखैत छी:
जोग जतिन हम जानल पहचानल,
गुणगर कैल जमाय अधिनक राखब।।
रुनुकि-झुनुकि धिया चलतीह पहु देखताह,
पागक फेंच उघारि ह्रदय बीच राखल।।
जखन धिया मोरी चलतीह पहु तकताह,
नागरि कैल जमाय अधिन कऽ राखल।।
हमर जोग नागर गुण आगर,
सात खण्ड नव दीप जोग अवतारल।।
भनहि विद्यापति गाओल फल पाओल,
गुणगर कैल जमाय अधिन कऽ राखब….।।
बाह रे प्रेम। तन्त्रसँ बान्हल सिनेहक डोरी। गीतमे एक सँग कमनीयता, सौन्दर्य, दैहिक सौष्ठव, आ स्त्रीगणक अधिकार पुरुख पर देखार भऽ रहल अछि। धियाक चलब, धियाक देखब, पहुक ताकब, जोगिनक अधिकार सब एक सङ्गे प्रवल बेगसँ प्रमाणित होइत।
एक जोगक गीतमे तऽ जोगिन ताल ठोकि कहैत छथि जे, ‘आब अतेक क्रिया आ तन्त्रसँ पहुँकेँ बाँधि देने छियैन्ह जे ओ कतहु जाथि, अन्ततः घुरि-फिर कऽ हमरे लग अओताह। जेताह कतऽ ?’
माइ हे हमरहु जँ पहुँ तेजताह, फल बुझताह,
माइ हे बान्हि देबनि बनिसार, अधीन भय रहताह।।
माइ हे चान सुरुज जकाँ उगताह, उगि झपताह,
माइ हे नैन-नैन जोड़ल सिनेह, फलक नहि छोड़ताह।।
माइ हे नाव डोरी जकाँ घुमताह, घुमि अओताह,
माइ हे मकरी देबनि ऐंठि, देहरि धेने रहताह।।
माइ हे भनहि विद्यापति गाओल, फल पाओल,
माइ हे गौरीके बढ़नु, अहिबात सुन्दर वर पाओल।।
कहक तात्पर्य भेल जे गीत जे गाबि रहलि छथि, तिनका अपना तन्त्र पर गुमान छनि। जेना सुरुज-चान आँखि मिचौनी करैत रहैत अछि, तहिना नायक आ नायिकाक नैनसँ नैन मिल गेल छनि आ ओकरा तन्त्रक मन्त्रसँ बान्हि देल गेल छैक। ककर मजाल जे ओहि डोरीकेँ तोड़ि सकए ? वर तऽ कनिया सङ्गे नावक डोरी जकाँ जुड़ल छथि, कतहु जाथि अन्ततः वापस आबहे पड़तनि। आरो बहुत उपमा छैक जकरा बुझनाई कोनो मुश्किल नहि।
अतेक तन्त्रक बात होइत अछि। किछु एहनो लोकक तन्त्र पर काज होबाक चाही। बात बहुत किछु अछि। एखन एतबे।।।
बात शोधक करी तऽ, कहि सकैत छी जे मैथिली लोक विद्या अथवा ‘फोकलोर’ एखन धरि साहित्यक जन्जालसँ बाहर नहि आबि सकल अछि। लोक विद्या पर नाममात्रक काज भेल अछि। तेलुगू, कन्नड़, तुलू, मलयाली, मराठी, बंगाली ‘फोकलोर’ पर वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक काज भऽ रहल अछि। मिथिलामे छीट-फुट कखनो कोनो विदेशी विद्वान अथवा विदुषि किछु काज कऽ लैत छथि तऽ बहुत लोक वैश्विक होबाक नृत्य करए लगैत छथि। मैथिली लोक परम्परा अगाध अनन्त महासागर अछि जकर साहित्यसँ ऊपर व्यख्या आ ज्ञान अथवा लोकज्ञान परम्पराक परत-दर-परत प्रामाणिक शोध तुरन्त शुरू भऽ जएबाक चाही।