चन्देश्वर खानद्वारा लिखित, [Maithili Short Story]
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बारीसँ बुढ़ीया चारिटा मूर उपारिक अनलकै। जोरसँ भूख लागल रहै, देवाल घड़ी दिस नजरि घुमौलक, घड़ीक सूइया बारह टपि गेल रहै। मोन पिटाट भऽ गेलै। जोरसँ गरजल अपना पोती पर
– ‘गेऽ रनीयाँ एखन धरि भातो नइँ भेलौअ, कखन बाबा खेथून्ह…?!
ओ दसे बजे नहा धोऽ कऽ तैयार भऽ जाइत छथि, कोनो सुधिये ने छनि! ई नहि बुझैत छथि जे जूति-बुधि आब दोसरा हाथ छै।
दु:खताह लोकके टेम-टेम पर दवाइ चाही। जखन ठीक टेम पर भानसे नहि हेतैक तऽ दवाइ कोना खायल जेतै !?’
बुढ़ी अपना सुरमे छलीह।
दोसर हन्नामे टी.भी. लग बैसल पुतौह बजलीह – ‘एतेक टेम बुझैत छथि तऽ अपनेसँ सभ किछु कऽ लेतिह से नइँ होइत छनि !?
हिनकासभक खातीरदारी करैत-करैत मरि रहल छी, तइयो हिनका सभक लेल धनिसन!
बुढ़ीयाक मुहक बोल मुहेमे रहि गेलै।