प्रस्तुत अछि पाँचटा मैथिली गजल…
मैथिली गजल १
जिनगीमे पहिले बेर भेल जे हार अछि
सायद तें दुनियाँ दऽ गेल ललकार अछि
एकदिन हमहुँ खुब मेहनत करब
आलसीके मोन बुझू करै तिरष्कार अछि
सभके घर बधैया बाजै बाजागाजा साथ
मुदा हमरे घर पसरल अन्हार अछि
ओकर देल बियो त कहियो अँकूराएल कहाँ
बूझि लिअऽ तें ई अश्वासनो बेकार अछि
बचाक रखने छी मानवता आ नैतिकता
अखनो नै बिगरल हमर संस्कार अछि
असफल भेल छी मुदा कोसिस नै छोड्ने छी
हमरा एहन लाखौ चुनौती स्वीकार अछि
मैथिली गजल २
बेरबेर किरिया खाक ओ झुठ बजल हमरा लग
अपन समिप बजाक ओ झुठ बजल हमरा लग
कहलक हम अहिँके छी अपन जकाँ हमरा मानु
बेदर्दी हियासँ लगाक ओ झुठ बजल हमरा लग
मन जबो नै विश्वास करै लेल चाहलक ओकरा प
तबो मनके पतीयाक ओ झुठ बजल हमरा लग
ओकर मजाल देखियौक, लाज शरमके दरेग नै
नैनसँ नैनके मिलाक ओ झुठ बजल हमरा लग
हम की अते जल्दी ओकरा बात प आबैबाला छलहुँ ?
जे यै तरहे मुस्कियाक ओ झुठ बजल हमरा लग
मैथिली गजल ३
हे युवा… … … … … … … … ..
सम्हारिकऽ जोशमे होश चलू
कऽ अपना पर भरोष चलू
बढू नित कर्मक पथ पर,
बान्हिक हिआमे सन्तोष चलू
दुनियाँ छै बड्ड कसाई भाइ,
सोचि(बिचारि किछु ठोस चलू
सबठाँ छै अन्हार देखियौक,
दीप नेस टोल परोष चलू
मैथिली गजल ४
लग रहितो दूरक मेहमान छलहुँ हम
अपनाे सभक बिचि अान छलहुँ हम
आे हमरा नजरिमे भगवान रहए
जेकरा नजरिमे नादान छलहुँ हम
लाली परसलहुँ, आनन्द उठेलक
अन्तमे थुक पिक पान छलहुँ हम
सबदिन अँठि – कचोर बुझलक
दरसल हेहर समान छलहुँ हम
दरद उठला पर दवा मधुशाला,
खखरी बुझैए जकर धान छलहुँ हम,
मैथिली गजल ५
यै पार सँ ओई पार तक अछि इतिहास हमर ।
अधुरे अछि होबलेल काज बहुत रास हमर ।।
ककरोसँ कियाक डरब सत्यक बाट पर ।
अछि माँ जानकीक’ असीम अनुकम्पा पास हमर ।।
पलायण करि नहि जायब कहियो रण परसँ ।
अभावेमे रहि हेरा गेल अछि डर त्रास हमर ।।
बनि मौधमाछी मेहनत करब नित एकतामे ।
तब पुरा होएत अहाँक’ सपना आ आस हमर ।।
समहरिक’ चलब बिकट बाट हम पथदर्शी ।
भेल अछि बहुतो आगि पानिसँ आभास हमर ।।
करब विश्वास आब नहि ककरो प्रति मधुशाला ।
जे सतेलक आई धरि छल सहोदर खास हमर ।।
रचनाकार
नारायण मधुशाला
परिहारपुर,सिरहा
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बहुत नीक रचना