OpinionStory

महाकुम्भ स्नान: दुर्लभ दिव्य अवसर (यात्रा संस्मरण)

जीवनक गहराइ आ सत्यताके अनुभव : महाकुम्भ स्नान

प्रयागराजमे आस्थाक महाकुम्भ 13 जनवरीसँ शुरू भेल ई महाकुम्भ 26 फरवरी (महाशिवरात्री) आइ समाप्त हएत। तकरे सान्दर्भिता अनुसार प्रकाशोन्मुक कृति ‘जगन्मुक्ति’ लेल लिखल गेल ई “यात्रा संस्मरण” प्रस्तुत अछि। ILM अनुसार भाषाशैली संशोधन कएल गेल अछि। (I Love Mithila)

पृष्टभूमि–महाकुम्भक चर्चा

पौराणिक आ आध्यात्मिक मान्यता छै जे कुम्भस्नान कएलासँ जीवनमे नीक आ सकारात्मक प्रभाव पडै़त छै । अइ प्रभावक परीक्षण तँ के कएने अछि जाइन ने, मुदा धर्मग्रंथसभमे एकर महत्वक मादे वेश चर्चा कएल गेल छै । अइ सम्बन्धमे हमर अध्ययन आधिकारिक नइँ अछि । पढ़बासँ बेसी सुनल अछि आ हमर अध्ययनक सीमाक मादे स्वीकार करबामे हमरा कोनो संकोच नइँ अछि । खैर जे से ! कुम्भक समयमे गङ्गा या कोनो संगम (प्रयाग) नहेबाक बड्ड इच्छा रहए मुदा ई इच्छा पूरा नइँ भ सकल छल । हमरा परिवारमे करिबकरिब सबगोटे (हमर पत्नी सहो) इलाहावाद (प्रयागराज) आ हरिदवारक कुम्भ आ अर्धकुम्भ क स्नानमे सहभागी भ चुकल छथि । मुदा हम समय व्यवस्थापन नइँ क सकबाक कारणँे नइँ जा सकल छलौँ । पौराणिक मान्यताअनुसार इलाहावाद (प्रयागराज), हरिदवार, नासिक आ उज्जैनमे कुम्भक आयाजन होइत छै जे मेलाक रुप धारण करैत छै ।

दिन बितैत जा रहल छलै । सामान्यतया अर्धकुम्भक चर्चा छ वर्ष आ पूर्ण कुम्भक चर्चा बाह्र वर्षपर भेल करैए । विगतमे मोन तँ हमरो छल जे कुम्भमे हमहुँ सहभागी होइतहुँ । मुदा सायद समयक प्रतीक्षा पूरा नइँ भेल रहए । एहिक्रममे महाकुम्भक चर्चा उत्कर्षपर पहुँच रहल छल । बुझा रहल छलै जेना सम्पूर्ण मानव सभ्यता ओतहि अर्थात भारतक इलाहावादस्थित प्रयागराजमे एकत्रित भ रहल होइक । अइ बेरक प्रयागराजक कुम्भ सम्भवतः विश्वक सबसँ पैघ एहन आयोजन छै जत एकहि जगहपर एतेक बेसी लोकके उपस्थिति आ सहभागिता रहलै । २०१ पुस २९ गते अर्थात २०२५ जनवरी १३ पूर्णिमाक दिन शुरु भ शिवरात्रि (२०१ प्mागुन १४ अर्थात फे्रबुअरी २६)क दिन समापन होएबला ई आयोजन ४५ दिन आयोजित भेल आ अइ आयोजनमे करिब ६५ करोड लोकके उपस्थित रहल बात मानल गेल अछि । ई पूर्णकुम्भ जे महाकुम्भक नामसँ प्रचलित अछि, खगोलीय आ ज्योतिष गणना आ संयोगक आधारपर एक सओ ४४ वर्षक बाद मात्र सम्भव भ सकैत छै । एगारहटा पूर्णकुम्भके बाद जे कुम्भ आयोजित होइत छै अर्थात बारहम पूर्णकुम्भ जे एक सओ ४४ वर्षमे अबैत छै ओ महाकुम्भ कहबैत छै । आध्यात्मिक जगतेटा नइँ आजुक भौतिक जगत सेहो अइ आयोजनक महत्वकेँ स्वीकार कएलक अछि । सन २०१७मे युनेस्को महाकुम्भ भेलाकेँ ‘मानवताक अमुर्त सांस्कृतिक सम्पदाु क रुपमे परिभाषित कएने रहए ।

किछु आध्यात्मिक मान्यता आ विश्वास तथा किछु सामाजिक प्रतिष्ठाक विषय सेहो कहबाक चाही, महाकुम्भमे सहभागी हएब आवश्यक छलै । पत्नी जीक दवावक सँगहि एहिबेर पुत्र आदित्यक दवाव सेहो छलै । हुनको अइ बेर छुट्टी उपलब्ध छलनि । हुनकर छुट्टीक अनुपलब्धताक कारणे एहिसँ पूर्वक हमरासभक धार्मिक यात्रामे ओ सहभागी नइँ भ सकल छलथि ।

प्रयाग यात्रा– तिथि निश्चित

बहुत दिनसँ यात्रा कार्यक्रम तयार करबामे जुटल छलौँ मुदा उपयुक्त तिथिक प्रतीक्षा छलै । बहुतो गोटे/समूहसँ बात भेल रहए मुदा उपयुक्त तिथिक चयनक समस्याक कारणे यात्राक निश्चित कार्यक्रम नइँ तय भ सकल छल । हम जे संस्था (राष्ट्रिय समाचार समिति)मे कार्यरत छी ओकर ६४म् स्थापना दिवस (फागुन ७ अर्थात फ्रेबुअरी १९मे) छलै । हम ओ दिवसक आयाजनक बाद मात्र यात्रा क सकबाक अवस्थामे छलौँ । एकर अर्थ छलै जे हम फागुन आठ अर्थात फ्रेबुअरी २०सँ पहिने यात्रा नइँ कऽ सकैत छलौँ । आ हमर ई प्रस्तावक सँग तालमेल मिलेबामे आनऽक लेल सहज नइँ भऽ पाबिरहल छलै आ हम मात्र तीनुगोटे (हम, पत्नी मुन्नी आ पुत्र आदित्य यात्रा करबासँ असकता रहल छलौँ । एक समय तँ एहन बुझाए लागल जे आब महाकुम्भक ई दुर्लभ आयोजनक प्रत्यक्ष साक्षी शायद नइँ बनि पाएल हएत । मुदा हम अइ पुस्तकमे पहिने चर्चा कऽ चुकल छी, सिद्धस्थलमे ताधरि नइँ गेल जा सकैत छै जाधरि ओ स्थानसँ आह्वान नइँ होइक । तहिनाके के सँगे जाएब शायद इहो पूर्वेनिश्चित रहैत छै । एहिबेर कपिलवस्तुक माहुरीहोम (मधेश मानव अधिकार गृह)क संस्थापक अध्यक्ष मित्र रविन्द्रनाथ ठाकुर (रविजी)क सँग महाकुम्भक यात्रा शायद पूर्वनिश्चित छलै ।

एक दिनक बात छै (शायद माघ महिनाक १७/१८ म दिन) हम रविजीकेँ फोन केलियनि आ कहलियनि–
कि छै रविजी हालखवरि ? कुम्भ तँ अहाँसभके ठामसँ तँ नजदिक छै । अहाँ तँ भऽ आएल हएब । हम नइँ जेबै कि ?
ओ कहलनि– हमहुँ नइँ गेल छी । हमरो जेबाक अछि । अहुँ जाएब कि ?
हम कहलियनि– हमहुँ कहाँ गेल छी । जेबाक तँ हमरो अछि ।
हुनक कहब छलनि– तखन सँगे चलू । हम एतऽ व्यवस्थापन करै छी । कहिया जा सकै छी ? हम तँ फागुन पहिल सप्ताहसँ पहिने नइँ जा सकै छी ।
ई कि भऽ रहल छै ? हम जे चाहैत छलौँ सएह भऽ रहल छै । हम तपाकसँ कहलियनि– फागुन सातसँ पहिने तँ हमहुँ नइँ जा सकै छी ।
ओ कहलनि– चलु अहाँक हमर बात मिलिगेल । तिथि अहीँ कहू ।
हम कहलियनि– फागुन आठ । हमसब तीनगोटे रहब हम, पत्नी मुन्नी आ आदित्य ।
ओ आब यात्राहेतु गाडी ताकब आ अन्य व्यवस्थापन करबाक बात कहैत हमरा यात्राक निश्चितताहेतु आश्वस्त केलनि । एहिप्रकारे हमरासभकेँ आब फागुन आठक साँझमे बससँ यात्रा प्रारम्भ कऽ नओ गते भोरमे तौलिहवा पहुँचब आ ओतऽ माहुरी होममे कनेकाल विश्राम कऽ इलाहावाद हेतु प्रस्थान करबाक योजना बनल । हमर यात्राक टिकटलगायतक यात्राक व्यवस्थापनहेतु भाई वसन्त वन्जाडे आ मुस्तफाक सहयोगक हम प्रशंसा करऽ चाहब ।

कुम्भ प्रस्थान–रात्रिबसके यात्रा

निश्चित तिथिमे राससके वार्षिकोत्सव कार्यक्रम सम्पन्न भेलै आ तकरबाद हम यात्राक तयारीमे जुटि गेलौँ । २०८१ फागुन ८ अर्थात २०२५ फ्रेबुअरी २० । व्यस्तता बढ़ि गेल रहए । एकटा संस्था छै ओमेन्स लीड । ओकर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम छलै महिलासभहेतु आठ गते आ संस्थाक दिसिसँ कविता लिम्बुजी हमरा एकटा क्लास लऽ देबाहेतु आग्रह कएने रहैथ । जिम्मेबारी हम स्वीकार कऽ लेने छलियै । ई क्लास लऽ हम बालकोट (घर) करिब साढे़ पाँच बजे पहुँचलौँ । साढे़ सात वजे कलंकीसँ बस पकडबाक छल– द प्यालेस बस । सोफा सिट ।

हम राससक हमर गाडी चालक यादव गोतामेकेँ पहिने कहने रहियनि । ओ सहयोग केलनि । गाडीसँ कलंकी पहुँचा देलनि । नियत समयपर पहुँचल रही । मुदा आधा घण्टा जते विलमऽ पडल । करिब आठ वजे बस आएल आ हमसभ अपन स्थान पकडि बैसलौँ । हम एहिबेर बहुत वर्षक बाद रात्रिवस सेवा प्रयोग कऽ रहल छलौँ । करिब छ वर्षक बाद । शायद तएँ, बस सेवाक बारेमे बड बेसी अद्यावधिक नइँ छलौँ । ई बस चढलाक बाद बुझाएल जे नेपालक बस सेवाक स्तरीयतामे बहुत अन्तर अएलैए । बसक एहन सुविधासम्पन्न अवस्था कमसँ कम हमर कल्पनासँ दूरक बात छल । सोफा सिट, बोतलक पानि, कम्मल (व्ल्यांकेट)क उपलब्धता साक्षी छल जे हम एहिसब बातसँ जानकार नइँ रही । हम आदित्यकेँ कहलियनि–बौवा बस नीक छै ने ? हम तँ नेपालमे एहन बसमे नइँ चढल छलौँ ।
बौवा कहलनि– अहाँ बसे कहिआ चढै छी ? आब तँ लम्बा यात्राक बहुतो बस एहने छै । एखने तुरत्ते तँ हम राजविराज गेल छलौँ । ओतहु एहने बस छलै ।

हमरा बुझाएल जे हमही अवस्थासँ अद्यावधिक नइँ छी । जमाना किछु किछु बदलि रहल छै आ तकर पर्याप्त जानकारी हमरा नइँ अछि । कोनो विषयक बारेमे हमरा जानकारी नइँ भेनाई जमाना आ समयक दोष नहि, ओ तऽ हमर दोष ने । जमाना तँ आगाँ बढबे करतै । जमानाक पएरसँ हम अपन पएर कते मिला सकै छी, ई तँ हमर बात अछि ने । आ, बौवाक आगाँ हम ई बात स्वीकार कएल । जानकारीक अभाव आ सहज स्वीकारोक्तिक समस्याक कारण पुस्तान्तरणक प्रक्रिया बाधित अछि आ दू पुस्तबीच दूरी बढ़िरहल छै । हम दुनूगोटे इएह आ एहने बात कऽ रहल छलौ आ बस नौवीसे पहुँचिगेल रहै । रस्ताक अवस्था ओहने बुझाएल । रस्ताक सम्बन्धमे तँ हम पूर्ण जानकार छलौ । बस नहिओ तँ छोटका चारिपहियासँ बरोबरि यात्राक अवसरि भेटि जाइए । लम्बा समयसँ अइ सड़कऽक मरमति जारी छै । सड़क विस्तार कऽ चारि लेनक बनेबाक योजना छै । छिटफूट ठामकेँ अपवाद मानी तँ करिबकरिब बुटवलधरिक रस्ताक हालति खराब छै आ ई अवस्था कहियाधरि विद्यमान रहतै कियो नइँ कहि सकैत अछि ।

नारायणघाटसँ पहिने रामपुरमे भोजन करबालेल बस रुकल । रातुक करिब साढे़ एगारह बाजिरहल छल । हमरालोकनि काठमाण्डूसँ चलबाकाल जलपान कने दाबिए कऽ कएने छलौ तएँ भोजनऽक खासे आवश्यकता नइँ छलै । भोजन नइँ कऽ तीनूगोटे चाउचाउ ग्रहण करबाक निर्णय हमरालोकनि कएलाैँ आ ताहिमोताविक होटलमे जा अर्डर देलियै । ओ कनेकालक बाद आनिदेलक । हमसभ खेलौँ । चाउचाउ नेपालमे लोकप्रीय अछि ताहिदुआरे नइँ बल्कि हमरासभक माननाइ अछि जे रातिमे हल्का भोजनक रुपमे चाउचाउ ग्रहण कएल जा सकैत अछि । मुदा खाद्यशास्त्रीसभ एहिमे अत्यधिक मैदा होबाक कारणे एकरा भोजनक रुपमे उपयुक्त नइँ मानैत छथि । ओतऽसँ बस आगाँ बढल आ कनेकाल बुटवलमे विलमैत चारि नम्बर जीतपुर होइत करिब सात वजे भोरमे तौलिहवा पहुँचल ।
कएलेण्डरक तारिख आ गते बदलिचुकल छल– २०८१ फागुन ९ अर्थात २०२५ फ्रेबुअरी २१ । हम बाटेसँ वसन्त आ रवि जीक सम्पर्कमे छलौँ । वसपार्कमे उतरि हमरालोकनि एक अटो लऽ माहुरी होम पहुँचलौ । ओतऽ निर्मला हमरासभकेँ विश्राम करबालेल एक कोठली तयार कऽ रखने छलीह । कनेकालक बाद वसन्त, रवि जी, खग चापागाइ, ओमप्रकाश आ माहुरी होमक वर्तमान अध्यक्ष आदरणीय दद्दु रामदयाल ठाकुर जीसभसँ भेट भेल । बाचचित भेल । चायपान चललै । कनेकालक बाद रेम टण्डन जीक होटल, जतऽ हम पहिनहुँ कएकबेर भोजन कएने छी,मे गेलौँ आ भोजन कएलाैँ । हमरा एतहुका भोजन नीके लगैए । भोजन स्वस्थकर, साफ आ ताजा रहैत छै से हमर विश्वास अछि । मुन्नी आ आदित्यकेँ सेहो भोजन नीक लगलनि ।

प्रयाग आगमन—मिशन संगम घाट

तस्वीर: धर्मेन्द्र झा/ रासस

भोजन कऽ माहुरी होम अबैतकाल करिब सवा बाह्र बाजिरहल छलै । प्रयागराज जेबाहेतु जे गाडी रवि जी ठीक कएने छलाह ओ दू वजेक करिब आओत से जानकारी छल । तएँ हमरालोकनि कनेकाल आराम करबाक नेआर कएल । नइँ जाइन किए रातिमे बसमे नीकजकाँ निन्द नइँ भेल । कनेकोकाल आँखि लागि जाइत तँ नीके रहैत । आ से ठीके कनेकाल सुतागेल । गाडी लऽ चालक मनिष करिब डेढे बजे आविगेलाह । हमरासभकेँ जानकारी देल गेल । हमसभ तीनूगोटे उठि तैयार भेलौ आ ठीक दू वजे बाहर एलौ तँ यात्रा टोलीक आन सदस्य रवि जी, हुनकर पत्नी आ एक बचिया रेखा (रवि जीक पडोसीक लडकी) स्कर्पिओ गाडीलग बैसल रहथि । हमहुँसभ बैसलौँ । चालक मनिषसहित सात गोटेक यात्रा दल आगाँ बढल । दलक भौतिक नेतृत्वक जिम्मेबारी छल मनिषपर आ अन्य जिम्मेबारी छलनि रवि जीपर ।
गाडी नेपालक बहादुरगञ्ज आ कृष्णनगर होइत बढनीमे भारत प्रवेश कएलक आ ओतऽसँ वस्ती, हर्दिया चौराहा, सिद्धाार्थनगर, टण्डा, डुमरियागञ्ज, अमबेडकरनगर, सुलतानपुर–दोस्तपुर, आजमगढ, अमेठी, प्रतापगढ होइत प्रयागराज पहुँचल । एहिबीच हमरालोकनि हर्दिया चौराहापर चाय पिने रही तँ अमबेडकरनगरमे भोजन कएने रही ।

इलाहाबाद तँ नइँ मुदा बढनी, सोहरतगढ, वस्ती, महाराजगञ्ज, सिद्धार्थनगर, गोण्डालगायत अइ इलाकाक सामान्ँय भ्रमण हम पहिने कऽ चुकल छलौँ । अइ आधारपर अइ जगहसभक बारेमे हम तुलनामत्मक अध्ययन कऽ सकैत छी आ हमर अध्ययन कहैत अछि, ई क्षेत्र यातायात, भौतिक संरचना, सरसफाई आ व्यवशायक क्षेत्रमे अभूतपूर्व उपलब्धि प्राप्त कएलक अछि ।
हमरासभक गाडी रातुक करिब साढे़ एगारह बजे प्रयागराज आबि चुकल छल । चारुकात गाडीक करमान । पार्किगंक समस्या बुझनागेल । गाडीक भीडक आधारपर कुम्भमे सहभागीक संख्याक अनुमान सहजहि कएल जा सकैत छलै । आब मनिष पार्किगक खोजीमे छलथि । कनेकालक गोलगोल घुमानऽक बाद अन्ततः मनिष जगह ताकिए लेलनि– लक्ष्मीब̊ार बडा बघाडा । गाडीकेँ एतऽ पहुँचलापर हम घडीमे समय देखलौँ साढे़ बाह्र बाजिगेल छल । अर्थात तारिखमे परिवर्तन आविगेल छल– २०८१ फागुन १० अर्थात २०२५ फ्रेबुअरी २२ ।

मनिष कहलनि  “संगमधरि पहुँचबालेल सबसँ छोट दूरीक रस्ता इएह अछि । एतऽसँ घाटधरि पहुँचबामे तीन किलोमिटरक यात्रा तय करऽ पड़त आ तकरबाद संगमघाटक यात्रा ।”

मनिष हमरालोकनिकेँ रस्ता देखा स्वयं गाडीमे जा कनेकाल सुतबाक उपक्रममे व्यस्त भऽ गेलाह । आ एमहर हमहुँसभ संगम घाटपर जेबाक यात्रा प्रारम्भ कएलाैँ । एतऽ हमरासभक पथप्रदर्शकक काज कऽ रहल छलीह रेखा । हिनका एतहुका बारेमे किछु जानकारी छलनि जे ई एतऽ प्रयोग करबाक प्रयास कऽ रहल छलीह । हमसभ सेक्टर ६मे छलौँ । हमरासभकेँ सेक्टर ५मे पहुँबाक छल । हमसभ बासुकी नाग मन्दिर, नीरन्जन अखाडा, दशास्वमेघ घाट, पण्टुन पुल, कच्छपद्वार, नन्दीद्वार तथा संगमद्वार आदि होइत संगम घाटदिसिक यात्रा करैत जा रहल छलौँ। रस्ताक दुनू कात अस्थायी प्रकृतिक दोकानसब छलै । जतऽ चाय, जल, उपहारक सामग्री, होटल, विभिन्न धार्मिक तथा गैरधार्मिक संस्थाद्वारा भोजनक निःशुल्क स्टल आ चुडा़, मुड़ही, अडाँची दाना, पेठा आदि भेट सकैत छलै । एकटा बात तँ निश्चित बुझाएल जे अइ आयोजनसँ स्थानीय अर्थतन्त्रकेँ सकारात्मक प्रभाव पडल हेतै । नागा बाबासभक संख्या शायद एखन कम भऽ गेल छै ।

एखन जाए कालमे बडे बेसी भीड नइँ बुझाएल । भीड तँ छलैहे मुदा जेना वर्णित छलै तेहन नइँ बुझाएल । एकटा बात स्वीकार करहि पड़तै, डेढ महिनाधरि एकहि ठाम लोकऽक ई विशाल हुजुमकेँ व्यवस्थापन केनाई साधारण बात नइँ छलै । मुदा किछु अपवादकेँ छोड़ि देल जाए तँ व्यवस्थापन कएल गेलै । १५/२० हजारक संख्यामे निरन्तर सुरक्षाकर्मी, डेढ लाखके संख्यामे शौचालय आ मुत्रालय, वस्त्र परिवर्तन कक्ष, स्नानहेतु असंख्य घाटके निर्माण आ व्यवस्थापन, अस्थायी आ स्थायी सड़क व्यवस्थापन, डेढ दर्जनसँ बेसी विशाल पार्किगं क्षेत्रक व्यवस्थापन कम चुनौतिपूर्ण नइँ छलै । मुदा सम्बन्धित व्यक्ति आ निकायसभक सामूहिक प्रयासक कारणे ई सम्भव भऽ सकलै आ नीक जकाँ सम्भव भऽ सकलै ।

तस्वीर: धर्मेन्द्र झा/ रासस

भोरक करिब अढ़ाइ पौने तीन बजैत हेतै हमसभ संगम घाटपर पहुँचलौँ– सेक्टर ५ घाट नम्बर ३२ । हमसभ जाधरि धाटपर पहुँचलाैँ लोकके भीड बढ़ल नइँ छलै तएँ हमरालोकनि सहजता मूल्यांकन कऽ घाटऽक चयन करबालेल स्वतन्त्र छलौँ । ई स्वतन्त्रताक लाभ हमसभ उठेबो कएलाैँ मुदा एकर आनन्द बेसीकाल कायम नइँ रहि सकल । बुझाएल एना जे, दसे मिनटक भितर लोकऽक भीड बेहिसाब बढ़िगेल हुअए आ से भीड बढ़िते जा रहल छलै । जेना सलह कृषि फसलपर फैलैत जाइत छै तहिना एतऽ लोक संगम अर्थात गङ्गा, यमुना आ सरस्वति नदिक मिलन क्षेत्रपर पसरैत जा रहल छलै ।

रविजीक कहल बातक अर्थ हमरा आब नीकजकाँ बुझबामे आएल । ओ यात्रामे निकलऽसँ पहिने तौलिहवेमे कहने रहैथ– प्रयास करब जे हमरालोकनि एक बजेधरि घाटपर पहुँचब आ तीन/चारि बजेधरि स्नानादिक कार्य सम्पन्न कऽ बेसीसँ बेसी साढे़ पाँच बजेधरि प्रयागराज छोडि दी । हमसब हुनके बातऽक अनुशरण कऽ रहल छलौँ । जँ हमसभ ओहिसँ कनिको विलम्ब होइतहुँ तँ सम्भव छल बडका जाममे फँसि जैतौँ ।

संगममे स्नान—ब्रम्हमुहुर्तमे पवित्र जल स्पर्श

तस्वीर: आदित्येन्द्र झा | AI द्वारा फोटोके आकार बढ़ाएल गेल अछि।

अन्ततः शनि दिन फाल्गुन कृष्ण पक्षक दशमीक दिन प्रयागराजमें चलिरहल महाकम्भ २०२५मे स्नान करबाक सौभाग्य भेटल । निश्चित भऽ घडी तँ नइँ देखलियै, मुदा एते तँ दाबी हम करबे करब जे हमरालोकनि छओ गोटे भोरुकवाक तीनवजेसँ साढे़ तीनवजेक बीचमे श्रद्धा आ प्रेमपूर्वक संगममे डुबकी लगा स्नान कऽ लेने छलौ । आध्यात्किम हिसाबे ई समय ब्रम्हमुहुर्तसँ सम्बन्धित अछि । कहल जाइत छै कि ई खाली धार्मिक आयोजन नइँ छै, बल्कि मानवता, आस्था, आ सनातन संस्कृतिक महान पर्व छै । ई एक दुर्लभ दिव्य अवसर छै जे एक सओ ४४ वर्षमे मात्र उपलब्ध हाइेत छै । कमसँ कम चारि पीढ़ी आगाँ आ चारि पीढ़ी पाछाँक लेल ई अवसर उपलब्ध नइँ होइत छै । आ, बोध भेलाक बाद कि ई आध्यात्मिक शुद्धि, ऐतिहासिक अनुभव, आ सांस्कृतिक समृद्धि जीवनमें प्राप्त होबऽबला दुर्लभ अवसर छै, हम रविजीक सँग महाकुम्भमे सहभागी होबाक नेआर कएने रही ।

उपरउल्लेख कऽ चुकलौँ जे हमरालोकनि संगम घाटपर पहुँचिगेल रही । ओहिठाम एकटा प्लास्टिक विछा अस्थायी विश्राम कायम कएलाैँ आ सभकेओक कपडालत्ता ओतहि राखल गेल । बेराबेरी जा सभकेओ स्नान कएल । तकरबाद मुन्नी पुनः घाटपर धुपदीप लऽ जा पूजा केलीह । एते सब काज कएलाक बाद घडीदिसि नजरि पडल पौने चारि बाजिगेल छल । लोकऽक भीड बढ़ैत जा रहल छलै । आब ओतऽसँ जते जल्दि निकलब नीक हएत से विमर्श करैत हमरालोकनि आब फिर्ति यात्राहेतु आगाँ बढऽ लगलौँ । ओहिसँ पूर्व आदित्य घाटपर जा दूटा वर्तनमे संगम जल भरि अनलनि । मुन्नी सेहो घाटपर गेलीह आ तखन पूजाकालमे दोनामे जे बाती बरैत छोडि आएल छलीह ओकरा जलमे प्रवाह क एलीह । हमसभ आगाँ बढऽ लगलौँ । एक दूबेर पाछाँ उनटि तकलियै दीपऽक दोना सेहो बहैत हमरेसभजकाँ आगाँ बढ़िरहल छलै ।

संगमसँ लौटैतकाल मोनमे अनेक बात आएल । संगमक आध्यात्मिक महत्व, एकर पवित्रता, करमान लागल लोकऽक भीडऽक बीच जल–प्रदूषण, रोग–व्याधिक संक्रमण आदि आदि अनेक बातऽक वहस मोनमे जारी छलै । मुदा सबसँ पैघ छलै आत्मतृप्तिक आत्मबोध ।
सातम शताब्दीमें चीनी यात्री ह्वेनसाङब̊ारा कतौ प्रयागक सम्बन्धमे चर्चा कएल गेल कहल जाइत अछि । मानल जाइत अछि जे, ह्वेनसाङ प्रयागक सन्दर्भमे “मोक्षक संगम“ क चर्च कएने छलाह । त्रिवेणी संगम–गङ्गा, यमुना, आ सरस्वतीक संगम–हजारों वर्षसँ मोक्षक स्थान मानल जाइत अछि ।

धर्मेन्द्र झा/ रासस

कुम्भक इतिहास आ पौराणिक कथाक उल्लेख हिन्दू धर्मक पुराणमें विशेष रूपसँ भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत, आ रामायणमें भेटैत अछि । कुम्भक मूल कथा समुद्रक मन्थनसँ सम्बन्धित अछि । जखन देव–दानव मिलि कऽ सागर मथलनि तखन अमृत कलश (अमरताक घैल)क उदय भेल । समुद्र मन्थनसँ प्राप्त अमृत प्राप्तिहेतु देव आ अशुरबीचक संघर्षक क्रममे अमृत कलश (कुम्भ)सँ किछु बुँद प्रथ्वीपर खसल से मानल जाइत अछि । अमृत प्राप्तिहेतु देव आ अशुरबीच संघर्ष भऽ अमृतक बुँद पृथ्वीपर खसवाक समयमे जे खगोलीय अवस्था विद्यमान छल से अवस्था पुनः निर्माण होबालेल एक सओ ४४ वर्ष लागैत छै आ एहिबेरक कुम्भ उएह खागोलीय अवस्थाक बीच विद्यमान मानल जाइत अछि, तएँ ई मात्र कुम्भ नइँ महाकुम्भ अछि । ई भूमि एकबेर फेर लाखों भक्तक आत्मशुद्धिक केन्द्र बनिरहल अछि ।

किछु अवस्था एहन होइत छै जे अनुबोध तँ कएल जा सकैत छै मुदा भाव सार्वजनिक करब अत्यन्त असहज भ जाइत छै । हमरो एहने अनुभव भेल । एक सओ ४४म वार्षिक महाकुम्भ मेलासँ घुरबाकालक भावकेँ शब्दमे व्यक्त करब कठिन बुझाएल अछि । ई खाली धार्मिक/आध्यात्मिक यात्रा नइँ छल, बल्कि जीवनक गहराई आ सत्यताकेँ अनुभव करबाक क्षण सेहो छल । सन्त–ऋषिक उपस्थितिक ऐतिहासिक भव्यता, आध्यात्मिक ऊर्जा, आ दिव्य उपस्थिति मोनकेँ ऊर्जावान बना देने हुअए से अनुभूत भेल । बादमे सामाजिक सञ्जालसँ जानकारी भेटल हमरालोकनि जाहि दिन प्रयागराजमे कुम्भ स्नान कएने रही ओही दिन पोखराक पत्रकार मित्र दीपेन्द्र श्रेष्ठ सेहो ओतऽ स्नान कएने रहथि । मुदा ओतऽ हमरासभक भेट नइँ भऽ सकल रहए । ओतऽसँ घुरलाक बाद ओ सञ्जालमे अपन भाव व्यक्त कएने छलथि— भक्ति, ध्यान, आ विश्वाससँ जुड़ल ई समय जीवनक एकटा अविस्मरणीय क्षण छल ।

हम स्वीकार करै छी दीपेन्द्रक भाव आ विचारसँ हमहुँ सहमत छी । ठीके संगममे डुबकी लगेबाक क्षण जीवनक एक अविष्मरणीय क्षण छल जकर प्राप्ति सहज नइँ छै आ ओ क्षणकेँ अनुभूत करब कम पैघ उपलब्धि नइँ अछि । हम एहने आ इएह बात सोचैत आगाँ बढ़ि रहल छलौं, देखलियै कच्छपद्वार आबि गेल छै आ अइ द्वारसँ आगाँ देखैतकाल जे लोकक समुद्र देखलियै से अविश्वसनीय आ आश्चर्यजनक छल । हम एकहिबेर एकहि ठाम एतेक लोककेँ अपन जीवनमे एहिसँ पहिने नइँ देखने रहियै । बुझाएल जेना जे ई सब लोक चलि नइँ रहल हुअए बल्कि सनातनी संस्कृतिक उत्कर्ष अभिव्यक्तिक रुपमे संगम घाटदिसि बहिरहल हुअए संगमेक जलजकाँ…….. ।

धर्मेन्द्र विह्वल

धर्मेन्द्र झा, मुलत: साहित्यमे धर्मेन्द्र विह्वलके नामसँ परिचित छैथ। राससके कार्यकारी अध्यक्ष। हिनक एक शृष्टि एक कविता, एक समयक बात,व्योमक ओहि पार, धुआएल आकृतिसभ, शहरक भीडमे एसगर हम, मिथिला मिथक सहित विभिन्न पत्रकारिताक पोथीसभ लिखने छैथ । आइ लभ मिथिलाक अतिथि लेखक ।