निर्माता ओ निर्देशक : सरिता साह
राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय संघ-संस्था ओ प्राज्ञ लोकनिसभक ध्यान आकृष्ट मात्रे नइँ अपितु ससम्मान पुरस्कृत सेहो भऽ रहल अछि

राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय संघ-संस्था ओ प्राज्ञ लोकनिसभक ध्यान आकृष्ट मात्रे नइँ अपितु ससम्मान पुरस्कृत सेहो भऽ रहल अछि सरिता साह जीक लघु-फिल्मसब। मुदा, मधेश प्रदेश सरकार, मुख्यमन्त्री तथा मन्त्रीसब एतेक महत्वपूर्ण बात-विषयसभसँ अनभिज्ञ छथि। एकर कारण की ?
बितल अगहन २२ गते सनिदिन (वि.सं.२०८१) काठमांडूमे निर्माता ओ निर्देशक सरिता शाहक फिल्म ‘सिया’ आ रजिला श्रेष्ठक ‘छेसाङ : द अनटोल्ड स्टोरी’केँ आइवार्टमे विशेष पुरस्कारसँ पुरस्कृत कएल गेल। रेडियो आ टेलिभिजनसँ आबद्ध पत्रकार महिलासभक संस्था ‘आइएडब्लुआरटी आ आइवार्ट (इन्टरनेसनल एसोसिएसन अफ वुमन इन रेडियो एण्ड टेलिभिजन)क नेपाल-चैप्टर द्वारा ‘पाँचम लघु फिल्म प्रतियोगिता-२०२४’ आयोजन करैत महिला फिल्मकर्मीसभकेँ ससम्मान पुरस्कृत कएल गेल।
ओई प्रतियोगितामे ज्योत्सना सिंह ठकुरी द्वारा निर्देशित ‘द कल’ फिल्मकेँ विजेता घोषणा कएल गेल छल। उक्त प्रतियोगितामे १८ टा छोट फिल्मसब सहभागी भेल रहे। एहिठाम, मिथिला-नेपालक ई बेटी – सरिता साह जीक काज ओ संघर्षक बारेमे चर्चा करब आवश्यक होइछ।
महोत्तरी जिला, औरही नगरपालिका, टिम्किया गाम निवासी कलाकार, फिल्मकार, निर्माता ओ निर्देशक सरिता शाहकेँ मिथिला-मधेशक बहुत कम युवा-युवती तथा आमलोक जनैत होइ मुदा, काठमाण्डूक फिल्मकार, नाटककार, निर्देशक तथा मिडियाकर्मीसब समेत हिनकर काम ओ काबिलियतसँ परिचित छथि तथा हिनका लेल निक मान-सम्मान तथा बहुत साकारात्मक विचार-भाव-व्यवहार रखैत छथि, जे की साह जी डिजर्व करैत छथि।
सरिता जीक अध्ययन ओ औपचारिक शिक्षाक बात कएल जाए तऽ स्नातक मैथिली आ समाजशास्त्र विषयसँ पुरा कऽ, स्नातकोत्तर (एम.ए. समाजशास्त्र) क अध्ययनकेँ निरन्तरता देने छथि।
दश कक्षा उत्तीर्ण कएलाक बाद जनकपुरधाममे इन्टरमीडिएटक अध्ययन करैत समय सरिता जी रेडियो टुडेसँ आबद्ध भऽ समाचार वाचन तथा रेडियो नाटक संगोरसँ रविन्द्र झा संग अभिनयक आरम्भ कएलथि तथा डेढ़ दू साल धरि काज कएलथि। तेकर बाद काठमांडूक ‘शिल्पी थिएटर’ नामक संस्था द्वारा ‘कचहरी’ (महिला हिंसा सम्बन्धि) नाटकमे सेहो मिथिला-नेपालक प्रसिद्ध कलाकार रविन्द्र झाजी संग काज कएलथि। ई नाटक भरि नेपालमे साठि टा अलग-अलग जगह पर प्रदर्शन कएल गेलै, जाहिमे हिनका नाटक ओ अभिनय सम्बन्धि बहुत रास अति आवश्यक बात सब सिखबाक-बुझबाक अवसर भेटलनि।
पुनः काठमांडूएमे रहैत शिल्पी थिएटरसँ औपचारिक रूपेँ आबद्ध भऽ सिखैत-बुझैत सांगोपांग चारि साल धरि नाटकसबमे काज कएलथि। ओकर बाद स्वतन्त्र रूपेँ नाटकसबमे काज करब आरम्भ कएलथि एहि संग पहिल लूट-२ फिल्म लगायत आओर चारि टा फिल्ममे छोट-छोट भुमिकामे काज कएलथि, जाहिसँ फिल्ममे अभिनय तथा निर्माण सम्बन्धि टेक्निकल बात सब देखबाक-सिखबाक मौका भेटैत रहलनि।
अहिना किछु-किछु काज करैत-करैत नाटक तथा फिल्मसबमे सेहो अपनेसँ निर्देशनक काज आरम्भ कएलथि।
एहि क्रममे साह जी अपने लेखन, खर्च ओ निर्देशनमे चारि-पाँच टा मैथिली फिल्म (सर्ट फिल्म) बनौलथि – फगुनियाँ, द नोटबुक, कोल्हू, सीया आ सेवेन स्टेप्स।
ओ चारू मैथिली फिल्ममे मिथिला-मधेशक कथा-वस्तु समेटल गेल छै। फिल्म छोट होइतोमे फिल्मक हरेक पक्ष – चाहे ओ अभिनय होई, संवाद होई, मिथिला-मधेशक आमलोकक जीवन सन्दर्भ होई आ की टेक्निकल पक्ष … सबटा पक्ष दर्शककेँ प्रभावित करैछ। तेँ, तऽ हिनकर चारू मैथिली फिल्मकेँ राष्ट्रीय स्तरसँ लऽकऽ अन्तराष्ट्रीय स्तर धरि पहिचान, मान-सम्मान ओ पुरस्कार देल गेल।
पहिल फिल्म फगुनियाँमे सरिता जी स्वयं मुख्य पात्रमे छथि, तथा जान्हवी गुप्ता, मदन ठाकुर, धिरज ठाकुर, सुजिता साह, प्रदिप महतो, विद्या सिंह, प्रिती झा, शम्भु महतो, कृष्ण महतो, बिजय दास, आसा साह लगायतक अभिनय फिल्मकेँ अपन स्तरियता पर कायम रखने अछि। सभक अभिनय-काज एक रत्ती नइँ बेसी आ नइँ तऽ कम छनि। फिल्म बाल यौन हिंसा पर आधारित अछि, जे हिंसा मात्र मिथिला-मधेश-नेपालक विषय-वस्तु नइँ अपितु वैश्विक विषय-वस्तु छै। जाहि फिल्मक माध्यमसँ हरेक परिवार बाल यौन हिंसा प्रति जानकार ओ सजग होयब अति आवश्यक अछि से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष संदेश प्रसारित होइछ। एहन विषय-वस्तु पर फिल्म निर्माण करब तथा स्वयंके सेहो कथा ओ अभिनयक हिस्सामे रखबाक लेल बहुत साहस ओ उच्चस्तरीय चेतनाक आवश्यकता होइछ। आ ओ साहस, ओ चेतना मिथिलाक एहि धियामे छनि, जे फिल्मक माध्यमसँ मिथिला-नेपालक हरेक परिवार ओ समाज लेल अति आवश्यक अछि। आइवार्ट फिल्म महोत्सवमे एहि फिल्मकेँ सेहो पुरस्कृत कएल रहे। ई फिल्म युट्युब पर PaineePictures चैनल पर उपलब्ध अछि। अपने देख सकै छी।
एन्टागोनिस्टक रूपमे धिरज ठाकुर, ओ प्रोटागोनिस्टक रूपमे मदन ठाकुर आ प्रदिप महतो जीक अभिनय सेहो प्रसंसनिय अछि, एकदम कथा-वस्तु अनुसार स्वाभाविक अभिनय कएने छथि सबगोटे। धिरज जीक एक्कहुटा संवाद नइँ छनि, मुदा अपन हाव-भाव, भाव-भंगिमासँ युक्त साकार अभिनय कएने छथि। ई एकटा कुशल नर्तक (Dancer) सेहो छथि।
हिनका द्वारा निर्देशित दोसर फिल्म अछि ‘द नोटबुक’, जे आसमान नेपाल (एनजीओ) द्वारा निर्मित अछि। एहि फिल्मक लेखन कार्य अनिल कुर्मी जी कएने छथि। एहि फिल्मकेँ सेहो नेपालमे आइवार्ट द्वारा पहिल पुरस्कार तथा रसियामे समेत पुरस्कृत कएल गेल।
‘कोल्हू’ जे तेसर फिल्म अछि सरिता जीक, इहो फिल्मकेँ किछु प्रतिस्पर्धामे बहुत रास सराहना भेटल। एखन भर्खरे ‘सीया’ नामक फिल्म निर्माण कएने छथि, जेकरा आइवार्ट फिल्म प्रतियोगितामे स्पेशल फिल्म कहि कऽ पुरस्कार देल गेल छै एवं बहुत रास सराहना।
सरिता जी द्वारा निर्मित ओ निर्देशित फिल्मसभकेँ राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय पहिचान ओ पुरस्कार भेट रहल छै, मुदा फिल्म निर्माण सम्बन्धि कोनो औपचारिक शिक्षा नइँ लऽ सकने छथि। तथापि, किछु छोट-छोट वर्कशपक माध्यमसँ बहुत किछु सिखैत आबि रहल छथि तथा स्वयंकेँ नाटकक विद्यार्थी बुझैत छथि।
जाहि समयमे ई अभिनय कलाकेँ पेशाक रूपमे अपनएबाक आरम्भ कएलथि, ओ समय वा १५-२० वर्ष पहिने सहज नइँ रहै। कारण मैथिली नाटक ओ सिनेमामे महिला एवं लड़कीसब द्वारा काज करएबला उपयुक्त माहौलक निर्माण नइँ भेल रहै। अपन गाममे नाटकसब होइत देखि हिनको मनमे नाटकमे काज-अभिनय करबाक इच्छा होई मुदा, लडकीयो बला पात्रक भुमिका लड़केसब द्वारा कएल जाएत रहै। कारण, टिवीमे हिन्दी नेपाली फिल्मसब देखएबला गाम-समाजक लोक अभिनयकेँ निम्न स्तरक काजक रूपमे देखैत छलथि। कतेक लोक तऽ इहो कहै जे गीत-संगीत-नृत्य ओ अभिनयमे बिगड़ल लड़का-लड़की सब जाई छै, वा जे पढ़ाई-लिखाईमे नइँ सकै छै ओ सब मात्रे एहन तरहक काज करैछ। एखनो किछु हद धरि ओहने माहौल-मानसिकता छै, तथापि लोकसब फिल्म निर्माण सम्बन्धि काजकेँ बुझबाक प्रयत्न कऽ रहल छथि, जे की मिथिला मैथिली लेल साकारात्मक बात-विचार छै – से सरिता जीक अनुभव छनि।
छोटे भुमिकामे सही, अपन दीदी-बहिन ओ परिवारक लगभग सब सदस्यकेँ कोनो नइँ कोनो फिल्ममे अभिनय करबा देने छथि सरिता जी। विशेष रूपसँ अपन दीदीकेँ तऽ अभिनयमे एतेक धरि आगा बढ़ा देलथि जे ओ आब स्वयं बहुत रास फिल्म ओ नाटकसबमे प्रोफेशनल रूपेँ काज कऽ रहल छथि। सरिता जी अपन मायकेँ सेहो अभिनय कला दिसि प्रोत्साहित एवं प्रशिक्षित कऽ रहल छथि, जे की मिथिला-मैथिली लेल उदाहरणीय काज अछि। हिनक माय-बाबू जी सेहो अपन बेटीक सफलता गाम-समाज सँ लऽकऽ राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय स्तर धरि पहुंचल देख गौरवान्वित होइत छथि, जे हिनक काजमे शुरूवेसँ हरेक तरहेँ सहयोग करैत आबि रहल छथि। चाहे आर्थिक रूपसँ हो, आ की फिल्म निर्माणक टेक्निकल टिम एवं कलाकार सभक लेल जल्खै, खान-पीन एवं आराम करबाक लेल आवासक व्यवस्था करबाक बात हो, सबटा काममे सहयोग रहैछ।
सरिता जी एखन धरि स्वयं अपन लगानी सँ फिल्म निर्माण करैत आबि रहल छथि। चाहे ओ नुने भात खाऽकऽ किए नइँ होई। हँ घर-परिवार एवं संगी-साथीसब सपोर्ट कऽ रहल छथि मुदा, आन व्यक्ति वा कोनो संस्थाक कोनो सपोर्ट नइँ। पहिने गामक लोकमे सेहो साकारात्मक भावनाक अभाव जकाँ बुझाई, मुदा छठि पवनीक समयमे कएल गेल एकल-नाटकसँ हुनको सभक बात-विचार-व्यवहारमे बहुत साकारात्मकता परिवर्तन भेल छनि।
मैथिली भाषाक सम्बन्धमे हिनको संग भेदभावबला बात-व्यवहार भेल छनि। जनकपुरमे रहैत समयमे कतेको रेडियो स्टेशनसबमे बेसी ब्राह्मण वा ‘अछि’ लगाकऽ बोलबला सबके कर्मचारीक रूपमे वा कार्यक्रम संचालन करबाक लेल राखल जाय। कतेक लोक तऽ इहो कहलकै जे ब्राह्मण जातिक लोक जाहि तरहेँ बजै छै, वयह मात्र मैथिली छै। ‘झा’ बाहेकक भाषा सोल्कन भाषा छै, जेहन अवैज्ञानिक ओ भाषाक वैश्विक-सिद्धान्त विपरीत बात स्वयं किछु ब्राह्मण जातिक लोक द्वारा हिनका सेहो हिनता बोध करएबाक लेल कहल गेलनि।
मुदा, जनकपुरमे ‘जनकपुर टुडे’ रेडियो स्टेशनमे श्रद्धेय बृज कुमार यादव जीक सानिध्यमे मैथिली भाषा प्रयोगक सम्बन्धमे बहुत सहजता-भाव बला माहौल भेटलनि।
ओतहि, काठमांडूमे मैथिली भाषाक नाटक एवं रेकर्डिंगसँ सम्बन्धित काजमे किछु लोकनि (मैथिली ब्राह्मण) हिनकर असहजताकेँ बुझलथि। अर्थात् , जाहि शब्द वा टोनसँ ई अभ्यस्त नइँ छथि, ओहिके लेल हिनका अपने तरहसँ रेकर्डिंग करबाक लेल एवं संवाद बोलबाक लेल प्रोत्साहित कएलथि। मुदा किछु लोक कठोरता देखएलथि, मतलब संवादमे जे-जाहि तरहेँ लिखल छै, ओहि तरहेँ बोलबाक छै जेहन दवाव देलथि। जाहि कारणेँ किछु महत्वपूर्ण काजसबसँ हिनका अलग होबए पड़लनि वा छोड़बाक लेल बाध्य भेलथि।
जाहि कारणेँ, किछु समय धरि अपने मातृभाषा मैथिली सम्बन्धमे नाकारात्मक भावसँ प्रभावित भेलथि। इयह कारणेँ आओर लोक सब अपने मातृभाषा मैथिलीकेँ आन-आन नाम कहऽ लगै छै, से हिनक अनुभव छनि। मुदा, सरिता जी जल्दिए ओहि हिनता बोध कराबए बला भ्रामक जालसँ बाहर आबि गेलथि। आ, आब तऽ एक वाक्यमे बहुत सटीक ओ सत्य-तथ्य आधारित बात कहैत छथि – “भाषा कोनो एकटा परिवार वा जातिके नइँ होइ छै। भाषा ओकर होइ छै जे लोक एवं समुदाय ओहि के बेसी स बेसी प्रयोग करै छै। एम्हर, जखन मधेश प्रदेशक काम-काजी भाषा मैथिलीक बात चललै, तऽ आब सब गोटे कहैत छथि जे सब मैथिलीए छै।” जाहि साकारात्मक विचार-भावकेँ बहुत साकारात्मक रूपेँ देखल जा रहल छै।
मैथिली भाषाक फिल्म ओ नाटक एखनो धरि अपन व्यावसायिक रूप नइँ बनाइब सकल प्रति विशेष चिन्ता प्रकट करैत सरिता जी कहैत छथि जे नेपाली भाषी लोक काठमांडू लगायत अन्य जगह पर सेहो नेपाली फिल्म ओ नाटकक लेल व्यावसायिक रूप निर्माण कऽ लेने छथि। ओहि ठामक लोक टिकट कटा कऽ नाटक देखऽ जाइ छथि। मुदा, जनकपुरमे कहुना कऽ एकटा हल बनलै, उहो संचालनमे नइँ आबि सकल छै। एहिमे बहुत हद धरि एकलौटी सोँच ओ व्यवहार सेहो हाबी छै।
सरिता कहैत छथि जे – दक्षिण भारतक तमिल, तेलुगू, कन्नड भाषी सब अपन भाषाक साहित्य, फिल्म ओ नाटकक विकास तीव्र रूपेँ करैत वैश्विक स्तर पर पहुंचल छथि। ओहि ठाम यदि कोनो नीक फिल्म रिलीज होइ छै तऽ सरकार छुट्टी धरि दऽ दै छै। एहि सँ बूझू जे ओ भाषा बला सब कतेक साकारात्मक आ शिक्षित छथि अपन भाषा, साहित्य, फिल्म ओ नाटकसबके लेल। मुदा, मैथिली भाषामे काज कएनिहार नाटक / संस्थासभ एखनो ओहि स्तर धरि नइँ जा सकि रहल छै।
सरिता जी चाहै छथि जे हमरा सभक अपन मैथिली भाषा, साहित्य, सिनेमाक विकास होइ। ताहि लेल हमरा सभक अपन नाटक थिएटर वा रंगमञ्च होइ, ओहिमे अभ्यास, प्रयोग ओ परिक्षण करबाक लेल अत्याधुनिक टेक्नोलोजीसँ सम्पन्न जगह आ टिम सेहो होइ। जाहि थिएटरमे जटिल सँ जटिल नाटकके प्रस्तुत कएल जा सकैए। ओना काठमांडूमे वा नेपाली फिल्मसबमे किछु मधेशी कलाकार सबकेँ छोट-छिन रोलमे काज करबाक अवसर भेटैत रहैत छै, मुदा ताहिसँ सरिता जी प्रसन्न नइँ छथि। कारण ओहि सँ नइँ त पारिश्रमिक निक भेटै छै आ नइँ त कलाकारक कैरियर आगा बढ़ै छै। तइ द्वारे मिथिला-मधेशमे फिल्म, रंगमंच ओ नाटक लेल आधारभूत संरचनासभक विकास सबल ढंग सँ होइ तथा कलाकार सब निक सँ निक काज क सकए तथा ओहि अनुरूप ओकरा सबके निक पारिश्रमिक सेहो भेटै, तेहन वातावरण ओ अवस्थाक निर्माण करबा पर जोड़ दैत छथि।
मिथिला-मधेशक जीवन-कथाके बारेमे सरिता जीक कहब छनि जे एखन धरि फिल्मसबमे एक्को प्रतिशत कथा मिथिला-मधेशक नइँ आएल छै, जखन की मिथिला-मधेश कथासभक खानी छै। नेपाली फिल्मक एगो-दूगो निर्देशकसब मिथिला-मधेशक कथा पर हावा तालमे फिल्म बनौने छथि। ओ सब नइँ तऽ एहिठामक अध्ययन कएने छथि, नइँ तऽ एहिठामक वास्तविक जीवन-कथा भोगने छथि, तऽ केना हमरा-अहाँके कथा सिनेमामे उताड़ि सकत। हँ, एहिठामक लोक निर्देशक रूपमे काज करत, तऽ बहुत हद धरि सम्भव छै जे एहिठामक वास्तविक जीवन-कथा सिनेमामे देखा सकै, जे की हमरा सभक लेल बहुत आवश्यक छै। अई बातचीतक दौरान इहो जानकारी भेटल जे आगामी –
दू-तीन महिनामे हिनकर दू टा आओर लघु-फिल्म मैथिलीमे आबि रहल छनि तथा एकटा फिचर फिल्म पर सेहो काज चलि रहल छै, जे की मैथिली-नेपाली – दूनू भाषामे रिलीज कएल जाएत। एहि लेल हिनका बहुत रास अग्रिम शुभकामना !
मिथिला-मधेशक कलाकार सभक लेल कोनो संस्था वा ‘मधेश चलचित्र विकास बोर्ड’ द्वारा कोनो सहयोग वा सहकार्य कएल गेल प्रश्न पुछला पर जे बातसब सामने अबैत छै, ओ बहुत दुखी आ निराश करएबला मात्रे नइँ, अपितु निन्दनिय सेहो छै। अर्थात, ‘मधेश चलचित्र विकास बोर्ड’ एखन धरि फिल्म निर्माण ओ अभिनय सम्बन्धि एक्कोटा काम नइँ कएने छै, नइँ अभिनय लेल वर्कशप, नइँ तऽ फिल्म निर्माण सम्बन्धि वर्कशप करौने छै, नइँ तऽ कोनो कलाकार वा फिल्म / सर्ट फिल्म / डकुमेंट्रीकेँ प्रोत्साहन स्वरूपेँ पुरस्कृत कएने छै। तखन ‘मधेश चलचित्र विकास बोर्ड’के स्थापना कोन काज लेल कएल गेल छै ? आओर आश्चर्यके बात तऽ ई जे, बोर्डमे नियुक्त कएल लेल कर्मचारीसब नइँ तऽ अभिनयसँ जुड़ल छै आ नइँ तऽ फिल्म निर्माणसँ जुड़ल छै। तेँ, ई कहबामे कोनो गलत नइँ जे ‘मधेश चलचित्र विकास बोर्ड’के स्थापना मात्र किछु लोकक व्यक्तिगत स्वार्थ पुरा करबाक लेल मात्र कएल गेल छै। आश्चर्यक बात ई छै जे, किछु नेतासब लाखो रूपैया खर्च कऽ मिथिला-नेपालक कलाकारसभकेँ तथा आर्केस्ट्राके मञ्च पर अपन आगामे बैसि कऽ नचबै छथि, मुदा मिथिला-मधेशमे फिल्म निर्माण, निर्देशन, नृत्य-गीत-संगीतक विकास लेल किछु नइँ कऽ रहल छथि, एहन नेतासबके बारेमे की कहल जाए ? मतलब, उक्त विषयसभक बारेमे ओई नेतासभक समझ-बूझ जीरो छै, से कहल जा सकैछ ? एहि विषयमे तथाकथित नेतासब मात्रे दोषी नइँ बुझाइछ, शिर्ष स्तरक नेता सबसँ लऽ कऽ मैथिली भाषा, साहित्य, संस्कृति, सभ्यताक विकास, संरक्षण सम्वर्द्धन करबाक लेल ठाढ़ संघ-संस्थासब सेहो मौन सधने बुझाइछ, मूदा तेकर कारण की ?
उपरोक्त, अधिकांश बातसब सरिता जीसँ उत्सुकतावश कएल गेल बातचीत पर आधारित छै। जेकर निश्कर्शमे ई कहल जा सकैछ जे, मिथिला-नेपालक ई बेटी अपन मेहनतसँ, नाटक तथा फिल्म निर्माण ओ निर्देशनक औपचारिक-अनौपचारिक अध्ययनसँ, अपन लगानी, खर्च आ परिवार एवं साथी-संगीसभक सहयोगसँ खास कऽ मिथिला-मधेशक आमलोकक कथा ओ जीवन-संघर्ष तथा दुःख-सुखकेँ लघु-फिल्मक माध्यमे देश-विदेश धरि अवगत कराइब रहल छथि। जाहि कामकेँ-फिल्मकेँ राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय संघ-संस्थासब, सम्बन्धित विषय-वस्तुक प्राज्ञ लोकनिसब उच्च स्तरीय सराहना करैत ससम्मान पुरस्कृत समेत कऽ रहल छथि। मुदा, मधेश प्रदेश सरकार तथा अगुवा नेता-मन्त्रीसबकेँ नाटक, फिल्म निर्माण, निर्देशन, नृत्य-गीत-संगीतक शिक्षण-प्रशिक्षण सेहो समाज-राज्यक विकास लेल अति आवश्यक अछि तथा रोजगार एवं व्यावसायक आधार स्तम्भ अछि बात बुझिए नइँ सकल छथि, से कहब की अनुचित होएत ? आ की, तथाकथित विकासक नाम पर बामपन्थी सोँच-विचारसँ ग्रसित नेतासब स्थानीय भाषा, साहित्य, संस्कृति, सभ्यता आदिकेँ पूर्ण रूपेँ नष्ट करबाक लेल उद्दत छथि ?