
कोरोनाकालमे कविता श्रृंखलामे प्रस्तुत अछि तिनगोटा रचनाकारक कविता
१. कविता – ‘मंत्र’ : अजित आजाद
एहि बेचैन समय मे
मोन पड़ैत अछि माय
हकार पुरबाक सनातनी हिस्सक मे
एकामे कयने हैत एहि टोल सँ ओहि टोल
उपनयन सँ बियाह धरि
सभ मे गओने हैत एक कंठ गीत
कोरोनाक नाम पर कोना छोड़ि देतै रीत
फोन पर ढों-ढों करैत रहथि पित्ती
अठबभना मे आइयो सुड़किक’ आयल रहथि दही
मना कयला पर कहलनि–
आगूक नोत छोड़ब नहि ने लागत पार
आब की गुदानबै खोंखी आ बुखार
कोरोना सँ डेराइत छह त’ गामे आबि जाह
एक दान ताश पर चारि खेप चाह
अपना धुनि मे अछि गाम
टीवी पर देखैत अछि लहासक जाक
देखैत अछि अस्पताल सभक दुर्दशा
सुनैत अछि शमशान मे जगहक अभावक मादे
मुदा कथी लेल लगाओत मास्क
बड्ड बेसी त’ मुह पर गमछा नहि त’ नूआ
कोरोना छी शहरी भुआ
फोने पर लाल बाबा फुकने रहथि मंत्र–
औरदा सँ बेसी के जीबैत छैक हौ बाउ
माया मे कथी लेल माँड़ होइत छह मधुबनी मे
दू करौछ डालना पर अनेरे सए टपल रहतह ऑक्सीजन
रहतैक एखन गाम मे भोजक ई सीजन!
कोरोनाकालमे कविता
२. कविता : रूपा धीरू
साँस एना ल’ रहल छी,
जेना ककरो किछु चोरा लेने होइ,
घरक बालकोनी स’ चारूदिश तकै छी,
घोर सन्नाटा देखाइत अछि,
भीतर अबै छी,
मोन बहटारक लेल,
फेशबुक खोलै छी,
कोनो फोटो देखै छी,
दिमाग सन्न द’ रहि जाइए,
ओह…भगवानक लाख लाख शुक्र,
जन्मदिनक शुभकामना छै,
आ हम लम्बा साँस लै छी,
आक्सीमीटर स’ आक्सीजन नपै छी,
अपनो आ धीयोपुताक,
गामघर दिश फोन करै छी,
कुशलमंगल बुझबाक लेल,
फेर घुमैत फिरैत पहुँचै छी,
बालकोनीमे,
बाहर विचित्रके सन्नाटा छैय्हे,
सुनाइत अछि त’ मात्र एम्बुलेंसक आवाज,
तैयो हम ओकरा अनसुनल जेकाँ क’,
मन्दिरमे बजैत घण्टा बजबाक,
धुन अकानबाक कोशिशमे,
छत पर एसगरे घण्टो ठाढ़ रहै छी,
हमरा विश्वास अछि,
अइ एम्बुलेंसक आवाजकें किछुवे दिनमे,
मन्दिरक घण्टाक बजैत धुन दबा देतै,
बालकोनीक खिड़की हमरा फेर स’,
बन्द कर’ पड़त,
लोकक चहलकदमीक कारणें,
हमर फेशबुकक वाल,
मात्र शुभकामनाक रंग स’ रगाएल रहत,
आ हम उन्मुक्त भ’ भरिमोन साँस लेब।
* * *
कोरोनाकालमे कविता
३. कविता – ‘काल’ : प्रेम विदेह ललन
सडक
लगैत अछि डेराओन दिनोमे
गुडकैत अछि कखनोकाल
साइकिल, मोटरसाइकिल, खाद्यान्न- गाडी
दौगैत अछि बीचबीचमे प्रहरी- भ्यान
भगैत अछि चिकरैत एम्बुलेन्स
शहर
लगैत अछि मसान
बूझि पडैत अछि घर– कारागार
भ गेल अछि जिनगी कैदीसन।
चीबा गेल अछि लाखो मनुक्ख- देहके
कोरोना- काल
धपाएल अछि अखनो
बओने अछि मुँह – हाँउ
घोंटबाक लेल हजारो जिनगीके
भेन्टिलेटरपर वा घरेपर
गनि रहल अछि जे अपन साँस
पसरल अछि चारूभर त्रास।
किएक?
किएक त अपराधी अछि आदमी
कएने अछि बलात्कार बार-बार
प्रकृति- देवीके
क देने अछि तहस- नहस
ओकर अङ्ग- प्रत्यङ्गके
नदी- पर्वतसङ दुर्व्यवहार
जङ्गलपर क्रुर प्रहार
निकालने अछि भूगर्भक अँतडी- भोंतडी
टनक टन
क देने अछि भूँड आकासक छातियोमे
कोंचैत आएल अछि मसोडि- मसोडि
अपन पेटमे
हजारो पशु,पन्छी, कीट- पतङ्गके
बिसरि गेल अछि
सहअस्तित्वक महत्व
परस्पर निर्भरता- जीवनक परिभाषा
तेँ
करैत रहलि अछि विद्रोह प्रकृति- देवी
समय- समयपर
दैत रहलि अछि सजाय आदमीके
मचा रहलि अछि सम्प्रति
महामारीक आतङ्क
ल रहलि अछि बदला
क रहलि अछि अदृश्य हथियार सँ वार।
ताहिलेल
भ जाई सावधान- सचेत आबहु
हमरालोकनि
बन्न करी अपन उत्पात
करी नव सङ्कल्प
तुलसी- ताम लए हाथमे
सहअस्तित्व आ प्रकृति मैत्री जीवनक
बान्ही धीरज किछु मास
भगबे करत महामारीक अन्धकार
पसरबे करत उज्ज्वल प्रकाश
साहस
ल ली पैंचा
ओहि बहादुरसभ सँ
लडल अछि जेसभ महामारी सँ
आ जीतल अछि
जी रहल अछि खिलखिलाइत !