नेहा झा मणि – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (5)
नइँ पजरती आब कोनो सिया सियल ठोरकेँ उघारि भरल दरबारमे न्याय लेल ठाढ़ रहब हम आजुक सिया...।'

‘बाबा ई नइँ कहैत रहथिन ”जे जतबे टा चद्दरि ततबे पसारी पैर, ओ कहैत छलाह, पसारू पैर जतेक पसारब फाटय दिऔक चद्दरि तखने ने बीनि सकब। अपनइँं हाथे अपन नापक चद्दरि।’
अइ तरहक काव्य पंक्ति भरोस दैत अछि, जे युवा पीढ़ी मैथिली कविताकेँ नव उंचाइ दिस ल’ जयबा लेल तं प्रतिबद्ध छथिहे, मैथिल ललना सेहो साग-पाति खोंटि-खोंटि जीवन बितबै बला अपन पुरान छविकेँ तोड़ि महत्वाकांक्षाका मार्ग पर आगू बढ़ि रहलीह अछि आ जीवन आ साहित्यक नव बाटक सँधान क’ रहल छथि।
नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:के पांचम कड़ी मे हम गप क’ रहल छी युवा कवयित्री नेहा झा मणि के, जे एखन देशक सांस्कृतिक नगरी बनारस मे रहि रहल छथि।
नेहाक वैचारिक नैतिकताके एक पक्ष इहो अछि, जे मात्र अपना लेल नइँ, अपितु दोसरक भरोसकेँ बचबै लेल सेहो व्याकुल छथि। ई पंक्ति देखल जाय- ‘लगा सकितहुँ बेसी नइँ, बस एतबा उपर छलाँग बचा पबितहुँ लतखुर्दनि होएबासँ ककरो भरोसकेँ बचा सकितहुँ ओकर अस्तित्व !’
साढ़े तीन दशकसँ कम उम्रक अइ युवा कवयित्रीक रचनात्मक सक्रियता आ उत्साहकेँ अइ बातसँ अकानल जा सकैत अछि, जे अल्पहि काल मे हुनक दू टा पोथी प्रकाशित भ’ चुकल छनि-अंगना मे आकाश आ बनारस आ हम। जौं हम गलत नइँ छी, तं हिनक एकटा हिंदी कविता सँग्रह सेहो प्रकाशित छनि।
मधुबनी जिलाक मंगरौनीक बेटी आ दरभंगाक मनिकौलीक पुतोहू नेहा झा मणि ऊर्फ नेहा प्रिया सांस्कृतिक नगरी बनारस मे स्वरोजगारक सँग-सँग स्वतंत्र लेखन आ मैथिलीक साहित्यिक गतिविधि मे सँलग्न छथि। हिनक कविता मे भारतीय स्त्रीक दशा-दिशा, सामाजिक-राजनीतिक विद्रूपता आ प्रेमक रंग देखार दैत अछि। नेहाक कविता स्त्री मोनक बेचैनीकेँ शब्द दैत अछि आ कहैत छथि-‘पीड़ाक धधरामे भीतर-भीतर।
नइँ पजरती आब कोनो सिया सियल ठोरकेँ उघारि भरल दरबारमे न्याय लेल ठाढ़ रहब हम आजुक सिया…।’
नेहा झा मणि मूलतः कवयित्री छथि, यदा-कदा लघुकथा , समीक्षा, लेख आदि लिखैत छथि। हुनक दोसर सँग्रह बनारस आ हम हालहिमे प्रकाशित भेल अछि।
बनारसक मादे कवयित्री कहैत छथि..
‘ई आगि, पानि, लौह, पाथरक उत्सवक स्थान अछि अर्थात मृत्युभूमि अछि। काशी अथाह अछि, अनंत अछि।’
प्राचीन वैभव आ वर्तमान द्वंद्वसँ भरल ई सांस्कृतिक नगरी बनारस लगभग हरेक भारतीय भाषाक कविक लेल आकर्षणक केँद्र रहल अछि। गालिब जखन कलकत्ता जाइत छलाह, तं बाट मे बनारस केर वैभव देखि बहुत दिन धरि लेल एतय बिलमि गेल छलाह।
मिथिला सहित आन-आन ठामसँ लोक एतय मोक्षक लिप्सा मे अबैत अछि आ काशी करौट लैत अपन देह त्याग करैत अछि। मुदा मिथिलाक धिया नेहा अइ मृत्युभूमिकेँ अपन कर्मभूमि बनौने छथि आ जीवनक उत्सवक गीत गबैत छथि। अइ सांस्कृतिक शहरसँ नेहाक नेह-छोह एहन अछि, जे एकटा सँपूर्ण कविता सँग्रह अइ शहर पर लिख लेने छथि। तरल सँवेदना, विषयक विविधता आ जीवनक द्वंद्वसँ भरल कविताक सृजन करय बाली नेहा झा मणि मैथिली कविता लेल एकटा सँभावना छथि।
हिनक कवि वैचारिक रूपसँ आर प्रौढ़ हुअय, हिनक काव्य-शिल्प मे आर कसावट आबय आ साहित्य सृजनक प्रति हिनक प्रतिबद्धता बनल रहय, इएह कामना करैत छी।