
Maithili Ghazal, Corona Maithili Ghazal प्रेम विदेह ललन जीक प्रस्तुत अछि।
गजल-१ : Corona Maithili Ghazal
लकडाउन कोभिडके नाम भेलै हओ।
खून एतए जिनगीके जाम भेलै हओ।।
मेहनति गरीबक गृह भेल कारा।
खिचडियो नइँ इन्तजाम भेलै हओ।।
जीबैए सरकारी जन आ कुबेर ।
आरसभक दिन त्राहिमाम भेलै हओ।।
लेलक परान किछु सय कोरोना।
भुखले हजारो स्वर्ग-धाम गेलै हओ।।
देने छल रक्षाके वचन जेहे ।
लुटेरा ओहे खुलेआम भेलै हओ।।
बजबैए लायर* ओ कुर्सी पर निरो।
स्वाहा सकल सहर – गाम भेलै हओ।।
* लायर – भ्वाइलिनसन एक पश्चिमी बाजा
गजल-२: Maithili Ghazal
टिम टिम सिंहासन पर बरि रहल छी
जीबि रहल छी आ ने मरि रहल छी
करिया छी ,बनि गेलौं देसक पति
गोरकाके काँट जका गरि रहल छी
मोनासिब कतबो हम बजैछी बात
मोजर नइँ होइए ,कुहरि रहल छी
कहबैछी हम तँ परमाधिपति
अपहरित हक भेल,उजरि रहल छी
टूटि रहल अछि आब धीरजके बान्ह
बिस्फोटन हेतु पजरि रहल छी
गजल ३: Maithili Ghazal
सत्ताके खम्हा तँ हिल गेलैए
एतए पीडित सब मिल गेलैए
बहलैए बहुते पसेना आ खून
मान सफलता- फूल खिल गेलैए
लगाबी अपनासब आर कनी जोड
माटि ओकर जडिके ढील भेलैए

होएत धराशायी हे तर सँ उखडिते
बाजत जय – डंका से ‘फील’ भेलैए
कटतै ई राति आब, छँटतै अन्हार
उगत सुरूज , खूस दिल भेलैए