जनमत पार्टीक अध्यक्ष डा. सी.के. राउत आ ओकर पार्टीके सांसदसब संघीय प्रतिनिधि सभा आ मधेश प्रदेश सभामे तथाकथित ‘मधेशी भाषा’ मे सपत लेलाक बाद एकटा नव भाषा विवाद ठाढ़ भऽ गेल अछि। नेपाल सरकारद्वारा कएल जनगणना आ नेपालक संविधानमे मातृभाषा सभक सुचीमे मधेशी भाषा कतौ उल्लेख नइ छै। अइ दृष्टिसँ प्रतिनिधि सभा आ प्रदेश सभाद्वारा तथाकथित ‘मधेशी भाषा’मे अनुवाद कएल गेल सपत पत्रके मान्यता देब आश्चर्यजनीत छै। ओना त, एखन गठबन्धन सरकार रहल काल नागरिकता प्रमाणपत्रक वैधानिकतापर प्रश्न उठल व्यक्तिये गृहमन्त्री बनऽ मे सफल भेल छथि, त तेहन अवस्थामे संविधानद्वारा नइ चिन्हल गेल भाषामे सपत ग्रहण करबाक स्वीकृति देब बड़का बात नइ छै।
ई सरकार टिकाबऽ लेल वर्तमान सरकारक बाध्यता मात्र छै। पत्रकारसब संङ्ग जनमत पार्टीक प्रवक्ता एकरा मधेशमे बाजल जाएवला भाषा सभक ‘कोड’ कहलनि। यदि तेहन बात छै त, मधेश प्रदेशमे बाजल जाएवला मैथिली, भोजपुरी, बज्जिका (आ अवधि समेत) मधेशी भाषा भेल। मुदा, संघीय संसद सचिवालयक एकटा पत्रमे ‘मैथिली भाषामे अनुवाद कऽकऽ लाओल गेल सपत पत्रके’ आ ‘ओकरे मधेशी भाषा कहिकऽ जिद्द कएल गेल’ बात उल्लेख अछि। अइसँ ई बुझा रहल छै जे भाषाक क्षेत्रमे अपनाके अलग देखाबऽ लेल आ चर्चित होबऽ लेल ई बलधौंसी अछि।
यद्यपि, जइ तरहेँ तराई मधेशमे बाजल जाएवला भाषा सबके ‘कोड’ भाषा कहिकऽ अधिकृत करबाक प्रयास कएल जा रहल छै, ओ मैथिली मात्रे नइ भोजपुरी, बज्जिका आ अवधी समेतके लेल चिन्ताक विषय अछि। ओना अइ विषयमे भोजपुरी, बज्जिका आ अवधी भाषिक क्षेत्रमे अइ बातपर खासे चिन्ता नइ देखल गेल अछि। मुदा, मैथिली भाषी क्षेत्रमे एकर विरोध आ आक्रोश सेहो देखल जा रहल छै। विशेष कऽ मैथिली भाषा आ साँस्कृतिक क्षेत्रमे काज करऽ वला संघ संस्थासब एकरा विरुद्धमे सक्रिय देखल गेल अछि। सपत ग्रहण समय सडकपर सामान्य विरोध देखल गेल होइतो, एखन विज्ञप्ति आ सर्वोच्च अदालतमे मुद्दाक स्थितिधरि पहुँचल अछि। ओ सब एकरा मैथिली भाषाक अस्तित्व उपर प्रहारके रुपमे देख रहल छथि।
विशेष कऽ गणतन्त्रक स्थापनाक पछाति मैथिली भाषा भितरके अन्तर विरोध, अन्तर्द्वन्द आ भाषिका(बोली)क विविधताके आधार बनाकऽ मैथिली भाषी सबके विभाजित करबाक प्रयत्नमे एकरा नव श्रृंखलाक रुपमे सेहो देखल जा सकैछ। क्षेत्रीय भुगोलक दृष्टिसँ मैथिली भाषामे बहुत विविधता वा भाषिका (बोली) सब छै। तइँयो, तथाकथित उच्च जातीय (ब्राह्मण आ कायस्थ लगायत) आ अभिजात्य समुदाय बोलऽ वाला आ श्रमजीवि जातिसब बोलऽ वला बोली (भाषाक बहुत छोट अवस्था) मे भिन्नता छै।
सत्ताक सभटा क्षेत्रमे प्रायः इएह उच्च जाति आ अभिजात्य समुदायक प्रभुत्व रहलाक कारण श्रमजीवी समुदायक सँस्कृती आ जीवन व्यवहारके निच आ हीन देखब जेहने, एकरा सबके बोली सेहो सत्तावर्गीय उच्च जाति आ अभिजात्य समुदायक लेल निच आ हीन मानैत आएल छै। तइँ कारण, श्रमजीवी जातिसब जेना यादव, धानुक, कुर्मी, सूँडी, तेली, खत्वे, तत्मा आदि, वर्णाश्रमक श्रेणीमे ब्राह्मणेत्तर वैश्य आ शूद्र जातीय बोलीके ‘ठेठी मैथिली’ कहल गेल। (ठेठ शब्दक अर्थ ग्रामीण होइछ)। यद्यपि, मैथिली भाषाक ऐतिहासिक विकासक्रमक अध्ययन कएलाक बाद देखल जाए छै, जे एखनो मैथिलीक मौलिक शब्द सब श्रमजीवी जाति सब बाजऽ बला ‘ठेठीए मैथिली’मे जीवित छै। तथाकथित शुद्ध मैथिली संस्कृतसँ आएल तत्सम शब्द सभक कब्जामे देखल गेल अछि।
मुदा, मैथिली भाषाक भाषिक सत्तामे उच्च जाति आ अभिजात्य समुदायक बाजल जाई बला ‘शूद्ध मैथिली’क बहुआयामिक वर्चस्व देखाइछ। विशेष कऽ पाठ्यक्रम आ साहित्यमे संस्कृत निष्ठ मैथिलीक प्रभाव छै। ई प्रभाव एतेकधरि मजगुत छै जे सत्तावृत्तमे रहल श्रमजीवी जातिक विद्वान सब समेत ‘शुद्ध मैथिली’ लेखनमे गर्व करब देखा रहल छथि। ई, मैथिली भाषी क्षेत्रमे देखल गेल ‘शुद्ध मैथिली’ आ ‘ठेठी मैथिली’क अन्तर्विरोधाभाषामे बोली (भाषिका, डायलेक्ट)जे छै, से साँस्कृतिक क्षेत्रमे हिन्दु वर्णाश्रमसँ उत्पन्न ब्राह्मणवादी विभेदक समस्या जेहन छै। आधुनिक राजनीतिक आ साँस्कृतिक चेतना सभक विश्वव्यापी प्रसारक कारण राजनैतिक सत्तामे किछु अंशेमे सही, श्रमजीवी जाति (वर्ग नहि)क अगुआसब घुसपैठ करऽ मे सफल भेल देखल जा रहल छै। मुदा, भाषीक सत्तामे श्रमजीवी जाति सभक विद्वानसब पराजित भेल स्थिति छै। ठीक अइ बिन्दुपर, सत्ताक अवसरवादी राजनीतिक शक्ति सब मैथिली भाषा भितरके भाषिका सभक विविधता आ अन्तर्विरोधके दू टा फरक भाषाक रुपमे प्रतिबिम्बित करबाक प्रयास कऽ रहल छथि।
ओ सब साँस्कृतिक अन्तर्विरोध आ आक्रोशकेँ भाषिक अन्तर्विरोधमे रुपान्तरण करऽ चाहि रहल छथि, जे की बहुत घातक छै। ई ग्रामीण क्षेत्रमे बाजल जाई बला ‘ठेठी मैथिली’क अस्तित्व नाश करबाक घृणित आ खतरनाक खेल छै।
नेपालमे सब सँ बेसी बाजल जाय बला मैथिली भाषा पर राजनैतिक रुपेँ पहिल हमला; मैथिली भाषी क्षेत्रमे हिन्दीके मातृभाषाक रुपमे जनगणनामे लिखयबाक दुस्प्रयत्नक रुपमे भेल रहै, जे सफल नइ भेलै। दोसर हमला; मधेश प्रदेशमे एकटा खास जाति विशेषक समुदाय मैथिलीए बोलैत छथि, मुदा तईयो अपना सब गंगा नदीसँ दक्षिणी क्षेत्रमे बोलल जाएवला मगही भाषाके मातृभाषाक रुपमे अभियान चलाएब छल। यदि, कोड भाषाक रुपमे मानल त, जनमत पार्टी द्वारा कहल गेल मधेशी भाषा मैथिली, भोजपुरी आ अवधी, लगाएत तराई मधेशमे बाजल जाय बला सभटा मातृभाषी सब प्रभावित होएत स्थिति छै। तेसर हमला; संघीय आ प्रदेश संसदमे प्रस्तुत कैल गेल सपत पत्रमे मैथिलीमे लिखल भाषाके मधेशी भाषा कहब दावीके मैथिली भाषापर तेसर हमला कहल जा सकैछ।
ब्राह्मणवाद विरोधी कोणसँ देखल जाए त अहुसँ ‘ठेठीए मैथिली’क अस्तित्व प्रभावित होएत देखाइत अछि। जे की उचित नइ। अपन राजनीतिक स्वार्थपूर्ति करबाक लेल दुषित सांस्कृतिक उत्तेजना पसारिकऽ कोनो समुदायके भाषिक परिचये नाश करब कोनो तरहेँ उचित नइ। निश्चिते, मैथिली भाषी समुदायमे उच्च जाति ब्राह्मणीय आ ब्राह्मणेत्तर समुदायक भाषीक सत्तामे वर्चस्वक अन्तर्द्वन्द छै, मुदा ई तथाकथित ‘शुद्ध मैथिली’ आ ‘ठेठी मैथिली’क संघर्ष अछि। तेँ, साहित्य हुअ वा पाठ्यक्रमक मानक सब क्षेत्रमे ‘ठेठी मैथिली’क वर्चस्वके लेल राजनैतिक आ साँस्कृतिक संघर्ष आ प्रयत्नसब सही दिशा हएत।
मैथिलीक भाषीक सत्तामे ब्राह्मणीय मैथिली (शुद्ध मैथिली) क वर्चस्व रहलाक बादो, व्यक्तिक रुपमे उच्च जातिक विद्वान सभक संङ्ग श्रमजीवी जाति (वर्ग नहि)क, डा. रामावतार यादव, डा. योगेन्द्र यादव, रामरोस कापड़ि, रामनारायण देव प्रभृत्त अनेकों विद्वान सब सत्ताकेन्द्रमे निर्णायक आ प्रभावशाली छथि। हुनका सबके मैथिली भाषी क्षेत्रमे बहुसंख्यकद्वारा बाजल जाएवला ‘ठेठी मैथिली’ क पक्षमे सचेत रुपसँ लेखन करऽ पड़त। एकर तात्पर्य, सबटा दायित्व ‘ठेठीए मैथिली’ समुदायसँ आएल विद्वान सभक अछि सेहो नइ, सचेत आ भाषीक अधिकारप्रति इमान्दार आन विद्वान आ भाषाविद् सभक दायित्व सेहो ओतबे छै। एक तरफ उच्च जातीय समुदायक वर्चस्व, दोसर तरफ श्रमजीवी समुदायमे भाषीक अगुआ सभक अभाव आ तेसर तरफ अपन मातृभाषाक बारेमे विस्तृत ज्ञान नइ होएब आ गर्व नइ करब जेहन अज्ञानताक कारण राजनीतिक अवसरवादी विद्वान आ राजनीतिबाजसबके जनसमुदाय बीच भ्रम सृजना करबाक मौका देल गेल यथार्थ बुझब आवश्यक छै।
वस्तुतः मैथिली भाषी क्षेत्रमे बोलल जाएवला बहुतरास बोली सबके बारेमे जनसमुदाय सबके अवगत नइ कराबऽ सकलाक कारण ‘ठेठी मैथिली’क अस्तित्व प्रभावित होएत से खतरा अछि। अइ क्रममे उनईसम(१९) शताब्दीक अन्तिम आ बीसम(२०) शताब्दीक प्रारम्भममे भाषा सम्बन्धी व्यापक सर्वेक्षण कराओल गेल आ प्रायः दक्षिण एसियाक भाषा सबके बारेमे कृतिसब प्रकाशित करौने तात्कालीन अँग्रेजक अधिकारी ‘जर्ज अब्राह्म ग्रियर्सन’क उत्तरी भारतक भाषा सबके बारेमे धारणा सभक चर्चा करब सान्दर्भिक होएत। ओना त ओ तात्कालीन भारतीय क्षेत्रक भाषा सबके बारेमे मात्रे सर्वेक्षण करौने छल, मुदा, एखुनका चुरे पर्वत श्रृंखलासँ दक्षिणक तराई क्षेत्रमे रहल भाषिक समुदायसँ मेल खएबाक कारण अइ क्षेत्रक भाषाक बारेमे सेहो ग्रियर्सनक भाषिक निष्कर्षसब मेल खाएत आ, महती अछि। अइ लेखमे विवेचित मैथिली, मगही आ मधेशी भाषा बारेमे सेहो ओ(ग्रियर्सन) चर्चा कैने छथि, तेँ अइ ठाम सामान्य चर्चा करब उचिते होएत।
अइ सम्बन्धमे हुनकर दू टा पुस्तक सब; ‘लिंग्विस्टिक सर्वे अफ इन्डिया (१९०३)’, आ, ‘एन इन्ट्रोडक्सन टू द मैथिली डाइलेक्ट अफ द बिहारी ल्याङ्गवेज एज स्पोकेन इन बिहार पार्ट १: ग्रामर, कलकत्ता, (१८८१)’ महत्वपूर्ण अछि। ग्रियर्सन एकटा लिखित पाठकेँ सबटा भाषीक क्षेत्रमे पठाकऽ ओकर अनुवाद संकलन करौने छल। आ, ओहिक आधार पर ओ(ग्रियर्सन) विविध भाषा सभक बीचक भिन्नता, भाषा सभक मौलिकता आ व्यापक क्षेत्र आ कोनो भाषा भितरके भाषिका आ ओकर क्षेत्रीय परिचय निर्धारण करौने छल।
आन विद्वानेसब जकाँ ग्रियर्सन सेहो साँस्कृतिक मिथिला आ मैथिली भाषाक भौगोलिक सीमा पूर्वमे कोशी, पश्चिममे गन्डकी, उत्तरमे (चुरे) हिमालय, आ दक्षिणमे गंगा मानने छथि। ओ मैथिली भाषी क्षेत्रकें पाँचटा क्षेत्रम बँटने छथि; (१) स्टैन्डर्ड मैथिली, (२) साउदर्न (दक्षिणी) मैथिली, (३) ईस्टर्न (पूर्वी) मैथिली (छिकाछिकी मैथिली), (४) वेस्टर्न (पश्चिमी) मैथिली आ (५) जोलहा मैथिली। ग्रियर्सन अँग्रजी अधिकारीक रुपमे सदर मुकाम मधुबनीमे रहलथि। दोसर बात, हुनका लगमे आ सलाहकार सब मैथिलीक विद्वान सब, उच्च जातीय ब्राह्मण आ कायस्थे सब रहलथि। आ तेहने, व्याकरणीय अनुशासनबद्ध लिखित पाठसब सेहो संस्कृतनिष्ठ मैथिलीए हुनका सहजरुपमे उपलब्ध भेल रहै।
मैथिलीक आन बोली सबमे लिखित पाठ नइ छल। तेँ ओ(ग्रियर्सन) मधुबनी, दरभंगा आ पुर्णियाक मैथिलीक बोलीसबकेँ स्टैन्डर्ड मैथिली कहलथि। ई हुनकर सत्तावर्गीय अभिजात्य चरित्र छल, जे बहुसंख्यक श्रमजीवी समुदाय सभक द्वारा बाजल जाय बला मैथिलीक मौलिकतासँ प्रभावित नइ हुअ देलक। इएह स्टैन्डर्ड मैथिली एखन शुद्ध मैथिलीक रुपमे विकसित भेल अछि। ओना त नेपालक उच्च जातीय आ अभिजात्यवर्ग द्वारा बाजल जाएवला शुद्ध मैथिली, दरभंगा आ मधुबनी बला सब सँ किछु फरक छै, तइँयो अन्तरविरोधक रुपमे शुद्ध मैथिलीक अन्तरविरोधक ओइसँ प्रेरित छै। अइ ठाम ग्रियर्सन द्वारा सर्वेक्षणमे संकलित मैथिलीक किछु बोलीसब देखल जाए। (अइ ठाम स्टैन्डर्ड मैथिलीक स्वरूप नइ राखल गेल अछि।)
(१) छिकाछिकी मैथिली: (मुंगेर, भागलपुर, सन्थाल परगना) “एक आदमीके दूटा बेटा रहै। ओकरामेँ से छोटका अपनो बाप से कहलकै कि बाबू जे धन हमरा बखरा मेँ होय ऊ हमरा दै दे। एकरा पर ऊ अपनो धन ओकरा बाँटी देलकै। आरो थोड़ी दिन भी नय बितलै कि ओकरो छोटका बेटा सब अपनो धन इकट्ठा करि के कोइ दोसरो देश घूमै ले चली गेलैआरो वहाँ अपनो सब धन के ऐश जैस मेँ खरच करी देलकै। तबे ही मुलुक मेँ बढी अकाल पडलै आरु ऊ कंगाल होय गेलै ।”
(२) पूर्वी दक्षिणी मैथिली: (संथाल परगनाक देवगढ सबडिभीजन) “एक आदमीके दू बेटा छलै। ओकरा मे से छोटका अपना बाप के कहलकै, हो बाबु, हमरा हिसा मे जे मालजाल होत से बाँटि दे। तब बाप सभे मालजाल बाँटि देलकन।”
(३) पश्चिमी मैथिली: “हम भैँस खोल क मुदै के दूरा पर से लेले जाइत रही। पैँडा मेँ चौकीदार से भेँट हो गेल। ऊ हमरा के ध क थाना मेँ ले गेल।….हम्मर खेत दू बेर ई भैँस चर गेल ह। …दू पाजा धान काट लेले छथ। देवापुर कररिआ से छौ कोस है।”
(४) दक्षिणी मैथिली :(भोजपुरी प्रभाव केन्द्र आ दक्षिणी मुजफरपुर, हाजिपुर सबडिभिजनमे रेकर्ड कएल गेल) “एक जना के दूगो बेटा रहलइन। ओकरा मे से छोटका अपना बाबूसे कहलकइन हो बाबू धन के बखरा जे कुछ हमर हो से द। त ऊ ओकरो के बाँट देलकइन।….बाबू हो ईसर के इहाँ ओ तोहरा इहाँ पाप कैली । अब ऐसन नही के तोहर बेटा कहाई।” (पश्चिमी मैथिली आ दक्षिणी मुजफ्फरपुरक मैथिली क्षेत्र जे गंगासँ उत्तर हाजीपुरसँ एकटा छोट बेल्टक रुपमे नेपालक रौतहट आ सर्लाहीक पश्चिमी स्थानधरि, हाल बज्जिकाक रुपमे परिचित अछि।)
(५) जोलहा मैथिली (उत्तर बिहार आ नेपालक मैथिली भाषी क्षेत्रमे मुस्लिम समुदायक अरबी, इरानी आ उर्दू शब्द सब मिश्रित मैथिली, ग्रियर्सन एहि ठाम दरभंगाक मुस्ल्मि सब द्वारा बाजल जाएवला भाषिका उल्लेख कएने छथि): “कोनो आदमी के दो बेटा छलैन। ओइमेसँ छोटका बेटा अपना बाप से कहलन हे बाप, धन मेँ से हम्मर हिस्सा होय से हमरा बाँट दअ।…ओकर घरबाला ओकरा खेत मेँ सूअर चराबे भेजलकै । तब ऊ छीमडि मे जे सूअर आए अप्पन पेट भरे चाहलक और कोए ने ओकरा कुछ दईक।….”
ग्रियर्सनक सर्वेक्षणमे मगही भाषा आ एकर क्षेत्र
ग्रियर्सन मगही भाषाके गया आ पटना कऽकऽ दू भागमे विभाजित कैने छथि। हुनकर सर्वेक्षणमे मगहीकेँ गंगासँ दक्षिणक भु-भाग आ किछु अंश गंगााक उत्तरी तटधरि बाजल जाएवले भाषाक रुपमे उल्लेख कएल गेल छै। ओ(ग्रियर्सन) मगहीक भाषीक क्षेत्र गया, पटना, मुंगेरक दक्षिणी गंगेटिक क्षेत्र, हजारीबाग, पलामु, छोटा नागपुर, सन्थाल परगनाक दक्षिणी क्षेत्र, दक्षिणी राँची (भोजपुरी प्रभावित), किछु बंगाल आ उडी़सा संङ्ग जुटल क्षेत्रकेँ कहने छथि।
(क) गयाक्षेत्रमे बाजल जाएवला मगही: “एगो आदमी के दू गो बेटा हलथिन। उनकँही मे से छोटका बाप से कहलक के ए बाबू जी, तोहर चीज बतुस मे से जे हमर बखरा हो है से हमरा दे द। तब ऊ अपन सब चीज बतुस उनकनही दुनोँ मे बाँट देलक।….हमनी के उचित है के खुशी मचावीँ आउ आनन्द करी, काहे के तोर ई भाई मर गेलउ हल जीलउ है, भुलल गेलउ हल मीललउ है।”
(ख) पटना क्षेत्रमे बाजल जाएवला मगही: “…झूठ डर के मारे अइसन डरइत हलो कि जेकर हाल हम न कह सकियो। का भेल कि जब हम सब पहार के किनारे किनारे बजार से अवइत हलो तब पहार के उपरे बाघ बहुत जोर से गरजइत हल।…से पथर नीचे बिगइत हलै, सेई बीसो हाथ नीचे खडबडाइते अवइत हलइ ।…”
मधेशी
ग्रियर्सनके अनुसार मुजफ्फरपुरसंँ पश्चिमी सीमा क्षेत्रमे जतेक पश्चिम जायब, मैथिलीक प्रभाव घटैत आ भोजपुरीक प्रभाव बढ़ैत जाइत छै। अइ क्रममे गन्डक नदीक तटवर्ती क्षेत्रमे ढाका थानाक दू माइल चौडा आ अठार माइलक क्षेत्रमे बाजल जाय बला भाषामे भोजपुरीक प्रभाव बेसी आ मैथिलीक प्रभाव कम भेटैछ। ई उत्तर पूर्वी सारण आ पूर्वी गोरखपुरक भाषासंँ मिलैत छै, पहिल नजरमे भोजपुरी जेहन प्रतित होयतो प्रवृत्तिक दृष्टिसँ मैथिलीए छै। ई दू टा भाषा बीचक अवस्था होएबाक कारणसंँ अछि, स्थानीय स्तरमे अइ बोलीके मधेसीक रुपमे जानल जाईत अछि। एकरा किछु गोटे गोरखपुरी कहैत छै, मुदा ग्रियर्सन उपयुक्त नइ मानैत छथि। ओ बोली बाजल जाएवला क्षेत्र सारण जिलामे होयबाक कारणेँ आ प्राचीन मिथिलाक भौगोलिक सीमा भितर पड़लाक कारण ओ(ग्रियर्सन) एकरा मैथिलीए कहने छथि। एकर उदाहरण देखी, “कवनो आदमी क दुगो बेटा रहे। छोटका वापसे कहलक के ए बाबु धनमेँ जे हमार बखरा होखे से हमार दे दी। तब ऊ ओकनी के आपन धन बाँट देलक। ढेर दिन नाही बीतल के छोटका बेटा साजी चीज जुगताके बहरा चलगइल आ उहाँ लुचपन मे अपन सजी लुटा देलक।
(पृष्ठ ३००, लिंग्विस्टिक सर्वे अफ इन्डिया)”
मैथिली, मगही आ मधेशी बोली बारेमे अइ ठाम प्रस्तुत तथ्य सबसँ की देखल जाए छै जे, एखन नेपालक मैथिली भाषी क्षेत्रमे राजनीतिक आग्रहक आवरणमे आएल भाषिक प्रयत्न सब मैथिली, विशेष कऽ अइ क्षेत्रक अपन ‘ठेठी मैथिली’ उपर प्रहार छै। निश्चित रुपेँ मैथिली भाषी समाजमे साँस्कृतिक रुपेँ ब्राह्मणवाद आ ब्राह्मणेत्तर बीच अन्तरविरोध छै। मुदा, ई अइ क्षेत्रमे मात्रे नहि, समग्र तराई मधेश आ समग्र देशक समस्या अछि। एहनमे उत्पीड़ित वर्ग आ समुदाय बीचक भाषीक आ साँस्कृतिक एकतासँ मात्रे सकारात्मक परिणाम लायब सकैत छी। ई ब्राह्मणवादके विरुद्ध उत्पीडित समुदायक संझिया संघर्षके लेल जरुरी छै। एहनमे, राजनीतिक दल सब मात्रे नइ, भाषिक साँस्कृतिक समुदायसब बेहोश सचेत होएब आवश्यक छै।
- रोशन जनकपुरी, लेखक एवं विश्लेषक
अनुवाद : कैलाश कुमार ठाकुर