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स्कूलक पाठ्यक्रममे एक-दूटा विषय संस्कृतक राखब किए आवश्यक अछि?

अइ सँ हमरासभक आधिकारिक भाषाक संगे लोकभाषा सेहो विकसित होएत

दुनिया भरिके शिक्षाविदसब एकटा बातसँ सहमति छथि, ओ ई जे – प्राथमिक शिक्षा बाल-बच्चासभकेँ मातृभाषामे देऽब अति आवश्यक छै, जेकरा पहिल भाषा कहल जाइछ। तखन अइठाम प्रश्न उठैछ, जे नेपाली बच्चा-विद्यार्थीसभकेँ बेसी सँ बेसी अंग्रेजीमे पढ़एबाक पाछू की अर्थ अछि जखन कि अधिकांश विद्यार्थीसभ अपन मातृभाषाक बारेमे किछु जनबे नइँ करैत अछि ?

संसारक सभटा वाणी ओ भाषासभकेँ जीवित रहबाक अधिकार छै, आ ओकरा बजनिहार सभलोककेँ अपन सन्तानक शिक्षा ओ पहिचानक लेल ओकरा संरक्षित करबाक आवश्यक प्रयास करबाक चाही। संस्कृत भाषा पहाड़ ओ हिमालय जकाँ हजारो-लाखो वर्ष पुरान अछि; ई भारतीय-यूरोपीय भाषा परिवारक सबसँ बेसी प्राचीन भाषा अछि। एकर लिखित इतिहास ३५०० सालसँ बेसी पुरान छै।

१५०० – १२०० ई.पू. धरि वेद मौखिक रूपेँ एक पुस्तासँ दोसर पुस्तामे हस्तान्तरण होइत रहल। सबटा हिन्दू शास्त्र लगायत रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद सब अइ भाषामे लिखल गेल अछि, जकरा देवभाषा कहल जाइछै।

आधुनिक समयमे उपकरण एवम् कम्प्युटर विज्ञान एक केऽ बाद दोसर-तेसर सफलता बहुत तेजीसँ हासिल कऽ रहल छै, जइ पर हमरा सभकेँ गर्व होएब उचिते अछि। मुदा, आधुनिक विज्ञान ओ टेक्नोलोजीक आगमनसँ हजारो वर्ष पूर्व हमर सभक पूर्वज सुर्यग्रहण, चन्द्रग्रहणक वर्ष, मिति, तिथि तथा ठीक-ठीक समयक बारेमे, पृथ्वी सँ सूर्यक दूरी, पृथ्वी सँ चन्द्रमाक दूरी जनैत रहथि। आ, तेँ ओ ज्योतिषशास्त्रमे संरक्षित अछि।

निःसंदेह, हमर सभक ई चमत्कारपूर्ण एवम् गौरवशाली भाषा अछि, जइमे उच्च स्तरीय कौशल, हजारो-लाखो खोज-अनुसन्धानसभ संरक्षित अछि, ओहि सभकेँ हमरा लोकनि उपेक्षा कए दीन-हीन नइँ बनी।

“संस्कृत मात्र ब्राह्मणक भाषा अछि”, अइ धारणाकेँ दूर करब आवश्यक छै। बात ई छै जे, मात्र ब्राह्मण लोकनिकेँ अध्ययन करबाक सौभाग्य छलनि, आ माध्यम मात्र संस्कृत छल। तेँ, अइठाम दोष पढ़य-लिखयबला सभक नइँ अपितु तत्कालीन समाज-राज्य दोषी अछि जे ओहि तरहक त्रुटिपूर्ण पदानुक्रमित व्यवस्था लागू कयने छल।

मुदा, आधुनिक समयमे शिक्षा सबलोकक सझिया लक्ष्य बनि गेल अछि, चाहे ओ कोनो जाति, धर्म, वर्ण, क्षेत्रक हो आ रोचक बात ई अछि जे गैर-ब्राह्मणसब सेहो मात्र संस्कृत विषयमे नइँ अपितु अन्य विषयसबमे सेहो नीक प्रदर्शन कऽ रहल छथि।

अतः हमरा लोकनिक सामूहिक दायित्व ई अछि जे संस्कृत भाषाकेँ पुर्नजीवित करी, संगे आओर निरन्तर खोज-अनुसन्धान करी जइ ग्रन्थसभमे ज्ञान आ विद्याक अनमोल खजाना संग्रहित अछि।

एतबे नइँ, हमरा लोकनिकेँ ई नइँ बिसरबाक चाही जे हमर सभक राजभाषा आ लोकभाषा सब स्वयं संस्कृते सँ आएल अछि। ८५ प्रतिशत सँ बेसी नेपाली जनता अइ भाषा समूहसँ प्रत्यक्ष सम्बन्धित अछि, तेँ नेपालक विद्यार्थीसभकेँ संस्कृत शिक्षासँ पर्याप्त रूपेँ अवगत कराओल जा सकैछ, एवम् समृद्ध कयल जा सकैछ।

तिब्बती-बर्मन वा कोनो आन भाषा परिवारसँ सम्बन्धित विद्यार्थी लोकनि चाहे तऽ एकरा छोड़ि सकैत छथि। कृपया एक बेर देखू जे, गोस्वामी तुलसीदास अपन रामचरितमानसमे संस्कृत सँ निकलल शब्द पर खेलाइत अपन समकालीन लोकभाषाकेँ कोना अलंकृत कएने छथि –
“बाँध्यो बननिधि नीरनिधि जलधि सिन्धु वारिस।
सत्य तोयनिधि कंपति उदधि पयोधि नदीस।।५।।”

उपरोक्त, लंकाकाण्डक पाँचम दोहामे समुद्रक लेल नौ टा शब्दक प्रयोगक अतिरिक्त तुलसीदास अन्यत्र महाकाव्यमे ओही लेल वरिधि, पथोड़ि, सागर आ समुद्र आदि अन्य शब्दक प्रयोग कएने छथि। संस्कृतमे बननिधि, बारीस आ नदीस लेल वास्तविक शब्द अछि : वननिधि, वारीश आ नदीश। वास्तवमे, संस्कृतक शब्दभण्डार असमान्य रूपेँ बहुत समृद्ध अछि, एतेक धरि जे हमरा सभक आधिकारिक भाषाक संग-संग लोकभाषासबकेँ सेहो वृद्धि एवम् समृद्ध कऽ सकैछ यदि संस्कृतकेँ अनिवार्य रूपेँ अध्ययनक हिस्सा बनाओल जाइछ तऽ।

मुदा, विडम्बना ई छै जे, हम सब अपन बच्चा-विद्यार्थीसभकेँ आवश्यकतासँ बहुत बेसी अंग्रेजी सिखबैत छी, अपनासब अपन बच्चासभकेँ क्षमतासँ बेसी पर्यायवाची, औपचारिक, अनौपचारिक, विपरीतार्थक शब्दसब दिमागमे रखबाक लेल बाध्य कऽ रहल छी। परिणाम स्वरूप, अन्य विषयसब जेना गणित आ मातृभाषाक विषयमे दक्षता हासिल नइँ कऽ सकैछ।

की हम सब अपन बच्चा-विद्यार्थीसभक लेल एकटा–दूटा अंग्रेजी विषयक पुस्तकके जगह संस्कृत विषयक पुस्तक नइँ राखि सकैत छी ? अवश्य राखि सकैत छी, जे की अति आवश्यक अछि। एकर मतलब ई नइँ जे हम सब अंग्रेजी भाषाकेँ कम महत्व दऽ रहल छी। मुदा अइ ठाम ई महत्वपूर्ण छै जे हम सब अपन हजारो-लाखो वर्ष प्राचीन संस्कृत भाषा, साहित्य, ओ ग्रन्थसब जइमे ज्ञान–विज्ञानक परम्परा भरल अछि, ओहि अनमोल विरासतसबकेँ त्याग करबाक लेल तत्पर किए छी ?

विडम्बना ई छै जे हमर सभक भविष्यक नायक आ बिल्डर लोकनि अपन भाषा सीखैत छथि मुदा कनी-मनी। बुजुर्ग ओ अभिभावक लोकनिसबके अपन मन–मस्तिष्कमे ई राखऽ पड़तनि जे हुनकरसभक दउरा, सुरवाल, ढाका टोपी आ धोती, कूर्तासबसँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण हमरसभक संस्कृत ओ मातृभाषा अछि।

मातृभाषा लगायत दोसरो-तेसरो भाषा सीखब, आजुक आवश्यकता अछि। खास कऽ ओ भाषासब जे बहुत नजदीकक हो। अंग्रेजी स्कूलक बच्चा सब अपन अंग्रेजी भाषाकेँ बढ़ावा देबय लेल फ्रेंच, ग्रीक आ लैटिन सीखैत छै। हमरा लोकनि नीक जकाँ जनैत छी जे, अंग्रेजी भाषाक अपन मूल शब्द दस प्रतिशत सँ बेसी नइँ छै, तइयो ई दुनियाक आन भाषासभक शब्दसभ उधार लऽ कऽ पुरा दुनियाँक भाषा बनि गेल छै।

जहाँ धरि हमर सभक मामला अछि, तऽ हमरा सभक पहिल भाषा सोझे संस्कृतसँ आएल अछि। यदि अहाँ नेपाली भाषी छी तऽ अहाँके हिन्दी बाजए लेल कोनो स्कूल या विश्वविद्यालयमे औपचारिक शिक्षा लेबाक कोनो आवश्यकता नइँ। तहिना हिन्दी भाषीके नेपाली भाषा सिखबाक लेल मात्र एक-दू मास धरि नेपाली भाषीसभक संघतिमे रहि नीक सँ सिख सकैत छथि।

तेँ ई अनिवार्य देखल जाइछ जे हमरसभक बच्चासभ अपन मातृभाषाक संरक्षण ओ विकासक लेल संस्कृत सीखए। इयह विचार ओ कारण छल, जहिया नव शिक्षा योजना शुरू भेल छल तऽ हमरासभक शिक्षाविद लोकनिकेँ १९७१ सँ पहिने छट्ठम (६) कक्षा सँ दशम (१०) कक्षा धरि संस्कृतक प्रस्ताव देबाक लेल प्रेरित कएलक। विश्व भरिके शिक्षाविद लोकनि अइ बात पर सहमत छथि जे प्राथमिक शिक्षा बच्चा सभक मातृभाषामे अवश्य देबाक चाही, जे पहिल भाषा अछि।

तखन नेपाली बच्चा सबके अंग्रेजीमे पढ़ाबएके पाछु की मतलब छै जखन कि ओकरा अपन मातृभाषाक बारेमे किछु बुझले नइँ छै ? एतबे नइँ, हमसब प्राथमिक कक्षासबमे अंग्रेजीमे पाँच टा–छौ टा पुस्तक रखबाक लेल किए बाध्य कऽ रहल छी ? की एकटा औसत क्षमताक विद्यार्थी अंग्रेजीमे लिखल सबटा विषयसबकेँ पकड़ि सकैत अछि ? खैर, ग्रेड ३ सँ अंग्रेजी सीखए दियौक, आ आवश्यकता पड़ला पर बढ़ैत-बढ़ैत आओर अंग्रेजी पाठकक ढेर लगाबऽ दियौक!

जहाँ धरि संस्कृत पढ़एबाक बात अछि तऽ हमरासभक स्कूलक विद्यार्थीसबकेँ छठ्म कक्षासँ बारहम कक्षा धरि संस्कृतकेँ प्राथमिक विषयक रूपमे लागू कए अध्ययन कराओल जाए। जइ विद्यार्थीसभके संस्कृत आओर पढ़बाक इच्छा होएत, तऽ विशेषज्ञता धरि निरन्तरता दऽ सकताह।

बालकेश्वर ठाकुर

रा.रा.ब. क्याम्पस, जनकपुरधामक सेवानिवृत्त सह-प्राध्यापक ।
(श्रोत: The Himalayan Times on 13 August 2024.)
अनुवाद – कैलाश कुमार ठाकुर

कैलाश कुमार ठाकुर

कैलाश कुमार ठाकुर [Kailash Kumar Thakur] जी आइ लभ मिथिला डट कमके प्रधान सम्पादक छथि। म्यूजिक मैथिली एपके संस्थापक सदस्य सेहो छथि। Kailash Kumar Thakur is Chef Editor of ilovemithila.com email - [email protected], [email protected] +9779827625706

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