…. फेर गुलाब महमहएतै कोना ?
■ कविता – अङेजल काँट
नइ जानि बहिना
किएक
आइ तोँ बड़ मोन पड़ि रहल छह
आ ताहूसँ बेसी तोहर ओ
छहोछित कऽ देवऽ वला
मर्मभेदी वचन ।
बहिना तोँ कहने रहऽ हमरा
ऐँ हइ बहिना !
एहन काँट भरल गुलाबकेँ
अपन आँचरमे एना जे सहजने छह
तोरा गड़ैत नइ छह ?
तोँ उत्तर पएबाक लेल उत्सुक छलह
मुदा हम मौन भऽ गेल रही
आ तोँ मोनेमोन बजि रहल छलह।
हँ बहिना, ठीके
हमरो तोरेजकाँ
अपन जिनगीमे फूले फूल सहेजबाक
सपना रहए
आ अगरएबाक लालसा रहए तोरेजकाँ
अपन जिनगीपर
मुदा कि करबहक
मोन पाड़ह ने
छोटमे जखन अपनासभ
ती-ती आ पँचगोटिया खेलाइ
बेसी काल हमहीँ जीतैत रही
मुदा जिनगी जीबाक खेलमे
हम हारि गेल छी बहिना ।
काँटे काँट होइ छै बहिना
गड़ै कतहुँ नइ
मुदा हम काँटेकेँ अङेजि लेने छी
मालिन जँ काँटकेँ
नइ अङेजतै बहिना
तँ फेर गुलाब महमहएतै कोना ?
* * *
‘रूपा धीरू’ मैथिली गद्य कविताक एकटा सशक्त हस्ताक्षर अछि। ‘रूपा धीरू’ रूपा झाक नामसँ मैथिली सङ्गीत आ संचार क्षेत्रमे लोकप्रिय छथि। मैथिलीक सर्वप्रिय रेडियो कार्यक्रम हेल्लो मिथिला निरन्तर दू दशकसँ संचालन करैत आबि रहलीह अछि। कमलपुर, मिथिला जन्मस्थान भेल रूपाधीरूक कण्ठ आ कलम दूनुमे कोकिलक मधुरता आ मर्म परसल रहैत अछि।