■ कविता – लाल लहू : कारी दिन
गोलीक वर्षासँ
हमर भैयारीसभक छाती
भुजरी-भुजरी क’
हमर माएसभक कोखि
केने छलह छुच्छ
हमर बहिनसभक
लेपने छलह शींथ
हमर नेना-भूटकाकेँ
बनेने छलह टुगर
ओहि कात मनेने छलह हर्षक तिहार
एहि कात बहेने छलह लहूक धार
आ नोरक अछार
जेना
एकेटा देशमे
एक कात उगल हो छटछट इजोरिया
आ दोसर कात पसरल हो कूप अन्हार।
हमरे लहूक रङ्गसँ रङ्गिक’
हमर माथपर लधने रह’ संविधान
जेना
बरदकेँ नाँथिक’
पियाओल जाइ छै मरिच।
हौ! बन्नुकवाला सत्ताक मनुख
हमर लहू
हमर देहसँ बेरा त देबह
हमर लहूक रङ्ग नइ मेटब’ सकबह
आ नइ एकर पहिचान।
आबिक’ देखह मधेश
आ कि निहारिक’ देखह मधेशक मुह
आजुक डिजिटल अयनामे
हमरेसन लहू फन फना रहल अछि
हमर युवा मित्रसभक छाती-छातीमे
उपजि रहल अछि
क्रान्तिक बीज एहि माटीमे
आब त
रमेश, राजीव सन
डर-जानक राखि बन्हकी
कलमक हथियार लेने
उतरि गेल छथि सेनानीसभ मैदानमे
उठबै पड़त’ तोरा अपन कलम
हमर छुटल अधिकार
आ आत्मसम्मानक आखर
जाधरि नइ चढ़ेबह संविधानक पन्नामे
जाधरि हमर शोशित चेहराक फोटो
नइ खिचबह समानताक नयनामे
जाधरि करैत रहबह तोँ नश्लिय दमन
ताधरि होइत रहत ई क्रान्तिक लहू
हमर सन्ततिसभक देहमे जनन
जाधरि नइ करबह उज्जर
हमर अधिकारक सिलेठ
जाधरि शहीदक सारासँ
चीत्कार मरैत रहत’ मलेठ
बान्हैत रहब’ कारी पट्टी माथमे
देखबैत रहब’ कारी झण्डा
सामाजिक संजालक
प्रोफाइलसभ होइत रहत’ कारी
मनबैत रहब’
शोध लेल अपिल
विरोधक प्रतिक
आसिन तीन, कारी दिन।
● ● ●
बहुत नीक, नेपालमे मैथिल, मधेशी जनता पर कैल गेल अत्याचारक निक चित्रण!!