Story

पल्लवी मण्डल जीक दू टा कथा

प्रस्तुत अछि कथा 'अंतर्द्वंद' आ 'अभिलाषा दीदी'

अंतर्द्वंद्व (कथा)

कॉलेजसँ अबैतकाल डाक्टरक क्लिनिक लग ठाढ़ सौम्याकेँ देख, दामिनी पुछलकै – “ठीक छेँ ने सौम्या ?” अपन मुड़ी डोला ‘हँ’ कहैत सौम्या बाजल – “अहाँ अप्पन हाल-चाल कहू।”

दामिनी बजली, “ठीक अछि, कॉलेजसँ वापस आब घर जा रहल छी। ओना, अहाँ कहिया एलौं, जूनमे परीक्षो होयत ने अहॉं के ?”

सौम्या पुन: बहुत कम शब्दमे अपन बात बाजि चुप भऽ गेलीह। सौम्याकेँ चुप देखि दामिनी पुछलकनि – “सब ठीक अछि न’, तैयारी केना चलि रहल अछि ? पता नहि, किए हमरा माथमे एतेक सवाल घुमि रहल अछि।” पूछिए लैत छी जे अहॉं एतेक पैघ परीक्षाक तैयारी क’ रहल छी। किछु मासक पछाइत अहाँक परीक्षा होएत आ अहाँकेँ हम अखन एतहि देखि रहल छी।”

दामिनी दिसि ताकि मुस्कुराइत सौम्या बाजल – ”हम पछिले सप्ताह एलौं हेँ। परीक्षा तँ अछिए। तैयारियो ठिके चलि रहल छल, मुदा कोनो ठीक नहि अछि जे की होएत। हम एतेक अस्वस्थ्य रहि रहल छी जेकर वर्णन नहि कए सकब।”

सौम्याक चेहरा दिस दामिनी एकटक ताकए लगल। सौम्याक मनमे सेहो रंग-बिरंगक बात उठि रहल छल। कतेक बेर जहिना हमसभ किछु अप्पन बात केकरो लग बाजै छी, आ तइसँ जे मन हल्लुक होइए, माने अप्पन मनक बात बाजि देने, सयह सौम्याक मनमे भेलै। सौम्या मने-मन विचारि लेलक जे किए ने अप्पन पूरा बात खोलिकऽ दामिनीकेँ कहि दियई जइसँ अप्पन मन असथिरो भऽ जाएत आ हल्लूको। सौम्या बाजए लगल – “देखियौ दामिनी, हम कहियो नहि चाहैत रही जे यूपीएससी के तैयारी करी आ ओ परीक्षा दी। ओइसँ सम्बन्धित हम किछु सोचितो ने रही। मुदा पिताक अनुसार ‘केकरो सामर्थ्ये ने अछि आ केकरो अछि तँ ओ फुटानीए समय बिता रहल अछि।” बजैत-बजैत एकाएक सौम्या चुप भऽ गेल। दामिनी आगूक बात सुनैले ओहिना एकाग्रत छल। किछुकाल रहि सौम्या पुनः बजलीह, “अपनो किछु एहेन विशेष रुचि छल नहि। चलि गेलौं तैयारी करए लेल। पहिने तँ किछु दिक्कत नहि भेल, माने जहिया तक पटना रहलौं, मुदा दिल्ली गेलाक बाद खासकए लाइब्रेरी ज्वाइन केलाक बाद पीठ आ छाबाक दर्द…!! आब तँ एना लागैए जेना सभ किछु छुटि जाएत आ ई दर्द जिनगी भरि रहि जाएत।” दामिनी जेना सभ बातकेँ बुझि गेल तहिना बिच्चेमे बाजल, “बेसी दिक्कत अछि तँ किए ने पिताजीकेँ कहि दइ छियनि। जखन अहि तरहक गप्प अछि तँ बेसी दिन नुकाइयोकऽ राखब तँ ठीक नहियेँ हएत कि ने।”

सौम्या किछु बाजल नहि, मनमे उठलै – एहेन नै अछि जे हुनका साफ किछु अनुमान नहि छन्हि। ओ तँ नीक जकाँ बुझै छथि हमर स्वास्थ्यकेँ। हम बराबर अस्वस्थ्य रहै छी से ओ नीक जकॉं जनैत त’ छथिए। विभिन्न डाक्टरसँ इलाजक बात सेहो कहिते रहै छथि। मुदा ओइठामक हवा-पानि हमरा शरीरक लेल ठीक नहि अछि, जे डाक्टरो कहैत रहै छथि। मुदा से बात पिताजीकेँ केना कहबनि। जखन कि ओ अपनो ऐ चीजकेँ बुझै छथि, मुदा किछु बाजि नै रहल छथि।

कोनो गपकेँ स्पष्ट रूपसँ स्वीकार करबाक लेल बड्ड पैघ साहस चाही, जे निःसंदेह अखन हमरामे नहि अछि। आओर ईहो तँ अछि जे हम हुनका की कहबनि, जे हमरासँ नहि हएत ई परीक्षा पास कएल। अहॉं छोड़ू अपन आशाकेँ।

दामिनी अप्पन चेहराक आकृतिकेँ ओहिना केने छल जहिना शुरूमे ओ सौम्याक बात सुनलक तखन छल। दामिनीकेँ चुप देखि सौम्या बाजल – ”दामिनी, हम किछु ने बाजि सकै छी। हमर मनक अंतर्द्वंद एहेन दलदलमे पड़िकऽ फंसि गेल अछि, जे ने आगाँ जा रहल छी आ ने पाछा।”

अभिलाषा दीदी (कथा)

गामक लोकक देखा-देखी अभिलाषा दीदीकेँ हमहूँ दीदीए कहै छियनि। ओना ओ हमरा फूआ लगतीह। मुदा सेहो सहोदर तँ नहिए छथि, ने एक टोलमे घर छनि आ ने एक जातिएक छथि। मुदा ई केना कहब जे अभिलाषा दीदी एक जातिक नहि छथि। दीदी एक स्त्री छथि आ अपनो तँ सएह छी। संगे ईहो अवधारणा तँ अछिए जे स्त्रीक कोनो जाति नहि होइए। जँ तइ हिसाबे सोंचब, तखन तँ बाते दोसर दिस चलि जाएत।

समाजो तँ समाजे छी, जखन बेटाक बिआह करबाक रहैए तखन लड़की तँ छोड़ू लड़कीक पिता सेहो इतिहासक पुरातत्ववेता बनि जाइ छथि आ कहबा काल तँ सुनिते छी। भाय, विचार आ व्यवहार दुनू दू चीज छी ने, सबहक बुत्ताक बात नहि छी जे दुनूमे एकरूपता राखिए लेत। एकर माने अहाँ ई नहि बुझि जाइ जे विचार-व्यवहारमे एकरूपता कियो बेक्ती आनिए नहि सकै छथि। एक-पर-एक वीर दुनियाँमे अछि।

देखिते छी जे एकदिसि स्त्रीकेँ देवी रूप मानि पूजा-अर्चनाक भावनामे जोड़ लगा भवलोक ठाढ़ कएल अछि, आ दोसर दिस स्त्रीएक की स्थिति अछि जे प्रतिदिन औसतन 77 टा रेप केस न्यायालयक बोहीमे दर्ज होइत अछि।

अभिलाषा दीदीक विषयमे हमरा हमर सहोदर बहिन किछु-किछु कहने छथि। अभिलाषा दीदी जखन बारहमी क्लासमे 87 प्रतिशत अंकसँ उतीर्ण भेलीह, तहिये ओ सोंचि लेलनि जे हम यू.पी.एस.सी.क परीक्षा देब। मुदा पहिने ग्रेजुएशन तँ कऽ ली। अपन अइ उद्देश्यक चर्च पिताजी लग बी.ए. केलाक बाद करब। कहबनि – ‘पापा, आब हम दिल्लीक मुखर्जी नगरमे रहि परीक्षाक तैयारी करए चाहै छी। ओइठाम सापेक्ष गाइडेंस भेटैए।’

समय सालकेँ देखैत कृष्णदेव काका, अभिलाषा दीदीक बिआहक तैयारी करए लगलनि। अभिलाषा दीदी अपन बात रखैत पिताजीसँ आग्रह केलखिन। मुदा समाजसँ सियासत धरि बहुत रास समस्या अछिए जे कृष्णदेव काका नीक जकाँ जनैबला लोक। मन नहि मानैत रहैन जे तीन साल बाद बेटीक बिआह करी। तथापि, पारिवारिक समस्या नहि देख बेटीक बात मानि चुप भऽ गेलाह।

मास-दू-मास समय आगू बढ़ल। अभिलाषा दीदीक दादीक मन खराब रहए लगलनि। भरि दिनमे कएक बेर मुहसँ निकैल जानि जे अभिलाषाक बिआह करा जमाए बाबूक मुँह देख लितौं।

परिस्थिति बदैल गेल। अभिलाषा दीदीक सस-बस नहि चलि पबनि। माने ई जे दादीक प्रति आदर आ सम्मानक आगू अभिलाषा संघर्ष करए कि नहि करए, ई परिस्थिति बनि गेल। हठात् अभिलाषाक मनमे उठल आखिर अभिलाषा नाओं अछि हमर। की हम अभिलाषाक महत्वकेँ नहि बुझि रहल छी ?

अभिलाषा दीदी चुप रहि गेली। मुदा पिताजीक नजरिमे सकदम जकाँ बुझि पड़ली। कृष्णदेव काकाकेँ नहि रहल गेलनि, पुछलखिन –“बेटी, जीअन-मरण तँ लगले रहैए। अहाँ बाजू की चाहै छी ?”

पुन: अभिलाषा दीदीक मनमे दादीक अभिलाषा नाचि उठलनि। बजली – “पिताजी, अहाँक विवसताकेँ हम बुझि रहल छी। दादीक भावनाकेँ सेहो जगह अनिवार्य अछि। एहेन परिस्थितमे की कएल जाए, हमरा लेल ई एकटा पैघ प्रश्न अछि।”

कृष्णदेव काका अभिलाषाक चेहरा देखैत रहलाह। मुहसँ किछु बाजि नहि रहल छलाह। अभिलाषा दीदी सेहो चुप भऽ गेली। मनमे अनेको रंगक विचार उठए लगलनि। अपन सखी-बहिनपा सभक सपनाकेँ चुर-चुर होइत देखने छली। जे बिआहक पछाइत केना लोक घरक काजमे ओझरा जाइए। मुदा सुशील अभिलाषाक एकटा जुक्ति फुरलनि। ओ ई जे बिआहक पछाइत दुरागमन तीन सालक पछाइत जँ ‘कराओल’ जाए, तँ तइ बीचमे अपन पढ़ाइक जे रूप-रेखा अछि, तेकरा पूरा कएल जा सकैए। मुदा ई बात माय लग बाजब उचित बुझि अभिलाषा दीदी माय लग गेली। माय सभ बात सुनि लेने रहथिन तेँ बुझल रहबे करनि। तथापि, नै बुझल जकाँ बेलीटोलवाली काकी बजली –“मन किए खसल देखै छिऔ अभिलाषा ?”

अभिलाषा जे विचारि कऽ आएल छलीह, तइमे परिवर्तन भऽ गेल छल। अभिलाषा सोंचि लेली, अखन हमरा चुप्पे रहबाक अछि। समय एलापर बाजव नीक होएत। मायक प्रश्नक जवाबमे अभिलाषा बजली – “नहि माँ, मन कहाँ खसल अछि!”

साहित्यकारक परिचय:

बेरमा, भाया– तमुरिया, मधुबनी निवासी पल्लवी मण्डल ([email protected]) श्रीमती पुनम मण्डल आ डा. उमेश मण्डल जीक पुत्री छथि। एम.ए. मे अध्ययनरत पल्लवी जीक लेख ओ साहित्यिक रचनासब हिन्दवी, विदेह, भारती मंडन, लेखनशाला, स्त्री मुक्ति, जीवन दर्शन आदि पत्रिकासबमे तथा सांझा संग्रह सभमे प्रकाशित होइत आबि रहल छनि।

मैथिली तथा हिन्दीमे कलम चलाबि रहल एखन धरि हिनक दू टा कृतिसब प्रकाशित छनि – ‘ढाई आखर प्रेम का’ (हिन्दी कविता संग्रह) 2023 तथा ‘ज़िन्दगी को हमने ज़ूम किया’ (सांझा कविता संग्रह) 2024।

कैलाश कुमार ठाकुर

कैलाश कुमार ठाकुर [Kailash Kumar Thakur] जी आइ लभ मिथिला डट कमके प्रधान सम्पादक छथि। म्यूजिक मैथिली एपके संस्थापक सदस्य सेहो छथि। Kailash Kumar Thakur is Chef Editor of ilovemithila.com email - [email protected], [email protected] +9779827625706

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