परमाणु बमके परीक्षण , मानव प्रजातिक भाग्य सदा-सर्वदाक लेल बदलि कए राखि देलक। ओहि परमाणु बम क पिता जे रॉबर्ट ओपेनहाइमर के जानल जाइत छनि।
ओपेनहाइमरके सनातन हिन्दू धर्मक प्रति अगाध श्रद्धा रहनि ओ संस्कृत भाषाक सिखनहिटा नइँ रहथि प्रत्युत संस्कृत भाषापर नीक अधिकार छलनि। भगवान विष्णु हुनक आदर्श आ भगवत गीता परम प्रिय ग्रंथ रहनि। मित्रसभकेँ बीच गीताक प्रति बांटैत रहैत छलाह।
एतबहि नइँ जखन हुनकर पिता हुनकालए जे क्रिसलर ऑटोमोबाइलक गाड़ी देलथिन तँ ओ ओकर नाम भगवान विष्णुक सवारीक नाम पर “गरुड़” रखने रहथि।
लॉस एलामोस नेशनल लेबोरेटरी (LANL) क स्थापना 1943 मे मैनहट्टन प्रोजेक्टक लेल वैज्ञानिक अनुसंधानक उद्देश्यसँ कएल गेल रहए। इएह ओ प्रयास छल जे दुनिञाक पहिल परमाणु अस्त्र विकसित कएने रहए। एतए वैज्ञानिक दलक प्रधान रहथि डायरेक्टर ओपेनहाइमर।
अइ लेबोरेटरीमे मात्र एकगोट वस्तु एहन रहए जे हुनक व्यक्तिगत छल। ऑर्थर विलियम राइडरद्वारा अनुवादित भगवद् गीता ।
16 जुलाई, 1945 क’ दुनियाक पहिल परमाणु परीक्षण कएल गेल।
ट्रिनिटी परीक्षणसँ ठीक पूर्व ओपेनहाइमर मानसिक रूपसँ चञ्चल भऽ उठल रहथि। एहि मानसिक अवस्थामे ओ अमेरिकाक वैज्ञानिक अनुसंधान ओ विकास परिषदक निदेशक वन्नेवर बुशकेँ एक अनुवाद सुनौने रहथि : “युद्धमे, जंगलमे, पहाड़मे चट्टान पर, गहन अन्हरियामे, अतल समुद्रमे, भाला ओ तीरक बीच / नीन्नमे, भ्रम मे, मनुष्यक अपन पहलुका सुकर्महिटा ओकर रक्षा करैत छै।
परिक्षणक पछाडी गुबारक उठैत काल-मेघराशि देखि ओपेनहाइमरक मुहसँ अनायासहि गीताक पाँती निकलि पड़ल रहए…
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान् समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः॥३२॥
अध्याय ११
[श्रीभगवान् बजलाह- हम मनुक्खक विनाश कएनिहार महाकाल छी। अखन हिनकालोकनिक विनष्ट करबा पर प्रवृत्त भेल छी।]
की हमरालोकनिक सत्कर्म हमार अपकर्मक ऋणात्मक प्रभावक क्षतिपूर्ति कऽ सकैछ? एक अत्यंत कठिन प्रश्न छै। ओपेनहाइमरक जीवनमे आगाँ चलि कऽ इएह प्रश्न विकराल रूप धारण कऽ लेने रहय।
किएक तँ ओ अपना जनैत ई काज एक नीक कर्म बुझि सम्पादित कएने रहथि परञ्व जखन ओ एकर प्रभव नागासाकी ओ हिरोशिमा पर देखलनि तँ ओकर भयावह पीड़ा हुनका महानतम क्लेश पहुँचौने रहय जे हुनक ई कर्म वैश्विक स्तर पर विनाशक खतरा उत्पन्न कऽ देलक अछि।
अइ घटनाक पछाति जखन ओपेनहाइमर अक्तूबर 1945मे अमेरिकी राष्ट्रपति
हैरी एस. ट्रूमैनसँ भेट कऽ अपन व्यथा कहलनि
” राष्ट्रपति महोदय, हमरा लगैत अछि हमर हाथ शोणितमे रंगल अछि।”
राष्ट्रपतिक उत्तर रहए ” अहाँ व्यर्थ चिन्ता करै छी । ओ निर्णय हमर छलए तैँ शोणितसँ रंगल अहाँक नइँ हमर हाथ अछि।
- लेखक: राजनाथ मिश्र
– भाषा शैली, I Love Mithila के अनुरूप सम्पादित अछि।