
अन्तर्राष्ट्रिय मातृभाषा दिवस २०२३ पर ‘मैथिली’ काव्य धार ( International Mother Language Day Poem)
● अमरनाथ झा : मातृभाषा दिवस
लगै सोहाउन रसनचौकी
दूरहिं स’, ढोल आ ताशा
स’भ तरफ सँ मिठगर लागै
अपन अपन मायके भाषा ।
भने लिखा जाउ दोसरो भाषा
होइछ कल्पना माइएक भाषा
पढ़ि लेल जाय अनेक शास्त्र पर
अर्थ बुझादै माइएक भाषा ।
अपन मातृभाषा के सदिखन
बाँचल रहै आदर सम्मान
गर्वोन्नत सिर रहतै सभदिन
रखने निज भाषाके मान ।
मायक भाषा,अप्पन भाषा
हार रत्न सम गैंथिली
बाहर हिंदी-अंगरेजी,वा जे
घरमे बजियौ मैथिली ।
मातु मैथिली भाषा प्रचलन
घर-बाहर मे हो व्यवहार
अपन घ’र मे इज्जति पओती
तखने इज्जति भरि संसार ।
आइ विश्वमातृभाषा-दिवस
पर,सभकेँ अछि शुभकाम
अपन-अपन मातृभाषाके मनमे
रखने रही सदति सम्मान ।
International Mother Language Day
● अमरेन्द्र यादव : माए, मैथिली आ हम
माए मैथिलीक माएक नाम छियै
माए मैथिलीक शब्दकोशक नाम छियै
माए अपन स्तन पियाक’
जिया रहल है मैथिलीकेँ
माए आ मैथिलीक बीच
घनात्मक सम्बन्ध छै
जाधरि माए जीवैत रहतै
ताधरि मैथिली अमर रहतै।
मैथिली माएक दुलारू सन्तानक नाम छियै
मैथिली माएक रोगग्रस्त सन्तानक नाम छियै
मैथिली माएक कन्नारोहटिक नाम छियै
माएकेँ मार’ खातिर
माहुरक जरूरत नइ
मैथिलीकेँ मारि दियौ
माए अपने मरि जेतै।
तोरा लाज होइत हेतौ माए
हमरा अपन बेटा कहैत
तोरा खातिर
तोहर मैथिली खातिर
हम जे नइ लड़लियौ
एकटा झगड़ोटा नइ बेसाहलियौ
से हम तोहर बेटा नइ छियौ
हम तोहर सपूत नइ छियौ
देश छिनेलै, भेषो छिनेलै
हम तोहर कायर बेटा
टुकुर-टुकुर ताकैत रहि गेलियौ
हम तोहर पाखण्डी बेटा
चुपचाप तमाशा देखैत रहि गेलियौ
आब मैथिली छिना रहल छै
आ हम तोहर तथाकथित सन्तानी बेटा
मूकदर्शक बनल छियौ
हम मैथिलीक हत्या
क’ रहल छियौ माए
मैथिलीक हत्या मतलब
तोहर हत्या छियौ माए
मैथिलीक हत्याक मतलब
हमर आत्महत्या छियौ माए ।
● अयोध्यानाथ चौधरी : मातृभाषा मैथिली
विद्यापतिक मातृभाषा
भारती-मंडनक भाषा
लखिमा रानीक भाषा
विद्वान विदुषीक भाषा
सर्बसाधारणक भाषा
पूर्ण जाग्रत भेल आशा।
<span;>***
आहाँ भागमन्त छी
आहाँ जीबन्त छी
प्राती आ सांझ मे
सोहर-समदाउन मे
उदासी-वटगवनी मे
फागु आ नचारी मे
बच्चा क बोल मे
ललना क ठोर मे
बुढ क जवान मे
प्रणाम मे, सलाम मे
जेना मोन बाजिली
मातृभाषा मैथिली ।
<span;>***
मिथिला मे रह’ बला
सब बजैछी मैथिली
पाण्डित्यपूर्ण वा ठेठी
सबटा छैक मैथिली
सब छी अपने खास
केओ नहि आन छी
जन्मे आ संस्कार सँ
सब केओ महान् छी
मिथिला क काननमे
सब केओ पुष्प छी
गौर,श्याम बा कारी
कतौ एके रंग छी
<span;>***
बिभेद सब बिसरिकय
मुक्तिगीत गाबि ली
सबकेओ नियारि ली
अभियान साधि ली
मोन मे अराधि ली
जय दुर्गा,जय काली
सस्वर शपथ खा’ ली
मैथिली, माँ मैथिली
मातृभाषा मैथिली ।
● अर्जुन प्रसाद गुप्ता ‘दर्दिला’ : चलू जगाब’
सुतलाहाके चलु जगाबऽ,
बिगरल मिथिला चलू बनाबऽ ।
<span;>———–
बनल फूलवारी देखियौ उजडि गेल,
जतह उगै चाँद ओतहे अन्हार भेल,
दासक लति लतरि गेल चलु उजाडऽ ।
<span;>————
दाेसर भाषा ठोरपर आबि गेल,
अपन भाषा घरसँ निकलि गेल,
इहे हमरा दास बनाओत चलु भगाबऽ ।
<span;>———–
माइ हमर गिराबै नयनसँ नाेर,
कानैत कानैत भऽ गेल कतेक भाेर,
धरति पुकारै चलु मिथिला बनाबऽ ।
<span;>———-
सुतलाहाके चलु जगाबऽ,
बिगरल मिथिला चलू बनाबऽ ।
● अशरफ राईन : गजल
हर एक मैथिल केर मुह पर मैथिली केर स्वाद रहे
अपन मायक बोल मैथिली सदति जिन्दाबाद रहे
मायक बोल सँन अनमोल भाषा कोनो नै जग में
सम्मान पहिले मातृभाषा के दोसर भाषा बाद रहे
हम भले पिछड़ल वर्ग रही ताहि सँ हमरा गम नै
हम भले बर्बाद रही बस हमर मैथिली आबाद रहे
बिनती एतबे अछि कतौ रहु बिसरू नै अपन भाषा
<span;>’अशरफ’ हृदयमे सदति मिथिला – मैथिली याद रहे
● कालिकान्त झा ‘तृषित’ : पावन मिथिला घाम
युग युगादि सँ तीन भुवन मे,
पावन मिथिला धाम रे।
माटि जतऽ के सर्वश्रेष्ठ से,
जनकलली के गाम रे।।
आदि शक्ति अवतरण हेतुए,
अही भूमि के जखनहि चुनलनि।
सुर नर मुनि गन्धर्व सुधि जन,
एकर महत्ता सब जन बुझलनि।।
सकल तीर्थ सब सेहो बैसल,
आबि जनकपुर धाम रे
युग युगादि सँ……………..
मिथिक नाम सँ चर्चित मिथिला,
अन्न जलक भंडार कहाबए।
पान मखान एतऽ अति उत्तम,
स्वर्गहु के जे मन ललचाबए।।
सुग्गा जेहि ठाँ वेद पढै छल,
घर घर गुँजित ज्ञान रे।
युग युगादि सँ………………
भक्ति गीत के सम्मोहन मे,
आबि सदेह नाथ त्रिपुरारी।
विद्यापति घर उगना अनुचर,
बनला स्वयं बघम्बरधारी।।
एहि अनुपम संयोगक साक्षी,
बिस्फी तीर्थ समान रे।
युग युगादि सँ………….
सभक मातृभाषा सर्बोपरि,
जगत विदित नहि एहि मे शंका।
जे जगदम्बे नामक भाषा,
तैं तकरे छै बाजल डंका।।
धन्य मैथिली मिथिला महिमा,
शत शत तृषित” प्रणाम रे।
युग युगादि सँ तीन भुवन मे,
पावन मिथिला धाम रे।
● काशिकान्त झा : भाषा आ भेष
देशला लरई छी परदेशला लरई छी
हम अपन भाषा आ भेषला लरई छी
बिसरब कोनाक विदेहक ई गाम
माटिसँ उबजल अई मिथिलाके नाम
मैथिलीके घर घर संदेशला लरई छी
हम अपन===============
पहिने छी मैथिल त देशक सन्तान
सीता सन बहिन अई तकर गुमान
विद्यापतिके अवशेषला लरई छी
हम अपन===============
कोशी आ कमला अई हमरे बलान
ई सउसे परदेश अई हमरे दलान
बन्ठा आ लोरिक सलहेसला लरई छी
हम अपन==============
अनदेखी कयने अई बुझइय आन
हमरा नई खोज खबर भेलउ बिरान
हम मिथिलापति मिथिलेशला लरई छी
हम अपन================
● किसलय कृष्ण : हे गिद्धराज लोकनि…
कांट-कुश सँ आच्छादित बाट पर
अनवरत चलैत
स्वाभाविके अछि टीस
आ से कने आह की निकलल
अहाँ सभक अंतस करय लागल वाह-वाह…
हमरा बुझल अछि जे
एहि बाट पर चलैत कांट सँ
कतबो-कतबो शोणितेशोणिताम भ’ जाय
हमर पएर आकि देह…
अहाँ नै करय आयब कोनो मरहम-पट्टी…
किएक तँ अहाँक गिद्धदृष्टि
टिकल अछि हमर अस्थि-मज्जा-मासु पर…
सोशलमीडियाइ संसार मे सदिखन
श्रद्धांजलि देबाक लेल उताहुल
हे हमर लेखक-चिन्तक समाज…
अहाँ प्रसन्न नहि होउ हमर टीस आ वेदना सँ
एखन हमर शोणित अपन लय मे
प्रवाहित अछि आ सुषुम सेहो…
आ तेँ हम कांट भरल बाटे नहि
लहकैत कोयला बिछाओल डगर पर सेहो
अनवरत चलैत रहब…
मातृभाषा लेल बरू गलैत रहब…
● गजेन्द्र गजुर : ओ भाषा कोना बिसरि सकबै?
सिखलहुँ जे माएक कोखिसँ जन्मैत
नानी-दादीके खिस्सा पिहानी सुनैत
अङना-घर-ओसरामे गुड़कुनिया दैत
दिदीसङ्गे नचैत-गबैत,साथीसङ्गे खेलैत-धूपैत।
ओ भाषा कोना बिसरि सकबै?
माएक दूध पिबैत, सिखने छी जइ भाषाकेँ
दादाक पराती गबैत, सिखने छी जइ भाषाकेँ
बाबूक घुघुआ खेलैत, सिखने छी जइ भाषाकेँ
चकलेट-ललीपप चटैत, सिखने छी जइ भाषाकेँ
ओ भाषा कोना हम छोड़ि देबै?
ई मेघमे बादल कत’ जाइ छै माए?
सरुज अइ कोनसँ किए उगै छै दिदी?
दादी किए आँखि मुनि लेलकै बाबू?
लोक मरलाक बाद कत’ जाइ छै कका ?
सवालपर सवाल कर’ सिखलहुँ जइ भाषामे
ओ भाषा कोना बिसैर सकबै?
आब माएके कोरा छूटि गेलै,आशे जिबै छी खालि
हिन्दी, अङरेजी आ नेपालीएकेँ रटै छी खालि
दिनभरि आन भाषामे अपनाकेँ बेचै छी खालि
कुसियारक खेत परती छोड़ि, चिन्नीलए दोगै छी खालि
अपन पहिचान, आत्मसम्मान कत’ हरा गेल?
हम अपने भाषाकेँ कोना मारि सकबै?
हम अपने माएकेँ कोना मारि सकबै?
कहू, ओ भाषा कोना बिसैर सकबै?
<span;>- गजेन्द्र गजुर
● ज्योती शर्मा : मिथिला वर्णन
प्रवासीक जिनगी में, एक बेर जायत रहि जखन हम गाम !
बाटे में दर्शन भेल हमरा, कमला कोसी जीबछ आओर बलान !!
स्नान, ध्यान, मुड़न होयत देखि, रुकलहुं ओहि ठाम !
आगां बढ़ै सँ पहिने मातृभूमि मिथिला के केलहुं प्रणाम !
देखलहुं गाछ वृक्ष पर बैसल सुगा मैना अा चिडै चुन्मुन्नी !
देखलहुं पानि में इचना पोठी रहु आओर गरचून्नी !!
गहबर में देखलहुं डिहबार दिना भद्री आओर सलहेस !
एहि लोक देवताक दर्शन सँ भागि जाय सबटा क्लेश !!
भिनुसर उठिक चुरा दही चिन्नी पर कचका मिरचाय !
त्रिलोकक आनंद छै एहि में आओर कतय भेटत यौ भाई !!
दुपहरिया में भात दालि तरकारी संग तिलकोरक तरूआ !
रंग बिरंगक व्यंजन भेटत ताहि पर करैला क भरुआ !!
माछ भात के पश्चात स्वदगर लागै तिरहुतिया पान !
मखानक लावा बड्ड नीक लागै एयाह छै मिथिलाक पहचान !!
खुब सुंदर लागै एतुका चऽर चांचड़ अा खेत खरिहान !
एक बेर घुमि आउ अहूं सब एहि सँ बेसी हम की देब प्रमाण !!
● जीतेन्द्र जितू : वाह रे वालपन
अपन गाम…
गामक डगर…
गल्ली कुच्ची…
प्रिय मित्र मण्डली…
फैलगर हाफ पेन्ट….
नमरल गंजी….
लताम, आम आ ततरिके गाछ..
झटहा, ढेपा, गाछी बलाक गाईर…
हाथमे बोरा, कांखमे किताब..
मास्टरक फटकार, करमिक सोटा..
बरदक आ बकरीक चरवाही…
गुली, क्रिकेट आ पिल्लो डण्टा…
तास आ गेनीके व्यस्तता…
सांझक उपराग, घरक फटकार..
लालटेन, डिबिया ल’ बाबा लग टिसन.
रातिक खिस्सा…
सिरक क,झगडा…
बाबा बिस्कुट, सन्तोलावला लमनचूस
ठकायके चटपटी, भौसीक झिलिया
नहि कुनु चिन्ता नहि तनाव
स्वतंत्र आ उन्मुक्त जिवन
वाह रे वालपन……..
वाह रे वालपन…….
वाह रे वालपन……
● देवेन्द्र मिश्र : ई सभक मैथिली
जे जहिना बाजए ।
सएह छियै मैथिली ।।
जे अहाँ बजैछी, सएह छियै मैथिली ।।
ई हमर मैथिली,ई अहाँक मैथिली ।।१।।
एक्के जातिक छिए ने किनल,
दछिनाहा ने पूबारि छियै ई ।
नइ काेशिकन्हा,ने दडिभङ्गिया
पछिमाहा ने उतरबारि छियै ई ।।
काेइर,कमार,चमार,दुसाधाे,
मुसहर,तेली अा हलुवाइ ।
बाभन,कैथ अा यादव,धानुख,
राजपूत,बनियाँ,गनगाइ ।।
क्याैट अा कुर्मी, माली,हलखाेर
डाेम, वैश्य , कुज्जर,कलवार ।
सुँडी, थारु, बाँतर, खतबे,
राजधाेब अा भाउर,साेनार ।।
अाअाेराे विविध जाति अा वर्गक
बाेली अप्पन अलग-अलग ।
तीन काेसपर बाेली बदलै,
भाषा नइ अछि विलग-विलग ।।
ठेठी अा देहाती कहियाै
मैथिलीक बहु डारि छियै ई ।।
विविधताकेर स्वर्ग मैथिली
फूल नइ फुलवाडि छियै ई ।।
जे-जहिना बाजी
सएह छियै मैथिली ।
ई हमर मैथिली । ई अहाँक मैथिली ।।
ई सभक मैथिली ।। ई सभक मैथिली ।।
● धीरेन्द्र प्रेमर्षि : प्रेमक सीमा
चहचहाइत चिड़इ-चुनमुन्नी
हमरा बड्ड नीक लगैत अछि
तेँ हम बाजोसँ प्रेम करैत छी
मुदा पड़बा हमरा सभसँ प्रिय अछि
ताहीसँ अपना आकाशमे हम
बाजक विचरणपर प्रतिबन्ध लगबैत छी
हँ, मैथिली हमर पड़बा अछि।
● पूनम झा मैथिली : मैथिली
आन मैथिली सान मैथिली
हम्मर आहाँक अभिमान मैथिली
आदिकाल सँ पसरल चतरल
आई किया गुमनाम मैथिली ।
भूरुकवाक ललाम मैथिली
पुर्णिमा केर चान मैथिली
ऋतु वसंत के पांज हपाेसने
मास अगहनक धान मैथिली ।
सिया धिया के वाण मैथिली
धनुर्धर में श्रीराम मैथिली
माेहन मुरलीक तान मैथिली
सब केआे करु गुणगान मैथिली ।
अद्भुत अनुपम ज्ञान मैथिली
वेद ऋचा शास्त्र पुराण मैथिली
अपना के अप्पन जँ बुझब
लहलहयत सब ठाम मैथिली ।
काेशी कमला बलान मैथिली
मंडन जनकक दलान मैथिली
पान मखान स्वर्गाे नय भेटय
सब मैथिलक गुमान मैथिली ।
● मनोरञ्जन झा : मैथिली
मैथिलीकेँ नइँ बान्हियौ,
आशा, उषा आ निशाक दुपट्टामे
एकरा जाए दिऔ घसछिलनीक छिट्टामे
आ भिखमंगनीक बट्टामे
नइँ ! जँ एना कंठ मोकिक’ राखबै
मैथिलीकेँ झा जीकेर पानपर
मिसर जीक दलानपर
पाठक जीक मचानपर
आ चौधरी जीक खरिहानपर
तँ छिछियाक’ मैथिली
पड़ेतीह लहठा बथानपर
बगलेमे बहैत छथिन कोसी
ओहिमे फांगिक’ आत्महत्या क’ लेतीह !
तेँ कहैत छी जे
मैथिलीकेँ जाए दिऔ
लोहारक भट्ठी आ पासवान जीक मचानपर
कामत जीक ओसरा आ महतो जीक मचानपर
मौलवी साहेबक टोपी आ यादव जीक बथानपर
सीतामढ़ीक आंगन आ कटिहारक दलानपर
भाषाक पानि जखन जड़िमे ढरेतै !
तखन मैथिलीक झण्डा अकासमे फहरेतै !
● मैथिल प्रशान्त : मातृभाषा
हम कविता लिखैत छी
अपन मातृभाषामे
नहि जानि पबैत छी
के पढ़ैत अछि हमर कविता
जे लिखने छी हम अपन मातृभाषामे
हम कविता लिखैत छी
मातरे अपन मातृभाषामे
हम जनैत छी,
आओर कतोक भाषा
हम बजैत छी,
आओर कतोक भाषा
मुदा
मुदा हम कविता लिखैत छी
मातरे अपन मातृभाषामे
हमर भाव
हमर संवेदना
मातरे बेकछाइत अछि अपन मातृभाषामे
हम भावक अनुवाद
नहि करय चाहैत छी मौलिकताक नाओंपर
कोनो आर भाषामे
अनुवाद एकटा स्वतंत्र विधा अछि
हमरा अनुवाद नहि करय अबैत अछि
तेँ हम लिखैत छी मातरे अपन मातृभाषामे
हमर मौलिक विस्तार ओतहि समाप्त भ’ जाइत अछि
जतयसँ आरंभ होइत अछि
ककरो आरक मातृभाषा
आ आरंभ होयबाक संभावना बनैत अछि
हमर कविताक अनुवाद करबाक
विश्वक बहुत रास मातृभाषा समाप्त भ’ जैत ”
लिखैत अछि अखबार
वैश्विक सामंतवादक चाँगुर
नछोरि रहल अछि हमरो मातृभाषाकेँ
की हमरो मातृभाषा भ’ जैत समाप्त
पेटक हवन कुँडमे पहिल आहुति
की मातृभाषाकेँ देल जैत
हम चिंतित छी
हमर मातृभाषाक संगहि समाप्त भ’ जैत हमर कविता
कारण हम कविता लिखैत छी
मातरे अपन मातृभाषामै ।
● नारायण मधुशाला : अपन भाषामे पढ़ि नै सकलौँ
अपन भाषामे पढि नइ सकलौँ ।
आइधरि किछ गढि नइ सकलौँ ।।
दोसरक भाषामे पढैत-पढैत जीवन बिति गेल ।
साल भरिक अर्जल ज्ञान काज नइ एल ।।
साधारण कौआके जखन हम crow रटितौँ ।
अहिँ कहुँ परिक्षामे कते अंक अरैज सकितौँ ।।
अंक अबै छल परिक्षामे साले-साल शुन्ना ।
बाबुजीक तामस बढि जाइ छल दू-गुन्ना ।।
भषेक कारण अबै छल ई स्थिती हमरा लेल ।
खुशीक बातो तऽ नइ रहै छल भेलापऽ फेल ।।
बुझैयोबाला चिज सबके चाटै परैत छल ।
सायद तैँ नइ दिमागमे किछ अरैत छल ।।
भूतमे जरि भेल अबल, एखन धरि सतेलक ।
हमहुँ आगा बढि सकितौँ, भाषा पाँछा केलक ।।
सबटा लक्ष्य हमर जरि-जरिकऽ छउर भेल ।
जीवनमे सफलताक सङ्ग भऽ नइ पाएल मेल ।।
● रमेश रञ्जन : रञ्जु
जे इस्पातक
घोघकेँ उनट’बैत अछि
समुद्री विशालता लेने
दुआरिकेँ नङ्घैत अछि
गामक चिल्होरि
काग आ कुकुरकेँ
हरक’बैत अछि
शहरक खुँखार भेड़िया
आ बाघसँ लड़ैत अछि
जे सौन्दर्यकें
निर्निमेष निहारैत अछि
कलाकेँ
भक्ति आ साधना मानैत अछि
श्वासक हरेक उच्छवासमे
सृजन आ प्रदर्शनक
लय-गति छै
जकर रोम-रोम
नव विन्यासक संग
कलारूप गढ़ै छै
जे धरती छै
अंकुरण
पोषण
सृजन
कोमल
सरस
सम्वेदना
आ करूणाक
निर्भर धारा
निष्ठा
समर्पण
आ प्रतिबद्धता
प्रतिबद्धता
अपन मातृभाषा
मातृसंस्कृति
मातृभूमि
आ परिचयक
ओ विध्वंशक
सुनामीकेँ कोना सहि सकैत छल
कोमल
सरस
सम्वेदना
आ करुणाक अथाह सागर
रज्जु ।
मिथिला राज्य स्थापनाक आन्दोलनमे शहीद भेल प्रसिद्ध रङ्गकर्मी रज्जु झा प्रति)
● राजेन्द्र विमल : गजल
स्याहीमे नइँ सोनितमे कलम बोरि रहल छी
नस नसमे नया नश्लकेर, किछु घोरि रहल छी
रानी छलै जे माय भिखारिन बना देलक,
ओकरहिलए कब्र कलमसँ, हम कोरि रहल छी
दिन राति पिजा रहल छी हम, शब्दकेर तरुआरि,
जे खेत बिढा गेल, से फेर जोड़ि रहल छी
बाबाक छलनि स्वप्न, तकर घेँट ओ रेतलक,
ओहि स्वप्नसभक लाश हम, हँथोडि रहल छी।
सप्पत कहै छी बाबा, साराकेँ छूबि क’,
छोड़बै ने एको बीत, तेँ सङोरि रहल छी
मैथिली कविता: हम युद्ध नइँ जित सकल छी
● रामनरेश शर्मा : माएसँ प्रेम
दूधक कर्ज कहूं सधलैयए, कि माएक स्नेह कतओ बंटलैए !
हम अहाँ त मनुक्ख छी, चिड़ै चुन्नमुन्नि सेहो माएक भाषा बजैए !!
ई अजगुत मिथिले में देखल, लोक कें माए सँ प्रेम आ मातृभाषा सँ द्रोह भेलैए….
भाई बन्धु सँ आन भाषा बाजब, ई अन्याय कतओ भेलैए !
जाहि प्रेम के अधिकारिणी मैथिली, ओ प्रेम दोसर के भेटलैए !!
ई अजगुत मिथिले में देखल….
आन प्रदेश में माए प्रथम, आओर मातृभाषा प्रथम भेलैए !
मैथिलीक चिंते नहि, मुदा हिन्दी लेए सब कटमारि करैए !!
ई अजगुत मिथिले में देखल…..
मैथिली के छाती पर हिन्दी भोजपुरी खूब तांडव नांच करैए !
ई देखिकऽ सब मिथिलावासी जोर जोर सँ ताली बजबैए !!
ई अजगुत मिथिले में देखल, लोक कें माए सँ प्रेम आ मातृभाषा सँ द्रोह भेलैए….
● रुपा धीरु : कदमक गाछ आ दादी
हे हमर दादी
बड़ सख स’ रोपने रहै
पोखरिक पुबरिया महारपर
ओ कदमक गाछ
आ हमरा दादीके बड़
सेहन्ता रहै
जेठक दुपहरियामे जुड़ेबाक
अपना तुरियाक सँग
आ फदका करबाक
कदमक शीतल छाहरिमे
मुदा जहिया एलै जुड़ेबाक दिन
हमर दादीकें
तइ स’ पहिने
एकटा अजोध नगिनियाँ
बास ल’ लेलकै
कदमक जड़िमे
आब त’ हमरा दादी
दीनोदेखार डेराइ छै
कदमक तर जाइस’।
मुदा हे हमर दादी
जेहने शुद्धंग छै
तेहने पीताहियो छै
जहिया पीत उठतै बुढियाके
तहिया ढारि देतै धीपले धीपल माड़
नगिनियाँक बीलमे
उपटा देतै हमर दादी
नगिनियाँक बसोबासकें
आ खुशफैल स’ फदका करतै
हमर दादी
कदमक शीतल छाहरिमे
तोरि तोरि खेतै हमर दादी
घुघरू मट्ठासन लटकल
पीयर कपेस
कदमक फर।
● विजय दत्त मणी : अस्मिताक रक्षा
फुसिएके अइन हम बघारि रहलछी।
अपने पएरमे कुल्हाडि मारि रहलछी।।
लोक कहैछ देखु कान लगेल कौवा
कान छोडि कौवा खेहारि रहलछी।
अपन गराकेर सुझि रहल घेघ नहि
दोसरके टेटर निहाँरि रहलछी।।
ममोरैछी मान हम अपनेसऽ अपनाके
छिटकी लगाकऽ पछारि रहलछी।
बुद्धिके बखारीमे लागल दिवार जे
अपन घर अपने उजारि रहलछी।।
बाँकी रहल शेष सम्पति जतेक
बाढैन लए ओकरो बढारि रहलछी।
करब की रक्षा अस्मिता,पहिचानके
चुल्हामे धऽकऽ पजारि रहलछी।।
मैथिलीसँ हटिकऽ मगहीमे सटिकऽ
भाषाके दशा गुजारि रहलछी।
आनकेर इज्जति बढाबैछी शानसऽ
आ अपन धग्गी उघारि रहलछी।।
प्रतिष्ठा,पद,पाइ पाबि जे कहुना
लोभ लेल सबटा सकारि रहलछी।
रग रगमे बहैत सोनित अइ जकर
ओहि सम्बन्धके नकारि रहलछी।।
जकर दूध पीव भेल धाकरसन काया
ओकरे करेज कोँढ फारि रहलछी।
अपने सहोदर अछि बनल बेमातर
तैँ त लडाइ हम हारि रहलछी।।
● विजेता चौधरी : भाषाक विखण्डनमे तैनात सिपाही !
खबरदार
सहि सकैत छी बरू विष्फोट
बरू अागि
मुदा किन्नहुँ नहि सहब
विखण्डन अा अन्याय
मातृभाषाक विखण्डनमे तैनात
नवका राजाक नवका सिपाहीसभ!
खबरदार!
जाहि एकताकेँ
खण्ड-खण्डमे बाँटि
ताेँ कऽ रहल छह
भाषाक राजनीति
से स्मरण रहय
चत्तुर बेंग
कतबाे फूदकतै
तँ एक्कहि बीत
मिथिला प्रान्तकेँ
कमजाेर बनबैलए
ताेँ जे कऽ रहल छह
बड़-बड़ किरदानी
अा नचा रहल छह
पटमूर्ख माेहरासभकेँ
से चेति जाह
कहिं एना ने हुअए
जे ताेहर मस्तककेर
नवका श्रीपेच उतारिकऽ
मैथिल जनता
खेदि अाबय शरहद पार
अाे दिन दूर नहि छैक ।
International Mother Language Day Poem
● विद्यानन्द वेदर्दी : तोहर बोल
तोहर बोल जँ रहतै ठोर
जिनगी तरि लेबौ माए गे
तोँ ढार नइ एना नोर
तोहर खौछामे, फूल खूशीके
हम त भरि देबौ माए गे
जहलमे ओकर कोर्राक सोँटसँ
बम विष्पोटसँ, गोलीक चोटसँ
रञ्जू बनि कि झगड़ू बनि
हम झगड़ि जेबौ माए गे
बहतै बिर्रो कि हएतै राँति,
बनि टेमी, बरि जेबौ माए गे
छलौँ भुथलाएल, चीत केलकै शोर
तेँ करै छी तोहर डीहपर सङोर
धरि कलम, क्रान्तीक काठी
हम रगड़ि देबौ माए गे
गबैत गीत तोहर टोले टोल,
हम ससरि जेबौ माए गे
कतबो गढ़ए ओ परपंचक पिहानी
छूटब-टूटब हमर नइँ ई निशानी
छी हमसभ तँ माटिक लाल
माटिकेँ जकड़ि लेबौ माए गे
छोड़बौ जँ हम तोहर छोर,
जीबिते मरि जेबौ माए गे
International Mother Language Day Poem 21 Feb
● विन्देश्वर ठाकुर : मैथिल वीर सेनानी!
नइँ झुकल छी नइँ झुकबै
प्रगती पथपर नइँ रुकबै
आबै केहनो बाधा-अड़चन
सफल होब’सँ नइँ चुकबै
किएकी हम
मैथिल वीर सेनानी छी।
सदिखन देशक सेवा करबै
देशहि लेल जिबै मरबै
आबै केहनो अन्हड़ि-बिर्रो
साँच कहैछी नइँ डरबै
किएकी हम-
मैथिल वीर सेनानी छी।
गहुमन,कोब्रा आ की कोनो
विषधरसँ नइँ कम छियै
माताके अस्तित्व रक्षा लेल
बुझू जे नरसिंह हम छियै
नाहकमे ककरो नइँ टेरबै
किएकी हम-
मैथिल वीर सेनानी छी।
छै करिया बादल लागल
शीघ्रहि ओकरो हटादेबै
मैथिलीक झन्डा चहुँओर
फर फर फर फर फहरादेबै
किएकी हम-
वीर मैथिल सेनानी छी
●विभूती आनन्द : गाम, गामकेँ एहिना जोगबैए
गाम हमर,
ओ गाम नहि अछि
देखू कोना करोट फेरैए
भनसाघरमे
जारनि नहि, गैस जरैए
नीक लगैए से आब–
गाममे आब बैलगाड़ी नहि,
मोटर-गाड़ी चलैए
कटनी नहि, दाउन नहि
दलानपर खरिहान नहि
बड़द-महींस नहि,
थ्रेसर चलैए, सभ ‘सुधा’ पिबैए
उपटि गेल जंगल-झार
मुल्की चिड़ै, जीब-जन्तु सहित
पक्षी अभयारण्यमे शिकार होइए
आब शेष गृहस्थ
सेहो बनियाँ-मन जीबैए
आमक नवगछुली, आ
परतीमे पोखरि सन पनिझाव खुनबा
पैकार हाथे
सालक-साल लेल बेचि लेल जाइए
गाम मन सेहो आब ‘बजार’ बुझैए
आ से
शहरे नहि, गामोमे
‘इन्वेस्ट’क प्रति लिप्सा बढ़ि रहलैए
दूरदराज फोरलेनक निकट
रहरहाँ जमीन किनल जाइए
से अपना लेल नहि,
पोता-परपोता लेल एखनो जोगबैए
पोती-परपोती एखनो हिस्साविहीन रहैए
गाम आब
ओ गाम नहि अछि
गाम मे आब बहुत किछु अछि–
सभक हाथ एंड्रॉयड फोन अछि
लैपटॉप आ रंगबिरही कोचिंग अछि
जीवनक सतरंगी सपना उड़ियाइए गामोमे
गाम आब
बाबा-परबाबाक गाम नहि रहल
हरिसिंहदेव नहि रहला मान्य आब
गाम-गाम ‘पंजी’क पर्चा-पर्चा उड़ि रहलय
अंतर्जातीय संबंध मुखर अछि एमहर सेहो
गामक मुखाकृतिमे निखार अछि
चेहरा बदलल, बदलि रहल अछि सोच
ओना बूढ़-सूढ़ बेसी गाम सेबने छथि
आ देश-परदेस जीबैत संतति लेल
कबुला-उपास करैत छथि
छठि करैत छथि, चौरचन करैत छथि
सिमरिया नहाइत छथि सधवा-विधवा
दसमीमे दुर्गास्थान जाइत छथि
आ से
संततिकें एही बले
कुशक कलेप नहि लगैत छनि,
से सोचैत जीबैत छथि गामक जनीजाति
फूसक घर कमलैए
कोठापर कोठा चढ़लैए
मुदा दुख एतबय जे
लोक घरघुसना भेल जाइए,
गामोमे गामक संबंध सँ कटैए
गाममे आब बेसीतर घरारी पर
साँझो नहि पड़ैए, कुकुरो नहि कनैए !
गाम आब एहिना जीबैए
परिवर्तनकें अकानैत पियास उराहैए
ओना राजनीति
अपना बाटपर अछि
प्रपंच अपना ठामपर अछि
लोक तनावमे अधिक रहैए,
तैयो अपन सेखीकें नहि छोड़ैए
मुदा गाम सन,
गाम नहि जीबैए
नचारी-महेसबानी नहि
सोहर-बटगबनी-पराती नहि
रेकर्डेड गीतक संग
परम्पराक झाँसि छिटने
मंच तोड़ैए जट-जटिन, झिझिया
आ आयातित गीतपर लचक’बैए डाँर
गाम तैयो जीबैए
से गाम आब
गामकें एहिना क’ जोगबैए…
● शेख शब्बीर अहमद ‘जख्मी’ : मिथिला देश निवासी हम
ढोल पीटिकऽ बाजि रहल छी, आर बजाकऽ तासा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा
पहिरिकऽ उज्जर बर्फक कम्मल
उत्तर ठाढ़ हिमालय छै
दक्षिण दिशामे पतित पावनी
गंगा नदी विराजै छै
मधुर मनोहर मुहकेर बोली, ढेओरल नीपल बासा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा
पहिरन लोकक साँची धोती
पाग दोपट्टा अंगा
गंगासँ हिमगिरिधरि पसरल
केन्द्रस्थल दरभंगा
भादो रिमझिम ताल सुनाबए, देखबए साओन तमासा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा
ककरो जीपर अल्ला
अथवा रामक नाम छै
केओ रमौने धूनी चट्टा
पाकड़ि तऽर अविराम छै
मन्दिरमे परसादी भेटए मस्जिदमे बतासा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा
मिथिला देश सदासँ रहलै
भेदभावसँ दूर
मुल्ला–पण्डित सभ रहै छथि
परम्परा मशहूर
गीत मैथिली सुनबथि जख्मी साजि मनक अभिलाषा
मिथिला देश निवासी छी हम, मैथिली हमर भाषा
● हृदय नारायण यादव : गजल
हम्हु करबै माए’क बोलीके गुनगान रे मीता,
दुनियाँक नजरिमे बढत हमरो शान रे मीता।
बनि जनक दुलारी जन्म लेलीह धीया सीया,
बढिगेल मिथिलाक नतबासँ रामक शान रे मीता।
जन्म लेलन्हि जे हमर मातृभूमिमे ज्ञानी-मुनी,
बटलनि जग सगर सर्वश्रेष्ठ-अनमोल ज्ञान रे मीता।
मातृभाषा-मैथिली,जोड्बै दुनियाँकेर भूगोलसँ
हासिल करब विश्वमे सर्वोच्च सम्मान रे मीता।
गढ़लनि जे अप्पन माटिसँ सुन्दर हमर ई तन-मन,
माँ मिथिला ‘हृदय’क सबसँ पैघ भगवान रे मीता।