जाहे कियो मानय अथवा नइँ, मिथिलाक आधासँ बेसी लोक प्रवासमे बसैत अछि आ अइ प्रवासी मैथिल लोकनिकेँ अपन माटिक सुवास परदेसोमे आकर्षित करैत छै।
अपन मातृभाषा आ मातृभूमिक प्रति प्रेमक दीप सदिखन हुनका सभक हृदयमे जरैत रहैत छै आ ठोर पर इएह उचरैत छै-जाहि धरा पर जन्म लेलाैँ । वएह माटि शोभय भाल हमर ठोर पर साजय बोल माइयक सुनि जकरा मोन पड़य गाम हमर।
नवदुर्गा: प्रकीर्तिता: केर छठम कड़ीमे आइ अपन माटि-पानि आ अपन मातृभाषाक प्रति एहने अनुरागसँ भरल एकटा प्रवासी मैथिलानीके चर्च क’ रहल छी आ हुनक नाम छियनि मुन्नी कामत। ई नाम सुनि कदाचित बहुतो लोककेँ अचंभा हेतनि, मुदा हिनक किछु रचना पढ़ि हमरा लगैत अछि, जे हिनकामे ओ सामर्थ्य आ लगन छनि, जे मैथिली साहित्यकेँ किछु खास योगदान द’ सकैत छथि, बशर्ते कि साहित्य अनुरागी लोकनि अपन रचनात्मक स्नेहसँ हिनक साहित्यिक प्रतिभाकेँ प्रोत्साहन दी।
करीब साढ़े तीन दशकके अपन नान्हि टा उमेरमे हिनक चारि टा पोथी प्रकाशित भ चुकल छनि। दू टा कविता सँग्रह, एकटा बाल कथा सँग्रह आ एकटा उपन्यास। वर्ष 2010सँ लेखन शुरू करय बला रचनाकार लेल ई कम पैघ उपलब्धि नइँ अछि, जे चारि टा पोथी प्रकाशनक अलावे हुनका साहित्य अकादेमी आ मैथिली-भोजपुरी अकादेमी केर मंच पर रचना पाठ करय लेल अनेक बेर आमंत्रित कएल गेलनि।
परसा गामक धियाक सासुर फुलपरास प्रखंडक सुरियाही गाममे छनि, मुदा एखन ओ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र गाजियाबादमे अपन आवासमे रहैत छथि। हिंदी विषयसँ एमए कएलाक कारण स्वाभाविक छल, जे शुरुआतमे हिंदी साहित्यक प्रति हुनकामे रुचि जगलनि, मुदा जखन मैथिली साहित्यसँ जुड़ल किछु लोकसँ परिचय-पात बढ़लनि, तं ओ मातृभाषा मैथिलीक प्रति एकनिष्ठ भ’ गेलीह।
ओ अपन प्रारंभिक दिनक मादे स्वयं कहैत छथि-
“साहित्यक अभिरुचि हमरा भीतर शायरीसँ आरंभ भेल आ इएह चरिपतिया कविताक रूप ल’ ठाढ़ भ’ गेल। कवितामे भेटल विद्वतजनक प्रोत्साहनसँ गद्य दिस झुकाव ‘चुक्का’ बाल कथा सँग्रहक सृजन करौलक।
‘चुक्का’क प्रकाशनक बाद हमर पाठकगणक प्रोत्साहनक जे दू शब्द छल, से हमरा उपन्यास लिखबाक हिम्मत देलक।”
हुनक सभ पोथी पढ़बाक अवसर तं नइँ भेटल अछि, मुदा हुनक बाल कथा सँग्रह (चुक्का) आ उपन्यास ‘माटिक सुवास’ पठबाक अवसर भेटल अछि आ ताहि आधार पर ई भरोस जगैत अछि, जे जौं एहने निरंतरता आ अध्ययवसाय बनल रहतनि, तं ओ मैथिली साहित्य लेल एकटा नीक सँभावना बनिकेँ अभरि सकैत छथि।
चुक्कामे बच्चा सभ लेल छोट -छोट कथा अछि, जाहि माध्यमे हुनका सभकेँ सदाचार, नैतिकता, स्वच्छता, स्वास्थ्यकर आहार-व्यवहारक सीख देबाक प्रयास कएल गेल अछि। ‘माटिक सुवास’ उपन्यासक दूरदर्शी गाम काकी जतय रिटायरमेंटक बाद गामेमे रहबाक नेयार करैत छथि, ओतहि गामक वातावरणमे बहुत बदलाव आबि गेल अछि।
सहज आ शुद्ध लोक लेल गाममे रहब आब आसान गप नइँ रहि गेल अछि आ अइ द्वंद्वकेँ उपन्यासमे नीक जकां देखार अ गेल अछि। ‘माटिक सुवास’ बदलैत गामक कथा कहैत अछि आ अइमे नीक आ बेजाय दुनू पक्ष उजागर होइत अछि।
कविता, कथा, उपन्यासक अलावे ओ कहियो काल चरिपतिया, निबंध आ बीहनि कथा सेहो लिखैत छथि।
एम्हर किछु माससँ सोशल मीडियासँ अपनाकेँ सायासँ अलग राखि रहल छथि आ स्वाध्याय आ एकटा नव उपन्यासक तैयारीमे लागल छथि। हुनक स्वयंके कहब छनि, जे नव उपन्यास पूरा तैयारीके बादे आओत, ताकि पहिल उपन्यासमे जे किछु त्रुटि रहि गेल अछि, से दोसर उपन्यासमे नइँ रहए।
आइ-काल्हि नव पीढ़ीक रचनाकारमे अपन त्रुटिके सँज्ञान बिरले होइत छै आ ओहिमे सुधारक चेतना तं लगभग दुर्लभे, तें मुन्नी कामत भरोस जगबैत छथि। पहिने जतय कतहु मैथिली-मिथिलासँ सँबंधित कोनो आयोजन अथवा साहित्यिक कार्यक्रम होइत छल, ओ ओहिमे कमसँ कम एकटा दर्शक आ श्रोताक रूपमे पहुंचबाक कोशिश अवश्य करैत छलीह, मुदा आइ-काल्हि स्वयंकेँ अइ सब आहे-माहेसँ अलग राखि अध्ययन आ सृजनमे लागल छथि। हुनक साहित्य साधना हुनका यशश्वी बनाबनि, इएह कामना अछि।