
प्रयागराजमे आस्थाक महाकुम्भ 13 जनवरीसँ शुरू भेल ई महाकुम्भ 26 फरवरी (महाशिवरात्री) आइ समाप्त हएत। तकरे सान्दर्भिता अनुसार प्रकाशोन्मुक कृति ‘जगन्मुक्ति’ लेल लिखल गेल ई “यात्रा संस्मरण” प्रस्तुत अछि। ILM अनुसार भाषाशैली संशोधन कएल गेल अछि। (I Love Mithila)
पृष्टभूमि–महाकुम्भक चर्चा
पौराणिक आ आध्यात्मिक मान्यता छै जे कुम्भस्नान कएलासँ जीवनमे नीक आ सकारात्मक प्रभाव पडै़त छै । अइ प्रभावक परीक्षण तँ के कएने अछि जाइन ने, मुदा धर्मग्रंथसभमे एकर महत्वक मादे वेश चर्चा कएल गेल छै । अइ सम्बन्धमे हमर अध्ययन आधिकारिक नइँ अछि । पढ़बासँ बेसी सुनल अछि आ हमर अध्ययनक सीमाक मादे स्वीकार करबामे हमरा कोनो संकोच नइँ अछि । खैर जे से ! कुम्भक समयमे गङ्गा या कोनो संगम (प्रयाग) नहेबाक बड्ड इच्छा रहए मुदा ई इच्छा पूरा नइँ भ सकल छल । हमरा परिवारमे करिबकरिब सबगोटे (हमर पत्नी सहो) इलाहावाद (प्रयागराज) आ हरिदवारक कुम्भ आ अर्धकुम्भ क स्नानमे सहभागी भ चुकल छथि । मुदा हम समय व्यवस्थापन नइँ क सकबाक कारणँे नइँ जा सकल छलौँ । पौराणिक मान्यताअनुसार इलाहावाद (प्रयागराज), हरिदवार, नासिक आ उज्जैनमे कुम्भक आयाजन होइत छै जे मेलाक रुप धारण करैत छै ।
दिन बितैत जा रहल छलै । सामान्यतया अर्धकुम्भक चर्चा छ वर्ष आ पूर्ण कुम्भक चर्चा बाह्र वर्षपर भेल करैए । विगतमे मोन तँ हमरो छल जे कुम्भमे हमहुँ सहभागी होइतहुँ । मुदा सायद समयक प्रतीक्षा पूरा नइँ भेल रहए । एहिक्रममे महाकुम्भक चर्चा उत्कर्षपर पहुँच रहल छल । बुझा रहल छलै जेना सम्पूर्ण मानव सभ्यता ओतहि अर्थात भारतक इलाहावादस्थित प्रयागराजमे एकत्रित भ रहल होइक । अइ बेरक प्रयागराजक कुम्भ सम्भवतः विश्वक सबसँ पैघ एहन आयोजन छै जत एकहि जगहपर एतेक बेसी लोकके उपस्थिति आ सहभागिता रहलै । २०१ पुस २९ गते अर्थात २०२५ जनवरी १३ पूर्णिमाक दिन शुरु भ शिवरात्रि (२०१ प्mागुन १४ अर्थात फे्रबुअरी २६)क दिन समापन होएबला ई आयोजन ४५ दिन आयोजित भेल आ अइ आयोजनमे करिब ६५ करोड लोकके उपस्थित रहल बात मानल गेल अछि । ई पूर्णकुम्भ जे महाकुम्भक नामसँ प्रचलित अछि, खगोलीय आ ज्योतिष गणना आ संयोगक आधारपर एक सओ ४४ वर्षक बाद मात्र सम्भव भ सकैत छै । एगारहटा पूर्णकुम्भके बाद जे कुम्भ आयोजित होइत छै अर्थात बारहम पूर्णकुम्भ जे एक सओ ४४ वर्षमे अबैत छै ओ महाकुम्भ कहबैत छै । आध्यात्मिक जगतेटा नइँ आजुक भौतिक जगत सेहो अइ आयोजनक महत्वकेँ स्वीकार कएलक अछि । सन २०१७मे युनेस्को महाकुम्भ भेलाकेँ ‘मानवताक अमुर्त सांस्कृतिक सम्पदाु क रुपमे परिभाषित कएने रहए ।
किछु आध्यात्मिक मान्यता आ विश्वास तथा किछु सामाजिक प्रतिष्ठाक विषय सेहो कहबाक चाही, महाकुम्भमे सहभागी हएब आवश्यक छलै । पत्नी जीक दवावक सँगहि एहिबेर पुत्र आदित्यक दवाव सेहो छलै । हुनको अइ बेर छुट्टी उपलब्ध छलनि । हुनकर छुट्टीक अनुपलब्धताक कारणे एहिसँ पूर्वक हमरासभक धार्मिक यात्रामे ओ सहभागी नइँ भ सकल छलथि ।
प्रयाग यात्रा– तिथि निश्चित
बहुत दिनसँ यात्रा कार्यक्रम तयार करबामे जुटल छलौँ मुदा उपयुक्त तिथिक प्रतीक्षा छलै । बहुतो गोटे/समूहसँ बात भेल रहए मुदा उपयुक्त तिथिक चयनक समस्याक कारणे यात्राक निश्चित कार्यक्रम नइँ तय भ सकल छल । हम जे संस्था (राष्ट्रिय समाचार समिति)मे कार्यरत छी ओकर ६४म् स्थापना दिवस (फागुन ७ अर्थात फ्रेबुअरी १९मे) छलै । हम ओ दिवसक आयाजनक बाद मात्र यात्रा क सकबाक अवस्थामे छलौँ । एकर अर्थ छलै जे हम फागुन आठ अर्थात फ्रेबुअरी २०सँ पहिने यात्रा नइँ कऽ सकैत छलौँ । आ हमर ई प्रस्तावक सँग तालमेल मिलेबामे आनऽक लेल सहज नइँ भऽ पाबिरहल छलै आ हम मात्र तीनुगोटे (हम, पत्नी मुन्नी आ पुत्र आदित्य यात्रा करबासँ असकता रहल छलौँ । एक समय तँ एहन बुझाए लागल जे आब महाकुम्भक ई दुर्लभ आयोजनक प्रत्यक्ष साक्षी शायद नइँ बनि पाएल हएत । मुदा हम अइ पुस्तकमे पहिने चर्चा कऽ चुकल छी, सिद्धस्थलमे ताधरि नइँ गेल जा सकैत छै जाधरि ओ स्थानसँ आह्वान नइँ होइक । तहिनाके के सँगे जाएब शायद इहो पूर्वेनिश्चित रहैत छै । एहिबेर कपिलवस्तुक माहुरीहोम (मधेश मानव अधिकार गृह)क संस्थापक अध्यक्ष मित्र रविन्द्रनाथ ठाकुर (रविजी)क सँग महाकुम्भक यात्रा शायद पूर्वनिश्चित छलै ।
एक दिनक बात छै (शायद माघ महिनाक १७/१८ म दिन) हम रविजीकेँ फोन केलियनि आ कहलियनि–
कि छै रविजी हालखवरि ? कुम्भ तँ अहाँसभके ठामसँ तँ नजदिक छै । अहाँ तँ भऽ आएल हएब । हम नइँ जेबै कि ?
ओ कहलनि– हमहुँ नइँ गेल छी । हमरो जेबाक अछि । अहुँ जाएब कि ?
हम कहलियनि– हमहुँ कहाँ गेल छी । जेबाक तँ हमरो अछि ।
हुनक कहब छलनि– तखन सँगे चलू । हम एतऽ व्यवस्थापन करै छी । कहिया जा सकै छी ? हम तँ फागुन पहिल सप्ताहसँ पहिने नइँ जा सकै छी ।
ई कि भऽ रहल छै ? हम जे चाहैत छलौँ सएह भऽ रहल छै । हम तपाकसँ कहलियनि– फागुन सातसँ पहिने तँ हमहुँ नइँ जा सकै छी ।
ओ कहलनि– चलु अहाँक हमर बात मिलिगेल । तिथि अहीँ कहू ।
हम कहलियनि– फागुन आठ । हमसब तीनगोटे रहब हम, पत्नी मुन्नी आ आदित्य ।
ओ आब यात्राहेतु गाडी ताकब आ अन्य व्यवस्थापन करबाक बात कहैत हमरा यात्राक निश्चितताहेतु आश्वस्त केलनि । एहिप्रकारे हमरासभकेँ आब फागुन आठक साँझमे बससँ यात्रा प्रारम्भ कऽ नओ गते भोरमे तौलिहवा पहुँचब आ ओतऽ माहुरी होममे कनेकाल विश्राम कऽ इलाहावाद हेतु प्रस्थान करबाक योजना बनल । हमर यात्राक टिकटलगायतक यात्राक व्यवस्थापनहेतु भाई वसन्त वन्जाडे आ मुस्तफाक सहयोगक हम प्रशंसा करऽ चाहब ।
कुम्भ प्रस्थान–रात्रिबसके यात्रा
निश्चित तिथिमे राससके वार्षिकोत्सव कार्यक्रम सम्पन्न भेलै आ तकरबाद हम यात्राक तयारीमे जुटि गेलौँ । २०८१ फागुन ८ अर्थात २०२५ फ्रेबुअरी २० । व्यस्तता बढ़ि गेल रहए । एकटा संस्था छै ओमेन्स लीड । ओकर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम छलै महिलासभहेतु आठ गते आ संस्थाक दिसिसँ कविता लिम्बुजी हमरा एकटा क्लास लऽ देबाहेतु आग्रह कएने रहैथ । जिम्मेबारी हम स्वीकार कऽ लेने छलियै । ई क्लास लऽ हम बालकोट (घर) करिब साढे़ पाँच बजे पहुँचलौँ । साढे़ सात वजे कलंकीसँ बस पकडबाक छल– द प्यालेस बस । सोफा सिट ।
हम राससक हमर गाडी चालक यादव गोतामेकेँ पहिने कहने रहियनि । ओ सहयोग केलनि । गाडीसँ कलंकी पहुँचा देलनि । नियत समयपर पहुँचल रही । मुदा आधा घण्टा जते विलमऽ पडल । करिब आठ वजे बस आएल आ हमसभ अपन स्थान पकडि बैसलौँ । हम एहिबेर बहुत वर्षक बाद रात्रिवस सेवा प्रयोग कऽ रहल छलौँ । करिब छ वर्षक बाद । शायद तएँ, बस सेवाक बारेमे बड बेसी अद्यावधिक नइँ छलौँ । ई बस चढलाक बाद बुझाएल जे नेपालक बस सेवाक स्तरीयतामे बहुत अन्तर अएलैए । बसक एहन सुविधासम्पन्न अवस्था कमसँ कम हमर कल्पनासँ दूरक बात छल । सोफा सिट, बोतलक पानि, कम्मल (व्ल्यांकेट)क उपलब्धता साक्षी छल जे हम एहिसब बातसँ जानकार नइँ रही । हम आदित्यकेँ कहलियनि–बौवा बस नीक छै ने ? हम तँ नेपालमे एहन बसमे नइँ चढल छलौँ ।
बौवा कहलनि– अहाँ बसे कहिआ चढै छी ? आब तँ लम्बा यात्राक बहुतो बस एहने छै । एखने तुरत्ते तँ हम राजविराज गेल छलौँ । ओतहु एहने बस छलै ।
हमरा बुझाएल जे हमही अवस्थासँ अद्यावधिक नइँ छी । जमाना किछु किछु बदलि रहल छै आ तकर पर्याप्त जानकारी हमरा नइँ अछि । कोनो विषयक बारेमे हमरा जानकारी नइँ भेनाई जमाना आ समयक दोष नहि, ओ तऽ हमर दोष ने । जमाना तँ आगाँ बढबे करतै । जमानाक पएरसँ हम अपन पएर कते मिला सकै छी, ई तँ हमर बात अछि ने । आ, बौवाक आगाँ हम ई बात स्वीकार कएल । जानकारीक अभाव आ सहज स्वीकारोक्तिक समस्याक कारण पुस्तान्तरणक प्रक्रिया बाधित अछि आ दू पुस्तबीच दूरी बढ़िरहल छै । हम दुनूगोटे इएह आ एहने बात कऽ रहल छलौ आ बस नौवीसे पहुँचिगेल रहै । रस्ताक अवस्था ओहने बुझाएल । रस्ताक सम्बन्धमे तँ हम पूर्ण जानकार छलौ । बस नहिओ तँ छोटका चारिपहियासँ बरोबरि यात्राक अवसरि भेटि जाइए । लम्बा समयसँ अइ सड़कऽक मरमति जारी छै । सड़क विस्तार कऽ चारि लेनक बनेबाक योजना छै । छिटफूट ठामकेँ अपवाद मानी तँ करिबकरिब बुटवलधरिक रस्ताक हालति खराब छै आ ई अवस्था कहियाधरि विद्यमान रहतै कियो नइँ कहि सकैत अछि ।
नारायणघाटसँ पहिने रामपुरमे भोजन करबालेल बस रुकल । रातुक करिब साढे़ एगारह बाजिरहल छल । हमरालोकनि काठमाण्डूसँ चलबाकाल जलपान कने दाबिए कऽ कएने छलौ तएँ भोजनऽक खासे आवश्यकता नइँ छलै । भोजन नइँ कऽ तीनूगोटे चाउचाउ ग्रहण करबाक निर्णय हमरालोकनि कएलाैँ आ ताहिमोताविक होटलमे जा अर्डर देलियै । ओ कनेकालक बाद आनिदेलक । हमसभ खेलौँ । चाउचाउ नेपालमे लोकप्रीय अछि ताहिदुआरे नइँ बल्कि हमरासभक माननाइ अछि जे रातिमे हल्का भोजनक रुपमे चाउचाउ ग्रहण कएल जा सकैत अछि । मुदा खाद्यशास्त्रीसभ एहिमे अत्यधिक मैदा होबाक कारणे एकरा भोजनक रुपमे उपयुक्त नइँ मानैत छथि । ओतऽसँ बस आगाँ बढल आ कनेकाल बुटवलमे विलमैत चारि नम्बर जीतपुर होइत करिब सात वजे भोरमे तौलिहवा पहुँचल ।
कएलेण्डरक तारिख आ गते बदलिचुकल छल– २०८१ फागुन ९ अर्थात २०२५ फ्रेबुअरी २१ । हम बाटेसँ वसन्त आ रवि जीक सम्पर्कमे छलौँ । वसपार्कमे उतरि हमरालोकनि एक अटो लऽ माहुरी होम पहुँचलौ । ओतऽ निर्मला हमरासभकेँ विश्राम करबालेल एक कोठली तयार कऽ रखने छलीह । कनेकालक बाद वसन्त, रवि जी, खग चापागाइ, ओमप्रकाश आ माहुरी होमक वर्तमान अध्यक्ष आदरणीय दद्दु रामदयाल ठाकुर जीसभसँ भेट भेल । बाचचित भेल । चायपान चललै । कनेकालक बाद रेम टण्डन जीक होटल, जतऽ हम पहिनहुँ कएकबेर भोजन कएने छी,मे गेलौँ आ भोजन कएलाैँ । हमरा एतहुका भोजन नीके लगैए । भोजन स्वस्थकर, साफ आ ताजा रहैत छै से हमर विश्वास अछि । मुन्नी आ आदित्यकेँ सेहो भोजन नीक लगलनि ।
प्रयाग आगमन—मिशन संगम घाट

भोजन कऽ माहुरी होम अबैतकाल करिब सवा बाह्र बाजिरहल छलै । प्रयागराज जेबाहेतु जे गाडी रवि जी ठीक कएने छलाह ओ दू वजेक करिब आओत से जानकारी छल । तएँ हमरालोकनि कनेकाल आराम करबाक नेआर कएल । नइँ जाइन किए रातिमे बसमे नीकजकाँ निन्द नइँ भेल । कनेकोकाल आँखि लागि जाइत तँ नीके रहैत । आ से ठीके कनेकाल सुतागेल । गाडी लऽ चालक मनिष करिब डेढे बजे आविगेलाह । हमरासभकेँ जानकारी देल गेल । हमसभ तीनूगोटे उठि तैयार भेलौ आ ठीक दू वजे बाहर एलौ तँ यात्रा टोलीक आन सदस्य रवि जी, हुनकर पत्नी आ एक बचिया रेखा (रवि जीक पडोसीक लडकी) स्कर्पिओ गाडीलग बैसल रहथि । हमहुँसभ बैसलौँ । चालक मनिषसहित सात गोटेक यात्रा दल आगाँ बढल । दलक भौतिक नेतृत्वक जिम्मेबारी छल मनिषपर आ अन्य जिम्मेबारी छलनि रवि जीपर ।
गाडी नेपालक बहादुरगञ्ज आ कृष्णनगर होइत बढनीमे भारत प्रवेश कएलक आ ओतऽसँ वस्ती, हर्दिया चौराहा, सिद्धाार्थनगर, टण्डा, डुमरियागञ्ज, अमबेडकरनगर, सुलतानपुर–दोस्तपुर, आजमगढ, अमेठी, प्रतापगढ होइत प्रयागराज पहुँचल । एहिबीच हमरालोकनि हर्दिया चौराहापर चाय पिने रही तँ अमबेडकरनगरमे भोजन कएने रही ।
इलाहाबाद तँ नइँ मुदा बढनी, सोहरतगढ, वस्ती, महाराजगञ्ज, सिद्धार्थनगर, गोण्डालगायत अइ इलाकाक सामान्ँय भ्रमण हम पहिने कऽ चुकल छलौँ । अइ आधारपर अइ जगहसभक बारेमे हम तुलनामत्मक अध्ययन कऽ सकैत छी आ हमर अध्ययन कहैत अछि, ई क्षेत्र यातायात, भौतिक संरचना, सरसफाई आ व्यवशायक क्षेत्रमे अभूतपूर्व उपलब्धि प्राप्त कएलक अछि ।
हमरासभक गाडी रातुक करिब साढे़ एगारह बजे प्रयागराज आबि चुकल छल । चारुकात गाडीक करमान । पार्किगंक समस्या बुझनागेल । गाडीक भीडक आधारपर कुम्भमे सहभागीक संख्याक अनुमान सहजहि कएल जा सकैत छलै । आब मनिष पार्किगक खोजीमे छलथि । कनेकालक गोलगोल घुमानऽक बाद अन्ततः मनिष जगह ताकिए लेलनि– लक्ष्मीब̊ार बडा बघाडा । गाडीकेँ एतऽ पहुँचलापर हम घडीमे समय देखलौँ साढे़ बाह्र बाजिगेल छल । अर्थात तारिखमे परिवर्तन आविगेल छल– २०८१ फागुन १० अर्थात २०२५ फ्रेबुअरी २२ ।
मनिष कहलनि “संगमधरि पहुँचबालेल सबसँ छोट दूरीक रस्ता इएह अछि । एतऽसँ घाटधरि पहुँचबामे तीन किलोमिटरक यात्रा तय करऽ पड़त आ तकरबाद संगमघाटक यात्रा ।”
मनिष हमरालोकनिकेँ रस्ता देखा स्वयं गाडीमे जा कनेकाल सुतबाक उपक्रममे व्यस्त भऽ गेलाह । आ एमहर हमहुँसभ संगम घाटपर जेबाक यात्रा प्रारम्भ कएलाैँ । एतऽ हमरासभक पथप्रदर्शकक काज कऽ रहल छलीह रेखा । हिनका एतहुका बारेमे किछु जानकारी छलनि जे ई एतऽ प्रयोग करबाक प्रयास कऽ रहल छलीह । हमसभ सेक्टर ६मे छलौँ । हमरासभकेँ सेक्टर ५मे पहुँबाक छल । हमसभ बासुकी नाग मन्दिर, नीरन्जन अखाडा, दशास्वमेघ घाट, पण्टुन पुल, कच्छपद्वार, नन्दीद्वार तथा संगमद्वार आदि होइत संगम घाटदिसिक यात्रा करैत जा रहल छलौँ। रस्ताक दुनू कात अस्थायी प्रकृतिक दोकानसब छलै । जतऽ चाय, जल, उपहारक सामग्री, होटल, विभिन्न धार्मिक तथा गैरधार्मिक संस्थाद्वारा भोजनक निःशुल्क स्टल आ चुडा़, मुड़ही, अडाँची दाना, पेठा आदि भेट सकैत छलै । एकटा बात तँ निश्चित बुझाएल जे अइ आयोजनसँ स्थानीय अर्थतन्त्रकेँ सकारात्मक प्रभाव पडल हेतै । नागा बाबासभक संख्या शायद एखन कम भऽ गेल छै ।
एखन जाए कालमे बडे बेसी भीड नइँ बुझाएल । भीड तँ छलैहे मुदा जेना वर्णित छलै तेहन नइँ बुझाएल । एकटा बात स्वीकार करहि पड़तै, डेढ महिनाधरि एकहि ठाम लोकऽक ई विशाल हुजुमकेँ व्यवस्थापन केनाई साधारण बात नइँ छलै । मुदा किछु अपवादकेँ छोड़ि देल जाए तँ व्यवस्थापन कएल गेलै । १५/२० हजारक संख्यामे निरन्तर सुरक्षाकर्मी, डेढ लाखके संख्यामे शौचालय आ मुत्रालय, वस्त्र परिवर्तन कक्ष, स्नानहेतु असंख्य घाटके निर्माण आ व्यवस्थापन, अस्थायी आ स्थायी सड़क व्यवस्थापन, डेढ दर्जनसँ बेसी विशाल पार्किगं क्षेत्रक व्यवस्थापन कम चुनौतिपूर्ण नइँ छलै । मुदा सम्बन्धित व्यक्ति आ निकायसभक सामूहिक प्रयासक कारणे ई सम्भव भऽ सकलै आ नीक जकाँ सम्भव भऽ सकलै ।

भोरक करिब अढ़ाइ पौने तीन बजैत हेतै हमसभ संगम घाटपर पहुँचलौँ– सेक्टर ५ घाट नम्बर ३२ । हमसभ जाधरि धाटपर पहुँचलाैँ लोकके भीड बढ़ल नइँ छलै तएँ हमरालोकनि सहजता मूल्यांकन कऽ घाटऽक चयन करबालेल स्वतन्त्र छलौँ । ई स्वतन्त्रताक लाभ हमसभ उठेबो कएलाैँ मुदा एकर आनन्द बेसीकाल कायम नइँ रहि सकल । बुझाएल एना जे, दसे मिनटक भितर लोकऽक भीड बेहिसाब बढ़िगेल हुअए आ से भीड बढ़िते जा रहल छलै । जेना सलह कृषि फसलपर फैलैत जाइत छै तहिना एतऽ लोक संगम अर्थात गङ्गा, यमुना आ सरस्वति नदिक मिलन क्षेत्रपर पसरैत जा रहल छलै ।
रविजीक कहल बातक अर्थ हमरा आब नीकजकाँ बुझबामे आएल । ओ यात्रामे निकलऽसँ पहिने तौलिहवेमे कहने रहैथ– प्रयास करब जे हमरालोकनि एक बजेधरि घाटपर पहुँचब आ तीन/चारि बजेधरि स्नानादिक कार्य सम्पन्न कऽ बेसीसँ बेसी साढे़ पाँच बजेधरि प्रयागराज छोडि दी । हमसब हुनके बातऽक अनुशरण कऽ रहल छलौँ । जँ हमसभ ओहिसँ कनिको विलम्ब होइतहुँ तँ सम्भव छल बडका जाममे फँसि जैतौँ ।
संगममे स्नान—ब्रम्हमुहुर्तमे पवित्र जल स्पर्श

अन्ततः शनि दिन फाल्गुन कृष्ण पक्षक दशमीक दिन प्रयागराजमें चलिरहल महाकम्भ २०२५मे स्नान करबाक सौभाग्य भेटल । निश्चित भऽ घडी तँ नइँ देखलियै, मुदा एते तँ दाबी हम करबे करब जे हमरालोकनि छओ गोटे भोरुकवाक तीनवजेसँ साढे़ तीनवजेक बीचमे श्रद्धा आ प्रेमपूर्वक संगममे डुबकी लगा स्नान कऽ लेने छलौ । आध्यात्किम हिसाबे ई समय ब्रम्हमुहुर्तसँ सम्बन्धित अछि । कहल जाइत छै कि ई खाली धार्मिक आयोजन नइँ छै, बल्कि मानवता, आस्था, आ सनातन संस्कृतिक महान पर्व छै । ई एक दुर्लभ दिव्य अवसर छै जे एक सओ ४४ वर्षमे मात्र उपलब्ध हाइेत छै । कमसँ कम चारि पीढ़ी आगाँ आ चारि पीढ़ी पाछाँक लेल ई अवसर उपलब्ध नइँ होइत छै । आ, बोध भेलाक बाद कि ई आध्यात्मिक शुद्धि, ऐतिहासिक अनुभव, आ सांस्कृतिक समृद्धि जीवनमें प्राप्त होबऽबला दुर्लभ अवसर छै, हम रविजीक सँग महाकुम्भमे सहभागी होबाक नेआर कएने रही ।
उपरउल्लेख कऽ चुकलौँ जे हमरालोकनि संगम घाटपर पहुँचिगेल रही । ओहिठाम एकटा प्लास्टिक विछा अस्थायी विश्राम कायम कएलाैँ आ सभकेओक कपडालत्ता ओतहि राखल गेल । बेराबेरी जा सभकेओ स्नान कएल । तकरबाद मुन्नी पुनः घाटपर धुपदीप लऽ जा पूजा केलीह । एते सब काज कएलाक बाद घडीदिसि नजरि पडल पौने चारि बाजिगेल छल । लोकऽक भीड बढ़ैत जा रहल छलै । आब ओतऽसँ जते जल्दि निकलब नीक हएत से विमर्श करैत हमरालोकनि आब फिर्ति यात्राहेतु आगाँ बढऽ लगलौँ । ओहिसँ पूर्व आदित्य घाटपर जा दूटा वर्तनमे संगम जल भरि अनलनि । मुन्नी सेहो घाटपर गेलीह आ तखन पूजाकालमे दोनामे जे बाती बरैत छोडि आएल छलीह ओकरा जलमे प्रवाह क एलीह । हमसभ आगाँ बढऽ लगलौँ । एक दूबेर पाछाँ उनटि तकलियै दीपऽक दोना सेहो बहैत हमरेसभजकाँ आगाँ बढ़िरहल छलै ।
संगमसँ लौटैतकाल मोनमे अनेक बात आएल । संगमक आध्यात्मिक महत्व, एकर पवित्रता, करमान लागल लोकऽक भीडऽक बीच जल–प्रदूषण, रोग–व्याधिक संक्रमण आदि आदि अनेक बातऽक वहस मोनमे जारी छलै । मुदा सबसँ पैघ छलै आत्मतृप्तिक आत्मबोध ।
सातम शताब्दीमें चीनी यात्री ह्वेनसाङब̊ारा कतौ प्रयागक सम्बन्धमे चर्चा कएल गेल कहल जाइत अछि । मानल जाइत अछि जे, ह्वेनसाङ प्रयागक सन्दर्भमे “मोक्षक संगम“ क चर्च कएने छलाह । त्रिवेणी संगम–गङ्गा, यमुना, आ सरस्वतीक संगम–हजारों वर्षसँ मोक्षक स्थान मानल जाइत अछि ।

कुम्भक इतिहास आ पौराणिक कथाक उल्लेख हिन्दू धर्मक पुराणमें विशेष रूपसँ भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत, आ रामायणमें भेटैत अछि । कुम्भक मूल कथा समुद्रक मन्थनसँ सम्बन्धित अछि । जखन देव–दानव मिलि कऽ सागर मथलनि तखन अमृत कलश (अमरताक घैल)क उदय भेल । समुद्र मन्थनसँ प्राप्त अमृत प्राप्तिहेतु देव आ अशुरबीचक संघर्षक क्रममे अमृत कलश (कुम्भ)सँ किछु बुँद प्रथ्वीपर खसल से मानल जाइत अछि । अमृत प्राप्तिहेतु देव आ अशुरबीच संघर्ष भऽ अमृतक बुँद पृथ्वीपर खसवाक समयमे जे खगोलीय अवस्था विद्यमान छल से अवस्था पुनः निर्माण होबालेल एक सओ ४४ वर्ष लागैत छै आ एहिबेरक कुम्भ उएह खागोलीय अवस्थाक बीच विद्यमान मानल जाइत अछि, तएँ ई मात्र कुम्भ नइँ महाकुम्भ अछि । ई भूमि एकबेर फेर लाखों भक्तक आत्मशुद्धिक केन्द्र बनिरहल अछि ।
किछु अवस्था एहन होइत छै जे अनुबोध तँ कएल जा सकैत छै मुदा भाव सार्वजनिक करब अत्यन्त असहज भ जाइत छै । हमरो एहने अनुभव भेल । एक सओ ४४म वार्षिक महाकुम्भ मेलासँ घुरबाकालक भावकेँ शब्दमे व्यक्त करब कठिन बुझाएल अछि । ई खाली धार्मिक/आध्यात्मिक यात्रा नइँ छल, बल्कि जीवनक गहराई आ सत्यताकेँ अनुभव करबाक क्षण सेहो छल । सन्त–ऋषिक उपस्थितिक ऐतिहासिक भव्यता, आध्यात्मिक ऊर्जा, आ दिव्य उपस्थिति मोनकेँ ऊर्जावान बना देने हुअए से अनुभूत भेल । बादमे सामाजिक सञ्जालसँ जानकारी भेटल हमरालोकनि जाहि दिन प्रयागराजमे कुम्भ स्नान कएने रही ओही दिन पोखराक पत्रकार मित्र दीपेन्द्र श्रेष्ठ सेहो ओतऽ स्नान कएने रहथि । मुदा ओतऽ हमरासभक भेट नइँ भऽ सकल रहए । ओतऽसँ घुरलाक बाद ओ सञ्जालमे अपन भाव व्यक्त कएने छलथि— भक्ति, ध्यान, आ विश्वाससँ जुड़ल ई समय जीवनक एकटा अविस्मरणीय क्षण छल ।
हम स्वीकार करै छी दीपेन्द्रक भाव आ विचारसँ हमहुँ सहमत छी । ठीके संगममे डुबकी लगेबाक क्षण जीवनक एक अविष्मरणीय क्षण छल जकर प्राप्ति सहज नइँ छै आ ओ क्षणकेँ अनुभूत करब कम पैघ उपलब्धि नइँ अछि । हम एहने आ इएह बात सोचैत आगाँ बढ़ि रहल छलौं, देखलियै कच्छपद्वार आबि गेल छै आ अइ द्वारसँ आगाँ देखैतकाल जे लोकक समुद्र देखलियै से अविश्वसनीय आ आश्चर्यजनक छल । हम एकहिबेर एकहि ठाम एतेक लोककेँ अपन जीवनमे एहिसँ पहिने नइँ देखने रहियै । बुझाएल जेना जे ई सब लोक चलि नइँ रहल हुअए बल्कि सनातनी संस्कृतिक उत्कर्ष अभिव्यक्तिक रुपमे संगम घाटदिसि बहिरहल हुअए संगमेक जलजकाँ…….. ।