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रोमिशा – नवदुर्गा: प्रकीर्तिता (9)

कठिन होइत अछि, अन्हारसँ इजोत दिस बढ़बाक यात्रा।

‘स्त्री सभ बड्ड भोगि चुकल- पुरुषक कामुकता आ क्रूरता, प्रेमक छलावामे, आब बस ओ सीखि रहल अछि।अपना लेल स्वप्न देखब।’

एतेक निधोख अभिव्यक्तिक सँग पुरुखक कामुकता आ क्रूरताकेँ देखार करए बाली रोमिशा मैथिली कविता आ मैथिली कथा, दुनू विधाक अपन पहिल कृति क्रमशः फूजल ऑंखिक स्वप्न आ भयके माध्यमसँ पाठककेँ चमत्कृत क रहल छथि। रोमिशाके दूटा काव्य सँग्रह एखन धरि प्रकाशित अछि-फूजल आँखिक स्वप्न आ ‘आँजुर भरि इजोत’

एकर अलावे हालहिमे हुनक कथा सँग्रह सेहो प्रकाशित भेल अछि-भय, जे निरंतर चर्चामे बनल अछि। मात्र तीन साहित्यिक कृतिक माध्यमसँ अपनाकेँ मैथिली साहित्यमे एकटा अनिवार्य नाम बना लेनाए आजुक प्रतिस्पर्धी दौरमे एकटा पैघ उपलब्धि मानल जा सकैत अछि।

रोमिशाक कविता कोनो भावुक स्त्रीक कोमल भावोच्छवास नइँ अछि, अपितु ई एकटा सपना अछि, एकटा कामना अछि, जाहिमे सभतरि समानता, न्याय आ प्रेमक इजोत पसारबाक सेहन्ता निहित अछि। रोमिशाक साहित्यमे एकटा ओहन स्त्रीक छवि देखार दैत अछि, जे अपन दादी-नानीक जीर्ण-शीर्ण आत्माकेँ उतारि नव मूल्य, नव दृष्टिक सँग जीवनक बाट पर एसगर चलबाक साधंस रखैत अछि।

रोमिशाक काव्य-नायिका ‘स्वयं कखनहुँ बसँतक गुलाब कखनहुँ जेठक गुलमोहर आ कखनहुँ अखारक अपराजिता’ बनि जाइत अछि। एहनामे ओकर परिचिति एतैक पैघ भ’ जाइत छै, जे समाजक सँकीर्ण आंखिमे ओकर अँटाबेस मोश्किल भ’ जाइत छै। तखन स्वाभाविक छै, जे ओकर अँटाबेस कोनो कविक कवितेमे होइ।

प्रकृतिकक सभसँ आतुर सँगीत बनै बला प्रेमक अंतहीन सँवादकेँ सुनबाक आ बुझबाक सामर्थ्य नै तँ दिमागमे होइ छै आ नइँ दिमागसँ चलैबला समाज मे। किएक तँ – ‘सरिपहुँ कठिन होइत अछि, अन्हारसँ इजोत दिस बढ़बाक यात्रा।’

कवयित्री मिथिलाक स्त्री चेतना आ स्त्री-विमर्शक सीमाकेँ रेखांकित करैत कहैत छथि-

‘जखन कोनो स्त्री प्रेममे होइत अछि, त’ भ’ जाइत अछि मीरा ओ प्रेमक अथाह समुद्रमे डुमकी लगा निकालि लैत अछि सीपीमे बन्न मोती आ राखि दैत अछि मंगलसूत्रक ठीक कात मे।’

असलमे कतेको सदीसँ पुरुषाही समाजमे जीबै बाली मिथिलाक स्त्रिगण एखनहुँ लाजक पर्दाकेँ हटा नइँ सकल अछि। ओकर सामाजिक-आर्अछि कारण छै। निश्चित रूपसँ मिथिलाक समाजमे स्त्री शिक्षाक प्रति जागरूकता बढ़लैक अछि, मुदा एखन ओ चेतना नइँ आएल अछि, जे मिथिलाक स्त्रिगण अपन निजी पहिचान, अपन अधिकार, पुरुषवर्चस्ववादी तंत्रक तिकड़मकेँ बूझि सकए।

धरतीसँ आकाश धरि अपन सफलताक परचम लहराबै बाली मैथिल स्त्रिगण अपन निजत्वकेँ नइँ बूझि सकल अछि, किएक तँ कतेको सदीसँ ओकर व्यक्तित्वक ‘कंडीशनिंग’ अइ तरहें भेल छै, जे ओ अपन हितकेँ बिसरि गेल अछि, अपन सुखकेँ परिवारक हितमे होम करएकेँ अपन सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य बुझैत अछि आ अपन जिनगीक सबसँ महत्वपूर्णक आ निर्णायक फैसला करबाक अधिकार परिवारक पुरुषेक हाथमे सौंपि देने अछि।

मंगलसूत्रक सँग-सँग प्रेमक मोतीकेँ सेहो कातमे राखि देब मैथिल स्त्रीक कामना आ विवशताक अनकहल कथा कहैत अछि आ मैथिलीक स्त्रीवादी लेखनकेँ नव चेतनाक लेल प्रेरित करैत अछि।

जहां धरि रोमिशाक कथाक गप अछि, ई अहू ठाम अपन कविते जकां मजबूतीसँ मैथिलीक स्त्री लेखनकेँ परिपक्वता प्रदान करैत छथि आ स्त्री चरित्रकेँ स्त्रीक दृष्टिसँ गढ़ैत छथि। असलमे कोनो लेखक लेल सबसँ महत्वपूर्ण होइत छै-ओकर दृष्टि, जे ओ कोनो चीजकेँ कोन तरहें, कोन नजरियासँ देखैत अछि। इएह साकांक्ष दृष्टि ओकर लेखनके दीर्घकालिक बनबैत छै। रोमिशाक अधिकांश स्त्री पात्र मध्यवर्गीय शहरी स्त्री अछि आ ओ स्त्रीसँ जुड़ल हरेक चीज पर, हरेक मुद्दा पर अपन स्वतंत्र विचार रखैत अछि।

रोमिशा मैथिली कविता आ कथा दुनूक माध्यमसँ मैथिलीक स्त्री लेखनकेँ नव ऊंचाई प्रदान क’ रहल छथि। कदाचित एकर एकटा ई कारण भ’ सकैत अछि, जे साहित्यक प्रति प्रेम, लगाव आ अनुराग हिनका विरासतमे भेटल छनि आ ई स्वयं अंग्रेजी साहित्यसँ स्नातक कएने छथि।

नेनपनेसँ कविता लिखैत रहलीह अछि, मुदा जेनाकि अधिकांश मैथिली लेखिकाक सँग होइत छै, विवाहोपरांत लेखन छूटि जाइत छै, सैह हिनको सँग भेलनि, मुदा साहित्यक प्रति जे अनुराग हिनका नेनपनसँ घुट्टीमे पिआओल गेल छलनि, अंततः ओ अपन करिश्मा देखौलक आ ई फेरसँ लेखन दिस प्रवृत्त भेलीह।

अइ बीच लेखन भनइँ छूटि गेल होउ, मुदा साहित्यक अध्ययन नइँ छूटल छलनि, तें लेखनमे यथाशीघ्र परिपक्वता आबि गेलनि आ अंग्रेजी, हिंदी सहित विविध भाषाक अनूदित साहित्यक अध्ययन हिनक दृष्टिके विस्तार देलकनि।

हिनक इएह परिपक्व दृष्टि आ विचार सँपन्न लेखन आश्वस्त करैत अछि, जे ई आगां मैथिली साहित्यकेँ अहूसँ नीक आ अमूल्य कृतिक उपहार बिलहतीह आ मैथिली पाठक समाज हिनक रचनाक आतुरतासँ स्वागत करत।

रमण कुमार सिंह

रमण कुमार सिंह, बिसनपुर, सुपौल (बिहार) मैथिली एवम् हिन्दी भाषाक कवि, समिक्षक, साहित्यकार छथि। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकासभमे रचना लेखन, अनुवाद एवम् आलोचनामे महत्वपूर्ण योगदान देने छथि। Raman Kumar Singh, आइ लभ मिथिलाक अथिति लेखक।

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