
‘मधेशमे गुराँस’ आ ‘पहाड़मे गुलमोहर’ फूलतै कि नहि फूलतै ?
■ कविता : युवासभ
अहाँक मुहदिस
जखन हम निहारैत छी
जेना चिरखल
भूकम्पक इसपातमे
वर आ पिपर उपजल देखैत छी।
अहाँक आँखिमे
जखन हम देखैत छी
जेना मुनल
सपनाक खानिमे
कलकल बहैत पानि देखैत छी।
अहाँक लिलारमे
जखन हम देखैत छी
जेना मूर्झाएल फुलवारिमे
सगर देश फूलाएल देखैत छी ।
के कहै छथि जेँ देश नहि बनत ?
के कहै छथि जेँ देश नहि उठत ?
हे !
शब्दक नायक आ कर्मक कुम्भकर्णसभ
अहाँकेँ आग्रह करैत छी
एकबेर ओइ युवाक ‘तराइ’ सन
पसरल छातिमे देखू
एकबेर ओइ युवाक ‘पहाड़’ सन
अटल बाँहिमे देखू
‘हिमाल’ सन
ठाढ़ भेल शीरबिन्दुमे देखू।
देखू ओइसभक यात्रामे
उठल एक एक डेगकेँ देखू
देखू ओइसभक संवेदनासँ
भरल करेजक वेगकेँ देखू।
देखू ओइसभक आँखिमे
‘उगल नेपाल’ केँ देखू
तखन कहब हमरा
‘मधेशमे गुराँस’ आ ‘पहाड़मे गुलमोहर’
फूलतै कि नहि फूलतै ?
तखन कहब हमरा
हमरे जीवन-कालमे
इहए समय-सालमे
ई देशके निर्माणक ठोरमे मुसकान
झुलतै कि नहि झुलतै ?
● मूल कविता : रवीन्द्र मिश्र
मिश्र नेपालक प्रसिद्ध समाजसेवी, पत्रकार तथा राजनीतिज्ञ छथि आ बीबीसी नेपाली सेवाक प्रमुख सम्पादक रहि चुकल छथि। बीबीसी नेपाली सेवासँ राजिनामा दक’ राजनीतिमे प्रवेश कएने छलनि। अखन राजनैतिक पार्टीसँ राजनीमा लेने छथि।
● अनुवाद : विद्यानन्द वेदर्दी
अग्नीसाइर, कृष्णसवरण – ४, सप्तरी
( अनुवादक आइ लभ मिथिला डट कमक सम्पादक, मिथिला साहित्य-कला प्रतिष्ठान नेपालक सचिव आ म्यूजिक मैथिलीक संस्थापक सेहो छथि। )