
राजकमल चाैधरी जीक मैथिली कविता प्रस्तुत अछि….
महफासँ मूड़ी निहुराक’ हुलकि रहल अछि
चान,
नोरमे डूबल अछि अस्तित्व
प्राणसँ ढुलकि रहल अछि गान।
महफासँ मूड़ी निहुराक’ कोनो सोहागिन
नवकनियाँ
पाछाँ छूटल गाछी-बिरछी, बाघ-बोन,
आङन-घर, खरिहान-बखारी
ताकि रहल अछि
(ई महफा-दुरागमन अछि धधकैत घूड़!)
मकै-बालि सन पट्-पट्-पट्-पट्
पाकि रहल अछि
कोनो सोहागिन नवकनियाँ…
पाकि रहल अछि सोन-चिरइयाँ पाँखि
ताकि रहल अछि रोहु माछ सन आँखि!
आ, भरि दिनमे
योजन चलैत अछि चारू कहार
पार होइत अछि-
सात नदी, चौदह पहाड़!
…रस्तामे भेटल सभ मन्दिर, सभ पाथर,
सभ भगवती थानकेँ
दैत अछि प्रणाम
कोनो सोहागिन नवकनियाँ बिसरि जाइत अछि
अपन नाम आ गाम-धाम!
आँचर तरमे झाँपि लैत अछि
अप्पन सभ व्यक्तित्व
(नोरमे डूबल अछि अस्तित्व!)
महफामे बैसल-बैसल, गुनधुन करैत
अपन गामसँ
कोनो आन गामक दूरी
आँखि-आँखिसँ नापि लैत अछि!
जे बीतल से बिला गेल…
जे आओत से
सत्य थिक!
पाओल नहि जे, तकर करब की चिन्ता-विवाद
जे पायब एहि महफासँ
निहुरि उतरिक’
थिक सैह नीक!
राजकमल चौधरी
(मिथिला मिहिर पत्रिकामे प्रकाशित मैथिली कविता जे राजकमल चाैधरीद्वारा लिखल गेल छल।
(सन् 5.12.1965)