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प्लाष्टिक प्रयोग – एकटा हानिकारक आदत

मानू प्लाष्टिकके बोतल वा वस्तुसभमे जते स्वाद आ सन्तोष छै, से दोसर किछुमे नै छै।

जल्दी, सहज आ सुलभताके कारण प्रयोग कएल जाएबला प्लाष्टिक आब खाली एकटा समुदाय वा देश नै, बल्कि सम्पूर्ण विश्व लेल गम्भीर चिन्ताक विषय बनि गेल छै। सचमुच, विश्व आइ प्लाष्टिक विरुद्धके लड़ाइमे समर्पित अछि। प्लाष्टिकक उत्पादन आ उपयोगकेँ कोना समाप्त कएल जाए, ताहिपर वर्षौँसँ अनुसन्धान भ रहल अछि। प्लाष्टिकक विकल्पमे कोन वस्तु उपयोग होए, ताहि विषयपर प्रत्येक वर्ष अध्ययन रिपोर्ट बनाएल जाए छै आ सरकारकेँ सिफारिस सेहो कएल जाइत छै, मुदा प्लाष्टिकक प्रयोगमे उल्लेखनीय कमी भेल नइँ देखाइ छै।

मानव जातिकेँ सहुलियत देबाक उद्देश्यसँ भेल प्लाष्टिकक आविष्कार आइ मथदुख्खीके कारण बनि गेल छै। सायद एतेक हानिकारक बनत, से कियो सोचने नइँ होएत। स्पष्ट छै, ई आविष्कार केवल मानव नै, बल्कि जीवजन्तु, वनस्पति आ सम्पूर्ण पर्यावरणकेँ संकटमे क देलक अछि। प्लाष्टिक उत्पादन कएनिहार कम्पनीसभपर कड़ा निगरानी नइँ भेलासँ ई हानिकारक वस्तुक उत्पादन नइँ रुकल, बजार नियन्त्रण भ नइँ सकल, आ उपभोक्ताक व्यवहार सेहो बदलब नइँ सकल। परिणामस्वरूप, प्लाष्टिकक प्रयोग एकटा लत बनि गेल।

प्लाष्टिकक उपयोगक सुविधा जतेक छै, ओतबे एकरासँ उत्पन्न जोखिम बुझबाक लेल वैज्ञानिक प्रतिवेदन पढ़़बाक आवश्यकता नइँ अछि। अपनासभक दैनिक जीवन आ व्यवहारसँ ई स्पष्ट देखल जा सकैत अछि। बजार जाइत काल झोराके आदत छूइट गेल छै। व्यापारी मुफ्तमे प्लाष्टिकक झोरा दैत छै, जे सर्वत्र व्याप्त भ गेल छै। समुद्री जीवजन्तु ओही प्लाष्टिकके जालीमे फँइसके मरि जाए छै, खेत जोतै काल हरमे प्लाष्टिक अड़ैक जाए छै।

गामघरमे पोसल गाईभैंसीसँ दूध-दही खेनाए छोड़ि क बजारसँ किनल कोकोकोला पीनाइ आधुनिकताक रूपमे देखल जा रहल छै। दही, मही, घ्यू जेहेन परम्परागत पोषक पदार्थ छोइड़ क आब प्लाष्टिकक बोतलमे भरल कोक, फ्यान्टा आ ड्यूकेँसभके अपनाबै लागल अछि।

प्लाष्टिक केवल पर्यावरणपर प्रभाव नइँ क रहल छै, बल्कि समाजक सांस्कृतिक व्यवहार आ स्वास्थ्यपर सेहो गम्भीर असर क रहल अछि। एकर सस्ता आ सहज उपलब्धता, उपभोक्ताक उदासीनता आ सरकारी निकायसभक ढिलासुस्ती एकर खतराकेँ दिन-प्रतिदिन गहिर बना रहल अछि। एनामे, आब समय आबि गेल अछि जे हमसभ मिल क प्लाष्टिकक प्रयोगपर नियन्त्रण करी आ स्वच्छ, टिकाऊ विकल्प अपनाबी। नइँ तँ ई लत अगिला पीढ़ीक लेल गहिर संकट बनि सकैत अछि।

प्लाष्टिक प्रदूषण रोकबाक बहस जते गहिर भ रहल छै, ओहिसँ विपरीत स्थिति ई छै जे विशाल हल, महल आ होटलसभमे आयोजन होएबला कार्यक्रमसभमे बहसके बीचोबीच सेहो प्लाष्टिक बोतलमे पानि परसल जाए छै – आ एकरा पियैमे नीति निर्माता, सरोकारवाला आ भाषण देनिहार व्यक्तिकेँ कोनो लाज नइँ होइत छै। प्लाष्टिकके लत एतेक गहिरे बइस गेल छै जे हम बुझैत छी – मानू प्लाष्टिकके बोतल वा वस्तुसभमे जते स्वाद आ सन्तोष छै, से दोसर किछुमे नै छै।

ई खतरनाक लत केवल दैनिक जीवनधरि सीमित नइँ अछि। दशमी, दिपावली, छैठ जेहन महत्त्वपूर्ण पावनिसभमे सेहो प्लाष्टिकसँ बनल फूल आ सजावट सामग्री प्रचूर मात्रामे प्रयोग होइ छै। एहन वस्तु विदेशसँ आयात क आनल जाइत छै। प्लाष्टिक आब कृत्रिम आ रंगीचंगी दुनियाँक प्रभावशाली हतियार बनि गेल अछि। मंचपर प्लाष्टिकक फूलसँ सजावट होइ छै, मुदा कोनो अतिथि वा वक्ता एकर उपयोगपर प्रश्नधरि नइँ उठबैत छथि।
प्लाष्टिकक प्रभाव केवल पर्यावरणपर नै, आर्थिक रचनापर सेहो भयावह असर क रहल अछि। जते प्लाष्टिकके बोरा बढ़ल, ओतबे जुटके बोरा लोप भ गेल। मात्रे बोरा आ डोरी नै, जुट उद्योग सेहो समाप्त भ गेल। पटुवाके खेती बन्द भेल, खेती बन्द भेलाक कारण जुट बनैबला पोखैरी नष्ट भेल। पोखरी समाप्त भेलाक कारण जलचर आ पक्षी संकटमे पड़ल। खास क पुरा मधेश क्षेत्रमे ई पोखैरके नाशसँ भेलासँ पाइनके स्रोतधरि सूइख गेल।

जल संकटक बहुत कारण भ सकैत अछि, मुदा जुटसँ सम्बन्धित ई परिवर्तन बहुपक्षीय असर करैत अछि – जाहिमे बृहत्तर अध्ययन जरुरी छै।

शिक्षालयमे शिक्षकसभ बच्चासभकेँ वातावरणक महत्त्व सिखबैत छै, मुदा ओहिना पुस्तकक प्लाष्टिक गाता आ प्लाष्टिक बोतलक उपयोगपर मुँह बन्द रहैत अछि। पर्यावरण दिवसपर रैली करब, नारा लगाब – ई मात्र परम्परा मात्रे बनि चुकल अछि।
सभ्यत मानल जाएबला शहरके नदीसभके बदहाल स्थिति केवल शहरीकरणके परिणाम तँ छियै, मुदा एकर जैड़मे प्लाष्टिक सेहो अछि। सिंहदरबार आ संघीय संसद जते नजदीक बागमती नदीक छवि अछि, से दुखद छी। हिन्दू आस्थाक केन्द्र पशुपतिनाथ नजदीक रहितो बागमतीक स्थिति भयावह छै। राजधानीक अन्य नदीसभ सेहो प्लाष्टिकके ढेरीमे दबा क मृतप्राय भ गेल अछि। स्वयं सेवकसभके सफाई अभियान एकटा आशाके संकेत छै। आब तँ प्रकृतिक अधिकारके सेहो चर्चा होइत अछि। तँ की एहन नदीसभकेँ स्वच्छता आ अस्तित्वमे जीबाक अधिकार नइँ भेटबाक चाही?

शहरके नदी – नेपाल लेल सौभाग्य अछि। तखन, हमसभ किए ओही नदीक अस्तित्व मारि देबाक लेल अग्रसर छी? ई गहिर विरोधाभास हटाएब आब आवश्यक अछि।
नीति, कानून, न्यायालयक आदेश, संविधानक मौलिक हक, अन्तर्राष्ट्रीय मञ्चपर भाषण – सब किछु अछि। वातावरण मन्त्रालय सक्रिय अछि, प्लाष्टिक रोकबा लेल निर्देशन समय-समयपर आबैत अछि। दीर्घकालिन विकास लक्ष्यसभ मानव, समृद्धि आ सहकार्यपर विशेष धीयान दैत अछि। तखन फेर प्लाष्टिक प्रयोग किए नइँ घटैत छै? उत्तर स्पष्ट अछि – व्यवहार, प्रवृत्ति आ नीति बीचक गहिर विरोधाभास।

प्लाष्टिक उपयोग स्वास्थ्यकेँ हानी पहुँचाबै छै, माइटके उपजाउपन घटबैत अछि, कृषि प्रणाली ध्वस्त करैत अछि, परम्परागत आचरण नष्ट करैत अछि, जीवजन्तु आ जलचरकेँ संकटमे करैत अछि – एखन अइ तथ्यकेँ कोनो विशेष निर्देशन देब आवश्यक नै छै। कारण, अइ समस्त असरकेँ आम जनता सबदिन भ रहल अछि। ताहि हेतु, आब हरेक उपभोक्ता स्वयं अपन व्यवहारमे सुधार आनव आवश्यक अछि – इएह एक मात्र उपाय अछि।

सरकार नियमनकारी निकाय छियै, आओर ओकर मुख्य भूमिका नीति बनौनाए मात्रे नै, ओहि नीति–निर्णयकेँ व्यवहारमे लागू करब सेहो अछि। अदालतक आदेशक पालना हो, वा प्लाष्टिक जकाँ विनाशकारी वस्तुक नियन्त्रण – की अड़चन छै? की व्यक्ति, संस्था, वा नियम? जाहिसँ विरोधाभास बनल रहि जाए छै? एहन बाधासभके यथार्थ मूल्याङ्कन क कड़ाईसँ कारबाही होबाक चाही।

एहन मुद्दापर संसदक भूमिका आओर महत्वपूर्ण अछि। संसद केवल कानुन बनवैबला निकाय नइँ छियै, ओ जनताके प्रतिनिधित्व करैत छै, सरकारक निगरानी करैत छै आ जनसवालके मुद्दापर आवाज उठबैत अछि। प्लाष्टिक प्रदूषणके विषय ओहने अछि जाहिमे संसद सरकारकेँ समय-समयपर सचेत करब आवश्यक अछि, आ जनताकेँ सूचना द, सहभागितासँ समाधान खोजब सेहो जरूरी छै।

एहि वर्षक वातावरण दिवसक नारा – “प्लाष्टिक प्रदूषण निर्मूल करी।” ई केवल एक दिनका नारा मात्र नइँ होएबाक चाही। ५ जुनके कार्यक्रम जहिया मंच, भाषण आ पोस्टर देखाइत छै, तरब बाद बचलखुचल ३६४ दिनके सेहो व्यवहारमे धीयान देनाइ जरूरी छै।

जँ हम एक-दोसरकेँ स्वच्छ वातावरणक पाठ पढ़़ाबैत, सङे अपन व्यवहारमे सुधार करैत, एक-दोसरक कमीकेँ चिन्हैत आ स्वीकारैत सुधारकेँ किरिया खाइ, तखने प्लाष्टिक विरुद्धके लड़ाइमे दीर्घकालीन सफलता सम्भव छै।
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लेखक:

नारायण प्रसाद घिमिरे

लेखक राष्ट्रिय समाचार समितिके अंग्रेजी भाषा सम्पादक छथि। वातावरणीय तथा जलवायूके प्रभावके विषयमे सजगताक लेल लिखैत रहै छैथ।

स्रोत: मैथिली सेवा रासस

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