नमस्कार मैथिल्स !
सभ कथित सह स्वघोषित साहित्यकार लेल अछि ई ! सभ ओहि लेखक लेल सेहो जे पुस्तक नइँ बिकबाक आ मैथिलीमे कम होइत पाठकक चिन्तामे दुबरा रहल छथि।
एक तँ समाजमे लेखक आ प्रकाशक ‘हमस्टरो’ सँ कम अवधिमे जनमि रहला अछि। आ ऊपरसँ लोक कहत – “होमय न दियौ, यौ प्रचारे न भ रहल छैक।” बिडम्बना ई जे इयह कहनाहर सब बजैत छथि – “मैथिली विलुप्त भऽ रहल छै।” मूढ़ साहित्य चिन्तक सभकेँ मात्र अतबे कहब जे स्टालिन कहने छलैथ – “Quantity has quality of its own.”
संसारमे सब किछु परिवर्तित आ उन्नत होइत अछि। लोकक जीवन शैली आ स्वाद सेहो बदलि रहल अछि। गैंचा भेटतो कहाँ छै आब। बरफसँ जनसङ्ख्या नियंत्रणक सब चीज फ्लेवरमे आबि गेल अछि। नारीवादसँ आगाँ बढ़ि कऽ अपन समाज ओर्गास्म तक पहुँच गेल अछि। मुदा मैथिली साहित्य अपवाद बनल अछि। ओ मिथिला महान आ विद्यापतिसँ आगाँ बढ़िए नइँ रहल अछि।
दिल्ली, बम्मई आ अमरीकाक मजा लेनिहार साहित्यकारक साहित्यमे एखनहुं गाम, चुनौटी, बाबा, खेत-खरिहान आ डीहबारक प्रधानता छैक। अनेकानेक सम्बन्धरत आ दू-चारि सालमे दाम्पत्यसँ अकच्छ भऽ रहल समाजकेँ एखनहु साहित्यमे सीता दाय आ लछुमन भाय पढ़ाओल जा रहल अछि। शैक्षणिक संस्थान आ संस्कारमे वैश्विक हवा केरऽ समावेश भऽ चुकल, मुदा बच्चाक मैथिली किताबमे एखनहुं बाबा आ हुनक खुट्टाकेँ हाथीये टा भेटैत छनि। बच्चाकेँ Pre-Wedding shoot and trip चाही… बरियाती के भरि पोख “चहटगर चखना”, मुदा हमरा अहाँक साहित्य एखनहुं सिंदूर-दाने कऽ रहल अछि।
लोककेँ चाही “जश्न-ए-रेख्ता” सन तात्कालिक सुख आ अहाँ ग्रन्थ-समग्र लेल उताहुल छी। यदा-कदा चोरा-नुका “प्लेबोय” आ “डेबोनोरि” देखनिहार लोकवेदकेँ सुलभे ‘मियांखलीफा’ आ ‘जॉनी सिन’ एक क्लिक पर भेट रहलनि अछि आ अहाँ साहित्यमे मीना कुमारी, नूतन आ देवानन्द पर टिकल छी।
हमरा-आहाँक लोकवेद दुनियाँ-संसारक कम्पनीमे मजदूरी कऽ रहल अछि, मुदा साहित्यकेँ एखनहुं खेतमे हर-कोदारि चलबैत मजदुर मात्र देखा रहलनि अछि। घर-आंगनमे बर्थडे पर केक-आइसक्रीम चाही, मुदा, अहाँक साहित्य एखनहुं पेन-अलता आ पारले-जी गिफ्ट द रहल अछि। गाममे नीक पेट चलेनिहार लोककेँ शहर-बाजारमे दस हजारक नोकरी चाही, किएक तँ ओहि ठाम मॅलमे सेल्फी आ संग घुमाबय लेल टेम्पररी दिल्ली वाली भेटैत छनि हुनका, मुदा हाय रे अपन साहित्य, ओकरा एखनहु गामक मेला आ ओहिमे केसमे ललका फीत्ता वाली मात्र देखा रहल छनि।
तऽ साहित्यकार लोकनि अपग्रेड होऊ… समयक संग चलू, किताबक कलेवर बदलू, अपने सन धोती-पैजामामे नव रङ्ग लाउ, नव चमक लाउ अपन साहित्यक ओढ़न- पहिरनमे, नव रस-स्वाद भरल व्यञ्जन पकाउ अपना साहित्यक…। सोशल मीडिया पर नित लगबैत स्टेटस सन साहित्यक स्टेटस सेहो बदलल जाऊ…। तखने बढ़त प्रेम आ सङ्गहि लाइक, कमेन्ट आ हएत साहित्यक बिक्री !
■ लेखक परिचय:
प्रवीण कुमार झा, बेलौन गाम (दरभंगा) निवासी छथि। वर्तमानमे गुजरातक एक एमएनसी कम्पनीमे जनरल मैनेजरक रूपमे कार्यरत झा वडोदरामे रहि रहल छथि, एवं मैनूफैक्चरिङ्ग एमएनसी कार्यक्षेत्रमे बीस बर्षसँ बेसी समयक अनुभव छनि। भारतक अलावा अमरीका एवं चीन हिनकर मुख्य कार्यक्षेत्र छनि। ख़ाली समयमे बहुतरास विषय सङ्गहि पृथ्वी ओ मानवताक विषयमे लिखैत आबि रहल छथि। अखबार, पत्रिका एवं वेब पोर्टल लगाइत, “मुट्ठी भर अक्षर” नामक लघुकथाक पुस्तकमे सेहो हिनकर कथा छपल अछि।