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मैथिली काव्य-साहित्यमे पर्यावरण विमर्श : रमेश

(लेखक: रमेश) साहित्योमे पर्यावरण, तकर प्रदूषण आ ताहिपर विमर्शक, वैह वैज्ञानिक परिभाषा स्वीकार्य अछि। स्वीकार कयल गेल अछि, जे ‘पारिस्थितिकी विज्ञान’ गढ़ने अछि। मानवक व्यक्तिगत कुप्रवृत्तिबला प्रदूषण आ पर्यावरणक प्रदूषण, दुनू दू टा फूट-फूट अवधारणा छी। तकर तर्कसंगत कारण ई अछि जे, सैह परिभाषा, वैज्ञानिक सोचयुक्त, अधुनातन, सर्वस्वीकार्य, सार्वजनीन आ वैश्विक अछि।

मुदा मानवीय प्रवृत्तिक प्रदूषणसँ, पर्यावरण आ पारिस्थितिकीक प्रदूषण, अलगट्टे आ एकदम्मे फराक रहितो, मानवीय प्रवृत्तिक प्रदूषणेक माध्यमे, पर्यावरण प्रदूषण सेहो अबैत अछि आ दुनियांमे आयल अछि। से फेर एकटा फराक तथ्य अछि।

पर्यावरणक अवधारणेँ, भौगोलिक रुपेँ विश्वव्यापी होइत अछि। मौसम, भौगोलिक रुपेँ स्थानीय अवधारणा छी, जलवायु एकटा क्षेत्रीय अवधारणा छी आ पर्यावरण एकटा वैश्विक अवधारणा छी। यद्यपि तीनूक अन्तर्सम्बन्ध अन्योन्याश्रित अछि आ से मानव जीवनकेँ समेकित रुपेँ सेहो आ फराक-फराक सेहो, प्रभावित करैत अछि।

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पारिस्थितिकी विज्ञान सुस्पष्ट करैत अछि जे, पर्यावरणमे जैविक विविधता, पादप विविधता, वनीय विविधता, वन्यजीवक विविधताक संरक्षण, वायु-चक्र संरक्षण, निर्माण-कार्यसँ भेल प्रदूषण, वायु प्रदूषणसँ मुक्ति, जल प्रदूषणसँ मुक्ति, ग्लोबल वार्मिंग नियंत्रण, कार्बन उत्सर्जन नियन्त्रण, मौसम आ जलवायु परिवर्त्तनक चिन्तन, पहाड़ आ समुद्रक संरक्षण, मृतप्राय पहाड़क पुनर्वास, प्लास्टिक-पोलीथीन बमसँ मुक्ति, आ सर्वतोभावेन प्रकृतिक आ मानवक नैसर्गिक जीवनक संरक्षण, आदि सम्मिलित अछि।

आजुक तिथिमे ताहि सम्पूर्ण आ समेकित संरक्षणक अन्तर्सम्बन्ध ‘इको क्रिटिसिज्म’ अर्थात् ‘पारिस्थितिकी आलोचनाक’ प्रशाखासँ उचिते अन्योन्याश्रित भऽ गेल अछि। पारिस्थितिकी आलोचना, पर्यावरण प्रदूषणक प्रसंगमे, पश्चिमी समाज द्वारा विकसित एकटा महत्वपूर्ण मानव-समाजी आलोचना-शास्त्र / समीक्षा-शास्त्र छी, जकर उपयोग सगर दुनियां कऽ रहल अछि।

पर्यावरणक उपर्युक्त सब पक्ष आ तत्वसँ ‘पर्यावरण संरक्षण’ आ ‘संरक्षण साहित्य’क महत्त्व स्वयंसिद्ध भऽ जाइत अछि।

पर्यावरणक वैश्विक विमर्श

आजुक समयमे, वैश्विक पर्यावरणमे जतेक विक्षोभ उत्पन्न भऽ गेल अछि, ताही अनुपातमे ‘पारिस्थितिकी आलोचना’ आ ‘पर्यावरण प्रदूषण’, ‘पर्यावरणक वैश्विक विमर्शमे स्थान पाबि रहल अछि। से अइ कारणें औचित्यसम्पन्न अछि जे, पर्यावरण विक्षोभक बिना स्वस्थ आलोचनाक, प्रदूषणक कारण सबहक मीमांसा-विश्लेषण केने बिना, पर्यावरण साहित्यक, पर्यावरण विमर्शक, पर्यावरण संरक्षणक, प्रदूषित दुनियां आ संकटग्रस्त समाजक, दिशा-संधान नइँ भऽ पबैत अछि।

मुदा पड़ताल करबाक ई विषय छी, जे मैथिली काव्य साहित्यमे पर्यावरण विमर्श, पर्यावरण चित्रण, प्रकृति संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषणक काव्यांकन, पर्यावरणक सब आ संगक संरक्षणक साहित्यांकन, संरक्षण साहित्यक सब आ संगक सृजनक स्थिति, पारिस्थितिकी आलोचनाक आ प्रकृति-प्रदूषणक, साहित्य-लेखन, आदिक मैथिलीमे की दशा अछि ?

एतऽ प्रसंगवशात् ई सुस्पष्ट कऽ देब जरुरी अछि जे, ‘मैथिली काव्य साहित्यमे, ‘प्रकृतिक स्थूल चित्रण’ सँ, ‘प्रकृतिक संरक्षण लेल विमर्श’ भऽ सकैत अछि। तकर प्रसंगक बाहुल्य अछि आ कोनो टा अभाव मैथिली कविता मे नइँ अछि। मुदा से ‘पर्यावरण प्रदूषणक चित्रण’, ‘पारिस्थितिकी आलोचना’ अथवा तत्सम्बन्धी विमर्श नइँ छी। ‘प्रकृति चित्रणक प्रसंग’ आ ‘पर्यावरण प्रदूषण विमर्शक प्रसंग’, दुनू दू टा फराक -फराक ‘विमर्श प्रसंग’ छी।

मैथिली काव्य-साहित्यमे पर्यावरण प्रदूषणक ‘सुचिन्तित आ विषय-केन्द्रित लेखन’ आबे आ समकालेमे भऽ रहल अछि। तखन प्रकृतिक अनेक आयामक स्थूल-चित्रण, काव्यक सब उप-विधामे, पूर्व मे, ‘अनायासहिं आ प्रसंगवशाते’, मुदा खूबे भेल अछि। सेहो ‘प्रकृति-चित्रण आधारित पर्यावरण विमर्श’ उठेबामे सक्षम अछि। मुदा ‘पर्यावरण प्रदूषण आ तकर आलोचना’ पर, किछुए कविक ध्यान गेलनि अछि। पर्यावरणक वैज्ञानिक तत्व-चिन्तन आ विज्ञानक आयाम सब, अधिसंख्य मुख्य आ स्थापित कविगणक मानस-लोकमे, मुख्य-स्थानीय आ प्राथमिकतायुक्त कम्मे भेल। तें ‘पारिस्थितिकीक विक्षोभ’ आ ‘प्रदूषणक आलोचना-आधारित पर्यावरण विमर्श’, तकर काव्य-सृजनमे सृजन-गुंफन आ साहित्य-सामंजन, पूर्वमे कम्मे भेल अछि। आबे से भऽ रहल अछि।

समकालीन समयमे आइ खण्डकाव्य आ महाकाव्य नगण्ये लिखा रहल अछि। तखन पूर्वमे रचित महाकाव्य आ खण्डकाव्यमे, प्रकृतिक स्थूल-चित्रण खूबे भेटैत अछि।

तकर अनेकानेक उदाहरण भेटैत अछि। जेना उदाहरण रुपें, प्रदीप मैथिलीपुत्रक ‘स्वयंप्रभा’ नामक खण्डकाव्यमे, भवेश चन्द्र मिश्र ‘शिवांशु’क खण्डकाव्य ‘कपीश कथामृत’मे, अथवा रवीन्द्रनाथ ठाकुरक ‘पंचकन्या’ नामक खण्डकाव्य आ अइ आलेखमे अ-उल्लिखित आन अनेक खण्डकाव्य आ महाकाव्य मे सेहो, रमणीक प्रकृति वर्णन भेल अछि, जकर ‘सबहक’ नाम गनायब एत’ अभिप्रेत आ संभवो नइँ अछि। आ तकर जरुरतियो नइँ अछि, कारण ई शोध-आलेख नइँ, प्रवृत्तिक सर्वेक्षण अछि। मुदा से सब ‘पर्यावरण विमर्श’क ‘आरंभिक चरण’ रहितो, ‘पर्यावरण विक्षोभ’ आ ‘प्रदूषणक आलोचना-आधारित काव्य’ नइँ अछि, जे ‘आजुक समयमे पर्यावरण विमर्शक सटीक अवधारणा’ आ आजुक साहित्यसँ ‘उचित मांग’ छी।

पर्यावरण प्रदूषणक आलोचनात्मक विमर्श

मैथिलीक आजुक ‘बालगीत आ बालकाव्य’मे सेहो, प्रकृतिक तत्व सबहक स्थूल वर्णन, खूबे रमणीक भऽ कऽ आबि रहल अछि, जे ‘पर्यावरण विमर्शक आरंभिक आधार-भूमि’ए प्रस्तुत करैत अछि। मुदा एहू उप-विधामे, ‘विषय-केन्द्रित’ भऽ कऽ ‘पर्यावरण प्रदूषणक आलोचनात्मक विमर्श’, गोटपगरे लिखा रहल अछि।

तहिना ‘मैथिली गीत-लेखन’मे सेहो, लगभ लगभ सैह भऽ रहल अछि। प्रकृतिक रमणीक चित्र सब आबि रहल अछि, जे पर्यावरण विमर्श तऽ उठाबैत अछि, मुदा ‘इको- क्रिटिसिज्म’बला आजुक ‘आलोचनात्मक विमर्श’ तऽ, नगण्ये आ गोटपगरे गीत उठाबैत अछि। गीतकारगणक माथमे एखन पर्यावरण प्रदूषण विमर्शक महत्त्व स्थापित हैब शेष अछि। तकर तुलनामे, मैथिलीक गजलकारे लोकनि कनेक बेसी आलोचनात्मक भऽ कऽ, पर्यावरण- संरक्षणक प्रति कनेक बेसी साकांक्ष भऽ कऽ, लेखन कऽ रहल छथि।
तथापि, ई मानऽ पड़त जे कोनो आन भाषाक कवितासँ बेसी, मैथिली कवितामे, ओकर सब उपभाग-प्रभागमे, अनायासहिं भेल प्रकृति-वर्णनक आधिक्य, ‘पर्यावरण विमर्शक आरंभिक ठोस आधार’ तऽ अवश्ये निर्माण केलक अछि, कऽ रहल अछि।

आइ पर्यावरण प्रदूषण, मानव समाजक समक्ष उपस्थित एकटा सर्वप्रमुख आ सबसँ पैघ संकट छी। से संकट प्रकृति-निर्मित नइँ, मानव-निर्मित छी। अइ संकटक तेँ समाधानो मानवेक हाथमे अछि। प्राकृतिक आयाम सबहक संरक्षण करब आ नैसर्गिक जीवन-शैली अपनायबे टा, तकर समाधान अछि।

तकर अगुआ साहित्येके हेबाक चाही आ साहित्य अपन ताहि भूमिकासँ पाछू नइँ हटि सकैत अछि। कारण, साहित्य समाजक आगू आगू चलि, नेतृत्व करैत अछि आ राजनीति अपन अनेक सीमाक चलते, बादमे तकर अनुगमन करैत अछि। आ तखन जाकऽ समस्याक समाधानक दिशामे डेग उठैत अछि।

प्रकृतिके अमानवीय दोहन आ विनाश

अनियोजित विकास, जंगल-पहाड़ आ प्रकृतिके अमानवीय दोहन आ विनाश, भोगवादी- भौतिकवादी बाजार संस्कृति, अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन, वाहन उद्योगक अराजकता, इंधनक धुआं, गैसीय मशीनक अनियंत्रित निर्माण आ उद्योगक धूरा-धुआं आदि, प्रदूषणक मुख्य कारण अछि। पर्यावरण प्रदूषण, ‘ग्लोबल वार्मिंग’केँ चरम पर पहुँचा देलक अछि, जकर परिणाम आइ जलवायु परिवर्तन, मौसम परिवर्तन, अम्लवर्षा, ग्लेसियर पघिलनाइ, हाहाकारी बाढ़ि, समुद्री चक्रवात, मानव समाजक विध्वंस केने जा रहल अछि। जनसंख्या विस्फोटे जकां, ‘पर्यावरण प्रदूषण’ आ ‘ग्लोबल वार्मिंग’, मानवक ‘अराजक आ अनियोजित जीवन शैली’, मानवीये सभ्यताक ‘सुनियोजित विनाश’मे लागल अछि।

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तेँ एहेन भयावह परिस्थिति, ई मांग करैत अछि जे, आजुक पर्यावरण विमर्श, ‘प्रकृतिक स्थूल चित्रण आधारित’ नइँ भऽ कऽ, ‘प्रदूषणक आलोचना-आधारित’ भऽ कऽ, काव्यमे ‘मुख्य स्वर’ बनय। तथापि, एतेक तऽ अवश्य भेल अछि जे, मैथिली काव्य साहित्यमे प्रकृति आ पर्यावरणक प्रसंग सब सऽ, आजुक अइ पर्यावरण विमर्श लेल पृष्ठभूमि निर्माण करैत, एकटा प्रस्थान-बिन्दु तय केलक अछि। आ प्रकृति-वर्णनक से प्रसंग-सन्दर्भ सब, मैथिलीक आदिकालीन, मध्यकालीन, आधुनिककालीन काव्यमे भरल पड़ल अछि, जकरा पृष्ठभूमि/आधार-भूमि पर, आजुक प्रदूषण-आलोचना-आधारित काव्य-सृजन आ तद्जन्य पर्यावरण विमर्श भ’ पाबि रहल अछि।

पर्यावरण विमर्शक पृष्ठभूमि/आधार-भूमि निर्माणक सेहो सन्दर्भ-प्रसंग उपलब्ध करेबाक सुयश, मैथिलीक समकालीन कालखण्डमे, प्राचीन धाराक आ समकालीन नव धाराक मुक्तक काव्य/कविकेँ, आ अंतिमरुपेण आजुक अधिकांशत: नवकविताकेँ, जाइत अछि।

ज्योतिरीश्वरक प्रकृति आ वसन्त वर्णनबला अनेक कल्लोल हो, विद्यापतिक पदावलीक घनेरो प्रकृति-चित्र हो, वा सुमनजीक ‘पयस्विनी’ आ ‘साओन भादव’क प्रकृति-चित्र सब, पारंपरिक कविता, पर्यावरण विमर्शक प्रसंग-सन्दर्भ जरुर देलक अछि आ खूबे देलक अछि।

नवकविताक युगमे जीवकांतजी जखन ‘लोकवादी प्रकृति-काव्य’ लिख’ लगलाह, तऽ ‘खांड़ो’ नदीक नाम पर कविता-संग्रहक नामकरण केलनि। ‘धार नइँ होइछ मुक्त’, ‘बौकी धरती माता’, ‘छाह सोहाओन'(गाछक सन्दर्भमे), ‘फुनगी नीलाकाशमे’, ‘तकैत अछि चिड़ै’, आदि पोथीमे अनेकानेक प्रकृतिवादी कविता रचैत, संरक्षणवादी साहित्यक जड़ि बनौलनि आ भविष्यक पर्यावरण विमर्श लेल, बहुते प्रसंग उपलब्ध करौलनि। तहिना सोमदेव, कुलानन्द मिश्र, डा.भीमनाथ झा, उदयचन्द्र झा विनोद, डा.धीरेन्द्र, रमानन्द रेणु, सुकान्त सोम, उपेन्द्र दोषी, डा.वीरेन्द्र मल्लिक, रामलोचन ठाकुर, सबहक कोनो ने कोनो कवितामे पर्यावरण विमर्श आयल आ अबैत रहल।

कवि कीर्त्ति नारायण मिश्र आ अग्निजीवी पीढ़ीक अनेक कविक कवितामे, फैक्ट्री-मिलक धुआं आ कुहेस-धोन्हीक सन्दर्भ खूबे आयल, जे ‘प्रदूषण-प्रतीक’ तऽ अवश्ये छल।

तहिना धुआं आ प्रदूषण, लक्ष्मण झा ‘सागर’क ”लावा होइत धान” नामक कवितामे आयल अछि। कृष्ण मोहन झा ‘मोहन’क कविता हो, गंगानाथ गंगेशक अथवा मधुकान्त झा आ सुरेन्द्र नाथक कविता, पर्यावरण विमर्शक कोनो ने कोनो सन्दर्भ अवश्य भेटत।

धरतीक गर्भमे सुरक्षित अछि जल

अग्निजीवी पीढ़ीक कुणाल आ अग्निपुष्प जीक संग, अत्यंत महत्वपूर्ण कवि हरे कृष्ण झाक ‘जे दिन, से दिन’, ‘गुलाब खास’, आदि कवितामे पर्यावरण विमर्श आयल।विभूति आनन्दक ‘पहाड़ आ अन्य कविता’ सेहो पर्यावरण विमर्शक प्रसंग दैत अछि।

डा.नारायण जीक अनेक कवितामे (जीवकान्ते जी जकां) गाछ-चिड़ै-नदी अबैत रहल अछि। से रुसोक प्रकृतिवादिता, वा अंग्रेजी काव्यक रोमान्टिक प्रकृतिवाद, कनेक लोकोन्मुखी बनि, अबैत रहल। कवि नारायण जी ‘धरतीक गर्भमे सुरक्षित अछि जल’ अपन काव्यपोथीक सुविचारित नामकरण केलनि, जखनकि भूजल ‘पूर्ण अरक्षित’ भऽ गेल अछि देस मे। आ जल-संकट विश्वयुद्ध करेबा पर विर्त्त अछि। तथापि, ई सब कविता, पर्यावरण विमर्शकेँ आगू तऽ बढ़बिते अछि।

रमेशक ‘चन्दन वनमे सांप'(केदारनाथ ग्लेशियर पघिलनाइ आ कश्मीर-बाढ़ि-विभीषिकाक कथ्य-प्रसंग),
‘सूर्यमुखीक पुंकेसर पर परागकणक अविरल संरचना होइए’, ‘सदानीराक तट पर किलोल करैत पंछीक झुंड’ आदिमे पर्यावरण विमर्शक आधुनिक तत्व सब आयल।

मुदा रमेशक ‘कोसी घाटी सभ्यता’/ ‘पाथर पर दूभि’ मे कोसी क्षेत्रक प्रकृति विध्वंस-विमर्श/मानव पीड़ा-विमर्श आ तारानन्द वियोगीक काव्य-पोथी ‘प्रलय रहस्य’, कोसीक मानव-निर्मित त्रासदीक, अनियोजित-अदूरदर्शी विकासक/तटबन्ध संस्कृतिक, पर्यावरण-विनाशकारी विमर्श, उपलब्ध करौलक। एही क्रममे हालहि, रमेशक ‘प्रवृत्ति-प्रदूषणक विरुद्ध’ नामक दीर्घ-आकारीय, प्रदूषणक आलोचना-आधारित/विषय-केन्द्रित, सम्पूर्णत: प्रदूषण-आलोचनापरक ‘इको- क्रिटिसिज्म-काव्य’ आयल अछि।

नव पीढ़ीक अरुणाभ सौरभक अनेक ‘कोसी-विध्वंसक स्थानीयता-काव्य’, विमर्शक गंभीर प्रसंग देलक अछि। तहिना अरुणाभ जीक पूर्वक मैथिल प्रशान्त, दिलीप कुमार झा, विनय भूषण, मनोज शाण्डिल्य, रमण कु.सिंह, सारस्वत आदिक गोटपगरा कविता सेहो, पर्यावरण विमर्शक प्रसंग देलक अछि।

मुदा मैथिलीक जड़ परिस्थिति, कोनो तेहेन ‘सांस्थानिक पर्यावरण विमर्श’क आयोजन नइँ होअ’ देलक। नदी, जल आ माटिक वा जंगल-पहाड़ आ पर्यावरणक, कोनो संरक्षणक उपक्रम नइँ कयल जा सकल अछि।

मनीष अरविन्दके रचनामे प्रकृतिक विमर्श

किन्तु प्रकृति-संरक्षणवादी अथवा ‘पर्यावरण प्रदूषण विमर्श’क तेहेन सटीक काव्य-लेखन, एकर पूर्वेक पीढ़ीक कुमार मनीष अरविन्दक अनेकानेक कवितामे जमि कऽ, संरक्षणक सुस्पष्ट उद्देश्यक संग भेल अछि।

मनीष अरविन्दक ‘पृथ्वीक उक्ति:पुत्रक प्रति'(मिझायल सूर्यक नगर, १९९५ ई.) मे जैव-वैविध्यक ध्वंससँ लऽ कऽ, वन-विनाश धरिक चिन्ता-चिन्तन भरल पड़ल छल। ‘निछच्छ बताह भेल'(२०११ ई.) मे ‘वन्यजीवक सुनू पुकार’, ‘जिनगीक ओरिआओन करैत’ मे, ‘नोट रिकोमेंडेड’ नामक प्रलम्ब कवितामे वनदेवी, नदी, जंगल, पहाड़ आ वन्यजीवक रक्षाक गोहारि करैत छथि, कवि मनीष अरविन्द।
‘बगड़ाके भोटे नइँ छै’, ‘चल, जंगल चल’ आदि हिनकर दर्जनो प्रकृति संरक्षण-काव्य, पर्यावरण विमर्शकेँ उचित लीक पर दौड़ेलक अछि। सेहो पर्यावरण प्रदूषणक वैज्ञानिक आधार पर। तथापि, प्रकृतिक आयाम सबहक भौतिक संरक्षणक प्रति उदासीनता, समाज आ देसक स्तरमे, एखनहुँ व्याप्त अछिए।

हिनकर बादक पीढ़ीक अजित आजादक कवितामे, गिद्धक विलुप्तिक प्रसंग आयल अछि, जकरा आब गूगल पर सर्च करबाक बेगरता कविकेँ बुझाइत छनि। अनेक कविकेँ आ आम लोकोकेँ, आब नीलक़ंठक दर्शन मात्र विजयादशमीक दिन, सेहो गूगलेक कृपासँ, अथवा कवितेमे संभव भऽ पबैत अछि। सेहो बगड़ा, नीलकंठ, खंजनि – गोरैया आ गिद्धक दर्शन, मैथिली कवितामे, गोटपगरे कविक कवितामे, आ कम्मे काल होइत अछि। बेसी काल सोसले मीडिया पर, राजनाथ मिश्रक गद्यलेखनेमे भऽ पबैत अछि। तकर सबहक विलुप्तिक कारणो, मोबाइल टावरक विकीरण, भांति-भांतिक प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग आ जलवायु परिवर्त्तने अछि।

तथापि, आइ केन्द्रीय साहित्य अकादेमीएक वेबिनारक कृपासँ सेहो विमर्श भऽ पाबि रहल अछि। रचना-आधारित आ पत्र-पत्रिकामे फूटसँ स्वतंत्र साहित्यिक विमर्श/बहस, नहिए जकाँ भऽ पबैत अछि।

अपितु आजुक काव्य-साहित्य-सृजनोमे, अइ ज्वलंत आ एकटा गंभीरतम समस्याकेँ, प्रदूषण-ग्लोबल वार्मिंग आ जलवायु परिवर्त्तन आधारित, कम्मे स्थान भेटि पाबि रहल अछि, जे अपेक्षासँ कम अछि, यद्यपि तत्सम्बन्धी सब कविता आ सब कविकेँ पढ़ि लेबाक दाबी नहिए कयल जा सकैत अछि।

छुच्छ प्रकृति-चित्रणसँ विमर्श आरंभ तऽ भऽ सकैछ, मुदा आजुक तिथिमे, पर्यावरण संरक्षणक सार्थक विमर्श तखने संभव अछि, जखन रचनामे सृजनक आधार, पर्यावरण, प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण आलोचना आदिकेँ बनाओल गेल हो।
से तेहेन रचना हैब, उचित परिमाण आ संख्यामे, एखनहुँ अपेक्षासँ कम अछि।

बालकाव्यमे वातावरण संरक्षण

बालकाव्य आ बालगीतकेँ देखी, तऽ जीवकान्तजीक ‘हमर अठन्नी खसलै वन मे’ आ ‘गाछ झूल झूल’मे, सियाराम झा ‘सरस’क बालगीत आ राम लोचन ठाकुरक बालकाव्य पोथीमे, अमित मिश्रक बालगीत पोथी(अंशु बनि पसरि जायब)मे, लक्ष्मी सिंह ठाकुरक ‘हम्मर बौआ’मे, कमलेश प्रेमेन्द्रक बालगीत पोथी (आमगोटी जामगोटी) अनमोल झाक बालकाव्य(उड़ि जो गुड्डी अकासमे) चन्दन कुमार झाक आ मिथिलेश कुमार झाक बाल गीतिकाव्य, अक्षय आनन्द सन्नीक अथवा वीरेन्द्र झाक बालकाव्य पोथी सबमे, प्रकृतिक आ संग सबहक वर्णनक प्रचूर आ रमणीक काव्यचित्र आयल अछि, जे पर्यावरण विमर्श उठबैत अछि।

मुदा ताहि पर लिखित सामाजिक वा साहित्यिक विमर्श, भौतिक रुपेँ, कम्मे-सम्मे भऽ पाबि रहल अछि। प्राकृतिक उपादान सबहक संरक्षणक नेत, काव्य-लेखन आ बालगीत- लेखनक ‘हेतु’ मे अन्तर्निहित रहितो, बाल काव्य-साहित्यक रचनोमे, प्रदूषण-जलवायु परिवर्त्तन, ग्लोबल वार्मिंग आदि आधारित पर्यावरण विमर्शक तत्व सब, कम आ नगण्य आबि रहल अछि, जे ‘आजुक समकालीन अपेक्षा’ छी।

समकालीन मैथिली मुक्तक काव्यमे अथवा नवकवितामे, इनार-कूपक भत्थन भऽ कऽ लगभ लगभ विलुप्त भ’ जेबाक चिन्ता, तकर संरक्षणक चिन्तन, डा. नारायणजीक, केदार काननक अथवा अरविन्द ठाकुरक श्रृंखलाबद्ध अनेक कवितामे व्यक्त भेल अछि।

तथापि, भौतिक रुपेँ इनार अथवा पोखरिक संरक्षण नइँ भऽ सकल अछि आ ने भऽ रहल अछि। आब पोखरिक संख्या घटैत जा रहल अछि। पोखरि भत्थन बेसी भऽ रहल अछि आ उड़ाही कम भऽ रहल अछि। तकर चिन्ता आ चिन्तन गोपाल झा ‘अभिषेक’क कविता-संग्रह ‘कइएक अर्थमे’ केर ‘पोखरि-श्रृंखला काव्य’ मे आयल अछि।संगहि, ईहो नइँ कहल जा सकैछ जे कवितामे विचारक सार्थक विस्फोट करैत नव्यतम कविपीढ़ीक कवितामे पर्यावरण विमर्शक प्रसंग नइँ आयल हो।

तहिना कवयित्रीगणमे ज्योत्स्ना चन्द्रम्, सुस्मिता पाठक, कामिनी, रोमिशा, शारदा झा, निवेदिता झा, आ नव्यतम पीढ़ीक कवयित्रीगण आदिक कविता मे सेहो, बहुलताक संग पर्यावरण विमर्शक तत्व सब उपलब्ध भेल अछि।

तथापि, सब प्रासंगिक कवि/कवयित्रीक कविता पढ़िए कऽ, ई आलेख लिखबाक दाबी नइँ कयल जा सकैछ। आलेखमे विश्लेषण, उपलब्धता संभव भेल कविता सबहक स्वरुप-आधारित अर्थात् प्रकृति-चित्रणक पारंपरिकता अथवा पर्यावरण प्रदूषणक चित्रण आ आलोचनात्मकताक आधारे पर, कयल गेल अछि।

मुदा आइ मिथिलाक अनेक धैनुआरि नदी बिसुखि रहल अछि। लोक पोखरि-स्नान छोड़ने जा रहल अछि आ चापाकल-बोरिंगमे पानिये सुखायल जा रहल अछि। लाख टका खर्च कऽ लोककेँ ‘सबमर्सिबुल बोरिंग’ गड़ाबऽ पड़ि रहल अछि। काव्य-चिन्तनक बावजूद, जल-समस्याक समाधान नइँ भऽ पाबि रहल अछि।

प्रदूषण आ पर्यावरण आलोचना

तेँ पर्यावरण प्रदूषण आ पर्यावरण आलोचना, आजुक कवितामे ‘मुख्य स्वर’ बनि कऽ, पर्यावरण विमर्शकेँ समकालीन आ सार्थक मोड़ दिअय, से अत्यंत जरुरी अछि, आजुक कवितामे।

मैथिली कविता आब, पर्यावरण विमर्शमे, प्रसंग आ सन्दर्भसँ आगूक यात्रा, तीव्रगतिए सम्पन्न करय, से जरुरी अछि। से आब होअऽ लागल अछि। ‘प्रकृति उदास अछि’ (मधुबनीक एक कविक), आब कविता-संग्रहक नामकरण होअऽ लागल अछि, जे आजुक कविक पर्यावरण संरक्षणक चिन्ता आ चिन्तने छी।

आब जखनकि प्रकृति-चित्रण आ पर्यावरण विमर्शक आन-आन विविध तत्वक बदौलत, पृष्ठभूमि आ प्रस्थान-बिन्दु निर्धारित भऽ चुकल अछि, पर्यावरण प्रदूषण,जलवायु आ मौसम परिवर्त्तनक अनिश्चितता, आदि पर विषय-केन्द्रित काव्यलेखन, आजुक समयक ज्वलन्त मांग अछि, जाहि पर प्रगतिशील चेतनाक कविगणक, बेसी ध्यानाकर्षण हेबाके चाही।

  • विषय-केन्द्रित कविताक गोटपगरा उदाहरण, ताहि पर सघन विमर्श लेल, अपेक्षानुकूल काफी नइँ अछि।पर्यावरण चेतनाक सब पक्षकेँ सांगोपांग समाहित करैत, तत्सम्बन्धी आजुक अद्यतन विषय-केन्द्रित, ‘इको-क्रिटिसिज्म केन्द्रित’, काव्यपोथीयो छपबाक चाही।
  • तकर कविगणसँ अपेक्षा आ प्रतीक्षा अछि। आजुक पर्यावरण विमर्शक सार्थकतो तखने अछि, जखन प्रकृति-संरक्षणवादी साहित्यक सृजन, प्रकृतिक स्थूल चित्रण-आधारित पछुआयल नइँ भऽ कऽ,आजुक समयक मांगक अनुरुप आ प्रदूषण-समस्याक विश्लेषण-आधारित, आलोचनात्मक आ अद्यतन भऽ कऽ, ‘इको- क्रिटिसिज्म आधारित भऽ कऽ, मैथिली कवितामे आब भरखरि आबय। गोटपगरा बनिकऽ नइँ रहय।

से अस्तव्यस्त मिथिला समाजक भूगोल/पर्यावरण लेल, चिन्ताजनक एक्यूआइ लेल, देस-दुनियांक स्वास्थ्य-सुरक्षा लेल, प्रदूषण-पीड़ित मानवता लेल, आसन्न-अवश्यंभावी संकटक निदान लेल…आ अंतत: मैथिली काव्य-साहित्योक लेल, अत्यावश्यके अछि।

■ परिचय : रमेश

साहित्यकार रमेशक जन्म १८ नवम्बर १९६२, दरभंंगाामे भेल छनि। समकालीन कविताक ई एकटा महत्त्वपूूर्ण हस्तााक्षर संगे, कुुशल कथाकार, सााधल समीक्षक, सुुधी शोधप्रज्ञ तथा सुुदक्ष सम्पाादक छथि। कृृति सभमेे ‘समांंग’, ‘समानान्तर’, ‘दखल’, ‘समकालीन नाटक’ आ ‘कथा समय’  प्रशंंसित कथासंंग्रह अछि।

कविता-संंग्रहमेे ‘संंगोर’, ‘समवेेत स्वरक आगूू’, ‘पाथर पर दूूभि’, ‘कोसी घाटी सभ्यता’, ‘काव्यद्वीपक ओहि पार’ आ ‘कविता समय’ अकूूत यश अर्जित कएलक। गजल-संंग्रह ‘नागफेेनी’ गजलक संंसाारमेे अपन स्थान सुुरक्षित कएलक. समीक्षा-संंग्रह ‘प्रतिक्रिया’ आ ‘निकती’ अपन नाम सार्थक कएलक। सगर राति दीप जरय कार्यक्रमके कथा-संंकलन ‘श्वेेत पत्र’क सह सम्पाादन कएनेे छथि।

‘एकैैसम शताब्दीक घोषणापत्र’ (कथागोष्ठीक कथा-संंकलन) आ ‘मंंडन मिश्र : मीमांंसा-अद्वैैत समागम’ केेर सम्पादन कएने छथि। तिरहुत साहित्य सम्मान, डा. इन्द्रकाान्त झा सम्मान (विद्याापति सेेवा संंस्थान, दरभंंगा) सँँ सम्मानित छथि।

कैलाश कुमार ठाकुर

कैलाश कुमार ठाकुर [Kailash Kumar Thakur] जी आइ लभ मिथिला डट कमके प्रधान सम्पादक छथि। म्यूजिक मैथिली एपके संस्थापक सदस्य सेहो छथि। Kailash Kumar Thakur is Chef Editor of ilovemithila.com email - Contact@ilovemithila.com, +9779827625706

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